पटना: अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को रामलला का प्राण प्रतिष्ठा हो रहा है. उससे पहले जो आंदोलन हुआ था, उसमें बिहार की अग्रणी भूमिका थी. यह हम नहीं कह रहे हैं. यह उस समय आंदोलन में जुड़े हुए जो लोग कह रहे हैं. इस आंदोलन की उपज थे कामेश्वर चौपाल. दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाले कामेश्वर चौपाल वह शख्सियत हैं, जिन्होंने 90 के दशक में राम मंदिर की नींव रखी जा रही थी तो शिलान्यास के लिए, उनके नाम का चयन किया गया था. उन्होंने शिलान्यास की पहली ईंट रखी थी. ईटीवी भारत ने एक्सक्लूसिव कामेश्वर चौपाल से बात किया. जिसमें उन्होंने उस समय आंदोलन में जुड़े हुए लोगों को याद किया. किस तरह से आंदोलन की रूपरेखा बनी थी और क्यों उनके नाम का चयन हुआ था?
सवाल - आपके चेहरे पर चमक आ गई है , 90 के दशक वाले कामेश्वर चौपाल नजर आ रहे है.
जवाब- संकल्प की पूर्ति के साथ एनर्जी बढ़ जाती है और हमारे अंदर जो एनर्जी बढ़ी है वह हमारे संकल्प को पूरा होता हुआ देखकर बढ़ी है. आज इससे बड़ी प्रसन्नता की बात कुछ हो ही नहीं सकती है.
सवाल- नब्बे का जो दशक था जिसमें आप लोगों ने संघर्ष किया था, बिहार से कामेश्वर चौपाल कैसे अयोध्या पहुंचे थे?
जवाब- मैं संघ से जुड़ा हुआ था और संघ में सभी लोगों को काम सौंपा जाता है. संघ ने मुझे विश्व हिंदू परिषद का काम सौंपा था, प्रांत में संगठन मंत्री का काम देख रहे थे. इसलिए हम आंदोलन से जुड़ गए थे. 84 में इसका पहला आंदोलन शुरू हुआ था और इस आंदोलन की शुरुआत बिहार से ही हुई थी. हमारे संतो की कमेटी बनी थी. उसके अध्यक्ष पूज्य वेदनाथ जी महाराज थे. उन्होंने निर्णय लिया था कि बिहार से ही जन जागरण होगा. राम किस अवस्था में है और राम की जन्म भूमि किस अवस्था में है इसकी जानकारी देश को नहीं है. इसलिए जन जागरण करना पड़ेगा. जन जागरण बिहार के मिथिला से शुरू हुआ था. यह मेरा सौभाग्य था कि मैं मिथिला से ताल्लुक रखता हूं और मैं उसी दिन से जुड़ गया था. यही से हम लोग लेकर रथ अयोध्या गए थे. अयोध्या से लखनऊ होते हुए दिल्ली जाना था. लेकिन हम लोग जब गाजियाबाद के आसपास पहुंचे तो संयोग ऐसा हुआ कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. संतों ने कहा कि देश हित में इस यात्रा को रोक देना चाहिए. उस समय संतों के आदेश से यह यात्रा रुक गई थी.
सवाल- राम जानकी रथ यात्रा निकाला गया, उस यात्रा का मूल उद्देश्य क्या था.
जवाबः आजादी के बाद नेहरू जी के आदेश से रामलल्ला के मंदिर में ताला लग गया था, भक्त जाते थे तो दूर से ही ग्रिल से रामलल्ला का दर्शन करते थे, इसका टीस लोगों को था. देश आजाद हो गया था और राम आज भी जेलखाने में कैद है. उस आंदोलन का उद्देश्य था कि ताला खोल दिया जाए उसे कैदखाने का. ताकि लोग रामलल्ला का दर्शन कर पाए. 1985 में देश भर में यात्राएं निकाली. 1 फरवरी 1986 को ताला खुल गया. जब ताला खुला तो यह बात सिद्ध हो गया कि यह राम जन्मभूमि है. राम का यह घर है. जब राम का घर है तो वह इस अवस्था में ना रहे. वह भव्यतम और दिव्यतम बने. यह राम का देश है और राम ही अपमानित रहेंगे तो, यह कैसे चलेगा? उसी में राम मंदिर बनाने की योजना बनी.
