हैदराबाद : कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश अब दूसरा राज्य बन गया है, जहां नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National education policy 2020) लागू हो गई है. इन दो राज्यों में अब नए सेशन में एडमिशन लेने वाले बच्चे इस नए सिस्टम के तहत पढ़ाई करेंगे. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्री नर्सरी से पोस्ट ग्रैजुएशन तक स्टडी स्ट्रक्चर के साथ सिलेबस बदल जाएंगे, इसलिए जानना जरूरी है कि बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी ?
अभी तक सिर्फ दो राज्यों ने क्यों किया लागू : राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए राज्य सरकार को अपने एजुकेशन सिस्टम में बड़े बदलाव करने होंगे. सिलेबस के अलावा स्कूल इन्फ्रास्ट्रक्चर और उसके हिसाब से टीचर की व्यवस्था करनी होगी. इसलिए इसका समर्थन करने वाले राज्य धीरे-धीरे इसे लागू कर रहे हैं. इसमें संवैधानिक स्थिति यह है कि शिक्षा संविधान में समवर्ती सूची का विषय है, जिसमें राज्य और केन्द्र सरकार दोनों का अधिकार होता है. यह नीति राज्य सरकार पूरी तरह लागू करती या आंशिक, यह प्रदेश की सरकार तय करेगी. राज्य सरकार इसे पूरी तरह मानने के लिए बाध्य नहीं है. जैसे महाराष्ट्र और तमिलनाडु इसे त्रिभाषा फॉर्मूला मानने पर सहमत नहीं हैं. इसलिए इसे लागू करने में समय लग सकता है.
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लागू करने के लिए राज्यों को मना नहीं पाए थे निशंक : भारत सरकार इसे 2022-23 के सत्र में लागू करना चाहती है, मगर इसके लिए 2030 तक का लक्ष्य रखा गया है. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी का उद्देश्य 2040 तक भारत की शिक्षा प्रणाली को बदलना है. 29 जुलाई 2020 को भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसकी मंजूरी दी थी. मोदी 2.0 की सरकार में पहले फेरबदल में तत्कालीन शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की मंत्रिमडल की छुट्टी कर दी गई थी. चर्चा यह रही कि निशंक राज्यों को नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए मना नहीं पाए, इसलिए मंत्रिमंडल से उनकी विदाई हो गई. अब इसे लागू कराने की जिम्मेदारी धर्मेंद्र प्रधान की है.
देश को क्यों पड़ी नई एजुकेशन पॉलिसी की जरूरत : भारत में अब तक सिर्फ दो बार एजुकेशन पॉलिसी लागू हुई है. पहली बार एजुकेशन पॉलिसी1968 में लागू हुई थी. तब इसे लागू करते समय सरकार ने कहा था कि इसका हर पांच साल में रिव्यू होगा. 1985 तक एक बार भी रिव्यू नहीं हुआ. 1986 में दूसरी एजुकेशन पॉलिसी लागू हुई. इसके बाद बच्चों के बस्ते का बोझ और एग्जाम पैरर्न पर खूब बहस हुई. इसके बाद1992 में इसका रिव्यू किया गया और एग्जाम के पैटर्न बदले गए.
जनवरी 2015 में, पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में सरकार ने तीसरी एजुकेशन पॉलिसी के लिए परामर्श समिति बनाई, जिसने एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की सिफारिश की. 2017 में , भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व प्रमुख कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक पैनल बनाया गया. पैनल ने 2019 में नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020 ) का मसौदा तैयार किया, जिसे जुलाई 2020 में केंद्र सरकार ने मंजूर कर लिया.
National Education Policy 2020 में प्राइमरी से ग्रैजुएशन के स्तर पर बदलाव की सिफारिश की गई है. इसलिए इसे शुरुआती स्तर से जानना जरूरी है. अभी तक भारत में पढ़ाई 10+2 के हिसाब से होती है. छात्रों को दसवीं और बारहवीं के बाद ग्रैजुएशन के लिए 3 साल की पढ़ाई करनी होती है. नेशनल शिक्षा नीति को लागू करने वाले राज्यों को को 5+3+3+4 पैटर्न के हिसाब से पढ़ाई की व्यवस्था करनी होगी.
