आजमगढ़: आज मुल्क के पसंदीदा शायर कैफी आजमी की पुण्यतिथि है (Kaifi Azmi Death Anniversary). 10 मई 2002 को इस अजीम शख़्सियत ने दुनिया को अलविदा कह दिया. 14 जनवरी साल 1919 को फूलपुर तहसील क्षेत्र के मेंजवां गांव में जन्मे कैफी आजमी को प्यार से लोग अतहर हुसैन रिजवी बुलाया करते थे. इनके पिता का नाम फतेह हुसैन और माता का हफीजुन था. कैफी को गांव के माहौल में शायरी और कविताएं पढ़ने का काफी शौक हुआ करता था जिसकी शुरूआत यहीं गांव से हुई. कैफी आजमी ने 11 साल की उम्र में अपनी पहली गजल लिखी और बाद में मुशायरे में शामिल होने लगे.
कैफी साहब ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और 1943 में पहली बार वे मुंबई पहुंचे. गौरतलब है कि 1947 तक कैफी शायरी की दुनिया में अपना नाम दर्ज करवा चुके थे. उसके बाद उन्होंने तमाम फिल्मों में गीत दिया. बुजदिल, कागज के फूल, शमां, हकीकत, पाकीजा, हंसते जख्म, मंथन, शगुन, हिन्दुस्तान की कसम, नौनिहाल, नसीब, तमन्ना, फिर तेरी कहनी याद आई आदि फिल्मों के लिए इनके द्वारा लिखे गये गीत आज भी लोगों की जुबान पर है. राष्ट्रीय पुरस्कार के अतिरिक्त कई बार कैफी साहब को फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला.
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कहते हैं हर शायर के अंदर कई किस्म के लोग सांस लेते हैं और ऐसा ही मंजर कैफी आजमी के साथ था. जब उन्होंने वतन की मोहब्बत को लफ्जों में बांधना चाहा तब उनके कलम ने ‘कर चले हम फिदा, जान-ओ-तन साथियों’ जैसा नगमा दुनिया को दे दिया और जब इस शायर ने इश्क के पेचीदा मसाइल पर बात कहनी चाही तब उनके कलम ने ‘ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही’ जैसा मशहूर और सुपरहिट गाने दुनिया को सराबोर कर दिया.
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कैफी आजमी की बेटी हैं अभिनेत्री शबाना आजमी
कैफी की मई 1947 में शौकत से शादी हुई. शौकत ने कैफी का बहुत साथ दिया. अदाकारा शबाना आजमी कैफी आजमी की बेटी हैं. कैफी आजमी ने कई फिल्मों में गीत लिखे. फिल्मी दुनिया में कैफी को बहुत से सम्मानों से भी नवाजा गया. उनकी रचनाओं में आवारा सजदे, इंकार, आखिरे-शब आदि प्रमुख हैं. 20वीं सदी का वो मकबूल और मशहूर शायर जिसने हर शय से मोहब्बत की और उसकी इबादत में कसीदे गढ़ें.
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काम को मिला सम्मान
उन्होंने ‘कागज के फूल’, ‘गर्म हवा’, ‘हकीकत’, ‘हीर रांझा’ जैसी कई फिल्मों के लिए काम किया. कैफी आजमी (Kaifi Azmi) को पद्मश्री अवॉर्ड मिला, उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी अवॉर्ड, ‘आवारा सजदे’ रचना के लिए साहित्य अकादमी अवॉर्ड फॉर उर्दू, महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का स्पेशल अवॉर्ड, सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड , 1998 में उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने ज्ञानेश्वर अवॉर्ड दिया. दिल्ली सरकार और दिल्ली उर्दू अकादमी की तरफ से पहला मिलेनियम अवॉर्ड भी उन्हें मिला.
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अपने गांव का किया विकास
दुर्भाग्यवश 8 फरवरी 1973 को वे लकवा के शिकार हो गये और मेजवां लौट आए और अपने पैतृक जिले के विकास के लिए आजीवन संघर्ष किया. साल 1981-82 में इनकी पहल पर ही मेजवां गावं को सड़क से जोड़ा गया और लोगों को पगडंडी से छुटकारा मिला. कैफी साहब का सपना था कि गांव के लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करें. इसके लिए उन्होंने शिक्षण संस्थानों के साथ ही चिकनकारी, कंप्यूटर शिक्षण संस्थान आदि की स्थापना की. कैफी साहब इंडियान पीपुल थिएटर एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे. जहां 10 मई 2002 को उनका निधन हो गया. कैफी आजमी के साथ साल 1981 से रहने वाले सीताराम बताते हैं कि कैफी साहब के कारण ही गांव में सड़क, पोस्ट ऑफिस, विद्यालय और बिजली जैसे विकास कार्य हुए.
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