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पीएफआई को बैन करने की तैयारी में गृह मंत्रालय! कहां आ रहीं हैं रूकावटें?

राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होना, विस्फोटक तैयार करना, निर्वाचित प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचना और करोड़ों की मनी लॉन्ड्रिंग कर देशविरोधी गतिविधियों में पैसा लगाना - ये वो आधार हैं, जिसके हिसाब से पीएफआई पर अब बैन लगाया जा सकता है.

पीएफआई को बैन करने की तैयारी में गृह मंत्रालय! कहां आ रहीं हैं रूकावटें?
पीएफआई को बैन करने की तैयारी में गृह मंत्रालय! कहां आ रहीं हैं रूकावटें?
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Published : Sep 25, 2022, 2:09 PM IST

नई दिल्ली: 22 सितंबर को एनआईए और ईडी ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के देश भर में मौजूद ठिकानों पर छापेमारी की थी. सूत्रों के मुताबिक जांच एजेंसियों द्वारा जो सबूत इकट्ठा किए गए हैं, उनके आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय पीएफआई पर बैन लगाने की तैयारी कर रहा है. हालांकि बैन लगाने के पहले गृह मंत्रालय के अधिकारी पूरी तैयारी कर लेना चाहते हैं, ताकि अगर बैन को चुनौती दी जाए, तो उनका पक्ष कमजोर ना पड़े. गुरुवार को देश के 15 राज्यों में हुई छापेमारी में जांच एजेंसियों को पीएफआई के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के पुख्ता सबूत मिले हैं.

इसी को आधार बनाकर जल्द ही इसे बैन के दायरे में लाया जा सकता है. इसी को लेकर छापेमारी के तुरंत बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और एनआईए चीफ से मीटिंग भी की थी. इसमें पीएफआई के खिलाफ जुटाए गए तथ्यों की समीक्षा और आगे की कार्यवाही के लिए निर्देश जारी किए गए हैं. सूत्रों के मुताबिक पीएफआई को बैन करने से पहले गृह मंत्रालय कानूनी सलाह भी ले रहा है, ताकि जब इस मामले में संबंधित पक्ष अदालत में जाए तो सरकार की तैयारी पूरी हो.

पढ़ें: पीएफआई ने विदेश में रहने वाले सदस्यों के जरिए ‘छुपाकर’ कोष लिया: ईडी

ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है, क्योंकि साल 2008 में सिमी पर लगे प्रतिबंध को केंद्र सरकार को हटाना पड़ा था. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट के जरिए उसे फिर से प्रतिबंधित कर दिया गया. दरअसल जब भी पीएफआई का नाम किसी मामले में आता है, तो इस बात पर चर्चा जरूरी होती है कि अगर इस पर कई आरोप हैं, तो फिर इस संगठन पर बैन लगाने में इतना वक्त क्यों लग रहा है? आखिर वो कौन सी रुकावटें हैं, जो अभी तक केंद्र सरकार को बैन की कार्यवाही करने से रोक रही है.

जानकारी के मुताबिक अलग अलग एजेंसियां कई सालों से पीएफआई के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने में लगी थी. गृह मंत्रालय की तरफ से निर्देश दिए गए थे, कि पीएफआई संगठन की कोई भी कड़ी को ना छोड़ा जाए. एनआईए की जांच आपराधिक संगठन की गैरकानूनी गतिविधियों पर केंद्रित थी, तो वहीं ईडी उनके वित्त के स्रोत का पता लगाने में अब पूरी तरह सफल रहा है. ईडी से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि जांच में पीएफआई के बैंक खातों में करीब 60 करोड़ के संदिग्ध लेन-देन का पता चला है. यह जानकारी भी मिली है कि पीएफआई को हवाला के जरिए भी रकम पहुंचाई जा रही थी.

