शहडोल। मध्य प्रदेश में जिस तरह से विधानसभा चुनाव के रिजल्ट आए हैं और पूरे मध्यप्रदेश में भगवा लहराया है. उसके बाद से सभी आंकड़े सभी दावे, सभी आंकलन ध्वस्त हो गए हैं. मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की, तो उसमें विंध्य क्षेत्र का भी बड़ा रोल रहा. विंध्य क्षेत्र ने एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी को बड़ा समर्थन दिया है, तो दूसरी ओर कांग्रेस को शुरुआत से सोचने पर मजबूर कर दिया है. कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं. जिस विंध्य क्षेत्र से कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ने सभा करते हुए ओबीसी कार्ड का दांव खेला था, जातिगत जनगणना का पांसा फेंका था. उनका वही दांव उसी विंध्य में पूरी तरह से फेल हो गया.
विंध्य से राहुल गांधी ने खेला था ओबीसी कार्ड: विंध्य क्षेत्र के शहडोल जिले के ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र में राहुल गांधी ने चुनाव से पहले एक बड़ी जनसभा की थी. इस जनसभा से पूरे विंध्य को साधने की कोशिश की थी. जहां जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने ओबीसी का दांव खेला था और जातिगत जनगणना का पांसा फेंका था. पूरे भाषण के दौरान उन्होंने ओबीसी वर्ग को साधने की कोशिश की थी, लेकिन इस विंध्य क्षेत्र में इसी ब्यौहारी से लगे हुए सीधी जिले के सिहावल सीट से उन्हीं के सबसे करीबी और कद्दावर नेता ओबीसी के बड़े चेहरा ही चुनाव हार गए. जिसके बाद अब कांग्रेस की ही चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
विंध्य में ओबीसी का दांव फेल: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ही विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस ने जो ओबीसी का कार्ड खेला था, वो विंध्य क्षेत्र में ही पूरी तरह से फेल हो गया. इसे आसानी से ऐसे समझा जा सकता है, की कांग्रेस के सबसे बड़े नेता, ओबीसी चेहरा कमलेश्वर पटेल को कांग्रेस का आला कमान भी खूब तवज्जो दे रहा था. कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी बनाए गए हैं और राहुल गांधी का इन्हें काफी करीबी भी माना जाता है, लेकिन इन्हें इस बार के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.
कमलेश्वर पटेल सीधी जिले के सिहावल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे. जिन्हें भारतीय जनता पार्टी के विश्वामित्र पाठक ने हरा दिया. कमलेश्वर पटेल को 16,478 मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. जबकि कमलेश्वर पटेल ने इस बार अपने विधानसभा सीट में जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन इस बार सिहावल विधानसभा सीट पर कमलेश्वर पटेल को हार का सामना करना पड़ा.
दो बार से जीत रहे कमलेश्वर: ऐसा नहीं है कि सिहावल विधानसभा सीट पर कमलेश्वर पटेल की साख नहीं है. कमलेश्वर पटेल कि यह परंपरागत सीट है. पूर्व मंत्री इंद्रजीत पटेल के बेटे हैं और यहां से दो बार वो विधायक भी रह चुके हैं. 2013 में पहली बार विधानसभा में चुनकर आए, फिर 2018 में फिर से अपनी सीट बचाई और फिर से विधायक बने. जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी, उसमें मंत्री पद भी हासिल किया था. 2018 में मध्य प्रदेश सरकार में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री भी रह चुके हैं. जिस तरह से विंध्य क्षेत्र में और कांग्रेस पार्टी में उनका कद बढ़ रहा था. बड़े ओबीसी चेहरे के तौर पर उभरकर सामने आ रहे थे. ऐसे में कमलेश्वर पटेल की ये हार कांग्रेस के ओबीसी दांव के बीच ये पार्टी के लिए भी बड़ा झटका है.
विंध्य में कांग्रेस के कई और ओबीसी प्रत्याशी हारे: जिस तरह से विंध्य क्षेत्र से ही कांग्रेस ने ओबीसी का कार्ड खेला था. उसी विंध्य में अगर नजर डालें तो कांग्रेस का ये ओबीसी वाला दांव फेल रहा. कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल तो हारे ही. इसके अलावा इस चुनाव में विंध्य में कांग्रेस के कई और ओबीसी प्रत्याशियों को करारी हार मिली है.
