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Odisha Train Tragedy: बालासोर के 'रियल हीरो', मोबाइल की फ्लैशलाइट में बचाई सैकड़ों की जान - balasore train accident

बालासोर ट्रेन हादसे का मंजर रूह कंपा देने वाला था. घायलों की मदद के लिए मौके पर पहुंचे एक सेवानिवृत्त सैनिक दीपक रंजन बेहरा ने बताया कि जब वह मौके पर पहुंचे तो लोग मदद के लिए चीख रहे थे. वह लोगों को तुरंत बाहर निकालने में जुट गए. उन्होंने मोबाइल की फ्लैशलाइट में सैकड़ों लोगों की जान बचाई.

Odisha train tragedy
ओडिशा ट्रेन हादसा
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Published : Jun 5, 2023, 11:31 AM IST

बहनगा: दीपक रंजन बेहरा. एक सेवानिवृत्त सैनिक. वह शुक्रवार शाम को बहानागा स्थित मैदान में अपने दोस्त की टीम के साथ खेल रहा था. शाम करीब 6.45 बजे उन्हें अचानक भूकंप जैसी तेज आवाज सुनाई दी. एक बड़ी चमक दिखाई दी. इसी दौरान चीख-पुकार मच गई. तभी आठ लोगों का जत्था एक साथ उस तरफ दौड़ा. घटनास्थल के चारों ओर घना अंधेरा था. उन्होंने अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाई तो उनकी आंखों के सामने एक भयानक मंजर था. उन्होंने बिना एक पल की देरी के बचाव कार्य शुरू कर दिया. थोड़ी देर में वहां पूरा बनगहा गांव वहां पहुंच गया.

दीपक रंजन बेहरा और उनके सभी दोस्त युद्ध के मैदान की तरह लोगों को रेस्क्यू करने में जुट गए और लोगों को बोगियों से बाहर निकालने लगे. दीपक ने बताया कि सरकारी सहायता टीमों के आने से पहले स्थानीय लोगों ने रात करीब 9 बजे तक रेस्क्यू किया. उसके बाद घायलों को अस्पतालों में ले जाया गया. इसके बाद भी उन्होंने पूरी रात सेवा की. बहनगा गांव के लोगों ने अगर मौके पर पहुंचकर लोगों को बोगियों से बाहर नहीं निकाला होता तो मंजर कुछ और होता. दीपक रंजन बेहरा और शुभंकर जेना ने दुर्घटना के दिन का अपना अनुभव ETV Bharat से साझा किया.

जब हम बोगियों पर चढ़े तो सभी यात्री एक-दूसरे के ऊपर ढेर के रूप में थे. एक ऐसी स्थिति जहां आपको लोगों के ऊपर से चलना पड़ता है. कई लोग नीचे फंस गए हैं और बचाव के लिए चिल्ला रहे हैं. ऐसे में हमने सभी को बाहर निकाला. बोगियों के अंदर घोर अंधेरा था. कुछ नहीं दिखता. कुछ तो पहले ही अपनी जान गंवा चुके थे. हम उन्हें अपने कंधों पर उठाकर नीचे लाए. हमने लाशों को एक जगह रख दिया.

साइकिल, बाइक और ऑटो से पहुंचाया अस्पताल
दीपक रंजन बेहरा ने बताया कि हमारी टीम ने 88 लोगों की जान बचाई. पूरे गांव ने सैकड़ों लोगों की जान बचाई. दुर्घटनाओं के दौरान पहला घंटा गोल्डन आवर माना जाता है. अगर घायलों को अस्पताल ले जाकर उपचार दिया जाए तो उनकी जान बचाई जा सकती है. इसलिए हमने सभी बचाए गए लोगों को उपलब्ध वाहनों में पहुंचाया. हमने कुछ को साइकिल पर, अन्य को दोपहिया और ऑटो से अस्पताल ले गए. हादसे के एक घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची. इस दौरान कई लोगों को स्थानीय लोगों ने अपने वाहनों से अस्पताल पहुंचाया. इससे जनहानि काफी हद तक कम हुई है.

मोबाइल की फ्लैशलाइट में बचाई लोगों की जान
दुर्घटना के बाद पहले दो घंटे तक हमने मोबाइल की फ्लैशलाइट के साथ काम किया. सभी ने अपने मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाई और बोगियों में फंसे लोगों को बाहर निकाला. उन फ्लैशलाइट्स ने कई लोगों की जान बचाई. हम जिस बोगी में गए, उसमें यात्रियों के बीच में एक गर्भवती महिला फंसी हुई मिली. उसकी चीखें दिल दहला देने वाली थीं. हम बड़ी मुश्किल से उसे बाहर निकालने में कामयाब रहे. लेकिन उसके दोनों बच्चे ऊपर रह गए और जिस तरह से उसने उन्हें बाहर निकालने की गुहार लगाई, वह आज भी हमारी आंखों में ताजा हैं.

