हैदराबाद : बिहार की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी ने प. बंगाल के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में 40 फीसदी वोट हासिल करने के बाद पार्टी के हौसले बुलंद हैं. हालांकि, उसके बाद हुए उपचुनाव में पार्टी उम्मीद के अनुरूप सफलता हासिल नहीं कर सकी. पर, पार्टी मानती है कि उपचुनाव और मुख्य चुनाव में काफी अंतर होता है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगातार बंगाल का दौरा कर रहे हैं. पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए 'मेरा बूथ, सबसे मजबूत' कैंपेन चलाने का फैसला किया है. हर बूथ के लिए अलग-अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है. आइए जानते हैं क्या ममता के दुर्ग में भाजपा सेंध लगा पाएगी या फिर उसे अभी लंबा इंतजार करना होगा.
2011 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर मात्र चार फीसदी था. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 18 फीसदी मत मिले, लेकिन सीटें मात्र दो मिलीं. टीएमसी को 34 सीटें मिली थीं. अगले लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को 40.2 फीसदी वोट हासिल हुआ. 42 में से 18 सीटें जीतकर पार्टी ने टीएमसी को चौंका दिया. भाजपा ने 21 सीटों का लक्ष्य रखा था. उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल में पार्टी को व्यापक सफलता मिली. इसके बाद पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की उम्मीदें बढ़ गईं हैं.
बिना चेहरे के मैदान में भाजपा
भाजपा ने यह तय कर रखा है कि वह बिना किसी चेहरे के ही बंगाल चुनाव लड़ेगी. यह रणनीति कितनी कारगर होगी, कहना मुश्किल है. लेकिन पार्टी का मानना है कि किसी एक चेहरे को आगे करने पर दूसरे नेता नाराज हो सकते हैं, लिहाजा इस वक्त किसी को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करेगी. तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां इसे भाजपा की कमजोरी मानती हैं. वे इस मुद्दे पर बार-बार भाजपा को घेरने की कोशिश करते हैं. इन पार्टियोें का कहना है कि बंगाल में वही सफल होता है, जिसके पास चेहरा होता है.
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि नेहरू के समय में भी प. बंगाल में वही नेता सफल होते थे, जिनके पास अपना स्वतंत्र वोट बैंक हुआ करता था. वीसी रॉय वैसे ही नेताओं में शामिल थे. वाम दलों की ओर से ज्योति बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य का नाम लिया जा सकता है. उसके बाद ममता बनर्जी ने व्यक्तिगत करिश्मा की बदौलत लेफ्ट को धाराशायी कर दिया. लेकिन भाजपा के पास उनके कद का कोई नेता नहीं है.
भाजपा इसे अपनी कमजोरी नहीं मानती है. पार्टी का कहना है कि नरेंद्र मोदी उनका सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड हैं. उनके प्रति लोगों में असीम विश्वास है.
इसके ठीक उलट तृणमूल समर्थकों का मानना है कि मोदी फैक्टर लोकसभा में तो काम करता है, लेकिन विधानसभा में भी काम करेगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता है. वे झारखंड, छत्तीसगढ़, दिल्ली, पंजाब, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का उदाहरण देते हैं. इन सभी राज्यों में मोदी प्रचार के लिए गए, लेकिन उनकी पार्टी सत्ता में नहीं आ सकी.
एंटी इनकंबेंसी फैक्टर
ममता बनर्जी 2011 से ही मुख्यमंत्री हैं. भाजपा का मानना है कि एंटी इनकंबेंसी फैक्टर की वजह से उन्हें फायदा मिलेगा. पार्टी के अनुसार वाम दलों और कांग्रेस के प्रति लोगों में नाराजगी है.
पर, यहां पर एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है, आजकल कई राज्यों में एक ही पार्टी को जनता कई बार मौका देती है. बिहार में नीतीश कुमार, गुजरात में लगातार भाजपा की जीत, ओडिशा में नवीन पटनायक का नाम लिया जा सकता है, तो क्या ममता को फिर से मौका नहीं मिल सकता है.
भाजपा का कहना है कि ममता को जनता इस बार मौका नहीं देगी, क्योंकि कानून-व्यवस्था से लेकर विकास के मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है. उनकी शासन व्यवस्था लचर है. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में पं. बंगाल में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि ममता सरकार केंद्र की योजनाओं को लागू नहीं कर रहीं हैं. जिसकी वजह से 4.57 करोड़ लोगों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है. इसलिए आप लोग इसके बारे में जनता को बताइए.
भाजपा ने एनआरसीबी के आंकड़े को सामने रखते हुए कहा कि 2019 में बंगाल में सबसे अधिक राजनीतिक हत्याएं हुईं. यह संख्या12 है. भाजपा का आरोप है कि ये संख्या इससे अधिक है. पार्टी का आरोप है कि 2019 में उसने 250 कार्यकर्ता खोए हैं.
बिहार की जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, 'चुनाव आते जाते रहते हैं, लेकिन मौत के खेल से कोई मत नहीं पा सकेगा. ये दीवार पे लिखे हुए शब्द पढ़ लेना.' साफ तौर पर उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा बंगाल में हो रही राजनीतिक हत्याओं की ओर ही था.
दूसरा बड़ा सवाल यह है कि एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को काटने के लिए ममता चाहेंगी कि विपक्षी दलों के वोटों में बंटवारा हो. वह चाहती हैं कि लेफ्ट और कांग्रेस एक साथ लड़ें. टीएमसी के मुताबिक ऐसा करने से भाजपा और लेफ्ट गठबंधन के बीच विपक्षी वोटों का बंटवारा होगा. पर, भाजपा ऐसा नहीं मानती है.
