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किसान कानून मर चुके हैं, डेथ सर्टिफिकेट पर साइन होना बाकी पर सरकार वो नहीं कर रही: योगेन्द्र यादव

स्वराज इंडिया राजनीतिक दल के संस्थापक और जन किसान आंदोलन (Farmers Movement) के जरिए संयुक्त किसान मोर्चे से जुड़े योगेन्द्र यादव ने किसान आंदोलन के मसले पर विशेष बातचीत में दावा किया कि किसान आंदोलन निर्णायक मोड़ पर ही खत्म होगा. सरकार के रुख, आंदोलन की दिशा और आंदोलनकारी नेताओं की चुनावी राजनीति पर बेबाक बात की ईटीवी दिल्ली स्टेट एडिटर विशाल सूर्यकांत ने.

Farmer Protest, Farmers Movement
योगेन्द्र यादव से विशेष बातचीत
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Published : Jul 23, 2021, 10:49 PM IST

किसान संसद को चलाने का मकसद ही यही है कि आवाज देश की संसद में बैठे नेताओं के कान तक पहुंचे ताकि किसानों के बारे में कोई निर्णय लिया जा सके. ये बयान है योगेन्द्र यादव का, जिन्होंने किसान आंदोलन और सरकार के उदासीन रुख पर अपना पक्ष रखा. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश...

दिल्ली हमारा शामियाना

किसान संसद (Kisan Sansad) के सवाल पर योगेन्द्र यादव ने कहा कि दिल्ली हमारा शामियाना है, खूंटे तो हमारे गांव में गड़े हैं. वहां हमारा आंदोलन पहले से भी ज्यादा मजबूत है. मैं यह गारंटी नहीं ले सकता कि लाखों लोग जो नहीं कर पाए वो 200 लोग कर लेंगे, क्योंकि ये सरकार पर निर्भर है. हालांकि हमने ये तय किया था कि हर दिन नए 200 लोग किसान संसद स्थल पर जाएंगे. ये भी तय था कि सभी लोग सिंघु बोर्डर से ही जाएंगे. कहा कि मैं इसे अव्यवस्थित नहीं बल्कि स्वत: स्फूर्त कहूंगा. पिछली बार जिस मात्रा में भीड़ आई थी, उससे हमने एक सबक लिया कि यह उर्जा आंदोलन के लिए जरूरी है, लेकिन उसे चैनलाइज होना चाहिए.

26 जनवरी 2021 के किसान आंदोलन को कुछ लोगों की वजह से ही क्यों याद करें ? आप हाथ में तिरंगा लिए चल रहे लाखों किसानों को अनदेखा नहीं कर सकते. देश में इतनी बड़ी मात्रा में आम नागरिकों ने दिल्ली मार्च किया था. हमें ये भी सीखने को मिला कि कैसे 10-50 सरकार की ओर से भेजे गए लोग आंदोलन को बदनाम कर सकते हैं. इसलिए इस बार हमने तय किया कि हम अपनी सारी उर्जा को कंट्रोल तरीके से इस्तेमाल करेंगे, जिसका असर भी दिख रहा है.

योगेन्द्र यादव से विशेष बातचीत

संसद के सामने हम उद्देश्य लेकर आए

इस बार के आंदोलन का मकसद पर यादव ने जवाब दिया कि इस बार संसद के सामने तीन उद्देश्य लेकर गए हैं. पहला, जिस मुद्दे का भारत को छोड़ कर पूरे दुनिया की संसदों में जिक्र हो रहा है, तो उसकी चर्चा भारतीय संसद में भी हो. दूसरा उद्देश्य यह कि सरकार पिछले 8 महीनों से कह रही है, कि किसानों को क्या एतराज है, वे सरकार को बता नहीं रहे, इसलिए सार्वजनिक रूप से हम बता रहे हैं. तीसरा उद्देश्य यह कि देश में हमने पहली बार वोटर व्हिप लागू किया. मतदाता कह रहा है कि पार्टी से उपर वोटर का व्हिप है. सांसदों को हमारे लिए बोलना होगा. विदेशों की संसद में किसान आंदोलन को लेकर चर्चा होने वोले खुद के बयान पर योगेन्द्र यादव ने जवाब दिया कि

ये सोचने वाली बात है कि देश के खिलाफ 2014 के बाद से साजिशें इतनी बढ़ क्यों गई, जबकि देश में दमदार प्रधानमंत्री हैं. अचानक देशद्रोह के मुकदमे बढ़ गए. 1962 के बाद चीन आक्रामक हो गया. इंदिरा जी के समय में भी ऐसा हुआ करता था जब देश में के अंदर ही विदेशी हाथ आ जाया करते थे. सत्ताधारियों के पास जवाब नहीं होता, तो ऐसे बहाने बनाए जाते हैं.