ये भी पढ़ें-

स्वयंसेवी संस्थाओं ने दिया सहयोग
कुछ धर्मार्थ संगठनों ने भी राहत कार्य में भाग लेने वालों को खाने-पीने का सामान उपलब्ध कराया. रिलायंस फाउंडेशन ने ताजा पानी, केले और ब्रेड के पैकेट मुहैया कराए. ओडिशा में पारादीप पोर्ट ट्रस्ट ने चिकित्सा सेवाएं प्रदान की.

बहनगा: दीपक रंजन बेहरा. एक सेवानिवृत्त सैनिक. वह शुक्रवार शाम को बहानागा स्थित मैदान में अपने दोस्त की टीम के साथ खेल रहा था. शाम करीब 6.45 बजे उन्हें अचानक भूकंप जैसी तेज आवाज सुनाई दी. एक बड़ी चमक दिखाई दी. इसी दौरान चीख-पुकार मच गई. तभी आठ लोगों का जत्था एक साथ उस तरफ दौड़ा. घटनास्थल के चारों ओर घना अंधेरा था. उन्होंने अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाई तो उनकी आंखों के सामने एक भयानक मंजर था. उन्होंने बिना एक पल की देरी के बचाव कार्य शुरू कर दिया. थोड़ी देर में वहां पूरा बनगहा गांव वहां पहुंच गया.

दीपक रंजन बेहरा और उनके सभी दोस्त युद्ध के मैदान की तरह लोगों को रेस्क्यू करने में जुट गए और लोगों को बोगियों से बाहर निकालने लगे. दीपक ने बताया कि सरकारी सहायता टीमों के आने से पहले स्थानीय लोगों ने रात करीब 9 बजे तक रेस्क्यू किया. उसके बाद घायलों को अस्पतालों में ले जाया गया. इसके बाद भी उन्होंने पूरी रात सेवा की. बहनगा गांव के लोगों ने अगर मौके पर पहुंचकर लोगों को बोगियों से बाहर नहीं निकाला होता तो मंजर कुछ और होता. दीपक रंजन बेहरा और शुभंकर जेना ने दुर्घटना के दिन का अपना अनुभव ETV Bharat से साझा किया.

जब हम बोगियों पर चढ़े तो सभी यात्री एक-दूसरे के ऊपर ढेर के रूप में थे. एक ऐसी स्थिति जहां आपको लोगों के ऊपर से चलना पड़ता है. कई लोग नीचे फंस गए हैं और बचाव के लिए चिल्ला रहे हैं. ऐसे में हमने सभी को बाहर निकाला. बोगियों के अंदर घोर अंधेरा था. कुछ नहीं दिखता. कुछ तो पहले ही अपनी जान गंवा चुके थे. हम उन्हें अपने कंधों पर उठाकर नीचे लाए. हमने लाशों को एक जगह रख दिया.

साइकिल, बाइक और ऑटो से पहुंचाया अस्पताल
दीपक रंजन बेहरा ने बताया कि हमारी टीम ने 88 लोगों की जान बचाई. पूरे गांव ने सैकड़ों लोगों की जान बचाई. दुर्घटनाओं के दौरान पहला घंटा गोल्डन आवर माना जाता है. अगर घायलों को अस्पताल ले जाकर उपचार दिया जाए तो उनकी जान बचाई जा सकती है. इसलिए हमने सभी बचाए गए लोगों को उपलब्ध वाहनों में पहुंचाया. हमने कुछ को साइकिल पर, अन्य को दोपहिया और ऑटो से अस्पताल ले गए. हादसे के एक घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची. इस दौरान कई लोगों को स्थानीय लोगों ने अपने वाहनों से अस्पताल पहुंचाया. इससे जनहानि काफी हद तक कम हुई है.

मोबाइल की फ्लैशलाइट में बचाई लोगों की जान
दुर्घटना के बाद पहले दो घंटे तक हमने मोबाइल की फ्लैशलाइट के साथ काम किया. सभी ने अपने मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाई और बोगियों में फंसे लोगों को बाहर निकाला. उन फ्लैशलाइट्स ने कई लोगों की जान बचाई. हम जिस बोगी में गए, उसमें यात्रियों के बीच में एक गर्भवती महिला फंसी हुई मिली. उसकी चीखें दिल दहला देने वाली थीं. हम बड़ी मुश्किल से उसे बाहर निकालने में कामयाब रहे. लेकिन उसके दोनों बच्चे ऊपर रह गए और जिस तरह से उसने उन्हें बाहर निकालने की गुहार लगाई, वह आज भी हमारी आंखों में ताजा हैं.

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स्वयंसेवी संस्थाओं ने दिया सहयोग
कुछ धर्मार्थ संगठनों ने भी राहत कार्य में भाग लेने वालों को खाने-पीने का सामान उपलब्ध कराया. रिलायंस फाउंडेशन ने ताजा पानी, केले और ब्रेड के पैकेट मुहैया कराए. ओडिशा में पारादीप पोर्ट ट्रस्ट ने चिकित्सा सेवाएं प्रदान की.

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