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कोविड-19: हवा में तैर रहा कोरोनावायरस भी कर सकता है संक्रमित

एक नए अध्ययन ने सार्स-सीओवी-2 के हवा में फैलने की पुष्टि की है. यह अध्ययन सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी), हैदराबाद और आईएमटेक, चंडीगढ़ के वैज्ञानिकों के एक समूह ने किया है. जिसमें पिछले अध्ययनों से सहमति जताते हुए कहा गया है कि बाहरी स्थानों की तुलना में बंद कमरे में हवा में अधिक सांद्रता पाई जाती है.

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Published : May 5, 2022, 12:16 PM IST

Updated : May 5, 2022, 12:52 PM IST

हैदराबाद : एक नए अध्ययन ने सार्स-सीओवी-2 के हवा में फैलने की पुष्टि की है. यह अध्ययन सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी), हैदराबाद और आईएमटेक, चंडीगढ़ के वैज्ञानिकों के एक समूह ने किया है. जिसमें पिछले अध्ययनों से सहमति जताते हुए कहा गया है कि बाहरी स्थानों की तुलना में बंद कमरे में हवा में अधिक सांद्रता पाई जाती है. सीसीएमबी की एक विज्ञप्ति में मंगलवार को यहां कहा गया कि कोरोनावायरस SARS-CoV-2 के प्रसार का सटीक तंत्र अब भी एक पहेली बना हुआ है. पहले सतहों से फैलने के बारे में सोचा गया था. बाद नें महामारी विज्ञानियों ने पाया कि महामारी के दौरान मास्क पहनने वाले देश कम गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे. हालांकि, हवा में संक्रामक कोरोनावायरस कणों को दिखाने वाले मात्रात्मक साक्ष्य काफी कम थे.

पढ़ें: COVID-19: Omicron संस्करण ने डेल्टा का सफाया नहीं किया, वापस आ सकता है - अध्ययन

इसके बाद जब जब वैज्ञानिकों ने अस्पतालों, बंद कमरों सहित कोरोना रोगियों के रहने वाले विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र किए गए हवा के नमूनों से कोरोनावायरस की जीनोम सामग्री का विश्लेषण किया तो वैज्ञानिकों ने पाया कि कोरोना रोगियों के आसपास हवा में वायरस का प्रसार होता है. इसके साथ ही परिसर में मौजूद रोगियों की संख्या के साथ कोरोना सकारात्मकता दर में वृद्धि हुई है. इसके बाद इस अध्ययन से SARS-CoV-2 के हवा में प्रसार होने की पुष्टि की गई. उन्होंने आईसीयू के साथ-साथ अस्पतालों के गैर-आईसीयू वर्गों में वायरस पाया. अध्ययन में हवा में व्यवहार्य कोरोनावायरस भी पाया गया जो जीवित कोशिकाओं को संक्रमित कर सकता है, और ये वायरस लंबी दूरी तक फैल सकते हैं.

पढ़ें: रफ्तार पकड़ रहा कोरोना : तीन हजार से ज्यादा केस सामने आए, 55 की मौत

वैज्ञानिकों ने अभी भी कोरोनावायरस के प्रसार से बचने के लिए फेस मास्क पहनने का सुझाव दिया है. अध्ययन में शामिल एक वैज्ञानिक शिवरंजनी मोहरीर ने कहा कि हमारे परिणाम बताते हैं कि बंद जगहों में वेंटिलेशन के अभाव में कोरोनावायरस कुछ समय के लिए हवा में रह सकता है. जब एक में दो या अधिक COVID-19 रोगी मौजूद थे तो हमने पाया कि हवा में वायरस मिलने की सकारात्मकता दर 75 प्रतिशत थी. मोहरिर ने कहा कि हमारे अवलोकन पिछले अध्ययनों के साथ समवर्ती हैं जो बताते हैं कि SARS-CoV-2 RNA की संक्रमण की संभावना बाहरी हवा की तुलना में बंद कमरे में अधिक है.

टाटा इंस्टीट्यूट फॉर जेनेटिक्स एंड सोसाइटी के निदेशक और प्रमुख वैज्ञानिक राकेश मिश्रा ने कहा कि चूंकि हम इन-पर्सन गतिविधियों का संचालन करने के लिए वापस आ गए हैं, इसलिए कक्षाओं, मीटिंग हॉल जैसे स्थानों की संक्रमण क्षमता का अनुमान लगाने के लिए हवा की निगरानी एक उपयोगी साधन है. यह संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद कर सकता है. अध्ययन जर्नल ऑफ एरोसोल साइंस में प्रकाशित हुआ था.