रीवा जिले में कांग्रेस ने त्योंथर से रमाशंकर पटेल को ओबीसी चेहरे के तौर पर इन्हें टिकट दिया था, लेकिन यहां से इन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस सीट से कांग्रेस नेता श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी को जब लगा कि उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिलेगा, तो उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली. बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ते हुए इस सीट से चुनाव भी जीत गए. एक तरह से यहां भी कांग्रेस का ओबीसी कार्ड फेल हुआ.
सिंगरौली में भी कांग्रेस ने ओबीसी कैंडिडेट को ही टिकट दिया था. हालांकि यहां से बीजेपी ने भी ओबीसी को टिकट दिया था, लेकिन कांग्रेस की ओबीसी प्रत्याशी रेणु शाह को 38000 वोट के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.
इसके अलावा विंध्य के सतना जिले के नागौद विधानसभा सीट से भी कांग्रेस ने ओबीसी चेहरे के तौर पर डॉक्टर रश्मि पटेल को चुनावी मैदान पर उतारा था. जिन्हें हार का सामना करना पड़ा है.
इसके अलावा सतना विधानसभा सीट पर जरूर कांग्रेस को एक सफलता मिली और उनका ओबीसी चेहरा जीत कर आया. यहां पर कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा ने जीत हासिल की.
इस तरह से विंध्य में देखें तो सिद्धार्थ कुशवाहा को छोड़ दें तो जहां-जहां से कांग्रेस ने ओबीसी चेहरे को तवज्जो दी थी. वहां से उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा है. इस तरह से कांग्रेस का ओबीसी कार्ड विंध्य में ही पूरी तरह से फेल हो गया.
कांग्रेस के दिग्गजों की सभा भी रही बे असर: विंध्य क्षेत्र में ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने जोर नहीं लगाया. विंध्य के ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र से राहुल गांधी ने सबसे पहले चुनावी शंखनाद किया और बड़ी सभा की. ब्यौहारी सीधी जिले का संसदीय क्षेत्र भी है, ज्यादा दूर नहीं है और वहां से राहुल गांधी ने पूरे विंध्य को साधने की कोशिश की थी. उसके बाद कमलेश्वर पटेल के सिहावल विधानसभा क्षेत्र से प्रियंका गांधी ने बहरी गांव से सभा को संबोधित किया था. फिर भी इतनी मेहनत के बाद भी दिग्गजों के इतनी ताकत झोंकने के बाद भी कांग्रेस का ओबीसी वाला दांव विंध्य में ही इस चुनाव में पूरी तरह से फेल हो गया.
ब्राह्मणों को नजर अंदाज करना पड़ा भारी: विंध्य क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्रा बताते हैं 'विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस नेताओं ने ब्राह्मण नेताओं की उपेक्षा की थी. उन्हें इस चुनाव में नजर अंदाज किया. इस वजह से उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है. इस चुनाव में कांग्रेस ने ओबीसी वर्ग पर तो फुल कंसंट्रेट किया, लेकिन ब्राह्मण नेताओं को नजर अंदाज कर दिया. जबकि देश की सबसे बड़ी ब्राह्मण आबादी विंध्य क्षेत्र के रीवा, सीधी जिले में है. जहां पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या अधिक होने के बाद भी ओबीसी नेताओं पर ध्यान दिया गया.
यहां तक की ब्यौहारी में जो राहुल गांधी की सभा हुई थी. वहां पर मंच में ब्राह्मण नेताओं को जगह भी नहीं दी गई थी. ब्राह्मण नेताओं को आमंत्रित भी नहीं किया गया था. जिसकी वजह से उन्हें क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा. शहडोल जिले के ब्यौहारी में राहुल गांधी की सभा आयोजित की गई थी. जहां पर उनके मंच संचालन से लेकर सभी कार्यों में सिर्फ ओबीसी नेताओं को ही महत्व दिया गया था. जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है. विन्ध्य में कांग्रेस का जनाधार लगातार गिरता गया और उनका ओबीसी कार्ड पूरी तरह से फेल हो गया.
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गौरतलब है की मध्य प्रदेश में इस बार के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस ने ओबीसी और जातिगत जनगणना का दांव खेला था और इसी पर फोकस करके चुनावी रणनीति तैयार की थी. मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र से ओबीसी का दावं खेला और जातिगत जनगणना का पासा फेंका था, वहीं से इन्हें करारा झटका लगा, जो अब उन्हीं के चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े कर रहा है.