हैदराबाद : तालिबान ने सरकार का गठन टाल दिया है. ऐसा कहा जा रहा है कि तालिबान के अंदर फूट पड़ चूकी है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हक्कानी नेता अनस और खलील हक्कानी की तालिबान के नेता मुल्ला बरादर और मुल्ला याकूब के साथ झड़प की हो गई है.
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो हक्कानी नेटवर्क और तालिबान को सत्ता के मोह में हो गया है, इन सबके बीच पाकिस्तान अंदर-अंदर खेला कर रहा है और पाकिस्तान तालिबान से सत्ता की बागड़ोर छीन कर आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क को सौंपना चाहता है.
दरअसल, इस संबंध में अफगानिस्तान की पूर्व सांसद मरियम सोलाइमनखिल ने बताया कि आईएसआई चीफ फैज हामित काबुल इसी वजह से पहुंचे हैं, ताकि वे आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क के नेता को तालिबानी सरकार का प्रमुख बनवा सकें और मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को प्रमुख बनने से रोक सकें.
काबुल पहुंचने पर असहज दिखाई दिए आईएसआई प्रमुख
आईएसआई फैज हामिद काबुल पहुंचने पर पत्रकारों के सवालों से भी असहज दिखाई पड़े. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि अफगानिस्तान में आगे क्या होने वाला है. इस पर वह असहज महूसस करने लगे और काबुल में पाकिस्तानी राजदूर मंसूर खान की ओर देखने लगे. हालांकि, आईएसआई फैज बाद में यह बोलते हुए निकल गए कि चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा.
600 तालिबानी को मारे गए
इसी बीच पंजशीर के नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स ने खूनी संघर्ष में तालिबान के करीब 600 लड़ाकों को मारने का दावा किया है. रेजिस्टेंस फोर्स के प्रवक्ता ने ट्वीट कर कहा कि 1,000 से अधिक तालिबानी आतंकवादियों को पकड़ लिया गया है या उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया है.
जानकारों का क्या कहना है
माइकल रुबिन के अनुसार, हक्कानी और कई अन्य तालिबान गुट हैबातुल्लाह अखुंदजादा को अपना नेता स्वीकार नहीं करते हैं. रुबिन ने कहा, जबकि तालिबान ने कहा था कि वे तीन सितंबर को अपनी नई सरकार की घोषणा करेंगे, अखुंदजादा की नियुक्ति के किसी भी आधिकारिक शब्द के बिना पूरा दिन बीत गया, जिसे समूह के प्रतिनिधियों ने पहले संकेत दिया था कि कंधार में स्थित इस्लामिक अमीरात के वह सर्वोच्च नेता होंगे.
सरकार गठन में देरी तालिबान के भीतर बहुत बड़े संकट का संकेत
उस देरी ने काबुल में राजनीतिक नेता बनने के बरादर के प्रयासों को भी स्थगित कर दिया. उन्होंने कहा कि देरी तालिबान के भीतर बहुत बड़े संकट का संकेत हो सकती है, इसलिए हमीद ने यह आपातकालीन यात्रा की है.
अब हमीद जिस गहरी समस्या से जूझ रहे हैं, वह यह है कि तालिबान हमेशा से ही भ्रम में रहा है. क्वेटा शूरा हक्कानी नेटवर्क से अलग है जो उत्तरी तालिबान से अलग है. जबकि पश्चिमी राजनयिक और यहां तक कि पाकिस्तानी अधिकारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को अफगानिस्तान में कोई वैधता नहीं मान सकते हैं, इस बात का कोई संकेत नहीं है कि समूह वास्तव में सहमत है.
कुछ अफगान गुट अधिक समावेशी सरकार चाहते हैं और पंजशीरियों से लड़ने के प्रयासों के बारे में उत्साहित नहीं हैं. तालिबान ने बड़े पैमाने पर सैन्य जीत के बजाय राजनीतिक सौदों के दम पर अफगानिस्तान पर विजय प्राप्त की और घाटी में जमीनी लड़ाई और उसके दृष्टिकोणों में अब उन्हें होने वाले नुकसान के बारे में उत्साहित नहीं हैं. उन्होंने कहा कि यह हमीद और जिन गुटों को वह सीधे निर्देश देता है, वे प्रतिरोध के दो मुख्य नेताओं अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह को खत्म करना चाहते हैं.
तालिबान पर वाशिंगटन का प्रभाव : जेक सुलविन
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन का कहना है कि तालिबान पर वाशिंगटन का प्रभाव है. उन्होंने कहा कि हमीद का सपना अफगानिस्तान के 9.4 अरब डॉलर के भंडार पर नियंत्रण हासिल करने के लिए भ्रम को लंबे समय तक जीवित रखना होगा.
तालिबान लड़ाकों की हवाई फायरिंग में 70 लोगों की मौत
तालिबान के लड़ाकों ने शुक्रवार रात देश भर में हवा में गोलियां चलाईं, जिसमें अफगानिस्तान के आसपास 70 से अधिक लोग मारे गए. कई प्रांतों से रिपोर्ट न मिलने के कारण यह संख्या और भी अधिक हो सकती है.
तालिबान सरकार के तहत महिलाओं के अधिकारों की मांग
अफगानिस्तान में नई तालिबान सरकार के तहत महिलाओं के अधिकारों की मांग को लेकर काबुल में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया है. आंदोलनकारियों ने राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़ने की कोशिश की, तो विद्रोहियों ने उन्हें जबरदस्ती रोक दिया. एक मीडिया रिपोर्ट में यह जानकारी मिली. टोलो न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है कि राजधानी शहर के पुल-ए-महमूद खान इलाके से राष्ट्रपति भवन की ओर मार्च करने वाले प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए तालिबान के विशेष बलों ने शनिवार दोपहर आंसू गैस का इस्तेमाल किया.
अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह ने खोला हुआ है मोर्चा
वहीं तालिबान के खिलाफ पिछले कई दिनों से पंजशीर प्रांत में अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह मोर्चा खोले हुए हैं. शुरुआती कुछ दिनों तक तालिबान और विद्रोही गुट के बीच बातचीत का दौर चला, लेकिन कोई हल नहीं निकला. इसके बाद, तालिबान ने पंजशीर पर कब्जा करने के लिए अभियान शुरू किया.
पंजशीर अफगानिस्तान के नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट का गढ़ है, जिसका नेतृत्व दिवंगत गुरिल्ला कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह कर रहे हैं. तालिबान ने उस समय भी पंजशीर घाटी पर कब्जा नहीं कर सका था, जब उसने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया था.
15 अगस्त को काबुल के पतन के बाद, तालिबान ने आरटीए (अफगानिस्तान में राष्ट्रीय रेडियो और टेलीविजन की सुविधा) में काम करने वाली कई महिला प्रजेंटर को भी हटा दिया था.