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श्रीलंका के वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे का भारत दौरा, जानें क्या हैं इसके मायने

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Published : Mar 14, 2022, 7:33 PM IST

श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे (Sri Lanka Finance Minister Basil Rajapaksa) मंगलवार को भारत दौरे पर पहुंच रहे हैं. इस मसले पर पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल (Former Foreign Secretary Kanwal Sibal) ने कहा कि ऐसे समय में जब श्रीलंका सबसे बड़े आर्थिक पतन का सामना कर रहा है, तो चीन मदद करने आगे नहीं आया बल्कि वह भारत था, जिसने मदद की. पढ़ें यह रिपोर्ट.

Rajapaksa
बासिल राजपक्षे

नई दिल्ली: ईटीवी भारत से बात करते हुए भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल (Former Foreign Secretary Kanwal Sibal) ने कहा कि हमने श्रीलंका को बहुत अधिक वित्तीय सहायता दी है. अभी कुछ हफ्ते पहले ही श्रीलंका के विदेश मंत्री जीएल पेइरिस ने भारत का दौरा किया था. तब भारत ने 900 मिलियन अमरीकी डालर की घोषणा की थी.

इसके विपरीत श्रीलंकाई सरकार बीजिंग के दबाव के आगे झुक गई और उर्वरकों के शिपमेंट के लिए लगभग 6.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करने के लिए सहमत हो गई. जिसे उसने पहले घटिया मानकर खारिज कर दिया था. इस वक्त श्रीलंका बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. श्रीलंका के वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे आर्थिक साझेदारी को मजबूत करने और अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए 15 मार्च को भारत का दौरा करेंगे. द्वीप राष्ट्र ने भारत से 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन भी मांगी है. यह पिछले तीन महीनों में नई दिल्ली की उनकी दूसरी यात्रा होगी, जो देश की चरमराती अर्थव्यवस्था और गंभीर संकट के समय अपने दोस्तों की तलाश करने की तात्कालिकता को प्रदर्शित करता है.

जब यह टिप्पणी करने के लिए कहा गया कि नई दिल्ली अब फिर से हमारे दक्षिण एशियाई पड़ोसी को अतिरिक्त वित्तीय सहायता देगी तो सिब्बल ने दृढ़ता से जवाब दिया कि हां, हमें देना चाहिए क्योंकि यह हमारी सुरक्षा के लिए बहुत विशिष्ट है. चीन ने श्रीलंका में गहरी पैठ बना ली है. बड़ी मात्रा में पूंजी लगाने व चीन के कर्ज जाल का भी मुद्दा है. लेकिन हमें पता होना चाहिए कि चीन और श्रीलंका के बीच संबंध सिर्फ पैसे का है. यह सिर्फ आर्थिक संबंध है और इससे आगे कुछ भी नहीं है.

जबकि भारत व श्रीलंका के साथ संबंधों के व्यापक आयाम हैं. चाहे वह संस्कृति का हो, साझा इतिहास हो या लोगों से लोगों के संपर्क का हो. लेकिन क्या वित्तीय सहायता द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगी, यह एक ऐसा सवाल है जो अभी भी नई दिल्ली के राजनयिक हलकों पर हावी है? इस बारे में पूछे जाने पर सिब्बल ने जवाब दिया कि चीनियों ने खुद कहा है कि आपके पड़ोस में आपके दोस्त, दूर के दोस्तों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं. इसलिए मुझे उम्मीद है कि नई दिल्ली ठीक तरह से आर्थिक संकट का जवाब दे रही है.

चीन के निवेश और हिंद महासागर पर हावी होने की उनकी गुप्त रणनीति के सवाल पर सिब्बल ने कहा कि जब भारत-चीन की बात आती है तो श्रीलंका ने हमेशा नेपाल के समान नीति अपनाई है. नौकरशाही में और श्रीलंका की सत्ताधारी सरकार में ऐसे तत्व हैं जो हमारे प्रति विशेष रूप से मित्रवत नहीं हैं. मालदीव के कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन में भारत के एनएसए अजीत डोभाल ने मादक पदार्थों की तस्करी और साइबर-सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की भविष्य की संभावना रखी और कुछ ने इसे एशिया का क्वाड भी कहा. इसलिए हम अपने भागीदारों के साथ लगातार संपर्क में हैं और समुद्री सहयोग को बढ़ा रहे हैं.

यह भी पढ़ें- विदेशी मुद्रा संकट से जूझ रहे श्रीलंका के पास ईंधन खरीदने के लिए नकदी नहीं

जहां तक भू-राजनीति का सवाल है तो श्रीलंका, भारत की स्थिति समान है. दोनों राष्ट्रों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण पर संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग से खुद को दूर रखने का विकल्प चुना. जबकि पश्चिम ने प्रतिशोध में मास्को पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जो भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र को हिला सकता है. तेल की कीमतों में उछाल के रूप में पहले से ही परेशानी शुरू हो चुकी है. यह पूछे जाने पर कि क्या इस बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी चर्चा की जाएगी. सिब्बल ने जवाब दिया कि बिल्कुल नहीं. हालांकि रूस पर पश्चिम द्वारा लगाए गए इन प्रतिबंधों का वैश्विक प्रभाव पड़ेगा लेकिन इस बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की जाएगी.

