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राजनीतिक हुआ किसान आंदोलन, विधानसभा चुनावों पर नहीं पड़ेगा कोई असर : वीरेंद्र सिंह मस्त

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों ने 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर चलो का नारा दिया है. वे वहां पर महापंचायत भी करेंगे. हालांकि भारतीय जनता पार्टी इस आंदोलन को किसान आंदोलन से ज्यादा राजनीतिक आंदोलन बता रही है. भाजपा सांसद विरेंद्र सिंह मस्त से ईटीवी वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना ने बातचीत की.

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Published : Sep 3, 2021, 9:15 PM IST

नई दिल्ली : हरियाणा में किसानों पर हुए लाठीचार्ज से संबंधित सवाल पर भी भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने कहा कि आंदोलन के साथ-साथ कानून व्यवस्था बनाए रखना भी सरकार की जिम्मेदारी होती है.

आरएसएस की तरफ से किसान संघ द्वारा किसानों के उपज से संबंधित लाभकारी नीति को लेकर 8 सितंबर को होने वाले देशव्यापी धरने पर भी मस्त ने कहा कि सरकार इस पर निर्णय लेगी.

भाजपा सांसद और भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह मस्त का कहना है कि यह किसान आंदोलन अब किसान आंदोलन से ज्यादा राजनीति आंदोलन बन चुका है.

वीरेंद्र सिंह मस्त से विशेष बातचीत

उन्होंने कहा कि आंदोलन कर रहे किसानों के साथ देशभर के किसान नहीं हैं और यह आंदोलनकारी किसान सिर्फ किसान बिल पर ही बात कर रहे हैं जबकि किसानों के कई मुद्दे हैं. जिस पर सरकार ने उन्हें काफी राहत दी है और देश भर के किसान उससे खुश हैं.

किसानों के मुजफ्फरनगर चलो और वहां महापंचायत के सवाल पर वीरेंद्र सिंह मस्त का कहना है कि किसानों कि और भी समस्याएं हैं. मगर यह आंदोलनरत किसान उनकी बातें नहीं कर रहे हैं. लाभकारी नीति की बात हो या उनके उपज की कीमत की बात हो ,सरकार ने तमाम मुद्दों को ध्यान में रखकर ही ये कानून बनाया है.

मगर मुट्ठी भर किसान आंदोलन करके इसे राजनीतिक रूप दे रहे हैं. इस सवाल पर की हरियाणा में किसानों पर लाठीचार्ज किया गया एक चुनी हुई सरकार के लिए क्या यह सही है? वीरेंद्र सिंह मस्त का कहना है कि कहीं पर यदि मुख्यमंत्री का रूट लगा हुआ है तो वहां पर कानून-व्यवस्था को बनाए रखना भी सरकार की जिम्मेदारी होती है.

लाठीचार्ज के मामले को विपक्ष तूल दे रहा है यह सही नहीं है. सरकार ने कार्रवाई की है लेकिन इसे राजनीतिक मुद्दा बनाना गलत है. भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने किसान नेता राकेश सिंह टिकैत पर भी निशाना साधा. कहा कि राकेश टिकैत और उनके पिता दोनों ही चुनाव लड़ते रहे हैं लेकिन चुनाव में उनका हश्र क्या हुआ, यह सभी जानते हैं.

यह भी पढ़ें-मोदी सरकार के सभी मंत्री जाएंगे जम्मू-कश्मीर, पब्लिक-प्रशासन से करेंगे विशेष बातचीत

बंगाल में भी उन्होंने इसे चुनावी रंग देने की कोशिश की. आने वाले राज्यों के चुनाव या खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में वह इसे प्रभावित करने की कोशिश करते हैं जैसा कि उन्होंने पंचायत चुनाव में किया. लेकिन उसका परिणाम सामने है. इससे आने वाले राज्य विधानसभा चुनावों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा.

नई दिल्ली : हरियाणा में किसानों पर हुए लाठीचार्ज से संबंधित सवाल पर भी भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने कहा कि आंदोलन के साथ-साथ कानून व्यवस्था बनाए रखना भी सरकार की जिम्मेदारी होती है.

आरएसएस की तरफ से किसान संघ द्वारा किसानों के उपज से संबंधित लाभकारी नीति को लेकर 8 सितंबर को होने वाले देशव्यापी धरने पर भी मस्त ने कहा कि सरकार इस पर निर्णय लेगी.

भाजपा सांसद और भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह मस्त का कहना है कि यह किसान आंदोलन अब किसान आंदोलन से ज्यादा राजनीति आंदोलन बन चुका है.

वीरेंद्र सिंह मस्त से विशेष बातचीत

उन्होंने कहा कि आंदोलन कर रहे किसानों के साथ देशभर के किसान नहीं हैं और यह आंदोलनकारी किसान सिर्फ किसान बिल पर ही बात कर रहे हैं जबकि किसानों के कई मुद्दे हैं. जिस पर सरकार ने उन्हें काफी राहत दी है और देश भर के किसान उससे खुश हैं.

किसानों के मुजफ्फरनगर चलो और वहां महापंचायत के सवाल पर वीरेंद्र सिंह मस्त का कहना है कि किसानों कि और भी समस्याएं हैं. मगर यह आंदोलनरत किसान उनकी बातें नहीं कर रहे हैं. लाभकारी नीति की बात हो या उनके उपज की कीमत की बात हो ,सरकार ने तमाम मुद्दों को ध्यान में रखकर ही ये कानून बनाया है.

मगर मुट्ठी भर किसान आंदोलन करके इसे राजनीतिक रूप दे रहे हैं. इस सवाल पर की हरियाणा में किसानों पर लाठीचार्ज किया गया एक चुनी हुई सरकार के लिए क्या यह सही है? वीरेंद्र सिंह मस्त का कहना है कि कहीं पर यदि मुख्यमंत्री का रूट लगा हुआ है तो वहां पर कानून-व्यवस्था को बनाए रखना भी सरकार की जिम्मेदारी होती है.

लाठीचार्ज के मामले को विपक्ष तूल दे रहा है यह सही नहीं है. सरकार ने कार्रवाई की है लेकिन इसे राजनीतिक मुद्दा बनाना गलत है. भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने किसान नेता राकेश सिंह टिकैत पर भी निशाना साधा. कहा कि राकेश टिकैत और उनके पिता दोनों ही चुनाव लड़ते रहे हैं लेकिन चुनाव में उनका हश्र क्या हुआ, यह सभी जानते हैं.

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बंगाल में भी उन्होंने इसे चुनावी रंग देने की कोशिश की. आने वाले राज्यों के चुनाव या खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में वह इसे प्रभावित करने की कोशिश करते हैं जैसा कि उन्होंने पंचायत चुनाव में किया. लेकिन उसका परिणाम सामने है. इससे आने वाले राज्य विधानसभा चुनावों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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