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ओमीक्रोन को प्राकृतिक टीका मानने की धारणा खतरनाक: विशेषज्ञ

अगर कोई यह मानता है कि ओमीक्रोन एक प्राकृतिक टीके की तरह काम कर रहा है,तो वह बहुत बड़ी गलतफहमी (experts warn of accepting omicron as natural vaccine) में है. क्योंकि ओमीक्रोन से मौतें भी हो रहीं हैं, लिहाजा इसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है. इसके प्रति कोई भी लापरवाही न बरतें, अन्यथा गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं. यह दावा विशेषज्ञों ने किया है.

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ओमीक्रोन का बढ़ता दायरा
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Published : Jan 2, 2022, 3:31 PM IST

नई दिल्ली : विशेषज्ञों का कहना है कि ओमीक्रोन को प्राकृतिक टीका समझने की धारणा खतरनाक विचार (experts warn of accepting omicron as natural vaccine) है, जिसे ऐसे गैरजिम्मेदार लोग फैला रहे हैं, जो कोविड-19 के बाद होने वाली स्वास्थ्य संबंधी दीर्घकालीन परेशानियों पर गौर नहीं करते. कोरोना वायरस के अन्य स्वरूपों की तुलना में अधिक संक्रामक समझे जाने वाले ओमीक्रोन स्वरूप से संक्रमण के अपेक्षाकृत कम गंभीर मामले सामने आ रहे हैं, इससे संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता कम पड़ती है और इससे लोगों की मौत की संख्या भी अपेक्षाकृत कम है. इन्हीं वजहों से इस धारणा को जन्म मिला है कि यह स्वरूप एक प्राकृतिक टीके की तरह काम कर सकता है.

महाराष्ट्र के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने भी हाल में दावा किया था कि ओमीक्रोन एक प्राकृतिक टीके की तरह काम करेगा और इससे कोविड-19 को स्थानीय महामारी (एन्डेमिक) के चरण में जाने में मदद मिल सकती है. जाने माने विषाणु वैज्ञानिक शाहिद जमील ने कहा कि ओमीक्रोन को एक प्राकृतिक टीका मानने वाली धारणा एक खतरनाक विचार है, जिसे गैरजिम्मेदार लोग फैला रहे हैं.

उन्होंने कहा, 'इस धारणा से बस एक संतुष्टि मिलती है, लेकिन इसका कारण इस समय उपलब्ध सबूतों के बजाय वैश्विक महामारी के कारण पैदा हुई थकान तथा और कदम उठाने की अक्षमता है.' जमील ने कहा कि जो लोग इस धारणा की वकालत करते हैं, वे कोरोना वायरस संक्रमण के बाद स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दीर्घकालीन प्रभावों पर गौर नहीं करते और उन्हें इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है.

‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ में लाइफकोर्स महामारी विज्ञान के प्रमुख गिरिधर आर बाबू ने कहा कि ओमीक्रोन के लक्षण कितने भी मामूली क्यों न हो, यह टीका नहीं है. उन्होंने कहा, 'इस स्वरूप के कारण लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ रहा है और उनकी मौत भी हो रही है. गलत सूचना से दूर रहें. कोई भी प्राकृतिक संक्रमण टीकाकरण की तरह किसी भी स्वरूप (अल्फा, बीटा, गामा या डेल्टा) से लोगों की (मौत या गंभीर संक्रमण से) रक्षा नहीं कर सकता. सबूत मायने रखते हैं, राय नहीं.'

‘उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स’ के संस्थापक निदेशक शुचिन बजाज ने कहा कि इस बीमारी के दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं और लोगों को इससे सावधान रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा, 'हमें इसे टीके की तरह नहीं समझना चाहिए. यह टीका नहीं है. ओमीक्रोन से लोगों की मौत हुई है. ओमीक्रोन के कारण लोग आईसीयू में भर्ती हुए हैं. यह डेल्टा की तुलना में कम गंभीर संक्रमण है, इसके बावजूद यह एक वायरस है और हमें सावधान रहने की आवश्यकता है.'

