मिर्जापुर: भारत सरकार के मिशन 2027 तक मलेरिया मुक्त देश और 2030 तक जो उन्मूलन का सपना है, उसे पूरा करने में मिर्जापुर जनपद के जमालपुर क्षेत्र के पीड़की गांव के रहने वाले सम्राट सिंह के नए अविष्कार माइकेलिस ऑटोमेटेड माइक्रोस्कोप डिवाइस महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से डायग्नोसिस कर सकेगा और जिसे विश्व में किसी भी स्थान से रिमोट की सहायता से कंट्रोल किया जा सकेगा. इस नए डिवाइस के अविष्कार से सही समय पर डायग्नोसिस कर बहुत ही कम समय में आसानी से मलेरिया की बीमारी का पता लगाकर इलाज किया जा सकता है. सम्राट व उनकी टीम को इसे पूरा करने की जिम्मेदारी मिली है. भारत सरकार से अपनी तीन डिवाइस पेटेंट करा चुके सम्राट के बनाए डिवाइस से भारत को मलेरिया मुक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज मनुष्य ने खोज लिया है. सही डायग्नोसिस की मदद से बहुत ही आसानी से इसका इलाज किया जा सकता है. लेकिन, हमारा दुर्भाग्य है कि आज भी विश्व भर में इस बीमारी से होने वाली मौत की संख्या 6.2 लाख है. इसमें भारत की सहभागिता 1.2 प्रतिशत है. इसके अलावा 241 मिलियन मलेरिया के केस रिकॉर्ड हुए हैं. इस विजन को पूरा करने के लिए कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं काम कर रही हैं. इसमें टाटा ट्रस्ट की इंडिया हेल्थ फंड संस्था ने मलेरिया जैसी गंभीर बीमारियों के उन्मूलन के लिए सम्राट के मेडप्राइम टेक्नोलॉजिस को इनोवेटिव सॉल्यूशन माइकेलिस के लिए ग्रांट दिया है. मेडप्राइम टेक्नोलॉजिस के सीईओ सम्राट हैं, जो आईआईटी बॉम्बे का एक बेस्ड स्टार्टअप है. जोकि दुनिया की सबसे आधुनिक स्मार्टफोन एंड टैबलेट पर आधारित डिजिटल माइक्रोस्कोप बनाने के लिए जानी जाती है. जिसे सम्राट के साथ आईआईटी बॉम्बे के महेश, ग्रीष्मा और बिनिल ने स्टार्ट की.
ऐसे करेगा काम
सम्राट के नए आविष्कार माइकेलिस एक ऑटोमेटेड माइक्रोस्कोप एक डिवाइस है. जोकि आर्टिफियल इंटेलिजेंस की मदद से पैथोलॉजिस्ट की डायग्नोसिस करने में हेल्प करने की क्षमता रखता है. फिलहाल, इस उपकरण में ऑटोमेटेड मलेरिया डायग्नोसिस के फीचर्स को भी शामिल करना है. मलेरिया डायग्नोसिस के लिए अभी भी माइक्रोस्कोपी एक गोल्ड स्टेंडर्ड की तरह उपयोग में आता है. फिलहाल, ये डायग्नोसिस गवर्नमेंट एंड प्राइवेट लैब्स में लैब असिटेंट के द्वारा मैनुअली किया जाता है. इसमें बहुत सी त्रुटियां होती हैं और डायग्नोसिस सही नहीं होती. इसके अलावा सुदूर क्षेत्रों में विशेषज्ञों के अभाव में भी सही समय पर डायनोसिस न होने से उपचार में विलम्ब काफी लोगों के मृत्यु का कारण बनता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इंटीग्रेशन मलेरिया डायग्नोसिस को त्रुटिविहीन बना देगा. साथ-साथ विशेषज्ञों के अभाव में भी सही डायग्नोसिस देगा. ये उपकरण मलेरिया के अलावा भविष्य में फाइलेरिया, टीबी और कैंसर डायग्नोसिस में भी पैथोलॉजिस्ट की मदद करेगा.
सम्राट का दावा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की गाइड लाइन से अभी तक डायग्नोसिस के लिए लैब टेक्नीशियन रोगी के खून को एक ग्लास स्लाइड पे डाल के उसे जेएसबी या जिम्सा डाई से स्टेन करता है, जिसे फिर माइक्रोस्कोप के स्टेज पे रख के लगभग 100 से 500 क्षेत्रों का निरीक्षण करता है. मलेरिया के विभिन्न प्रकार के जीवन के स्टेज को खोजकर निर्धारित करता है कि कौन सा मलेरिया है. ये तरीका काफी समय लेने के साथ-साथ लैब टेक्नीशियन के धैर्य और समझ पर आधारित होता है. लेकिन, सम्राट के बनाए गए नए अविष्कार माइकेलिस ऑटोमेटेड माइक्रोस्कोप व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन की मदद से इस प्रोसेस में लगने वाला टाइम और मानव द्वारा की जाने वाली त्रुटियों को आसानी से खत्म किया जा सकता है. इसमें टेक्नीशियन को सिर्फ स्लाइड स्टेज पे रखना है और एक बटन दबाते ही वो अपना काम शुरू कर देगा और 2 से 4 मिनट के अंदर रिपोर्ट बना देगा. डायग्नोसिस में आने वाली कीमत सिर्फ 10 से 20 रुपये के बीच में होगी, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.
सम्राट सिंह ने बताया कि माइकेलिस ऑटोमेटेड माइक्रोस्कोप डिवाइस इस तरह से तैयार की गई है कि कम समय में मलेरिया के रोगों का पता लगाने में सक्षम है. इसकी कीमत भी औरों से बहुत ही कम है. इसे दुनिया के किसी कोने से रिमोट के द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है. यह डिवाइस मलेरिया उन्मूलन की कड़ी में महत्वपूर्ण साबित होगी.
दिव्यांगों के लिए बना चुके हैं जीभ से चलने वाली व्हीलचेयर
इसके पहले सम्राट ने हाथ और पैर से दिव्यांगों के लिए टंग आपरेटेड स्वीचिंग माड्यूल का निर्माण कर विश्व स्तर पर अपनी काबिलियत को साबित कर दिखाया है. इस डिवाइस के माध्यम से दिव्यांग हाथ पैर के बजाय अपनी जीभ से व्हीलचेयर चलाने के साथ ही आसानी से टीवी का चैनल बदलना, पंखा चालू करना, लाइट बुझाने का काम बिना किसी की मदद से कर सकेंगे. आपरेटेड स्वीचिंग माड्यूल सेंसर पर आधारित डिवाइस है, जिसका सेंसर इतना संवेदनशील है कि जीभ की आहट को पहचान लेता है. इस डिवाइस को हेलमेट की तरह सिर में पहनना होता है. सम्राट की इस डिवाइस को भारत सरकार ने 16 फरवरी को ही पेटेंट की मंजूरी दे दी है.
उच्च संस्थानों में हो रहा डिजिटल माइक्रोस्कोप्स संचालित
सम्राट के डिजिटल माइक्रोस्कोप्स भारत के सभी नामी गिरामी मेडिकल कॉलेज जैसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, ग्रांट मेडिकल कॉलेज, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में उपयोग के साथ बड़े संस्थान आईआईटी दिल्ली, आईआईटी चेन्नई, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में भी इसका उपयोग हो रहा है. सम्राट का कहना है कि जल्द ही हमारे डिवाइस विदेशों में भी निर्यात होंगे. भारत सरकार के समक्ष अब तक सात पेटेंट के लिए अप्लाई किया है, जिसमें से तीन पेटेंट को मंजूरी मिल चुकी है.
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