पढ़ें: एक गोली भी नहीं चली और पीएफआई का पूरा खेल खत्म, जानें कैसे बनी 'ऑपरेशन ऑक्टोपस' की योजना

इसके लिए भारत में पैसे भेजने के लिए खाड़ी देशों में काम करने वाले मजदूरों के बैंक खातों का इस्तेमाल किया जाता था. वहीं एनआईए ने पीएफआई सदस्यों द्वारा चलाये जा रहे आतंकी शिविर के अलावा 5 अलग अलग दर्ज मामलों में विस्फोटक बनाने से लेकर युवाओं को बरगलाकर आईएसआईएस जैसे संगठन में भेजने तक के पुख्ता सबूत इकट्ठा कर लिए हैं. गौरतलब है कि 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पीएफआई के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के चलते बैन लगाने की मांग की थी. कई और राज्य समय समय पर बैन लगाने की मांग कर चुके हैं.

ऐसे में अब तक देरी क्यों हो रही है, इस बारे में आईएएनएस से बात करते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कई बातें विस्तार से बताई. पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि पीएफआई को 5 साल पहले ही बैन हो जाना चाहिए था. उन्होंने बताया कि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होना, विस्फोटक तैयार करना, निर्वाचित प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचना और करोड़ों की मनी लॉन्ड्रिंग कर देशविरोधी गतिविधियों में पैसा लगाना - ये वो आधार हैं, जिसके हिसाब से पीएफआई पर अब बैन लगाया जा सकता है.

पढ़ें: PFI के टारगेट में कई नेता, भारत में इस्लामी शासन लाने की रची साजिश : एनआईए

इन सब मामलों में पुख्ता सबूत जुटाने में लंबा वक्त लगता है. विक्रम सिंह ने बताया कि पीएफआई पर अब तक बैन ना लगने के पीछे की एक वजह इन्हें मिलने वाला राजनीतिक सपोर्ट भी है. कुछ पार्टियों के नेता यहां तक कि सांसद भी पीएफआई को समाजसेवा करने वाला संगठन बता चुके हैं. इसके समर्थक कई राज्यों में मौजूद हैं. यही नहीं पीएफआई की सहयोगी एसडीपीआई कई राज्यों में चुनाव भी लड़ चुकी है. यही वजह है कि पीएफआई के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए इतनी तैयारी करनी पड़ रही है.

विक्रम सिंह ने कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार पीएफआई का टर्की की एजेंसी और पाकिस्तान की आईएसआई से फंडिंग का भी लिंक मिला है. लड़कों को बरगलाकर आईएसआईएस में भी भेजा गया. इन्ही लिंक की कड़ियां जोड़ने के लिए ईडी और एनआईए ने पूरी तैयारी की, ताकि कड़ी कार्यवाही की जा सके. फिलहाल पीएफआई पर झारखंड सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है. वहीं गृह मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रीवेंशन) एक्ट 1967 के सेक्शन 35 के तहत करीब 39 संगठनों पर सरकार ने बैन लगाया हुआ है.

पढ़ें: देश के 15 राज्यों में NIA और ED की रेड, PFI से जुड़े 106 से ज्यादा लोग गिरफ्तार

39 संगठन जिनपर लगा है बैन: इनमें बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान कमांड फोर्स, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, लश्कर-ए-तैयबा/पासबन-ए-अहले हदीस, जैश-ए-मोहम्मद / तहरीक-ए-फुरकान, हरकत-उल-मुजाहिदीन/ हरकत-उल-अंसार, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन, अल-उमर अल-मुजाहिदीन, जम्मू एंड कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा), नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कंगलीपाक, कंगलीपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी), कंगलेई याओल कानबा लुप, मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (एमपीएलएफ), ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया, दीनदर अंजुमन,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी-लेनिनिस्ट) पीपुल्स वॉर, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी), अल बद्र, जमीयत-उल-मुजाहिदीन, अल-कायदा, दुख्तारन-ए-मिल्लत (डीईएम), तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी, तमिल नेशनल र्रिटीवल ट्रूप्स, अखिल भारत नेपाली एकता समाज, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(माओइस्ट), इंडियन मुजाहिदीन,गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी, कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन, इस्लामिक स्टेट/आईएसआईएस, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (के), इसके अलावा यूएन में लिस्टेड आतंकी संगठन भी शामिल हैं.