सवाल- शिलान्यास में लाखों लोग थे, हजारों लोग थे, कामेश्वर चौपाल का ही नाम कैसे आ गया.
जवाब- प्रभु अपने भक्त को पहचानते हैं, संत भी दिव्य दृष्टि से देखते हैं, संगठन भी दिव्य दृष्टि रखता है, संगठन और संत ने दोनों ने मिलकर तय किया, कामेश्वर चौपाल शिलान्यास करेंगे. मैं उसमें कुछ नहीं जानता हूं. उनका निर्णय हुआ तुम करो, मैं उस निर्णय का पालन किया.
सवाल- आपको आश्चर्य नहीं होता है कि आप समस्तीपुर से आए, अयोध्या गए, आपका नाम का चयन हुआ कि आप ही वह पहली ईंट रखेंगे.
जवाब- जब निर्णय हुआ था कि इस देश में रामराज लाना है. तो, राम ने कहां से काम शुरू किया था. वहां से काम शुरू करना था. संतों ने कहा रामराज आने से पहले राम सबसे पहले निषाद राज के पास गए थे, राम संतों के साथ शबरी के पास भी गए थे, ऐसे ही समाज के उपेक्षित लोग हैं, तिस्कृत है, जिनको प्यार से कोई गले नहीं लगता है कोई, राम जैसे लोग जाएं और गले लगा कर कहें, तुम मम प्रिय भरत सम भाई.. तभी ऐसे लोग साथ में खड़े हो सकते हैं. यह संदेश संतों को समझा और इसी आधार पर यह निर्णय हुआ, जब राम का मंदिर बनेगा तो फिर से एक बार उन सभी को गले लगाना है, तभी हनुमान पैदा ले सकता है, संतों का निर्णय था कि संपूर्ण समाज को साथ में लेकर रामराम में संपूर्ण समाज को जोड़ा था. राम घर से निकले, वही काम किए थे.
सवाल- 33-34 साल हो गए, कई कारसेवक शहीद भी हो गए, उसे समय की क्या याद है आपके पास?
जवाब- उस समय तो समाज को भी पता नहीं था कि राम की जन्म भूमि किस अवस्था में है. यह गलती समाज की नहीं थी. समाज को कभी-कभी जगाना पड़ता है. यह काम 89 से पहले जो लोग कर रहे थे, एक तो शासन प्रशासन की स्थिति हमसे विरुद्ध थी, देश गुलामी अवस्था में था, समाज लड़ा नहीं ऐसा नहीं है, इसके लिए 500 वर्षों से लड़ाई चलती रही, 76 बार प्रत्यक्ष युद्ध हुए, 4 लाख से अधिक लोग बलिदान हुए, जब देश आजाद हुआ तो लोगों को लगता था देश तो राम का है, जब हमारे हाथ की हथकड़ी छूट गई, तब राम के मंदिर के भी ताले खुल जाएंगे, उस समय उस सरकार ने नहीं सुना, इसलिए देश को इतना बड़ा आंदोलन करना पड़ा. जब रामभाव का जागरण हुआ तो, सरकार को झुकना पड़ा और कोर्ट को भी समझदारी आई और जो निर्णय हुआ, वह सबके सामने है.
सवाल- अब जब भी आप अयोध्या जाते हैं फ्लैशबैक में क्या चीजे चलती हैं, कई ऐसे साथी जो छूट गए, कई ऐसे साथी जो आंदोलन में साथ गए थे जो शहीद हो गए, दिमाग में उस समय क्या चलता है?
जवाब- एक बात तो है कि बिना पीड़ा से पीर प्रकट नहीं होता है. जब कोई भी बड़ा परिणाम आता है बलिदान देना पड़ता है और इस बात को हम लोग मानकर चल रहे थे कि हमें बड़ा बलिदान देना होगा और हम लोगों को बलिदान देना भी पड़ा. उस बलिदान के बाद जो परिणाम आया है उस शहीदों को याद करते हैं. उस समय के उन मार्गदर्शकों को बहुत याद करते हैं. उन लोगों में महंत वैद्यनाथ जी महाराज, अशोक सिंघल जी थे, गिरिराज किशोर जी थे, परमानंद जी थे, श्री चंद्र दीक्षित थे, राजमाता विजआराजे सिंधिया थी, गिरिराज किशोर थे, ऐसे असंख्य लोग थे. लेकिन, यह जो 10-15-20 नाम थे जिनकी वजह से आज यह परिणाम आया है. आज जब कभी अयोध्या की धरती पर पैर रखते हैं. अशोक सिंघल एक बार जरूर याद आ जाते हैं.
