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राजमिस्त्री की पत्नी ने पश्चिम बंगाल चुनाव में जीत हासिल की, मां को बताया प्रेरणा - Daily Wage Labourer wife wins election

कुछ लोग ऐसे होते है जो तमाम मुश्किलों के बावजूद भी एक मिसाल पेश करते हैं. भाजपा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की सल्तोरा सीट से जीती भाजपा उम्मीद्वार चंदना बाउरी ने एक ऐसी ही मिसाल पेश की है. वह एक राजमिस्त्री की पत्नी हैं जिन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार को 4,000 से अधिक मतों से हराया.

Chandana Bauri
चंदना बाउरी
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Published : May 8, 2021, 2:01 PM IST

कोलकाताः भाजपा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भले की तृणमूल कांग्रेस को हरा नहीं पाई हो, लेकिन उसकी 30 वर्षीय एक ऐसी उम्मीदवार ने जीत हासिल कर उदाहरण पेश किया है. जो बहुत ही सामान्य परिवार से संबंध रखने वाली और एक कमरे के कच्चे मकान में रहने वाली गृहिणी हैं और जिनके पति राजमिस्त्री का काम करते हैं.

तीन बच्चों की मां चंदना बाउरी ने बांकुड़ा जिले की सल्तोरा सीट पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 4,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया। वह अपने पति के पदचिह्नों पर चलते हुए पांच साल पहले भगवा दल में शामिल हुईं. चंदना ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें उनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलेगा.

बाउरी साइकिल से अपने निर्वाचन क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में गईं ताकि वह अपने संगठन को मजबूत कर सकें और यह सुनिश्चित कर सकें कि जरूरतमंद लोगों को मदद मिल सकें. उन्होंने कहा कि मुझे हमेशा लगता था कि चुनाव लड़ने के लिए धन की आवश्यकता होती है और हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, तो मेरे चुनाव लड़ने की कोई संभावना नहीं है.

बाउरी ने कहा कि मेरे पति राजमिस्त्री हैं और हम जो थोड़ी-बहुत बचत करते हैं, वह बच्चों की शिक्षा और हमारे रोजाना के खर्चों में चली चली जाती है. जब स्थानीय भाजपा नेतृत्व ने मुझे सल्तोरा से खड़ा करने की इच्छा जताई, तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा काम मेरी पहचान बनेगा.

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने राजनीति में आने का फैसला क्यों किया, चंदना ने कहा कि उनके यह निर्णय लेने का मुख्य वजह तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की ज्यादतियां थीं.उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल्याण योजनाओं ने उन्हें भगवा दल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.

बता दें, उनका कहना है बांकुड़ा में बारजोरा के एक सामान्य परिवार में जन्मी बाउरी जब 10वीं में थीं, तब उनके पिता का निधन हो गया था और उनकी मां ने बर्तन धोकर एवं उपले बेचकर अपने परिवार के लिए आजीविका कमाई.

उन्होंने कहा कि मेरी मां ने कई मुश्किलें झेलीं आजीविका कमाने के लिए बर्तन धोए और उपले बेचे. मेरे चार और भाई-बहन हैं और उन्होंने सुनिश्चित किया कि हममें से किसी को भूखे पेट न सोना पड़े. वही मेरी प्रेरणा हैं. बाउरी ने उनका हर कदम पर समर्थन करने के लिए अपने पति और ससुराल पक्ष का धन्यवाद भी किया.

कोलकाताः भाजपा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भले की तृणमूल कांग्रेस को हरा नहीं पाई हो, लेकिन उसकी 30 वर्षीय एक ऐसी उम्मीदवार ने जीत हासिल कर उदाहरण पेश किया है. जो बहुत ही सामान्य परिवार से संबंध रखने वाली और एक कमरे के कच्चे मकान में रहने वाली गृहिणी हैं और जिनके पति राजमिस्त्री का काम करते हैं.

तीन बच्चों की मां चंदना बाउरी ने बांकुड़ा जिले की सल्तोरा सीट पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 4,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया। वह अपने पति के पदचिह्नों पर चलते हुए पांच साल पहले भगवा दल में शामिल हुईं. चंदना ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें उनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलेगा.

बाउरी साइकिल से अपने निर्वाचन क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में गईं ताकि वह अपने संगठन को मजबूत कर सकें और यह सुनिश्चित कर सकें कि जरूरतमंद लोगों को मदद मिल सकें. उन्होंने कहा कि मुझे हमेशा लगता था कि चुनाव लड़ने के लिए धन की आवश्यकता होती है और हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, तो मेरे चुनाव लड़ने की कोई संभावना नहीं है.

बाउरी ने कहा कि मेरे पति राजमिस्त्री हैं और हम जो थोड़ी-बहुत बचत करते हैं, वह बच्चों की शिक्षा और हमारे रोजाना के खर्चों में चली चली जाती है. जब स्थानीय भाजपा नेतृत्व ने मुझे सल्तोरा से खड़ा करने की इच्छा जताई, तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा काम मेरी पहचान बनेगा.

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने राजनीति में आने का फैसला क्यों किया, चंदना ने कहा कि उनके यह निर्णय लेने का मुख्य वजह तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की ज्यादतियां थीं.उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल्याण योजनाओं ने उन्हें भगवा दल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.

बता दें, उनका कहना है बांकुड़ा में बारजोरा के एक सामान्य परिवार में जन्मी बाउरी जब 10वीं में थीं, तब उनके पिता का निधन हो गया था और उनकी मां ने बर्तन धोकर एवं उपले बेचकर अपने परिवार के लिए आजीविका कमाई.

उन्होंने कहा कि मेरी मां ने कई मुश्किलें झेलीं आजीविका कमाने के लिए बर्तन धोए और उपले बेचे. मेरे चार और भाई-बहन हैं और उन्होंने सुनिश्चित किया कि हममें से किसी को भूखे पेट न सोना पड़े. वही मेरी प्रेरणा हैं. बाउरी ने उनका हर कदम पर समर्थन करने के लिए अपने पति और ससुराल पक्ष का धन्यवाद भी किया.

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