(आईएएनएस)

नई दिल्ली: 22 सितंबर को एनआईए और ईडी ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के देश भर में मौजूद ठिकानों पर छापेमारी की थी. सूत्रों के मुताबिक जांच एजेंसियों द्वारा जो सबूत इकट्ठा किए गए हैं, उनके आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय पीएफआई पर बैन लगाने की तैयारी कर रहा है. हालांकि बैन लगाने के पहले गृह मंत्रालय के अधिकारी पूरी तैयारी कर लेना चाहते हैं, ताकि अगर बैन को चुनौती दी जाए, तो उनका पक्ष कमजोर ना पड़े. गुरुवार को देश के 15 राज्यों में हुई छापेमारी में जांच एजेंसियों को पीएफआई के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के पुख्ता सबूत मिले हैं.

इसी को आधार बनाकर जल्द ही इसे बैन के दायरे में लाया जा सकता है. इसी को लेकर छापेमारी के तुरंत बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और एनआईए चीफ से मीटिंग भी की थी. इसमें पीएफआई के खिलाफ जुटाए गए तथ्यों की समीक्षा और आगे की कार्यवाही के लिए निर्देश जारी किए गए हैं. सूत्रों के मुताबिक पीएफआई को बैन करने से पहले गृह मंत्रालय कानूनी सलाह भी ले रहा है, ताकि जब इस मामले में संबंधित पक्ष अदालत में जाए तो सरकार की तैयारी पूरी हो.

पढ़ें: पीएफआई ने विदेश में रहने वाले सदस्यों के जरिए ‘छुपाकर’ कोष लिया: ईडी

ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है, क्योंकि साल 2008 में सिमी पर लगे प्रतिबंध को केंद्र सरकार को हटाना पड़ा था. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट के जरिए उसे फिर से प्रतिबंधित कर दिया गया. दरअसल जब भी पीएफआई का नाम किसी मामले में आता है, तो इस बात पर चर्चा जरूरी होती है कि अगर इस पर कई आरोप हैं, तो फिर इस संगठन पर बैन लगाने में इतना वक्त क्यों लग रहा है? आखिर वो कौन सी रुकावटें हैं, जो अभी तक केंद्र सरकार को बैन की कार्यवाही करने से रोक रही है.

जानकारी के मुताबिक अलग अलग एजेंसियां कई सालों से पीएफआई के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने में लगी थी. गृह मंत्रालय की तरफ से निर्देश दिए गए थे, कि पीएफआई संगठन की कोई भी कड़ी को ना छोड़ा जाए. एनआईए की जांच आपराधिक संगठन की गैरकानूनी गतिविधियों पर केंद्रित थी, तो वहीं ईडी उनके वित्त के स्रोत का पता लगाने में अब पूरी तरह सफल रहा है. ईडी से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि जांच में पीएफआई के बैंक खातों में करीब 60 करोड़ के संदिग्ध लेन-देन का पता चला है. यह जानकारी भी मिली है कि पीएफआई को हवाला के जरिए भी रकम पहुंचाई जा रही थी.

पढ़ें: एक गोली भी नहीं चली और पीएफआई का पूरा खेल खत्म, जानें कैसे बनी 'ऑपरेशन ऑक्टोपस' की योजना

इसके लिए भारत में पैसे भेजने के लिए खाड़ी देशों में काम करने वाले मजदूरों के बैंक खातों का इस्तेमाल किया जाता था. वहीं एनआईए ने पीएफआई सदस्यों द्वारा चलाये जा रहे आतंकी शिविर के अलावा 5 अलग अलग दर्ज मामलों में विस्फोटक बनाने से लेकर युवाओं को बरगलाकर आईएसआईएस जैसे संगठन में भेजने तक के पुख्ता सबूत इकट्ठा कर लिए हैं. गौरतलब है कि 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पीएफआई के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के चलते बैन लगाने की मांग की थी. कई और राज्य समय समय पर बैन लगाने की मांग कर चुके हैं.