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5+3+3+4 पैटर्न के पहले 5 को जानें : अभी बच्चे प्री नर्सरी, नर्सरी और केजी क्लास में तीन साल पढ़ते हैं, मगर यह उनकी एजुकेशन डिग्री में शामिल नहीं है. नई पॉलिसी के हिसाब से पहले 5 साल में प्री-नर्सरी से दूसरी क्लास तक पढ़ाई करनी होगी. यह कोर्स 3 साल की उम्र से 8 साल के बीच कंप्लीट करना होगा. नई शिक्षा नीति लागू होने पर भी 6 साल में बच्चा पहली क्लास में ही होगा. आपका सवाल होगा कि पैसे वाले घर के शहरी बच्चे तो नर्सरी स्कूल में पढ़ लेते हैं, बाकी बच्चों का क्या होगा. पॉलिसी के तहत सभी बच्चों के लिए आंगनबाड़ी में नर्सरी स्तर की पढ़ाई की व्यवस्था की जाएगी.
अब समझें पहले सिस्टम +3 को : पांच के बाद जुड़े पहले 3 का मतलब है. क्लास 3, 4 और 5. नई शिक्षा नीति में यह माना गया है कि 8 से 11 साल तक की उम्र में बच्चे तीसरी, चौथी और पांचवी क्लास से पासआउट हो जाएंगे. इस दौरान छात्रों को जनरल साइंस, बेसिक मैथ्स और आर्ट आदि की पढ़ाई कराई जाएगी. क्लास 5 तक पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम राष्ट्रभाषा, मातृभाषा या स्थानीय भाषा ही रहेगी. अंग्रेजी मीडियम स्कूलों को राष्ट्रभाषा, मातृभाषा या स्थानीय भाषा एक सब्जेक्ट के तौर पर अनिवार्य रूप से पढ़ाना होगा.
5+3+3+4 में दूसरे +3 को जानें : 5वीं के बाद बच्चों को अगले तीन साल में आठवीं तक पढ़ाई करनी होगी. क्लास 6, 7 और 8 में बच्चों को विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में यह माना गया है कि11-14 साल की उम्र के बच्चे इन क्लासेज में पढ़ेंगे. क्लास-6 में एंट्री लेते ही सभी बच्चों को वोकेशनल कोर्स में भी एडमिशन लेना होगा. इसके साथ ही उन्हें इंटर्नशिप भी करनी होगी. वोकेशनल कोर्स और क्लास में प्रदर्शन के आधार पर बच्चों की ग्रेडिंग होगी. आठवीं क्लास से छात्रों को देश की दो और विदेश की एक भाषा भी सीखनी होगी.
अब बारी पैटर्न के +4 को जानने की : 5+3+3+4 में आख़िर के +4 का मतलब है क्लास 9, 10, 11 और 12. नौवीं से बारहवीं क्लास 14-18 उम्र के बच्चों के लिए है. इसके तहत 12वीं तक बच्चों को सारे सब्जेक्ट्स पढ़ने होंगे और छठी क्लास से चल रही वोकेशनल ट्रेनिंग भी जारी रहेगी. अभी छात्रों को दसवीं बोर्ड का एग्जाम देना होता है. नए पैटर्न के तहत उन्हें दसवीं में बोर्ड एग्जाम नहीं देना होगा. दसवीं कंप्लीट करने के बाद साइंस, ऑर्ट्स और कॉमर्स स्ट्रीम नहीं चुननी होगी. इस दौरान कोई भी सब्जेक्ट वैकल्पिक या एक्स्ट्रा नहीं होगा. 12वीं के एग्जाम के बाद स्ट्रीम चुनने की बारी आएगी. लैंग्वेज क्लास में स्कूल और उच्च शिक्षा में संस्कृत का विकल्प मिलेगा. सेकेंडरी लेवल पर कोरियाई, स्पेनिश, पुर्तगाली, फ्रेंच, जर्मन, जापानी और रूसी आदि विदेशी भाषाओं में से चुनने का भी मौका होगा.