लखनऊ के रीजेंसी हेल्थ में क्रिटिकल केयर विभाग प्रमुख जय जावेरी ने कहा कि ओमीक्रोन के अधिक संक्रामक और कम गंभीर होने के कारण यह स्वरूप महामारी की रोकथाम में मददगार हो सकता है.

ये भी पढ़ें : फेंफड़ों पर असर नहीं होने के कारण ओमीक्रोन ज्यादा घातक नहीं : शोध रिपोर्ट

नई दिल्ली : विशेषज्ञों का कहना है कि ओमीक्रोन को प्राकृतिक टीका समझने की धारणा खतरनाक विचार (experts warn of accepting omicron as natural vaccine) है, जिसे ऐसे गैरजिम्मेदार लोग फैला रहे हैं, जो कोविड-19 के बाद होने वाली स्वास्थ्य संबंधी दीर्घकालीन परेशानियों पर गौर नहीं करते. कोरोना वायरस के अन्य स्वरूपों की तुलना में अधिक संक्रामक समझे जाने वाले ओमीक्रोन स्वरूप से संक्रमण के अपेक्षाकृत कम गंभीर मामले सामने आ रहे हैं, इससे संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता कम पड़ती है और इससे लोगों की मौत की संख्या भी अपेक्षाकृत कम है. इन्हीं वजहों से इस धारणा को जन्म मिला है कि यह स्वरूप एक प्राकृतिक टीके की तरह काम कर सकता है.

महाराष्ट्र के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने भी हाल में दावा किया था कि ओमीक्रोन एक प्राकृतिक टीके की तरह काम करेगा और इससे कोविड-19 को स्थानीय महामारी (एन्डेमिक) के चरण में जाने में मदद मिल सकती है. जाने माने विषाणु वैज्ञानिक शाहिद जमील ने कहा कि ओमीक्रोन को एक प्राकृतिक टीका मानने वाली धारणा एक खतरनाक विचार है, जिसे गैरजिम्मेदार लोग फैला रहे हैं.

उन्होंने कहा, 'इस धारणा से बस एक संतुष्टि मिलती है, लेकिन इसका कारण इस समय उपलब्ध सबूतों के बजाय वैश्विक महामारी के कारण पैदा हुई थकान तथा और कदम उठाने की अक्षमता है.' जमील ने कहा कि जो लोग इस धारणा की वकालत करते हैं, वे कोरोना वायरस संक्रमण के बाद स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दीर्घकालीन प्रभावों पर गौर नहीं करते और उन्हें इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है.

‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ में लाइफकोर्स महामारी विज्ञान के प्रमुख गिरिधर आर बाबू ने कहा कि ओमीक्रोन के लक्षण कितने भी मामूली क्यों न हो, यह टीका नहीं है. उन्होंने कहा, 'इस स्वरूप के कारण लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ रहा है और उनकी मौत भी हो रही है. गलत सूचना से दूर रहें. कोई भी प्राकृतिक संक्रमण टीकाकरण की तरह किसी भी स्वरूप (अल्फा, बीटा, गामा या डेल्टा) से लोगों की (मौत या गंभीर संक्रमण से) रक्षा नहीं कर सकता. सबूत मायने रखते हैं, राय नहीं.'

‘उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स’ के संस्थापक निदेशक शुचिन बजाज ने कहा कि इस बीमारी के दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं और लोगों को इससे सावधान रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा, 'हमें इसे टीके की तरह नहीं समझना चाहिए. यह टीका नहीं है. ओमीक्रोन से लोगों की मौत हुई है. ओमीक्रोन के कारण लोग आईसीयू में भर्ती हुए हैं. यह डेल्टा की तुलना में कम गंभीर संक्रमण है, इसके बावजूद यह एक वायरस है और हमें सावधान रहने की आवश्यकता है.'

लखनऊ के रीजेंसी हेल्थ में क्रिटिकल केयर विभाग प्रमुख जय जावेरी ने कहा कि ओमीक्रोन के अधिक संक्रामक और कम गंभीर होने के कारण यह स्वरूप महामारी की रोकथाम में मददगार हो सकता है.

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