हम किसानों का मुद्दा उठा रहे

नई राजनीतिक जमीन तैयार पर योगेन्द्र यादव कहते हैं कि अगर ऐसा है तो सरकार इन सारे आरोपों को, किसानों की बात मान कर खत्म कर सकती है. अगर हम रोज नए मुद्दे लेकर आएं तो राजनीति करने का आरोप सही होगा. लेकिन ऐसा है नहीं, हम किसानों का मुद्दा उठा रहे हैं, सरकार इसका जवाब नहीं दे रही. केंद्र सरकार के बयान कि किसान हमारे साथ है पर योगेन्द्र यादव ने जवाब दिया कि आप देखें कि इस सांसद विधायक कि हरियाणा,पंजाब, पश्चिमी यूपी,पूर्वी राजस्थान में क्या स्थिति है.

योगेन्द्र यादव से विशेष बातचीत

पढ़ें:सरकार 'बेशर्म' हो जाए, किसानों की न सुने तो क्या कर सकते हैं, आंदोलन नहीं रुकेगा: राकेश टिकैत

अगर यह सांसद विधायक जनता के बीच में जाते,जनता को सहमत कर पाते तो लाखों किसान हमारे आंदोलन में नहीं आते. इस आंदोलन के बारे में जिन्होनें सोचा था कि सात दिन नहीं टिकेंगे वो आंदोलन अब 8 महीने पूरे करने जा रहा है.

200 सालों में कोई भी किसान आंदोलन सघन नहीं रहा

किसान आंदोलन के दिल्ली-एनसीआर-पंजाब तक सिमट जाने के सवाल पर स्वराज पार्टी के संस्थापक ने जवाब दिया कि देश में पिछले 200 सालों में कोई भी किसान आंदोलन बराबर रूप से सघन नहीं रहा. आंदोलन का विस्तार भी हुआ है, क्योंकि पहले सिर्फ पंजाब में आंदोलन था, फिर हरियाणा और राजस्थान में किसान आए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का विस्तार हुआ. ये बात आपकी सही है कि अखिल भारत स्तर पर एकरूप में किसान आंदोलन नहीं ले जा पाए. लेकिन दक्षिण भारत के कर्नाटक में हमने एक दिन के बंद का कॉल दिया, वहां किसानों ने दो दिन तक बंद रखा. जब भी कॉल दिया, 18-20 राज्यों में आंदोलन हुआ.

पूरे देश में हम बराबर नहीं है मगर इसका मतलब हम शून्य पर हैं, ऐसा भी नहीं है. केंद्र सरकार के मंडी फंड पर कहा कि इस फंड की घोषणा 2019 के बजट में की गई थी. घोषणा के दायरे में मंडी को लाने की घोषणा भी 2021 के बजट में की जा चुकी थी. तीसरी जरूरी बात है कि यह फंड है ही नहीं, बल्कि ये लोन है. सरकार अपनी तरफ से एक लाख रुपये का लोन सस्ती दरों पर उपल्ब्ध कराया जाएगा, यह पैसा सरकार अपनी जेब से नहीं लगा रही है.

रास्ता बहुत सीधा

किसानों और सरकार के बीच की तनातनी को खत्म करने के समाधान पर योगेन्द्र यादव ने कहा कि रास्ता बहुत सीधा है. कानून किसानों ने मांगा नहीं. न किसान की राय ली और न ही किसान संगठनों से बात हुई. भाजपा के ही किसान संगठन कह रहे हैं कि हमसे राय नहीं ली. सरकार को इसे वापस लेना चाहिए. ये सच्चाई है कि कुछ मंत्री भी वापस लेना चाह रहे हैं लेकिन अहंकार आड़े आ रहा है.मेरी राय में ये कानून मर चुका है, इसके डेथ सर्टिफिकेट पर साइन होना बाकी है जो सरकार कर नहीं रही है.

