प्रयागराज: श्री कृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह विवाद की सुनवाई मथुरा सिविल जज की अदालत में ही की जाएगी. हाईकोर्ट ने इसे लेकर यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह की पुनरीक्षण याचिकाओं को निस्तारित करते हुए प्रकरण वापस सिविल जज मथुरा की अदालत में भेज दिया है. कोर्ट ने सिविल जज को निर्देश दिया है कि वह सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का पालन करते हुए श्री कृष्ण जन्मभूमि के पक्षकारों की ओर से दाखिल सिविल सूट की सुनवाई करें. सुन्नी सेंट्रल बोर्ड और शाही मस्जिद ईदगाह की याचिकाओं पर न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया ने सुनवाई की.
पुनरीक्षण याचिका में जिला जज मथुरा द्वारा 19 मई 2022 को पारित आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें जिला जज ने सिविल जज मथुरा द्वारा 30 सितंबर 2020 को श्री कृष्ण जन्मभूमि पक्ष की ओर से दाखिल सिविल सूट की सुनवाई से इनकार करने के आदेश को रद कर दिया था.
श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा की ओर से सिविल सूट दाखिल करते हुए कटरा केशव देव स्थित 13.37 एकड़ भूमि पर अपने अधिकार का दावा किया गया था. कहा गया कि यह भगवान श्री कृष्ण का जन्म स्थान है. सिविल सूट में यह भी मांग की गई कि इस स्थान पर बने ढांचे को हटाया जाए. साथ ही 20 जुलाई 1973 और 7 अप्रैल 1974 के समझौते को रद्द किया जाए तथा दूसरे पक्ष को इस 13.37 एकड़ भूमि में प्रवेश करने से रोका जाए.
सिविल जज ने इस मामले को सिविल सूट के तौर पर दर्ज करने के बजाय मिसलेनियस सूट के तौर पर दर्ज किया तथा बाद में इसे यह कहते हुए रद्द कर दिया किस कृष्ण जन्मभूमि पक्ष के लोग भगवान कृष्ण के उपासक हैं विश्व भर में करोड़ों उपासक है और यदि हर किसी को सिविल सूट दाखिल करने की छूट दी गई तो इससे न्यायिक व सामाजिक व्यवस्था चरमरा जाएगी. सिविल जज ने यह भी कहा कि याची गण को यह सूट दाख़िल करने का अधिकार नहीं है.
श्री कृष्ण जन्मभूमि पक्ष की ओर से सिविल जज के इस फैसले को जिला जज मथुरा की अदालत में चुनौती दी गई. जिला जज ने जन्मभूमि पक्ष के लोगों की अपील को पुनरीक्षण अर्जी के रूप में स्वीकार किया तथा सभी बिंदुओं पर विस्तृत निर्णय देते हुए सिविल जज मथुरा के 30 सितंबर 2020 को आदेश के आदेश को रद कर दिया और मामले को सिविल सूट के तौर पर दर्ज करते हुए सुनवाई करने का आदेश दिया था.
जिला जज के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट में दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि एक नियमित सिविल सूट की पोषणीयता के प्रश्न को विचारण न्यायालय द्वारा बिना निर्धारित प्रक्रिया को अपनाएं निर्णीत नहीं किया जाना चाहिए था. इसी प्रकार से जिला जज को पुनरीक्षण अर्जी पर सुनवाई करते हुए विवादित प्रश्नों पर निर्णय देने की आवश्यकता नहीं थी. हाईकोर्ट ने कहा कि यह मामला अब सिविल सूट के तौर पर सिविल जज के यहां दाखिल हो चुका है और लिखित बहस तथा वाद बिंदु तय करने के लिए पक्षकारों को समन जारी किए जा चुके हैं. कोर्ट ने कहा कि सिविल जज निर्धारित प्रक्रिया के तहत इस वाद की सुनवाई करें तथा सभी पक्षकार अपना पक्ष सिविल जज के समक्ष रखने के लिए स्वतंत्र है.
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