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ग्रैजुएशन में क्या होगा, तीन साल या चार साल : राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दो तरह से ग्रैजुएशन की डिग्री मिलेगी. 3 साल में साधारण डिग्री और 4 साल में ऑनर्स के साथ डिग्री मिलेगी. 4 साल में ग्रैजुएशन करने वालों का फायदा यह मिलेगा कि उनका पोस्ट ग्रैजुएशन सिर्फ एक साल में पूरा होगा जबकि 3 साल वालों को दो साल तक मास्टर डिग्री के लिए पढ़ाई करनी होगी. इसका एक और पहलू यह है कि किसी कारणवश छात्र फर्स्ट ईयर के बाद पढ़ाई छोड़ देता है तो भी उसे सर्टिफिकेट मिलेगा. दूसरे साल के बाद भी एडवांस सर्टिफ़िकेट मिलेगा. तीसरा विकल्प होगा, 5 साल का इंटिग्रेटेड प्रोग्राम, जिसमें ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन दोनों एक साथ ही हो जाए.
एजुकेशन बैंक में जमा होंगे क्रेडिट स्कोर : मगर यह न मान लें कि सर्टिफिकेट भी आसानी से हासिल हो जाएगा. इसके लिए छात्र को एक साल के दौरान अपने अनिवार्य विषयों के दो पेपर में स्कोरिंग करनी होगी. सभी सेमेस्टर में एजुकेशनल और वोकेशनल सब्जेक्टस में परफॉर्मेंस के आधार पर क्रेडिट स्कोर दिया जाएगा. सर्टिफिकेट के लिए मिनिमन 40 क्रेडिट स्कोर की जरूरत होगी. ऐसे ही साल के स्कोर छात्रों के एकैडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट में जमा जमा होते रहेंगे. अंत में क्रेडिट स्कोर के हिसाब से डिग्री मिलेगी.
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स्टडी से ब्रेक लेने का मौका भी मिलेगा : ग्रैजुएशन के दौरान स्टूडेंट की रुचि दूसरे कोर्स में हो गई तो वह पहले कोर्स से ब्रेक ले सकता है. इस दौरान उसके क्रेडिट स्कोर सुरक्षित रहेंगे. जब वह दोबारा पहले कोर्स को पूरा करेगा, तो उसके हिसाब से डिग्री मिल जाएगी. इसके अलावा छात्र को सबजेक्ट चुनने की आजादी होगी. अनिवार्य विषय में उसे स्ट्रीम के हिसाब से सब्जेक्ट चुनने होंगे. व्यवसायिक विषय भी पहले से तय ही होगा. वैकल्पिक विषय में वह स्ट्रीम से हटकर भी पसंदीदा सब्जेक्ट चुन सकते हैं. साइंस स्ट्रीम के स्टूडेंट वैकल्पिक विषय में पेंटिंग, हिस्ट्री या म्यूजिक भी ले सकेंगे. चार साल में वह यह बदल भी सकते हैं.
बता दें कि नेशनल एजुकेशनल पॉलिसी अचानक से पूरी तरह लागू नहीं हो सकती है. राज्यों को विद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने के लिए राज्य स्तर पर स्कूल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी गठित करनी होगी. राज्य की खूबियों और जानकारियों के आधार पर सभी राज्य अपना पाठ्यक्रम तैयार कराना होगा. सभी स्थानीय भाषाओं में स्कूली किताबों की उपलब्धता सुनिश्चित करानी होगी. यह एक प्रक्रिया है. इसलिए पूरी तरह लागू होने तक एग्जाम, मार्किंग और क्लास में विविधता हो सकती है. 2030 के बाद सारा पैटर्न देश में एक समान हो जाएगा.