नई दिल्ली : पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा (Pakistan Army chief General Qamar Javed Bajwa) ने पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक लड़ाई में अपना दांव पूरी तरह से खेल दिया है. पाकिस्तान में आम तौर पर बेहद प्रभावशाली मानी जाने वाली सेना अब इमरान खान (Imran Khan) के खिलाफ खड़ी है. दरअसल कुछ ही समय में असैन्य सरकार और सेना के बीच की खाई चौड़ी हुई है. सेना अमेरिका के साथ तालमेल बिठाने की पूरी कोशिश कर रही है जबकि इमरान खान रूस-चीन के लिए बल्लेबाजी कर रहे हैं.
2 अप्रैल को इस्लामाबाद सुरक्षा वार्ता 2022 में अपने भाषण के बाद एक प्रश्न के उत्तर में जनरल बाजवा ने अमेरिकी समर्थन की जोरदार वकालत की थी. जनरल बाजवा ने कहा, 'हम खेमे की राजनीति की तलाश नहीं कर रहे हैं. अमेरिका के साथ हमारे ऐतिहासिक रूप से उत्कृष्ट संबंध थे. आज हमारे पास जो अच्छी सेना है, वह काफी हद तक अमेरिका द्वारा निर्मित और प्रशिक्षित है. हमारे पास सबसे अच्छे अमेरिकी उपकरण हैं.'
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Q: How do you see security cooperation with China progressing in the next decade?
— Major Adil Raja (R) (@soldierspeaks) April 4, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
COAS:
▫️We are not looking for camp politics.
▫️We had historically excellent relations with US. The good army we have today is largely built and trained by US. The best eqpt we have is US equipment pic.twitter.com/DLNfVmog1c
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अमेरिका के साथ ऐतिहासिक संबंधों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, 'हम बहुत लंबे समय से आपके (यूएस) सहयोगी रहे हैं, हम सीटो, सेंटो और बगदाद समझौते का हिस्सा थे, हमने वियतनाम में आपका समर्थन किया, हमने अफगानिस्तान में आपका समर्थन किया, हमने तत्कालीन सोवियत संघ को खत्म करने में आपकी मदद की और कल आपने जो 'गंदगी' (muck) पैदा की, हम उसे साफ करने की कोशिश कर रहे हैं. हमने काफी कीमत चुकाई है और आप हमारे बारे में क्या कर रहे हैं?' बाजवा का दावा अमेरिका के लिए एक दलील थी. दशकों तक अमेरिका के साथ निकटवर्ती रणनीतिक और सैन्य संबंधों को संजोने वाले पाकिस्तान के 2001 की 9/11 की घटना के बाद रिश्तों में खटास आई थी. अमेरिका का भारत की ओर झुकाव खासा बढ़ गया, जबकि चीन ने सीपीईसी सहित पाकिस्तान में भारी निवेश किया.
निवेश से आपको कौन रोकता है : बाजवा ने कहा कि चीन के साथ सैन्य संबंध बढ़े क्योंकि अमेरिका और पश्चिम ने भारतीय दबाव में पाकिस्तान को हथियार बेचने से इनकार कर दिया. जनरल बाजवा ने कहा, 'चीन के साथ हमारा सैन्य सहयोग बढ़ रहा है क्योंकि हमें पश्चिम से उपकरण से वंचित कर दिया गया है. कई सौदे जो हुए थे, रद्द कर दिए गए हैं ... अगर आपको लगता है कि पाकिस्तान में चीनी प्रभाव बहुत अधिक है, तो इसका मुकाबला करने का एकमात्र तरीका काउंटर निवेश लाना है. आपको कौन रोकता है? हम किसी भी निवेश का स्वागत करते हैं.'
दूसरी, ओर इमरान खान ने 3 अप्रैल को मध्य और दक्षिण एशिया के लिए अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू का नाम उस व्यक्ति के रूप में रखा जो उनकी सत्ता को गिराने के लिए 'विदेशी साजिश' में शामिल था. समानांतर तर्ज पर अमेरिका और रूस दोनों पाकिस्तान को पसंद करें तो चीन निश्चित रूप से अपने निवेश को लेकर आशंकित होगा. इमरान खान के आरोपों से इनकार करते हुए अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है कि इमरान खान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में अमेरिका के शामिल होने के उनके आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है. वह सिर्फ आरोप हैं.
उधर, रूस ने पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में अमेरिका की भूमिका को 'बेशर्म हस्तक्षेप का एक और प्रयास' करार दिया. रूस ने कहा कि यह खान को उनकी 'अवहेलना' के लिए दंडित करने का एक अमेरिकी प्रयास था. रूसी विदेश मामलों की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा (Maria Zakharova) ने एक बयान में कहा 'यह एक स्वतंत्र राज्य के आंतरिक मामलों में अपने स्वार्थी उद्देश्यों के लिए बेशर्म अमेरिकी हस्तक्षेप का एक और प्रयास है ... पाकिस्तान प्रधानमंत्री ने खुद बार-बार कहा है कि उनके खिलाफ विदेशों से प्रेरित और वित्तपोषित साजिश थी.'
वहीं, जमीनी स्तर पर लग रहा है कि इमरान खान और जनरल बाजवा के बीच टकराव है, जिसने वास्तव में लोकतंत्र की गहरी जड़ें जमाने नहीं दी हैं. मुख्य कारण यह है कि प्रमुख विश्व शक्तियां पाकिस्तान को अपनी प्रतिद्वंद्विता में लिप्त होने के लिए एक उपजाऊ जमीन मान रही हैं. पाकिस्तान समाज कई भागों में बंटा हुआ है, जिनमें से पंजाबी, पठान, बलूच, सिंधी और मुहाजिर मुख्य जातीय समूह हैं. पाकिस्तानी सेना में पंजाबी वर्चस्व है, जो विवाद का एक प्रमुख कारण है. दूसरे रूप में कहें तो पाकिस्तान में लोकतंत्र या उसका मुखौटा दो संस्थान नियंत्रित कर रहे हैं एक तो सेना, दूसरा जमींदार. कुछ हज़ार अमीर और शक्तिशाली परिवार हैं जिन्हें 'बिरादरी' (biradari) कहा जाता है. औसत पाकिस्तानी और राज्य के बीच एकमात्र संपर्क 'बिरादरी' के माध्यम से होता है. बिरादरी ही तय करती है कि चुनाव में किस पार्टी को वोट देना है. विकास निधियों के खर्च सहित सार्वजनिक सेवाओं को सुगम बनाना, संरक्षण देने या अस्वीकार करने की शक्ति ही इन पारंपरिक अभिजात वर्ग को शक्तिशाली बनाती है.
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पाकिस्तान के अस्तित्व के 75 वर्षों में सेना ने लगभग 33 वर्षों तक शासन किया है, जबकि 19 पीएम में से कोई भी अभी तक एक भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है, ऐसे में देश की लोकतांत्रिक भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं. एक लोकतांत्रिक देश के रूप परिपक्व होने के लिए पाकिस्तान का लगातार प्रयास घोर विफलताओं से भरी कहानी रही है. यह प्रयास 3 अप्रैल को फिर से विफल हो गया जब प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सदन में आया. सदन के डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने सोमवार को इस आरोप के आधार पर अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि एक विदेशी ताकत पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन लाने की कोशिश कर रही है. अब यह देश की न्यायपालिका पर निर्भर है कि वह सरकार की कार्रवाई की वैधता को देखे.
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