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Railway Troubled By Rats: एक चूहा पकड़ने का बजट 41 हजार रुपए, लखनऊ रेलमंडल ने पकड़े 168, खर्च हुए करीब 70 लाख - चूहे पकड़ने का जिम्मा अंबाला डिवीजन को

देश में रेलवे के प्रत्येक मंडल में हर साल चूहों को पकड़ने के लिए भारी भरकम राशि खर्च की जा रही है. इसका बहुत अधिक ब्यौरा सामने नहीं आता है. खर्च का तो कोई हिसाब ही नहीं है. यह खुलासा मध्यप्रदेश के आरटीआई एक्टिविस्ट द्वारा मांगी गई जानकारी में हुआ है. इसमें देश के कई डिवीजन से जानकारी मांगी गई थी, लेकिन जवाब सिर्फ एक ने दिया. ये जवाब पढ़कर आप भी चौंक जाएंगे.

लखनऊ रेलमंडल ने पकड़े 168 चूहे
Railway Troubled By Rats
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 16, 2023, 12:46 PM IST

भोपाल। सोचिए एक चूहा पकड़ने में अधिकतम कितनी राशि खर्च होनी चाहिए. जवाब होगा कि अधिकतम भी खर्च किए तो 10 से 100 रुपए, लेकिन जब बात लाखों रुपए में निकल जाए तो आश्चर्य तो होगा ही. लेकिन यह सच है. ऐसा हुआ है रेलवे के लखनऊ मंडल में, जहां बीते तीन साल में 168 चूहों को पकड़ने पर रेलवे ने 69.5 लाख रुपये खर्च कर डाले. यानी एक चूहे को पकड़ने का खर्च 41 हजार रुपए आया. यह खुलासा एमपी के आरटीआई एक्टिविस्ट चंद्रशेखर गौड़ द्वारा मांगी गई जानकारी के बाद हुआ. उन्होंने एक साथ देश 5 रेल मंडल से यह जानकारी मांगी थी. इनमें दिल्ली, अंबाला, लखनऊ, फिरोजपुर और मुरैदाबाद शामिल हैं. यह सभी पांच मंडल उत्तर रेलवे के अंतर्गत आते हैं. हालांकि जानकारी केवल लखनऊ मंडल ने दी.

एक चूहा पकड़ने का बजट 41 हजार रुपए,
एक चूहा पकड़ने का बजट 41 हजार रुपए,

चूहे पकड़ने का जिम्मा अंबाला डिवीजन को : गौरतलब है कि रेलवे में चूहे व कीट पतंगों को पकड़ने व उनसे बचाव का जिम्मा उत्तर रेलवे में अंबाला डिवीजन के अंतर्गत आता है. यह राशि मंडल के स्वामित्व में चलने वाली ट्रेनों पर खर्च की गई है. आरटीआई में मांगी गई जानकारी में अब तक फिरोजपुर और मुरादाबाद मंडल ने कोई जवाब नहीं दिया है. अम्बाला और दिल्ली डिविजनों के उत्तर सवालों से भागने वाले दिखाई दिए.

अन्य स्थानों से ये जवाब मिला : इनमें से अंबाला डिवीजन की तरफ से जवाब दिया गया है कि अप्रैल 2020 से मार्च 2023 के बीच उनके यहां कीट नियंत्रण, चूहा नियंत्रण और फ्यूमीगेशन ट्रीटमेंट पर कुल 39.3 लाख रुपये खर्च किए गए हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया कि चूहा पकड़ने पर कितने रुपए खर्च किए गए हैं. बाकी जगहों से कहा गया है कि चूहा नियंत्रण के लिए अलग से खर्च नहीं किया गया है और न ही पकड़े गए चूहों का कोई रिकार्ड है. दिल्ली डिविजन का जवाब और भी रूखा था. उन्होंने जवाब दिया कि पैसेंजर ट्रेनों में कीट और चूहों के नियंत्रण के लिए एक अनुबंध चल रहा है, लेकिन अन्य कोई जानकारी नहीं दी गई.

ये सवाल पूछे गए :

  • 1. पिछले 3 वर्ष में उत्तर रेलवे ने रेलवे परिसर और ट्रेन में चूहों को पकड़ने के लिए कितनी राशि खर्च की है ? यदि कोई विवरण हो तो कृपया पकड़े गए चूहों की संख्या सहित वर्षवार विवरण प्रदान करें.
  • 2. पिछले 3 वर्ष में, उत्तर रेलवे में चूहों द्वारा कितने मूल्य के माल और वस्तुओं को नुकसान पहुंचाया गया ? यदि कोई विवरण हो तो कृपया वर्षवार विवरण उपलब्ध कराएं और इसमें क्षतिग्रस्त माल के नाम के साथ जानकारी दें.
  • 3. पिछले 3 वर्ष में कृपया उस एजेंसी का नाम बताएं जिसे चूहों को पकड़ने के लिए नियुक्त किया गया था ? यदि कोई हो तो कृपया दिए गए एजेंसियों के नाम प्रदान करें.
  • 4. पिछले 3 वर्षों में उत्तर रेलवे में रेलवे परिसर के अंदर आवारा कुत्तों के काटने के कितने मामले दर्ज किए गए ? यदि कोई विवरण हो तो कृपया वर्षवार बताएं.