ऐसे में अब तक देरी क्यों हो रही है, इस बारे में आईएएनएस से बात करते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कई बातें विस्तार से बताई. पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि पीएफआई को 5 साल पहले ही बैन हो जाना चाहिए था. उन्होंने बताया कि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होना, विस्फोटक तैयार करना, निर्वाचित प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचना और करोड़ों की मनी लॉन्ड्रिंग कर देशविरोधी गतिविधियों में पैसा लगाना - ये वो आधार हैं, जिसके हिसाब से पीएफआई पर अब बैन लगाया जा सकता है.

पढ़ें: PFI के टारगेट में कई नेता, भारत में इस्लामी शासन लाने की रची साजिश : एनआईए

इन सब मामलों में पुख्ता सबूत जुटाने में लंबा वक्त लगता है. विक्रम सिंह ने बताया कि पीएफआई पर अब तक बैन ना लगने के पीछे की एक वजह इन्हें मिलने वाला राजनीतिक सपोर्ट भी है. कुछ पार्टियों के नेता यहां तक कि सांसद भी पीएफआई को समाजसेवा करने वाला संगठन बता चुके हैं. इसके समर्थक कई राज्यों में मौजूद हैं. यही नहीं पीएफआई की सहयोगी एसडीपीआई कई राज्यों में चुनाव भी लड़ चुकी है. यही वजह है कि पीएफआई के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए इतनी तैयारी करनी पड़ रही है.

विक्रम सिंह ने कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार पीएफआई का टर्की की एजेंसी और पाकिस्तान की आईएसआई से फंडिंग का भी लिंक मिला है. लड़कों को बरगलाकर आईएसआईएस में भी भेजा गया. इन्ही लिंक की कड़ियां जोड़ने के लिए ईडी और एनआईए ने पूरी तैयारी की, ताकि कड़ी कार्यवाही की जा सके. फिलहाल पीएफआई पर झारखंड सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है. वहीं गृह मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रीवेंशन) एक्ट 1967 के सेक्शन 35 के तहत करीब 39 संगठनों पर सरकार ने बैन लगाया हुआ है.

पढ़ें: देश के 15 राज्यों में NIA और ED की रेड, PFI से जुड़े 106 से ज्यादा लोग गिरफ्तार

39 संगठन जिनपर लगा है बैन: इनमें बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान कमांड फोर्स, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, लश्कर-ए-तैयबा/पासबन-ए-अहले हदीस, जैश-ए-मोहम्मद / तहरीक-ए-फुरकान, हरकत-उल-मुजाहिदीन/ हरकत-उल-अंसार, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन, अल-उमर अल-मुजाहिदीन, जम्मू एंड कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा), नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कंगलीपाक, कंगलीपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी), कंगलेई याओल कानबा लुप, मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (एमपीएलएफ), ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया, दीनदर अंजुमन,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी-लेनिनिस्ट) पीपुल्स वॉर, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी), अल बद्र, जमीयत-उल-मुजाहिदीन, अल-कायदा, दुख्तारन-ए-मिल्लत (डीईएम), तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी, तमिल नेशनल र्रिटीवल ट्रूप्स, अखिल भारत नेपाली एकता समाज, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(माओइस्ट), इंडियन मुजाहिदीन,गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी, कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन, इस्लामिक स्टेट/आईएसआईएस, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (के), इसके अलावा यूएन में लिस्टेड आतंकी संगठन भी शामिल हैं.

(आईएएनएस)

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