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हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों बनाते हैं मुस्लिम कारीगर

कोलकाता के गौरी बारी में रहने वाले मुस्लिम कारीगर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को बनाने का काम 15-20 साल से करते आ रहे हैं. इनका कहना है कि धंधा ही सबसे बड़ा धर्म है. पढ़िए पूरी खबर...

Muslim artisans make idols of Hindu gods and goddesses
हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों बनाते हैं मुस्लिम कारीगर
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Published : Jul 10, 2022, 6:54 PM IST

Updated : Jul 10, 2022, 7:44 PM IST

कोलकाता : धर्म, जाति से ऊपर उठकर मुस्लिम मूर्तिकारों द्वारा हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को बनाने का काम किया जाता है. शहर के गौरी बारी में रहने वाले इन मूर्तिकारों के साथ उनका हाथ बंटाती हैं कल्पना सिंह. महात्मा गांधी रोड से मोहम्मद अली पार्क को कोलूटोला स्ट्रीट से जोड़ने वाली इस सड़क पर स्थित गौरी बाड़ी है. वहीं गौरी बारी के ठीक सामने मस्जिद है. गौरी बारी में रहने वाले मकसूद आलम और मुजम्मिल हक के द्वारा जहां मूर्तियां बनाई जाती हैं, वहीं कल्पना सिंह के द्वारा इन्हें अंतिम रूप देने में सहयोग प्रदान किया जाता है.

दोनों ही मूर्तिकार एक छोटे से दो मंजिला घर में रोजाना मूर्तियों में जान डालने का काम करते हैं. हालांकि इनका पता खोजने में लोगों को काफी परेशानी होती है. क्योंकि इनके बारे में लोगों को पता नहीं है. लेकिन ये मूर्तिकार पिछले 15-20 सालों से यहां पर अपने काम को अंजाम देते आ रहे हैं. इन कलाकारों की कला को देश के विभिन्न भागों में पार्सल के जरिये पैककर भी भेजा जाता है.

एक रिपोर्ट

बता दें कि इस घर को गौरी बारी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि घर की मालकिन गौरी बारी हैं, जो बिहार की रहने वाली हैं. इस घर की खासियत यह भी है कि यहां पर मुख्य दरवाजे को खोलने के साथ ही चार-पांच गायें खड़ी दिखाई पड़ती हैं. इतना ही नहीं दाहिनी ओर आठ फीट गुणा सात फीट का एक छोटा कमरा खोजने के लिए केवल ऊपर चढ़ने के लिए एक सीढ़ी है.

कमरें में मकसूद और मुजम्मिल हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को बनाने में तल्लीन हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए मुजम्मिल ने बताया कि हर कोई मूर्तियों को खरीदता है और ले जाता है. पड़ोसी भी समझते हैं कि धंधा सबसे बड़ा धर्म है, इसमें कोई बुराई नहीं है.

वे उत्तर 24 परगना में नदिया के अशोकनगर, दत्तापुकुर और कृष्णानगर से मूर्तियों को इकट्ठा करते हैं और एकत्रित मूर्तियों पर ढलाई करके सांचा बनाया जाता है. ये मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी हैं. बाद में इसे प्लास्टिक की थैली में पैक कर बाजार में पहुंचा दिया जाता है. वहीं मकसूद आलम उर्फ ​​मिंटू ने कहा कि हर मूर्ति को अच्छे हाथों से रंगना होता है. उन्होंने कहा कि वे लोग करीब 19-20 साल से काम कर रहे हैं. वहीं बेलूर की रहने वाली कल्पना सिंह पिछले 10-12 साल से इन लोगों के साथ काम कर रही हैं.

ये भी पढ़ें - तमिलनाडु से 37 साल पहले चोरी हुईं दो मूर्तियां अमेरिका से बरामद

कोलकाता : धर्म, जाति से ऊपर उठकर मुस्लिम मूर्तिकारों द्वारा हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को बनाने का काम किया जाता है. शहर के गौरी बारी में रहने वाले इन मूर्तिकारों के साथ उनका हाथ बंटाती हैं कल्पना सिंह. महात्मा गांधी रोड से मोहम्मद अली पार्क को कोलूटोला स्ट्रीट से जोड़ने वाली इस सड़क पर स्थित गौरी बाड़ी है. वहीं गौरी बारी के ठीक सामने मस्जिद है. गौरी बारी में रहने वाले मकसूद आलम और मुजम्मिल हक के द्वारा जहां मूर्तियां बनाई जाती हैं, वहीं कल्पना सिंह के द्वारा इन्हें अंतिम रूप देने में सहयोग प्रदान किया जाता है.

दोनों ही मूर्तिकार एक छोटे से दो मंजिला घर में रोजाना मूर्तियों में जान डालने का काम करते हैं. हालांकि इनका पता खोजने में लोगों को काफी परेशानी होती है. क्योंकि इनके बारे में लोगों को पता नहीं है. लेकिन ये मूर्तिकार पिछले 15-20 सालों से यहां पर अपने काम को अंजाम देते आ रहे हैं. इन कलाकारों की कला को देश के विभिन्न भागों में पार्सल के जरिये पैककर भी भेजा जाता है.

एक रिपोर्ट

बता दें कि इस घर को गौरी बारी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि घर की मालकिन गौरी बारी हैं, जो बिहार की रहने वाली हैं. इस घर की खासियत यह भी है कि यहां पर मुख्य दरवाजे को खोलने के साथ ही चार-पांच गायें खड़ी दिखाई पड़ती हैं. इतना ही नहीं दाहिनी ओर आठ फीट गुणा सात फीट का एक छोटा कमरा खोजने के लिए केवल ऊपर चढ़ने के लिए एक सीढ़ी है.

कमरें में मकसूद और मुजम्मिल हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को बनाने में तल्लीन हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए मुजम्मिल ने बताया कि हर कोई मूर्तियों को खरीदता है और ले जाता है. पड़ोसी भी समझते हैं कि धंधा सबसे बड़ा धर्म है, इसमें कोई बुराई नहीं है.

वे उत्तर 24 परगना में नदिया के अशोकनगर, दत्तापुकुर और कृष्णानगर से मूर्तियों को इकट्ठा करते हैं और एकत्रित मूर्तियों पर ढलाई करके सांचा बनाया जाता है. ये मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी हैं. बाद में इसे प्लास्टिक की थैली में पैक कर बाजार में पहुंचा दिया जाता है. वहीं मकसूद आलम उर्फ ​​मिंटू ने कहा कि हर मूर्ति को अच्छे हाथों से रंगना होता है. उन्होंने कहा कि वे लोग करीब 19-20 साल से काम कर रहे हैं. वहीं बेलूर की रहने वाली कल्पना सिंह पिछले 10-12 साल से इन लोगों के साथ काम कर रही हैं.

ये भी पढ़ें - तमिलनाडु से 37 साल पहले चोरी हुईं दो मूर्तियां अमेरिका से बरामद

Last Updated : Jul 10, 2022, 7:44 PM IST
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