नई दिल्ली : आंध्र प्रदेश में राजधानी विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें कोर्ट ने यह माना था कि राज्य विधायिका में राजधानी को स्थानांतरित करने, विभाजित करने के लिये कानून बनाने की क्षमता का अभाव है. सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार की इस याचिका पर नोटिस जारी किया. हाईकोर्ट द्वारा अमरावती को राज्य की एकमात्र राजधानी घोषित करने के फैसले को चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी के लिए छह महीने में निर्माण कार्य पूरा करने के लिए उच्च न्यायालय के 3 मार्च के निर्देश पर भी रोक लगा दी है.
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Supreme Court issues notice on a plea of Andhra Pradesh govt challenging the judgment of the HC declaring Amaravati as the only capital of the State. Supreme Court also stays the March 3 directions of the High Court to complete the construction work for the capital in six months. pic.twitter.com/MyM3YVZkag
— ANI (@ANI) November 28, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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— ANI (@ANI) November 28, 2022Supreme Court issues notice on a plea of Andhra Pradesh govt challenging the judgment of the HC declaring Amaravati as the only capital of the State. Supreme Court also stays the March 3 directions of the High Court to complete the construction work for the capital in six months. pic.twitter.com/MyM3YVZkag
— ANI (@ANI) November 28, 2022
न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने राज्य सरकार को छह महीने के भीतर अमरावती राजधानी शहर और राजधानी क्षेत्र का निर्माण और विकास करने के उच्च न्यायालय के निर्देश पर भी रोक लगा दी. वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल ने सुनवाई में कहा कि राज्य सरकार ने राज्य की तीन अलग-अलग राजधानियों के लिए कानून को निरस्त कर दिया है. पीठ ने कहा, उच्च न्यायालय द्वारा किस तरह के निर्देश पारित किए गए हैं, क्या अदालत एक टाउन प्लानर हो सकती है? अदालत चाहती है कि योजना दो महीने में पूरी हो जाए. पीठ ने आगे कहा कि यह एक संप्रभु राज्य को कैसे बांध सकता है कि इसे एक विशेष क्षेत्र का विकास करना है.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य और आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एपीसीआरडीए) ने याचिकाकर्ताओं (किसानों) के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, क्योंकि उन्होंने किसानों से उनकी आजीविका के एकमात्र स्रोत 33,000 एकड़ से अधिक उपजाऊ भूमि ले ली है. शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे मामले की विस्तार से जांच करने की जरूरत है और राज्य सरकार, किसानों, संघों और उनकी समितियों द्वारा दायर याचिकाओं पर आगे की सुनवाई के लिए 31 जनवरी की तारीख निर्धारित की है.
पीठ ने कहा, हम इस मुद्दे की जांच करने के इच्छुक हैं.. नोटिस जारी करें. उच्च न्यायालय ने 3 मार्च को कहा था कि एपीसीआरडीए की निष्क्रियता और राजधानी शहर और राजधानी क्षेत्र को विकसित करने में राज्य सरकार की विफलता और कुछ नहीं, बल्कि राज्य द्वारा किए गए वादे से भटकाव है जो वैध अपेक्षा को अनदेखा करता है. इसने संबंधित अधिकारियों और राज्य सरकार को एक महीने के भीतर अमरावती राजधानी शहर और क्षेत्र में सड़क, बिजली, जल निकासी और पेयजल आपूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे के विकास को पूरा करने का आदेश दिया.
जगन मोहन रेड्डी सरकार के विशाखापत्तनम को कार्यकारी राजधानी, कुरनूल को न्यायपालिका की राजधानी और अमरावती को आंध्र प्रदेश की विधायी राजधानी बनाने के फैसले के खिलाफ अमरावती क्षेत्र के पीड़ित किसानों की याचिकाओं पर उच्च न्यायालय ने सुनवाई की. किसानों ने दावा किया कि सरकार ने नई राजधानी विकसित करने का वादा करते हुए लैंड पूलिंग योजना के तहत उनकी जमीन की पेशकश के लिए उनके साथ समझौता किया था.
पृष्ठभूमि : आंध्र प्रदेश विधानसभा द्वारा 2020 में एक विधेयक पारित किया गया था. इसका उद्देश्य राज्य में तीन राजधानियों को प्रस्तावित करना था. विधेयक का नाम आंध्र प्रदेश विकेंद्रीकरण एवं सभी क्षेत्रों का समावेशी विकास अधिनियम था. अधिनियम में तीन राजधानियों का मार्ग प्रशस्त किया गया है. इसके अनुसार विशाखापत्तनम में कार्यकारी राजधानी, अमरावती में विधायी और कुरनूल में न्यायिक व्यवस्था की स्थापना होगी. सरकार की दलील है कि एक से अधिक राजधानियां होने की वजह से राज्य के कई क्षेत्रों के विकास में सहायता मिलेगी.
इससे पहले आंध्र सरकार ने अमरावती क्षेत्र और उसके आसपास के किसानों से लगभग 30 हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था. नवंबर, 2021 में आंध्र प्रदेश विकेंद्रीकरण और सभी क्षेत्रों का समावेशी विकास निरसन विधेयक, 2021 राज्य के लिये तीन-राजधानियों की योजना को निर्धारित करने वाले पहले के कानूनों को निरस्त करने के उद्देश्य से पारित किया गया था.
हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में माना कि राज्य विधायिका में राजधानी को स्थानांतरित करने, विभाजित करने के लिये कानून बनाने की क्षमता का अभाव है. राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती दी है.
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