हैदराबाद : एक नए अध्ययन ने सार्स-सीओवी-2 के हवा में फैलने की पुष्टि की है. यह अध्ययन सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी), हैदराबाद और आईएमटेक, चंडीगढ़ के वैज्ञानिकों के एक समूह ने किया है. जिसमें पिछले अध्ययनों से सहमति जताते हुए कहा गया है कि बाहरी स्थानों की तुलना में बंद कमरे में हवा में अधिक सांद्रता पाई जाती है. सीसीएमबी की एक विज्ञप्ति में मंगलवार को यहां कहा गया कि कोरोनावायरस SARS-CoV-2 के प्रसार का सटीक तंत्र अब भी एक पहेली बना हुआ है. पहले सतहों से फैलने के बारे में सोचा गया था. बाद नें महामारी विज्ञानियों ने पाया कि महामारी के दौरान मास्क पहनने वाले देश कम गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे. हालांकि, हवा में संक्रामक कोरोनावायरस कणों को दिखाने वाले मात्रात्मक साक्ष्य काफी कम थे.

पढ़ें: COVID-19: Omicron संस्करण ने डेल्टा का सफाया नहीं किया, वापस आ सकता है - अध्ययन

इसके बाद जब जब वैज्ञानिकों ने अस्पतालों, बंद कमरों सहित कोरोना रोगियों के रहने वाले विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र किए गए हवा के नमूनों से कोरोनावायरस की जीनोम सामग्री का विश्लेषण किया तो वैज्ञानिकों ने पाया कि कोरोना रोगियों के आसपास हवा में वायरस का प्रसार होता है. इसके साथ ही परिसर में मौजूद रोगियों की संख्या के साथ कोरोना सकारात्मकता दर में वृद्धि हुई है. इसके बाद इस अध्ययन से SARS-CoV-2 के हवा में प्रसार होने की पुष्टि की गई. उन्होंने आईसीयू के साथ-साथ अस्पतालों के गैर-आईसीयू वर्गों में वायरस पाया. अध्ययन में हवा में व्यवहार्य कोरोनावायरस भी पाया गया जो जीवित कोशिकाओं को संक्रमित कर सकता है, और ये वायरस लंबी दूरी तक फैल सकते हैं.

पढ़ें: रफ्तार पकड़ रहा कोरोना : तीन हजार से ज्यादा केस सामने आए, 55 की मौत

वैज्ञानिकों ने अभी भी कोरोनावायरस के प्रसार से बचने के लिए फेस मास्क पहनने का सुझाव दिया है. अध्ययन में शामिल एक वैज्ञानिक शिवरंजनी मोहरीर ने कहा कि हमारे परिणाम बताते हैं कि बंद जगहों में वेंटिलेशन के अभाव में कोरोनावायरस कुछ समय के लिए हवा में रह सकता है. जब एक में दो या अधिक COVID-19 रोगी मौजूद थे तो हमने पाया कि हवा में वायरस मिलने की सकारात्मकता दर 75 प्रतिशत थी. मोहरिर ने कहा कि हमारे अवलोकन पिछले अध्ययनों के साथ समवर्ती हैं जो बताते हैं कि SARS-CoV-2 RNA की संक्रमण की संभावना बाहरी हवा की तुलना में बंद कमरे में अधिक है.

टाटा इंस्टीट्यूट फॉर जेनेटिक्स एंड सोसाइटी के निदेशक और प्रमुख वैज्ञानिक राकेश मिश्रा ने कहा कि चूंकि हम इन-पर्सन गतिविधियों का संचालन करने के लिए वापस आ गए हैं, इसलिए कक्षाओं, मीटिंग हॉल जैसे स्थानों की संक्रमण क्षमता का अनुमान लगाने के लिए हवा की निगरानी एक उपयोगी साधन है. यह संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद कर सकता है. अध्ययन जर्नल ऑफ एरोसोल साइंस में प्रकाशित हुआ था.

Last Updated : May 5, 2022, 12:52 PM IST
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