विपक्षी पार्टियों से उम्मीद के सवाल पर योगेंन्द्र यादव ने जवाब दिया कि ये सही है मगर यूपीए सरकार में हिम्मत की कमी थी. अच्छे और बुरे दोनों कामों में वो हिचकते थे. मोदी सरकार में दुस्साहस है तो उन्होंने लागू कर दिया. वरना नीति और नीयत दोनों की एक सी है. अगर इस देश के विपक्ष ने अपना काम किया होता तो किसानों को सड़क पर आकर बैठने की जरूरत ही नहीं होती. देश में सच्चा विपक्ष संसद में नहीं किसानों के साथ सड़क पर है.

दोबारा लगाएंगे इंजेक्शन

राकेश टिकैत के चुनाव न लड़ने पर योगेन्द्र यादव ने प्रतिक्रिया दी कि संयुक्त किसान मोर्चा किसी एक संगठन का मोर्चा नहीं है. इसमें सैंकड़ों संगठन है, जिसमें अलग-अलग विचारधारा के लोग हैं. मैं मानता हूं राजनीति अपरिहार्य है, लेकिन यहां सब मिलकर राय करते हैं. बंगाल में छोटा सा इंजेक्शन हमने लगाया है. लेकिन अगर वे ठीक नहीं हुए, तो हो सकता है हमें उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी इंजेक्शन लगाना पड़ेगा. संयुक्त किसान मोर्चा जो सर्व सम्मति होगी, वो होगा. कहा कि विरोधाभास तब रहेगा जब दोनों की लाइन अलग-अलग हों. ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकि आज की स्थिति में हमारे लिए किसान आंदोलन सबसे बड़ा है.

हमारी सारी इच्छा और महत्वकांक्षा को दूसरे नंबर पर रख रहे है. हमनें इसका तोड़ निकाल रखा है. केवल और केवल भाजपा का विरोध करेंगे, किसी राजनीतिक दल के लिए वोट नहीं मांगेगे. आगे की रणनीति पर कहा कि हमारी जवाबदेही तो है लेकिन लोगों का समर्थन भी है. किसान कहते है कि अगली बार यह मौका नहीं मिलेगा, इस बार ही करना है.लाठियां,गालियां सब भूलने को हम तैयार हैं अगर सरकार बात करे और ये मानना बंद कर दे कि हम अपने तंबू उठाकर घर चले जाएंगे.

किसान संसद को चलाने का मकसद ही यही है कि आवाज देश की संसद में बैठे नेताओं के कान तक पहुंचे ताकि किसानों के बारे में कोई निर्णय लिया जा सके. ये बयान है योगेन्द्र यादव का, जिन्होंने किसान आंदोलन और सरकार के उदासीन रुख पर अपना पक्ष रखा. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश...

दिल्ली हमारा शामियाना

किसान संसद (Kisan Sansad) के सवाल पर योगेन्द्र यादव ने कहा कि दिल्ली हमारा शामियाना है, खूंटे तो हमारे गांव में गड़े हैं. वहां हमारा आंदोलन पहले से भी ज्यादा मजबूत है. मैं यह गारंटी नहीं ले सकता कि लाखों लोग जो नहीं कर पाए वो 200 लोग कर लेंगे, क्योंकि ये सरकार पर निर्भर है. हालांकि हमने ये तय किया था कि हर दिन नए 200 लोग किसान संसद स्थल पर जाएंगे. ये भी तय था कि सभी लोग सिंघु बोर्डर से ही जाएंगे. कहा कि मैं इसे अव्यवस्थित नहीं बल्कि स्वत: स्फूर्त कहूंगा. पिछली बार जिस मात्रा में भीड़ आई थी, उससे हमने एक सबक लिया कि यह उर्जा आंदोलन के लिए जरूरी है, लेकिन उसे चैनलाइज होना चाहिए.