पार्टी का कहना है कि यदि लेफ्ट और कांग्रेस एक साथ आते हैं, तो ये टीएमसी के वोट को ही हथियाएंगे. हां, यदि लेफ्ट, टीएमसी, कांग्रेस एक साथ आ जाएं, तो स्थिति थोड़ी मुश्किल हो जाएगी. आज की स्थिति के मुताबिक तीनों पार्टियां एक साथ आएंगी, ऐसा लगता नहीं है.
बागी फैक्टर
भाजपा अपनी सफलता के लिए बहुत हद तक तृणमूल कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों पर भी निर्भर है. 10 नवंबर को टीएमसी नेता शुभेंदु मुखर्जी ने स्वतंत्र रूप से रैली का आयोजन किया था. इस पर टीएमसी ने तंज कसा कि हमारे लोग भी भाजपा की मदद कर रहे हैं. मुकुल रॉय जैसे नेता पहले ही भाजपा का दामन थाम चुके हैं. वह अभी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. रॉय ममता के प्रमुख रणनीतिकार रह चुके हैं. टीएमसी से आए अनुपम हाजरा को भी पार्टी ने महासचिव बनाया है.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लोकसभा चुनाव के समय कई जगहों पर वाम समर्थकों ने बड़ी संख्या में भाजपा का समर्थन किया था. क्योंकि वे लोग हर हाल में टीएमसी को हराना चाहते थे. क्या आगे भी ऐसी स्थिति रहेगी, यह देखना दिलचस्प होगा.
भाजपा का कहना है कि उनका बेस प. बंगाल में लंबे समय से रहा है, लेकिन अब तक किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. उनका कहना है कि आरएसएस के संस्थापक डॉ केबी हेडगेवार ने कोलकाता में ही चिकित्सा की शिक्षा ली थी. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म कोलकाता में हुआ था.
जानकारों का कहना है कि आरएसएस यहां पर लंबे समय से सक्रिय रहा है. बहुत छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन उसकी उपस्थिति रही है.
तुष्टीकरण पर प्रहार
राज्य में 28 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 294 विधानसभा की सीटों में से 90 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं. भाजपा बार-बार इमामों को दी जाने वाली मासिक सैलरी का मुद्दा उठाती है. पार्टी का आरोप है कि इनमें से कई इमाम आज टीएमसी के कार्यकर्ता बन चुके हैं.
भाजपा बार-बार एनआरसी और सीएए का मुद्दा उछालती रहती है. अभी हाल ही में अमित शाह मतुआ समुदाय को साधने के लिए उन इलाकों में गए, जहां उनकी आबादी अधिक है. मतुआ समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से आए थे. नागरिकता संशोधन कानून के तहत उन्होंने नागरिकता देने की मांग की है. भाजपा ने इनके प्रमुख नेता शांतनु ठाकुर को लोकसभा का टिकट दिया था. वह सांसद हैं.
भाजपा ओवैसी फैक्टर पर भी निर्भर है. पार्टी मानती है कि जिस तरह से ओवैसी ने बिहार के सीमांचल इलाके में महागठबंधन का खेल बिगाड़ा, कुछ हद तक यहां भी एआईएमआईएम अपना प्रभाव छोड़ सकती है. ओवैसी ने पहले ही घोषणा कर रखी है कि उनकी पार्टी बंगाल का चुनाव लडे़गी.
भाजपा बार-बार दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा और मंदिरों के मुद्दे को उठाती रही है. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने हाल के प. बंगाल दौरे में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि ममता दीदी ने 31 अगस्त (ईद के दिन) लॉकडाउन हटा दिया था, लेकिन पांच सिंतबर (अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखने जाने के दिन) लॉकडाउन लगा दिया था. पार्टी इस मुद्दे को गरम रखना चाहती है. पार्टी इसके जरिए कोर वोटर को बार-बार जागृत रखना चाह रही है.
संभवतः ममता भी इसे समझ चुकी हैं. इसलिए उन्होंने पूजा कमेटी को पैसा देने की घोषणा की थी. हालांकि, ऑन रिकॉर्ड वे ऐसा नहीं मानती हैं.
कोर ग्रुप
जेपी नड्डा ने अपने कार्यकर्ताओं से साफ तौर पर कहा है कि हर बूथ के लिए अलग-अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाना है. मेरा बूथ, सबसे मजबूत का कैंपेन चलाने का फैसला किया है. इस रणनीति से पार्टी ने कई चुनाव जीते हैं. सभी नेताओं को सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने को कहा गया है. संभवतः यही वजह है कि पार्टी ने वहां पर आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय को भेजा है.
पार्टी ने 11 नेताओं की कोर टीम बनाई है. ये हैं कैलाश विजयवर्गीय, बीएल संतोष, दुष्यंत गौतम, अमित मालवीय, अरविंद मेनन, सुनील देवधर, विनोद तावडे, हरीश द्विवेदी, विनोद सोनकर, किशोर वर्मन और अमित चक्रवर्ती.
294 विधानसभा सीटों को पांच जोन में बांटा गया है. हर जोन पर अलग-अलग केंद्रीय महासचिव निगरानी रखेंगे.
यह देखना दिलचस्प होगा कि विधानसभा चुनाव में पार्टी कुछ कमाल कर पाती है या फिर उसे अभी लंबा इंतजार करना होगा.