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हेट स्पीच मामले में SC की सख्त टिप्पणी-धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं?

हेट स्पीच मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि 'यह 21वीं सदी है, धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं?'. कोर्ट ने हेट स्पीच देने वालों पर सख्त कार्रवाई करने की जरूरत बताई है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पुलिस प्रमुखों को यह ब्योरा देने का निर्देश दिया कि नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 21, 2022, 4:18 PM IST

Updated : Oct 21, 2022, 5:08 PM IST

नई दिल्ली : नफरती भाषणों (हेट स्पीच) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. शीर्ष कोर्ट ने हेट स्पीच देने वालों पर सख्त कार्रवाई की जरूरत बताई है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 'यह 21वीं सदी है धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं?'

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने नफरत भरे भाषणों के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को कहा 'यह स्थिति एक ऐसे देश के लिए चौंकाने वाली है जिसे धर्म-तटस्थ माना जाता है.' जस्टिस जोसेफ की बेंच ने कहा कि ' 21वीं सदी में ये क्या हो रहा है, धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं. हमने ईश्वर को कितना छोटा बना दिया है. भारत का संविधान तो वैज्ञानिक सोच विकसित करने की बात करता है.'

दरअसल याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला ने शीर्ष अदालत का रुख कर केंद्र और राज्यों को देश भर में घृणा अपराधों और हेट स्पीच की घटनाओं की स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच शुरू करने का निर्देश देने की मांग की है. अब्दुल्ला ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और अन्य कड़े प्रावधानों को लागू करने की भी मांग की है ताकि घृणा अपराधों और घृणास्पद भाषणों पर अंकुश लगाया जा सके. उन्होंने कहा है कि नफरत भरे भाषण देने में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के सदस्यों की भागीदारी से मुस्लिम समुदाय को 'टारगेट और आतंकित' किया जा रहा है.

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि समस्या से निपटने के लिए कुछ करने की जरूरत है. नफरत फैलाने वाले भाषण देने या घृणा अपराधों में लिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.

सिब्बल ने कहा, हमें इस कोर्ट में नहीं आना चाहिए, लेकिन हमने कई शिकायतें दर्ज कराई हैं. अदालत या प्रशासन कभी कार्रवाई नहीं करता. हमेशा स्टेटस रिपोर्ट मांगी जाती है. ये लोग आए दिन कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं. बेंच ने पूछा - आप खुद भी कानून मंत्री थे? क्या तब कुछ किया गया? साथ ही पूछा कि नई शिकायत क्या है. इस पर सिब्बल ने भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा के भाषण का हवाला दिया. सिब्बल ने कहा कि कहा जा रहा है कि हम उनकी दुकान से सामान नहीं खरीदेंगे, नौकरी नहीं देंगे. प्रशासन भी कुछ नहीं करता है. सिब्बल ने अन्य घटनाओं का भी जिक्र किया.

सिब्बल ने कहा कि इस तरह के अभद्र भाषा का जवाब चुप्पी नहीं है और यह सुनिश्चित करने के लिए एसआईटी का गठन किया जाना चाहिए कि अभद्र भाषा का इस्तेमाल न हो.

इस पर बेंच ने कहा कि क्या मुसलमान भी हेट स्पीच दे रहे हैं? इस पर सिब्बल ने कहा कि नहीं और अगर वे करते हैं तो उनके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा, 'यह 21वीं सदी है धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं? अनुच्छेद 21 वैज्ञानिक सोच की बात करता है.' इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि बयान बहुत परेशान करने वाले हैं और भारत जैसे देश में जहां लोकतंत्र है, हम धर्म तटस्थ हैं ऐसे मामले एक समुदाय के खिलाफ हैं.

अदालत ने सवाल किया कि 'भगवान को हमने कितना छोटा बना दिया?' पहले भी अदालत ने राज्यों से कार्रवाई रिपोर्ट मांगी थी और इस पर कड़ी टिप्पणी की थी.

पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नफरत भरे भाषणों से देश का माहौल खराब, रोकने की जरूरत

नई दिल्ली : नफरती भाषणों (हेट स्पीच) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. शीर्ष कोर्ट ने हेट स्पीच देने वालों पर सख्त कार्रवाई की जरूरत बताई है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 'यह 21वीं सदी है धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं?'

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने नफरत भरे भाषणों के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को कहा 'यह स्थिति एक ऐसे देश के लिए चौंकाने वाली है जिसे धर्म-तटस्थ माना जाता है.' जस्टिस जोसेफ की बेंच ने कहा कि ' 21वीं सदी में ये क्या हो रहा है, धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं. हमने ईश्वर को कितना छोटा बना दिया है. भारत का संविधान तो वैज्ञानिक सोच विकसित करने की बात करता है.'

दरअसल याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला ने शीर्ष अदालत का रुख कर केंद्र और राज्यों को देश भर में घृणा अपराधों और हेट स्पीच की घटनाओं की स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच शुरू करने का निर्देश देने की मांग की है. अब्दुल्ला ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और अन्य कड़े प्रावधानों को लागू करने की भी मांग की है ताकि घृणा अपराधों और घृणास्पद भाषणों पर अंकुश लगाया जा सके. उन्होंने कहा है कि नफरत भरे भाषण देने में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के सदस्यों की भागीदारी से मुस्लिम समुदाय को 'टारगेट और आतंकित' किया जा रहा है.

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि समस्या से निपटने के लिए कुछ करने की जरूरत है. नफरत फैलाने वाले भाषण देने या घृणा अपराधों में लिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.

सिब्बल ने कहा, हमें इस कोर्ट में नहीं आना चाहिए, लेकिन हमने कई शिकायतें दर्ज कराई हैं. अदालत या प्रशासन कभी कार्रवाई नहीं करता. हमेशा स्टेटस रिपोर्ट मांगी जाती है. ये लोग आए दिन कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं. बेंच ने पूछा - आप खुद भी कानून मंत्री थे? क्या तब कुछ किया गया? साथ ही पूछा कि नई शिकायत क्या है. इस पर सिब्बल ने भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा के भाषण का हवाला दिया. सिब्बल ने कहा कि कहा जा रहा है कि हम उनकी दुकान से सामान नहीं खरीदेंगे, नौकरी नहीं देंगे. प्रशासन भी कुछ नहीं करता है. सिब्बल ने अन्य घटनाओं का भी जिक्र किया.

सिब्बल ने कहा कि इस तरह के अभद्र भाषा का जवाब चुप्पी नहीं है और यह सुनिश्चित करने के लिए एसआईटी का गठन किया जाना चाहिए कि अभद्र भाषा का इस्तेमाल न हो.

इस पर बेंच ने कहा कि क्या मुसलमान भी हेट स्पीच दे रहे हैं? इस पर सिब्बल ने कहा कि नहीं और अगर वे करते हैं तो उनके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा, 'यह 21वीं सदी है धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं? अनुच्छेद 21 वैज्ञानिक सोच की बात करता है.' इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि बयान बहुत परेशान करने वाले हैं और भारत जैसे देश में जहां लोकतंत्र है, हम धर्म तटस्थ हैं ऐसे मामले एक समुदाय के खिलाफ हैं.

अदालत ने सवाल किया कि 'भगवान को हमने कितना छोटा बना दिया?' पहले भी अदालत ने राज्यों से कार्रवाई रिपोर्ट मांगी थी और इस पर कड़ी टिप्पणी की थी.

पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नफरत भरे भाषणों से देश का माहौल खराब, रोकने की जरूरत

Last Updated : Oct 21, 2022, 5:08 PM IST
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