26 जनवरी 2021 के किसान आंदोलन को कुछ लोगों की वजह से ही क्यों याद करें ? आप हाथ में तिरंगा लिए चल रहे लाखों किसानों को अनदेखा नहीं कर सकते. देश में इतनी बड़ी मात्रा में आम नागरिकों ने दिल्ली मार्च किया था. हमें ये भी सीखने को मिला कि कैसे 10-50 सरकार की ओर से भेजे गए लोग आंदोलन को बदनाम कर सकते हैं. इसलिए इस बार हमने तय किया कि हम अपनी सारी उर्जा को कंट्रोल तरीके से इस्तेमाल करेंगे, जिसका असर भी दिख रहा है.

योगेन्द्र यादव से विशेष बातचीत

संसद के सामने हम उद्देश्य लेकर आए

इस बार के आंदोलन का मकसद पर यादव ने जवाब दिया कि इस बार संसद के सामने तीन उद्देश्य लेकर गए हैं. पहला, जिस मुद्दे का भारत को छोड़ कर पूरे दुनिया की संसदों में जिक्र हो रहा है, तो उसकी चर्चा भारतीय संसद में भी हो. दूसरा उद्देश्य यह कि सरकार पिछले 8 महीनों से कह रही है, कि किसानों को क्या एतराज है, वे सरकार को बता नहीं रहे, इसलिए सार्वजनिक रूप से हम बता रहे हैं. तीसरा उद्देश्य यह कि देश में हमने पहली बार वोटर व्हिप लागू किया. मतदाता कह रहा है कि पार्टी से उपर वोटर का व्हिप है. सांसदों को हमारे लिए बोलना होगा. विदेशों की संसद में किसान आंदोलन को लेकर चर्चा होने वोले खुद के बयान पर योगेन्द्र यादव ने जवाब दिया कि

ये सोचने वाली बात है कि देश के खिलाफ 2014 के बाद से साजिशें इतनी बढ़ क्यों गई, जबकि देश में दमदार प्रधानमंत्री हैं. अचानक देशद्रोह के मुकदमे बढ़ गए. 1962 के बाद चीन आक्रामक हो गया. इंदिरा जी के समय में भी ऐसा हुआ करता था जब देश में के अंदर ही विदेशी हाथ आ जाया करते थे. सत्ताधारियों के पास जवाब नहीं होता, तो ऐसे बहाने बनाए जाते हैं.

हम किसानों का मुद्दा उठा रहे

नई राजनीतिक जमीन तैयार पर योगेन्द्र यादव कहते हैं कि अगर ऐसा है तो सरकार इन सारे आरोपों को, किसानों की बात मान कर खत्म कर सकती है. अगर हम रोज नए मुद्दे लेकर आएं तो राजनीति करने का आरोप सही होगा. लेकिन ऐसा है नहीं, हम किसानों का मुद्दा उठा रहे हैं, सरकार इसका जवाब नहीं दे रही. केंद्र सरकार के बयान कि किसान हमारे साथ है पर योगेन्द्र यादव ने जवाब दिया कि आप देखें कि इस सांसद विधायक कि हरियाणा,पंजाब, पश्चिमी यूपी,पूर्वी राजस्थान में क्या स्थिति है.

योगेन्द्र यादव से विशेष बातचीत

पढ़ें:सरकार 'बेशर्म' हो जाए, किसानों की न सुने तो क्या कर सकते हैं, आंदोलन नहीं रुकेगा: राकेश टिकैत

अगर यह सांसद विधायक जनता के बीच में जाते,जनता को सहमत कर पाते तो लाखों किसान हमारे आंदोलन में नहीं आते. इस आंदोलन के बारे में जिन्होनें सोचा था कि सात दिन नहीं टिकेंगे वो आंदोलन अब 8 महीने पूरे करने जा रहा है.

200 सालों में कोई भी किसान आंदोलन सघन नहीं रहा

किसान आंदोलन के दिल्ली-एनसीआर-पंजाब तक सिमट जाने के सवाल पर स्वराज पार्टी के संस्थापक ने जवाब दिया कि देश में पिछले 200 सालों में कोई भी किसान आंदोलन बराबर रूप से सघन नहीं रहा. आंदोलन का विस्तार भी हुआ है, क्योंकि पहले सिर्फ पंजाब में आंदोलन था, फिर हरियाणा और राजस्थान में किसान आए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का विस्तार हुआ. ये बात आपकी सही है कि अखिल भारत स्तर पर एकरूप में किसान आंदोलन नहीं ले जा पाए. लेकिन दक्षिण भारत के कर्नाटक में हमने एक दिन के बंद का कॉल दिया, वहां किसानों ने दो दिन तक बंद रखा. जब भी कॉल दिया, 18-20 राज्यों में आंदोलन हुआ.

