ETV Bharat / bharat

काशी-मथुरा : पहले नड्डा फिर भागवत का बयान, जानिए क्या है भाजपा की रणनीति - bjps strategy

आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत के ताज़ा बयान के बाद ऐसी अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि काशी-मथुरा विवाद पर बीजेपी की रणनीति अब कुछ और होगी. दो दिन पहले ही संघ के मुखिया मोहन भागवत ने कहा था कि हर मस्ज़िद में शिवलिंग नहीं तलाशना चाहिए. भागवत ने ये भी कहा था कि मिल-बैठकर अगर हल नहीं निकलता तो मामले को कोर्ट से हल करना चाहिए. इस बयान के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे हैं कि बीजेपी अब काशी-मथुरा का निपटारा कोर्ट से चाहती है, न कि आंदोलनों से. क्या है रणनीति, जानिए वरिष्ठ संवाददाता अनामिक रत्ना की रिपोर्ट में.

bjps strategy
भाजपा की रणनीति
author img

By

Published : Jun 4, 2022, 2:16 PM IST

नई दिल्ली : पिछले हफ्ते दिल्ली में एक बड़ी प्रेस कॉन्फेंस में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि काशी-मथुरा उनके एजेंडे में नहीं हैं. अयोध्या उनके एजेंडे में था, उसका काम पूरा हो गया है, अब मंदिरों को लेकर आंदोलन का रास्ता बीजेपी नहीं अपनाएगी, लेकिन पार्टी किसी को अदालत जाने से रोक नहीं सकती. अदालत मंदिर-मस्ज़िद मामले में जो भी फैसला देगी, हम उसे शब्दश: लागू करेंगे. जानकार मानते हैं कि दो दिन पहले आए भागवत के बयान को भी इसी से जोड़ कर देखना चाहिए.

सुनिए भाजपा नेता ने क्या कहा

सूत्र बताते हैं कि पार्टी के भीतर नेताओं की सोच ये है कि बरसों पहले अपने एजेंडे में अयोध्या को रख कर और अब उसे पूरा कर वे साबित कर चुके हैं कि हिदुत्व के मुद्दे पर वे अडिग हैं और जो कहते हैं वह करते हैं. वे तीन तलाक और अनुच्छेद 370 हटाकर ये भी साबित कर चुके हैं कि सिर्फ हिदुत्व ही नहीं, देशहित में भी अपने एजेंडे पर काम कर चुके हैं. अब अगर मथुरा और काशी के मंदिरों का मामला अपने एजेंडे में लाएंगे तो पिछले आठ साल में उनकी सरकार की तरफ से जो अच्छे काम हुए हैं, दुनिया की नज़र उन पर से हट कर मंदिर-मस्जिद मसले तक ही सिमट जाएगी. सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के आरोप फिर लगेंगे और पार्टी की छवि मंदिर-मस्ज़िद के आसपास सिमट कर रह जाएगी.

ताकि जन योजनाओं पर जाए जनता का ध्यान : पार्टी के वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि उनकी सरकार के बहुत से कड़े और अच्छे फैसलों और जन-योजनाओं पर लोगों का ध्यान जाए. धर्म की बात करने वाली पार्टी की छवि से अलग कर्म करने वाली पार्टी की इमेज बने. काशी-मथुरा का विवाद पार्टी के नेता क्यों उठाएं, जब देश की अदालतें तमाम विवादों के निपटारे के लिए मौजूद हैं. अगर अदालतों से इसका फैसला हुआ तो पार्टी ये भी कह सकती है कि उसने धर्म के मामले का राजनीतिकरण नहीं किया, अदालत के फैसले पर छोड़ दिया.

प्रेम शुक्ला बोले, न्यायालय का निर्णय सर्वमान्य : बीजेपी नेता प्रेम शुक्ला का कहना है- हमने तो राम मंदिर का फैसला भी संविधान के दायरे में रह कर, अदालत से लिया था और काशी और मथुरा पर भी हम अदालत के फैसले ही मानेंगे. लेकिन कुछ लोग सांप्रदायिक विद्वेष फैलाना चाहते हैं, उन्हें इससे बचना चाहिए. कुल मिलाकर एक बात ये भी है कि विपक्ष की मुसीबत ये है कि वे अदालतों पर उंगली उठा नहीं सकते. ऐसा करेंगे तो वे अदालत की अवमानना तो करेंगे ही, सार्वजनिक तौर पर भी उनकी छवि एक ज़िद्दी, अड़ियल और अपनी ही मनवाने की कोशिश करने वाले दलों की बनेगी. शायद इसीलिए मोहन भागवत का ताज़ा बयान बीजेपी की उस नई रणनीति की ओर इशारा करता है, जिसके ज़रिए वो काशी-मथुरा के विवादों में पड़ना नहीं चाहते.