फॉलोअप करुंगा :

स्ट्रीट डॉग्स और चूहे एक बड़ी परेशानी है. इसी को लेकर मैंने नार्दन रेलवे दिल्ली से जोन वाइज जानकारी मांगी थी. वहां से उन्होंने डिवीजन को लेकर भेजा, लेकिन सिर्फ लखनऊ डिवीजन ने ही पूरी जिम्मेदारी के साथ सही जानकारी उपलब्ध करवाई है. बाकी डिवीजन के लिए मैं फॉलोअप करूंगा.

- चंद्रशेखर गौड़, आरटीआई एक्टिविस्ट

भोपाल। सोचिए एक चूहा पकड़ने में अधिकतम कितनी राशि खर्च होनी चाहिए. जवाब होगा कि अधिकतम भी खर्च किए तो 10 से 100 रुपए, लेकिन जब बात लाखों रुपए में निकल जाए तो आश्चर्य तो होगा ही. लेकिन यह सच है. ऐसा हुआ है रेलवे के लखनऊ मंडल में, जहां बीते तीन साल में 168 चूहों को पकड़ने पर रेलवे ने 69.5 लाख रुपये खर्च कर डाले. यानी एक चूहे को पकड़ने का खर्च 41 हजार रुपए आया. यह खुलासा एमपी के आरटीआई एक्टिविस्ट चंद्रशेखर गौड़ द्वारा मांगी गई जानकारी के बाद हुआ. उन्होंने एक साथ देश 5 रेल मंडल से यह जानकारी मांगी थी. इनमें दिल्ली, अंबाला, लखनऊ, फिरोजपुर और मुरैदाबाद शामिल हैं. यह सभी पांच मंडल उत्तर रेलवे के अंतर्गत आते हैं. हालांकि जानकारी केवल लखनऊ मंडल ने दी.

एक चूहा पकड़ने का बजट 41 हजार रुपए,
एक चूहा पकड़ने का बजट 41 हजार रुपए,

चूहे पकड़ने का जिम्मा अंबाला डिवीजन को : गौरतलब है कि रेलवे में चूहे व कीट पतंगों को पकड़ने व उनसे बचाव का जिम्मा उत्तर रेलवे में अंबाला डिवीजन के अंतर्गत आता है. यह राशि मंडल के स्वामित्व में चलने वाली ट्रेनों पर खर्च की गई है. आरटीआई में मांगी गई जानकारी में अब तक फिरोजपुर और मुरादाबाद मंडल ने कोई जवाब नहीं दिया है. अम्बाला और दिल्ली डिविजनों के उत्तर सवालों से भागने वाले दिखाई दिए.

अन्य स्थानों से ये जवाब मिला : इनमें से अंबाला डिवीजन की तरफ से जवाब दिया गया है कि अप्रैल 2020 से मार्च 2023 के बीच उनके यहां कीट नियंत्रण, चूहा नियंत्रण और फ्यूमीगेशन ट्रीटमेंट पर कुल 39.3 लाख रुपये खर्च किए गए हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया कि चूहा पकड़ने पर कितने रुपए खर्च किए गए हैं. बाकी जगहों से कहा गया है कि चूहा नियंत्रण के लिए अलग से खर्च नहीं किया गया है और न ही पकड़े गए चूहों का कोई रिकार्ड है. दिल्ली डिविजन का जवाब और भी रूखा था. उन्होंने जवाब दिया कि पैसेंजर ट्रेनों में कीट और चूहों के नियंत्रण के लिए एक अनुबंध चल रहा है, लेकिन अन्य कोई जानकारी नहीं दी गई.

ये सवाल पूछे गए :

  • 1. पिछले 3 वर्ष में उत्तर रेलवे ने रेलवे परिसर और ट्रेन में चूहों को पकड़ने के लिए कितनी राशि खर्च की है ? यदि कोई विवरण हो तो कृपया पकड़े गए चूहों की संख्या सहित वर्षवार विवरण प्रदान करें.
  • 2. पिछले 3 वर्ष में, उत्तर रेलवे में चूहों द्वारा कितने मूल्य के माल और वस्तुओं को नुकसान पहुंचाया गया ? यदि कोई विवरण हो तो कृपया वर्षवार विवरण उपलब्ध कराएं और इसमें क्षतिग्रस्त माल के नाम के साथ जानकारी दें.
  • 3. पिछले 3 वर्ष में कृपया उस एजेंसी का नाम बताएं जिसे चूहों को पकड़ने के लिए नियुक्त किया गया था ? यदि कोई हो तो कृपया दिए गए एजेंसियों के नाम प्रदान करें.
  • 4. पिछले 3 वर्षों में उत्तर रेलवे में रेलवे परिसर के अंदर आवारा कुत्तों के काटने के कितने मामले दर्ज किए गए ? यदि कोई विवरण हो तो कृपया वर्षवार बताएं.

फॉलोअप करुंगा :

स्ट्रीट डॉग्स और चूहे एक बड़ी परेशानी है. इसी को लेकर मैंने नार्दन रेलवे दिल्ली से जोन वाइज जानकारी मांगी थी. वहां से उन्होंने डिवीजन को लेकर भेजा, लेकिन सिर्फ लखनऊ डिवीजन ने ही पूरी जिम्मेदारी के साथ सही जानकारी उपलब्ध करवाई है. बाकी डिवीजन के लिए मैं फॉलोअप करूंगा.

- चंद्रशेखर गौड़, आरटीआई एक्टिविस्ट

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