सवाल- बिहार से कौन लोग थे जिसकी याद आपको आती है?
जवाब- बहुत सारे साथी हैं. जिन्होंने बहुत संघर्ष किया है. जिन्होंने बलिदान दिया. हम लोगों के साथ कर सेवा में दिनेश गए थे यह मोकामा के रहने वाले थे, शहीद हो गए हो गए. घर लौट के नहीं आए. वहीं के प्रमोद वकील थे अधिवक्ता थे, उनको गोली लग गई थी, आज भी अपंग है. अभी भी घर में आज भी जिंदा है. मुजफ्फरपुर के संजय थे वह भी घर लौट के नहीं आए. ऐसे कई लोग थे जो साथ गए लड़ते-लड़ते, वह लौटे नहीं. राम के मंदिर में उनकी बहुत याद आती है. मैं उस समय संगठन मंत्री था, मेरा दायित्व था कि मैं सबको वापस लेकर आऊं, मैं नहीं ला पाया. उन्हीं के बलिदान का परिणाम है. वहां भव्य और दिव्य मंदिर बन रहा है. ऐसे जो लोग आज हैं और नहीं है उन सभी के त्याग और तपस्या से आज परिणाम सफल हो रहा है.
सवाल- 22 जनवरी को आप किस रूप में रहेंगे और कहां रहेंगे? किस रूप में बुलाया गया है कामेश्वर चौपाल को.
जवाब- अभी मैं मंदिर निर्माण का ट्रस्टी हूं. माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से, भारत सरकार ने जो ट्रस्ट बनाया है उस ट्रस्ट का मैं एक सदस्य हूं. मेरा दायित्व है कि मंदिर में सहयोग करना, मंदिर में भगवान जब प्रतिस्थापित होंगे, वहां खड़े होकर जो आने वाले हमारे आमंत्रित लोग हैं, उनके सेवार्थ खड़ा रहना. बिहार से काफी लोग जा रहे हैं. इस कार्यक्रम में पहले तो संत जाएंगे. यह काम संतों का है.बिहार और झारखंड मिलाकर लगभग 100 संत वहां जाएंगे. विशिष्ट लोगों में संख्या कम है. देश के अंदर इस कार्यक्रम को जो धर्म से जुड़े हुए लोग हैं उनको प्राथमिकता दी गई है. सब लोग धर्म से जुड़े हुए, लेकिन उसमें आचार्य की प्राथमिकता है. सलेक्टेड 6500 लोगों की संख्या रहेगी. इस 6500 में पूरे विश्व को सम्मानित करना है. उस दिन हम लोगों ने हाथ जोड़ लिया है कि कुछ सुरक्षा भी कारण है, कड़ाके की ठंड भी कारण और स्थान का अभाव भी है. वह आएंगे तो उनकी व्यवस्था करनी होगी, इसलिए संख्या सीमित है. लेकिन, हम सब को सम्मान पूर्वक अयोध्या ले जाएंगे. 22 तारीख के बाद दो-तीन दिन जो कार्यक्रम रहेंगे, अतिथि रहेंगे आएंगे-जाएंगे.
इसे भी पढ़ेंः राम लला के दर्शन के लिए बिहार से हर रोज खुलेंगी 100 से ज्यादा ट्रेनें, 2000 करोड़ का होगा खर्च
इसे भी पढ़ेंः बिहार में राम और सीता पर सियासत, JDU बोली- 'माता जानकी हमारी, BJP श्रीराम के नाम पर राजनीति करती है'
इसे भी पढ़ेंः अयोध्या के रामलला मंदिर के लिए राजध्वज तैयार, जानिए- इसकी रिसर्च कैसे हुई, क्या है इसकी खासियत