पढ़ें- RSS चीफ मोहन भागवत बोले, 'हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों'

नई दिल्ली : पिछले हफ्ते दिल्ली में एक बड़ी प्रेस कॉन्फेंस में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि काशी-मथुरा उनके एजेंडे में नहीं हैं. अयोध्या उनके एजेंडे में था, उसका काम पूरा हो गया है, अब मंदिरों को लेकर आंदोलन का रास्ता बीजेपी नहीं अपनाएगी, लेकिन पार्टी किसी को अदालत जाने से रोक नहीं सकती. अदालत मंदिर-मस्ज़िद मामले में जो भी फैसला देगी, हम उसे शब्दश: लागू करेंगे. जानकार मानते हैं कि दो दिन पहले आए भागवत के बयान को भी इसी से जोड़ कर देखना चाहिए.

सुनिए भाजपा नेता ने क्या कहा

सूत्र बताते हैं कि पार्टी के भीतर नेताओं की सोच ये है कि बरसों पहले अपने एजेंडे में अयोध्या को रख कर और अब उसे पूरा कर वे साबित कर चुके हैं कि हिदुत्व के मुद्दे पर वे अडिग हैं और जो कहते हैं वह करते हैं. वे तीन तलाक और अनुच्छेद 370 हटाकर ये भी साबित कर चुके हैं कि सिर्फ हिदुत्व ही नहीं, देशहित में भी अपने एजेंडे पर काम कर चुके हैं. अब अगर मथुरा और काशी के मंदिरों का मामला अपने एजेंडे में लाएंगे तो पिछले आठ साल में उनकी सरकार की तरफ से जो अच्छे काम हुए हैं, दुनिया की नज़र उन पर से हट कर मंदिर-मस्जिद मसले तक ही सिमट जाएगी. सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के आरोप फिर लगेंगे और पार्टी की छवि मंदिर-मस्ज़िद के आसपास सिमट कर रह जाएगी.

ताकि जन योजनाओं पर जाए जनता का ध्यान : पार्टी के वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि उनकी सरकार के बहुत से कड़े और अच्छे फैसलों और जन-योजनाओं पर लोगों का ध्यान जाए. धर्म की बात करने वाली पार्टी की छवि से अलग कर्म करने वाली पार्टी की इमेज बने. काशी-मथुरा का विवाद पार्टी के नेता क्यों उठाएं, जब देश की अदालतें तमाम विवादों के निपटारे के लिए मौजूद हैं. अगर अदालतों से इसका फैसला हुआ तो पार्टी ये भी कह सकती है कि उसने धर्म के मामले का राजनीतिकरण नहीं किया, अदालत के फैसले पर छोड़ दिया.

प्रेम शुक्ला बोले, न्यायालय का निर्णय सर्वमान्य : बीजेपी नेता प्रेम शुक्ला का कहना है- हमने तो राम मंदिर का फैसला भी संविधान के दायरे में रह कर, अदालत से लिया था और काशी और मथुरा पर भी हम अदालत के फैसले ही मानेंगे. लेकिन कुछ लोग सांप्रदायिक विद्वेष फैलाना चाहते हैं, उन्हें इससे बचना चाहिए. कुल मिलाकर एक बात ये भी है कि विपक्ष की मुसीबत ये है कि वे अदालतों पर उंगली उठा नहीं सकते. ऐसा करेंगे तो वे अदालत की अवमानना तो करेंगे ही, सार्वजनिक तौर पर भी उनकी छवि एक ज़िद्दी, अड़ियल और अपनी ही मनवाने की कोशिश करने वाले दलों की बनेगी. शायद इसीलिए मोहन भागवत का ताज़ा बयान बीजेपी की उस नई रणनीति की ओर इशारा करता है, जिसके ज़रिए वो काशी-मथुरा के विवादों में पड़ना नहीं चाहते.

पढ़ें- RSS चीफ मोहन भागवत बोले, 'हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों'

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.