हैदराबाद : प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) और फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत पिछले आठ सालों में पड़ने वाले छापों की संख्या कई गुणा बढ़ी है. ऐसे आरोप लग रहे हैं कि इन छापों के बढ़ने की वजह विपक्षी नेताओं को टारजेट करना है या उन्हें परेशान करना है.
केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले आठ वर्षों में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की गई छापेमारी की संख्या में 27 गुना वृद्धि हुई है. यूपीए शासनकाल (2004 से 2014) के दौरान केवल 112 छापे और तलाशी हुई थी, लेकिन एनडीए शासन में इसकी संख्या बढ़कर 3010 हो गई है. राज्यसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा, इस दौरान बड़ी मात्रा में संपत्ति कुर्क की गई है. 2014 और 2022 के बीच, ईडी ने 99,356 करोड़ रुपये की आय संलग्न की, और 888 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए, जिनमें से 23 व्यक्तियों को अदालत में दोषी ठहराया जा चुका है.
केंद्रीय मंत्री ने ससंद में बताया कि मोदी सरकार से पहले यूपीए सरकार के दस वर्षों में केवल 112 तलाशी की गई थी और 5,346.16 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गई थी. यूपीए सरकार के दौरान ईडी द्वारा केवल 104 चार्जशीट दायर की गई थी, और किसी भी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया गया था.
इसी तरह से विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के मामलों में भी काफी वृद्धि हुई है. यूपीए के 10 साल के शासन में केवल 571 मामले थे, लेकिन पिछले आठ वर्षों में इसकी संख्या 996 हो गई. यूपीए शासन के दौरान जब्त की गई संपत्ति 14 करोड़ की थी, जबकि इन आठ सालों में यह 7066 करोड़ हो गई. मंत्री ने यह भी कहा कि 2004 से 2014 के बीच 8,586 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2,780 मामलों में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस दौरान 1,754 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया और 14 करोड़ रुपये की संपत्ति भी जब्त की गई.
हालांकि, छापे और तलाशी में काफी वृद्धि हुई है, साथ ही उनसे भारी वसूली भी की गई है. लेकिन विपक्ष ने लगातार मोदी सरकार पर प्रतिशोधात्मक रवैये का आरोप लगाया है. उनका आरोप है कि सरकार विपक्षी पार्टी को निशाना बना रही है. इनमें हर दल के नेता शामिल हैं. स्टालिन की बेटी सेंथमराय, ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अभिषेक बनर्जी, उनकी पत्नी रुजीरा बनर्जी, और मदन मित्रा, कुणाल घोष, मोलॉय घटक जैसे पार्टी के कई नेता केंद्रीय एजेंसियों की जांच के अधीन हैं.
दूसरी ओर सारदा घोटाले के एक प्रमुख आरोपी मुकुल रॉय (जब तक वह भाजपा में थे) उनके खिलाफ जांच नहीं हुई. वह 2017 में भाजपा में चले गए थे. आखिरी बार उन्हें 2019 में सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया था. ईडी ने नवंबर 2020 में नोटिस भेजा था. उनकी पत्नी से बैंक डिटेल मांगा गया था. उनसे 2013-14 से उनके पास मौजूद संपत्ति का ब्योरा सौंपने को कहा गया था. इसी तरह, सुवेंदु अधिकारी, जो दिसंबर 2020 में टीएमसी से भाजपा में शामिल हुए, और सोवन चटर्जी, जो अगस्त 2019 में सारदा चिटफंड घोटाले और नारद स्टिंग मामलों में शामिल हुए, के खिलाफ जांच रुकी पड़ी है.
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