देहरादून(उत्तराखंड): उत्तराखंड में संगीन अपराधों के लिए सैकड़ों खूंखार शिकारियों को वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत सजा सुनाई गई है. ये वो शिकारी हैं जो इंसानों के लिए न केवल दहशत का पर्याय बल्कि उनकी जान के लिए भी खतरा बन गए थे. इतना ही नहीं इन पर कई लोगों का खून बहाने का भी आरोप लगा. जंगल का ये शिकारी कोई और नहीं बल्कि गुलदार है, जो अब इंसानी बस्तियों के करीब रहना ही पसंद कर रहा है. इस कारण अब ये कई मानव बस्तियों के लिए खतरा बन गए हैं. लिहाजा वन्यजीव कानून के तहत ही ऐसे गुलदारों को इंसानी सजा का सामना भी करना पड़ रहा है.
मानव वन्यजीव संघर्ष यूं तो कोई नई बात नहीं है, लेकिन समय बीतने के साथ संघर्ष विराम की बजाए आपसी टकराव के आंकड़ों में बढ़ोतरी होती गई है. स्थिति यह है कि कई बार अब जंगल के शिकारी इंसानों का भी शिकार करने से गुरेज नहीं करते हैं. गुलदार, जंगल का ऐसा ही एक शिकारी है, जो अब इंसानों के करीब रहने की आदत बना रहा है. इंसानी बस्तियों के पास आसान शिकार की वजह से गुलदारों की मौजूदगी इंसानों पर भी भारी पड़ रही है. हैरत की बात यह है कि तमाम प्रयासों के बाद भी गुलदार प्रदेश के पहाड़ी जनपदों में इंसानों को ही अपना निवाला बना रहा है. इन्ही बिगड़ते हालातों को देखते हुए कई बार वन विभाग को कड़े कदम उठाने पड़ते हैं.
- इंसानों के लिए खतरा बनने वाले गुलदारों का आकलन करने के बाद चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को होता है कार्रवाई की अनुमति देने का अधिकार.
- वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के वाइल्ड लाइफ एनिमल सेक्शन 11 के तहत वन्य जीवों पर कार्रवाई की दी जाती है अनुमति.
- राज्य में पिछले 20 सालों के दौरान 520 गुलदारों को मारने या उन्हें पकड़ने की दी गई है अनुमति.
- इनमें 102 गुलदारों को पिंजरे में बंद करने और ऐसा न होने पर मारने के दिये गए आदेश.
- कुल 397 गुलदारों को पकड़कर पिंजरे में बंद करने के हुए आदेश.
- 21 से ज्यादा गुलदारों को घायल होने के चलते ट्रीटमेंट देने के लिए पकड़ने के हुए आदेश
गुलदार की मौजूदगी राज्य में हर क्षेत्र में दिखाई देती है, चौंकाने वाली बात यह है कि देहरादून के शहरी क्षेत्रों में भी कई बार गुलदार देखा जाता रहा है. जाहिर है कि गुलजार जंगल में पर्याप्त भोजन नहीं मिलने आया इंसानी बस्तियों के पास आसान शिकार होने के कारण बस्तियों की तरफ पहुंच रहा है. ऐसी स्थिति में इंसानों से टकराव के चलते कई बार इंसानों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. हालांकि, इसके बाद गुलदारों को मारने तक के भी आदेश जारी हुए हैं.
- राज्य में पिछले 3 सालों के दौरान 26 से ज्यादा गुलदारों को मारा गया.
- साल 2019 में कुल 4 गुलदारों को मारा गया.
- साल 2020 में 11 गुलदार इंसानों के लिए खतरा होने के चलते मारे गए.
- साल 2021 कुल 8 गुलदार मारे गए.
- उधर 2022 में 5 से ज्यादा गुलदारों को मारा गया
वन विभाग में गुलदारों को मारे जाने के आदेश पर पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ भी अपना पक्ष रखते हैं. पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ डॉक्टर समीर सिन्हा कहते हैं कि वन्यजीव संघर्ष को रोकना एक बड़ी चुनौती है. इसके लिए गुलदार सबसे बड़ा कारण है. वैसे तो गुलदार और इंसानों के बीच आमना-सामना होने के दौरान यह घटना होती है, लेकिन कई बार कुछ गुलदार इंसानों के डर को खत्म करते हुए जान के लिए खतरा बन जाते हैं. लिहाजा ऐसे गुलदार को पिंजरे में बंद करने या उसे मारने तक की भी आदेश दिए जाते हैं.
उत्तराखंड में एक अध्ययन यह साफ करता है कि राज्य में जिस तेजी के साथ जंगलों की कटौती हो रही है उससे वन्यजीवों के इंसानी बस्तियों के करीब आने का सिलसिला भी बढ़ा है. इसी रूप में गुलदार के भी इंसानों के करीब आने का सिलसिला आगे आया है.
- राज्य में हर साल 60 से 70 लोग मानव वन्यजीव संघर्ष में गंवाते हैं जान
- गुलदार 70% हमले महिलाओं और बच्चों पर ही करते हैं.
- ऐसी घटनाओं में साल 2020 के दौरान कुल 30 लोगों की मौत हुई.
- इन घटनाओं में 85 लोग घायल हुए.
- साल 2021 में ऐसे हमलों में 22 लोगों ने जान गंवाई, 48 लोग घायल हुए.
- उधर साल 2022 में करीब 20 लोग गुलदार के शिकार बने, जबकि करीब 20 लोग घायल हुए.
राज्य सरकार भी मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर स्थितियों को करीब से जानती है. शायद इसीलिए 1 दिन पहले हुई कैबिनेट बैठक में मानव वन्यजीव संघर्ष के लिए एक प्रकोष्ठ को बनाने का निर्णय लिया गया. इसको लेकर डॉक्टर समीर सिन्हा कहते हैं कि मानव वन्यजीव संघर्ष आकस्मिक होता है. जिसके लिए समय-समय पर रोकथाम और कार्यवाही की जरूरत होती है. प्रकोष्ठ के जरिए मैपिंग कर इसका विश्लेषण किया जा सकता है.