नई दिल्ली: ईटीवी भारत से बात करते हुए भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल (Former Foreign Secretary Kanwal Sibal) ने कहा कि हमने श्रीलंका को बहुत अधिक वित्तीय सहायता दी है. अभी कुछ हफ्ते पहले ही श्रीलंका के विदेश मंत्री जीएल पेइरिस ने भारत का दौरा किया था. तब भारत ने 900 मिलियन अमरीकी डालर की घोषणा की थी.

इसके विपरीत श्रीलंकाई सरकार बीजिंग के दबाव के आगे झुक गई और उर्वरकों के शिपमेंट के लिए लगभग 6.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करने के लिए सहमत हो गई. जिसे उसने पहले घटिया मानकर खारिज कर दिया था. इस वक्त श्रीलंका बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. श्रीलंका के वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे आर्थिक साझेदारी को मजबूत करने और अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए 15 मार्च को भारत का दौरा करेंगे. द्वीप राष्ट्र ने भारत से 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन भी मांगी है. यह पिछले तीन महीनों में नई दिल्ली की उनकी दूसरी यात्रा होगी, जो देश की चरमराती अर्थव्यवस्था और गंभीर संकट के समय अपने दोस्तों की तलाश करने की तात्कालिकता को प्रदर्शित करता है.

जब यह टिप्पणी करने के लिए कहा गया कि नई दिल्ली अब फिर से हमारे दक्षिण एशियाई पड़ोसी को अतिरिक्त वित्तीय सहायता देगी तो सिब्बल ने दृढ़ता से जवाब दिया कि हां, हमें देना चाहिए क्योंकि यह हमारी सुरक्षा के लिए बहुत विशिष्ट है. चीन ने श्रीलंका में गहरी पैठ बना ली है. बड़ी मात्रा में पूंजी लगाने व चीन के कर्ज जाल का भी मुद्दा है. लेकिन हमें पता होना चाहिए कि चीन और श्रीलंका के बीच संबंध सिर्फ पैसे का है. यह सिर्फ आर्थिक संबंध है और इससे आगे कुछ भी नहीं है.

जबकि भारत व श्रीलंका के साथ संबंधों के व्यापक आयाम हैं. चाहे वह संस्कृति का हो, साझा इतिहास हो या लोगों से लोगों के संपर्क का हो. लेकिन क्या वित्तीय सहायता द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगी, यह एक ऐसा सवाल है जो अभी भी नई दिल्ली के राजनयिक हलकों पर हावी है? इस बारे में पूछे जाने पर सिब्बल ने जवाब दिया कि चीनियों ने खुद कहा है कि आपके पड़ोस में आपके दोस्त, दूर के दोस्तों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं. इसलिए मुझे उम्मीद है कि नई दिल्ली ठीक तरह से आर्थिक संकट का जवाब दे रही है.

चीन के निवेश और हिंद महासागर पर हावी होने की उनकी गुप्त रणनीति के सवाल पर सिब्बल ने कहा कि जब भारत-चीन की बात आती है तो श्रीलंका ने हमेशा नेपाल के समान नीति अपनाई है. नौकरशाही में और श्रीलंका की सत्ताधारी सरकार में ऐसे तत्व हैं जो हमारे प्रति विशेष रूप से मित्रवत नहीं हैं. मालदीव के कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन में भारत के एनएसए अजीत डोभाल ने मादक पदार्थों की तस्करी और साइबर-सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की भविष्य की संभावना रखी और कुछ ने इसे एशिया का क्वाड भी कहा. इसलिए हम अपने भागीदारों के साथ लगातार संपर्क में हैं और समुद्री सहयोग को बढ़ा रहे हैं.

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जहां तक भू-राजनीति का सवाल है तो श्रीलंका, भारत की स्थिति समान है. दोनों राष्ट्रों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण पर संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग से खुद को दूर रखने का विकल्प चुना. जबकि पश्चिम ने प्रतिशोध में मास्को पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जो भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र को हिला सकता है. तेल की कीमतों में उछाल के रूप में पहले से ही परेशानी शुरू हो चुकी है. यह पूछे जाने पर कि क्या इस बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी चर्चा की जाएगी. सिब्बल ने जवाब दिया कि बिल्कुल नहीं. हालांकि रूस पर पश्चिम द्वारा लगाए गए इन प्रतिबंधों का वैश्विक प्रभाव पड़ेगा लेकिन इस बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की जाएगी.

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