पूरे देश में हम बराबर नहीं है मगर इसका मतलब हम शून्य पर हैं, ऐसा भी नहीं है. केंद्र सरकार के मंडी फंड पर कहा कि इस फंड की घोषणा 2019 के बजट में की गई थी. घोषणा के दायरे में मंडी को लाने की घोषणा भी 2021 के बजट में की जा चुकी थी. तीसरी जरूरी बात है कि यह फंड है ही नहीं, बल्कि ये लोन है. सरकार अपनी तरफ से एक लाख रुपये का लोन सस्ती दरों पर उपल्ब्ध कराया जाएगा, यह पैसा सरकार अपनी जेब से नहीं लगा रही है.

रास्ता बहुत सीधा

किसानों और सरकार के बीच की तनातनी को खत्म करने के समाधान पर योगेन्द्र यादव ने कहा कि रास्ता बहुत सीधा है. कानून किसानों ने मांगा नहीं. न किसान की राय ली और न ही किसान संगठनों से बात हुई. भाजपा के ही किसान संगठन कह रहे हैं कि हमसे राय नहीं ली. सरकार को इसे वापस लेना चाहिए. ये सच्चाई है कि कुछ मंत्री भी वापस लेना चाह रहे हैं लेकिन अहंकार आड़े आ रहा है.मेरी राय में ये कानून मर चुका है, इसके डेथ सर्टिफिकेट पर साइन होना बाकी है जो सरकार कर नहीं रही है.

विपक्षी पार्टियों से उम्मीद के सवाल पर योगेंन्द्र यादव ने जवाब दिया कि ये सही है मगर यूपीए सरकार में हिम्मत की कमी थी. अच्छे और बुरे दोनों कामों में वो हिचकते थे. मोदी सरकार में दुस्साहस है तो उन्होंने लागू कर दिया. वरना नीति और नीयत दोनों की एक सी है. अगर इस देश के विपक्ष ने अपना काम किया होता तो किसानों को सड़क पर आकर बैठने की जरूरत ही नहीं होती. देश में सच्चा विपक्ष संसद में नहीं किसानों के साथ सड़क पर है.

दोबारा लगाएंगे इंजेक्शन

राकेश टिकैत के चुनाव न लड़ने पर योगेन्द्र यादव ने प्रतिक्रिया दी कि संयुक्त किसान मोर्चा किसी एक संगठन का मोर्चा नहीं है. इसमें सैंकड़ों संगठन है, जिसमें अलग-अलग विचारधारा के लोग हैं. मैं मानता हूं राजनीति अपरिहार्य है, लेकिन यहां सब मिलकर राय करते हैं. बंगाल में छोटा सा इंजेक्शन हमने लगाया है. लेकिन अगर वे ठीक नहीं हुए, तो हो सकता है हमें उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी इंजेक्शन लगाना पड़ेगा. संयुक्त किसान मोर्चा जो सर्व सम्मति होगी, वो होगा. कहा कि विरोधाभास तब रहेगा जब दोनों की लाइन अलग-अलग हों. ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकि आज की स्थिति में हमारे लिए किसान आंदोलन सबसे बड़ा है.

हमारी सारी इच्छा और महत्वकांक्षा को दूसरे नंबर पर रख रहे है. हमनें इसका तोड़ निकाल रखा है. केवल और केवल भाजपा का विरोध करेंगे, किसी राजनीतिक दल के लिए वोट नहीं मांगेगे. आगे की रणनीति पर कहा कि हमारी जवाबदेही तो है लेकिन लोगों का समर्थन भी है. किसान कहते है कि अगली बार यह मौका नहीं मिलेगा, इस बार ही करना है.लाठियां,गालियां सब भूलने को हम तैयार हैं अगर सरकार बात करे और ये मानना बंद कर दे कि हम अपने तंबू उठाकर घर चले जाएंगे.

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