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केरल के मंदिर में दलितों के प्रवेश पर सदियों से लगी रोक समाप्त ! - kasaragod temple

केरल के कासरगोड जिले में स्थित 'जटाधारी देवस्थानम मंदिर' में दलितों के प्रवेश पर सदियों से लगी रोक को समाप्त कर दिया है. बीत दिनों पट्टिकाजाति क्षमा समिति के नेतृत्व में दलित समुदाय के लोगों ने मंदिर में प्रवेश किया और प्राचीन परंपरा के खात्मे की घोषणा की.

केरल  मंदिर
केरल मंदिर
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Published : Nov 17, 2021, 6:07 PM IST

Updated : Nov 17, 2021, 7:36 PM IST

कासरगोड : केरल के कासरगोड जिले के एक छोटे से गांव में दलित समुदाय के कृष्ण मोहन ने तीन वर्ष पहले जो किया था वह उनके समुदाय से आने वाला कोई व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता था. मोहन ने कर्नाटक की सीमा से लगी एनमाकाजे पंचायत में जटाधारी 'देवस्थानम मंदिर' के वार्षिक उत्सव के दौरान वहां प्रवेश किया और मंदिर की 18 सीढ़ियां चढ़ीं. यह अधिकार सदियों से केवल गांव के ऊंची जाति के लोगों के पास ही था.

इस घटना पर बहुत हंगामा मचा और मामले में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा. आखिरकार निर्णय हुआ कि दलित समुदाय के लोगों को मंदिर में जाने की इजाजत होगी. इसी दौरान मंदिर प्रशासन ने दावा किया कि मंदिर की चाबियां गुम हो गई हैं और मंदिर को सभी लोगों के लिए बंद कर दिया गया.

कुछ दिन पहले दलित समुदाय के कुछ लोगों ने पट्टिकाजाति क्षमा समिति (पीकेएस) के नेतृत्व में मंदिर में प्रवेश किया और प्राचीन परंपरा के खात्मे की घोषणा की. ऐतिहासिक 'मंदिर प्रवेश घोषणा' क्षेत्र में 1947 में प्रभावी हुई थी. जिसने मंदिरों में 'अवर्ण' (पिछड़ी जाति) लोगों के प्रवेश पर पाबंदी को खत्म किया था, लेकिन उसके बावजूद यह पुरातनपंथी परंपरा जारी रही.

पीकेएस के जिला सचिव बीएम प्रदीप ने बताया कि समिति इस भेदभाव को खत्म करना चाहती थी.

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री के राधाकृष्णन ने काह कि समाज में कुछ लोग इस तरह की खराब परंपराओं का अब भी पालन कर रहे हैं और इस तरह के चलन को खत्म करने के लिए केवल सरकारी आदेश काफी नहीं होगा. उन्होंने कहा कि ऐसे चलन को समाप्त करने के लिए सामाजिक हस्तक्षेप आवश्यक है.

प्रदीप ने कहा कि सबसे बुरी बात है कि मंदिर में प्रसाद अलग-अलग बांटा जाता है. उन्होंने कहा कि मंदिर के अधिकारी प्रसादम बांटने के लिए दलितों को जाति का नाम लेकर बुलाते हैं और उन्हें मंदिर के पास प्रसाद में मिले भोजन को खाने की अनुमति नहीं होती जबकि अन्य जाति के लोग ऐसा कर सकते हैं.

वामपंथी विचारधारा के श्रीनिवास नाइक ने मोहन की केरल पुलिस के विशेष चल दस्ते में इस मामले को लेकर शिकायत करने में मदद की थी. नाइक ने बताया, 'हमें पुलिस उपाधीक्षक की अध्यक्षता में खुली चर्चा के लिए बुलाया गया और मंदिर के अधिकारी भेदभाव को समाप्त करने पर सहमत हुए. हालांकि उन्होंने कुछ कारणों का हवाला देते हुए मंदिर को बंद करने का फैसला किया.'

यह भी पढ़ें- केरल: श्रद्धालुओं के लिए खुले सबरीमाला मंदिर के कपाट

नाइक उस जाति से आते हैं जिसे मंदिर में आनेजाने पर कोई रोक नहीं रही. उन्होंने कहा कि भगवान का प्रसाद बांटते समय जाति का नाम बुलाने की परंपरा स्वीकार नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि ऐसे सभी भेदभाव वाले तरीके बंद हों.'

पीकेएस ने सभी श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश समेत तीन मांगें उठाई हैं. इनमें मंदिर में सीधे दान देने की अनुमति और प्रसाद बांटते समय जाति का नाम लेने की परंपरा बंद करना शामिल है. इस संबंध में मंत्री राधाकृष्णन से भी शिकायत की गयी है.

पीकेएस के रुख पर जब मंदिर अधिकारियों से प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने टिप्पणी करने से मना कर दिया.

(पीटीआई-भाषा)

कासरगोड : केरल के कासरगोड जिले के एक छोटे से गांव में दलित समुदाय के कृष्ण मोहन ने तीन वर्ष पहले जो किया था वह उनके समुदाय से आने वाला कोई व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता था. मोहन ने कर्नाटक की सीमा से लगी एनमाकाजे पंचायत में जटाधारी 'देवस्थानम मंदिर' के वार्षिक उत्सव के दौरान वहां प्रवेश किया और मंदिर की 18 सीढ़ियां चढ़ीं. यह अधिकार सदियों से केवल गांव के ऊंची जाति के लोगों के पास ही था.

इस घटना पर बहुत हंगामा मचा और मामले में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा. आखिरकार निर्णय हुआ कि दलित समुदाय के लोगों को मंदिर में जाने की इजाजत होगी. इसी दौरान मंदिर प्रशासन ने दावा किया कि मंदिर की चाबियां गुम हो गई हैं और मंदिर को सभी लोगों के लिए बंद कर दिया गया.

कुछ दिन पहले दलित समुदाय के कुछ लोगों ने पट्टिकाजाति क्षमा समिति (पीकेएस) के नेतृत्व में मंदिर में प्रवेश किया और प्राचीन परंपरा के खात्मे की घोषणा की. ऐतिहासिक 'मंदिर प्रवेश घोषणा' क्षेत्र में 1947 में प्रभावी हुई थी. जिसने मंदिरों में 'अवर्ण' (पिछड़ी जाति) लोगों के प्रवेश पर पाबंदी को खत्म किया था, लेकिन उसके बावजूद यह पुरातनपंथी परंपरा जारी रही.

पीकेएस के जिला सचिव बीएम प्रदीप ने बताया कि समिति इस भेदभाव को खत्म करना चाहती थी.

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री के राधाकृष्णन ने काह कि समाज में कुछ लोग इस तरह की खराब परंपराओं का अब भी पालन कर रहे हैं और इस तरह के चलन को खत्म करने के लिए केवल सरकारी आदेश काफी नहीं होगा. उन्होंने कहा कि ऐसे चलन को समाप्त करने के लिए सामाजिक हस्तक्षेप आवश्यक है.

प्रदीप ने कहा कि सबसे बुरी बात है कि मंदिर में प्रसाद अलग-अलग बांटा जाता है. उन्होंने कहा कि मंदिर के अधिकारी प्रसादम बांटने के लिए दलितों को जाति का नाम लेकर बुलाते हैं और उन्हें मंदिर के पास प्रसाद में मिले भोजन को खाने की अनुमति नहीं होती जबकि अन्य जाति के लोग ऐसा कर सकते हैं.

वामपंथी विचारधारा के श्रीनिवास नाइक ने मोहन की केरल पुलिस के विशेष चल दस्ते में इस मामले को लेकर शिकायत करने में मदद की थी. नाइक ने बताया, 'हमें पुलिस उपाधीक्षक की अध्यक्षता में खुली चर्चा के लिए बुलाया गया और मंदिर के अधिकारी भेदभाव को समाप्त करने पर सहमत हुए. हालांकि उन्होंने कुछ कारणों का हवाला देते हुए मंदिर को बंद करने का फैसला किया.'

यह भी पढ़ें- केरल: श्रद्धालुओं के लिए खुले सबरीमाला मंदिर के कपाट

नाइक उस जाति से आते हैं जिसे मंदिर में आनेजाने पर कोई रोक नहीं रही. उन्होंने कहा कि भगवान का प्रसाद बांटते समय जाति का नाम बुलाने की परंपरा स्वीकार नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि ऐसे सभी भेदभाव वाले तरीके बंद हों.'

पीकेएस ने सभी श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश समेत तीन मांगें उठाई हैं. इनमें मंदिर में सीधे दान देने की अनुमति और प्रसाद बांटते समय जाति का नाम लेने की परंपरा बंद करना शामिल है. इस संबंध में मंत्री राधाकृष्णन से भी शिकायत की गयी है.

पीकेएस के रुख पर जब मंदिर अधिकारियों से प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने टिप्पणी करने से मना कर दिया.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Nov 17, 2021, 7:36 PM IST
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