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फर्जी चेसिस नंबर वाली फॉर्च्यूनर से चल रहे BJP विधायक, मेरठ तक जुड़े तार, क्या है फर्जीवाड़ा? - बीमा न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी

यूपी में छेड़छाड़ की गई चेचिस नंबर वाली फॉर्च्यूनर से BJP एमएलसी के चलने का मामला सामने आया है. इसके तार मेरठ तक से जुड़े हैं. क्या है पूरा मामला चलिए आगे जानते हैं.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 14, 2023, 12:51 PM IST

Updated : Dec 14, 2023, 6:15 PM IST

लखनऊ में ऐसे सामने आया पूरा मामला.

लखनऊ : प्रदेश के नेताओं में लग्जरी गाड़ियों में चलकर भौकाल गांठने का चस्का पुराना है. इस ठसक को पूरा करने के लिए कभी-कभी लोग गलत रास्ता भी अख्तियार कर लेते हैं. कुछ इसी तरह का एक सनसनीखेज मामला पिछले दिनों हमारी पड़ताल में सामने आया. राजधानी के एक वर्कशॉप पर एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त संदिग्ध फॉर्च्यूनर गाड़ी बनने के लिए पहुंची. इस गाड़ी का बीमा न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से था और वाहन स्वामी की ओर से क्लेम मांगा गया था. इस गाड़ी पर दोनों ओर मोटे अक्षरों में 'विधान परिषद सदस्य' लिखा था और विधान भवन का पास भी लगा था. क्लेम का सर्वे करने पहुंचे सर्वेयर को पड़ताल के दौरान चेचिस में गड़बड़ी नजर आई और जब उन्होंने पत्राचार किया, तो पता चला कि चेचिस किसी और गाड़ी की है. इसके बाद ईटीवी भारत की पड़ताल में कई और सनसनीखेज खुलासे हुए.

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यहीं गाड़ी हुई थी क्षतिग्रस्त.

एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त कार वर्कशाॅप में आई थी बनने : विगत 08 सितंबर 2023 को चिनहट स्थित एक वर्कशॉप में एक फॉर्च्यूनर गाड़ी बनने के लिए आई. 2014 मॉडल की इस गाड़ी का नंबर था UP 15 CL 9394 और मालिक का नाम फैसल बताया गया. गाड़ी की चेचिस नंबर MBJ11JV6104024897-0114 था. वाहन स्वामी की ओर से जब क्लेम किया गया, तो उसका सर्वे अलॉट हुआ वरिष्ठ सर्वेयर ओमवीर सिंह को. ओमवीर सिंह ने जब मौके का मुआयना किया, तो उन्हें कुछ कागजों की जरूरत महसूस हुई. साथ में ही उन्हें यह भी आभास हुआ कि गाड़ी में कहीं कोई गड़बड़ी जरूर है. इसके बाद ओमवीर सिंह ने रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) में दर्ज वाहन स्वामी के पते पर एक पत्र भेजा.

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गाड़ी के कागज.



इसके जवाब में वाहन मालिक फैसल ने चौंकाने वाला जवाब दिया. ओमवीर सिंह बताते हैं 'जब हमारी फैसल से बात हुई, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. फैसल ने उन्हें बताया कि उनकी गाड़ी मेरठ में है और वह तो लखनऊ गए ही नहीं. उनकी गाड़ी का कोई एक्सीडेंट भी नहीं हुआ है. ओमवीर सिंह ने जब फैसल से गाड़ी के कागज मंगाए और तस्दीक की तो पता चला कि गाड़ी की आरसी से भी छेड़छाड़ कर कई बदलाव किए गए हैं. यही नहीं फैसल के आधार से भी छेड़छाड़ हुई है.'

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गाड़ी पर अंकित चेचिस नंबर.

गाड़ी की चेचिस में मिली गड़बड़ी : ओमवीर सिंह बताते हैं कि 'इसके बाद उन्होंने बीमा करने वाली न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के वाराणसी कार्यालय से डॉकेट की कॉपी मांगी, जिसका मेल भी कंपनी की ओर से वाराणसी कार्यालय में प्रबंधक विजय यादव को किया गया है. वाराणसी कार्यालय ने डॉकेट (वह दस्तावेज, जो बीमा करते समय लिए जाते हैं, जैसे चेचिस का इंप्रेशन और फोटो आदि) ढूढ़े मिल नहीं रहा है और मिलते ही भेजा जाएगा. उन्होंने बताया कि बीमा की कॉपी में जो चेचिस नंबर दर्ज है वह वास्तविक गाड़ी का है, जो गाड़ी मेरठ में फैसल के पास है, लेकिन लखनऊ में एक वर्कशॉप में खड़ी गाड़ी में चेचिस दूसरी लगी थी, जो साफ तौर पर टेंपर की हुई पता चलती है. इसके बाद उन्होंने पूरे मामले की सूचना बीमा कंपनी को दी. वह कहते हैं कि यह एक अजीब तरह का मामला है. एक ही नंबर की दो गाड़ियां चल रही हैं और दोनों के चेचिस नंबर भी अलग-अलग हैं. इसका मतलब कि एक गाड़ी संदिग्ध है और उसमें किसी और गाड़ी की चेचिस काट कर लगाई गई है. उन्होंने बताया कि लखनऊ में जिसने भी गाड़ी बनाने डाली उसने गाड़ी के वास्तविक मालिक के नाम से ही डाली. उनके आधार और आरसी की टेंपर की हुई कॉपी भी लगाई. जब मामला खुलने लगा, तो उसने क्लेम छोड़ दो लाख रुपये नकद जमा किए और 1,89,681 रुपये चेक से देकर गाड़ी उठा ली.'


दस्तावेजों के आधार किया गाड़ी का इंश्योरेंस : ईटीवी के वरिष्ठ संवाददाता गोपाल मिश्रा मामले की पड़ताल करते हुए वाराणसी स्थित न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के ऑफिस पहुंचे और शाखा प्रबंधक विजय यादव और एजेंट विजय दुबे से मामले की पड़ताल की. शाखा प्रबंधक विजय यादव ने बताया कि 'उन्होंने गाड़ी का इंश्योरेंस दस्तावेजों के आधार पर किया है, हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें 'प्री इंस्पैक्शन यानी पीआई' के कागज नहीं मिल रहे हैं. यदि कागज मिल जाएं, तो वह ज्यादा बताने की स्थिति में होंगे. अब यह आश्चर्य की बात है कि जिस गाड़ी में ऐसा मामला सामने आया है, उसकी पीआई के कागज कहां, कैसे और कितने गुम कर दिए? शाखा प्रबंधक विजय यादव मानते हैं कि यह हो सकता है कि चेसिस का नंबर पीआई में गलत आया हो, लेकिन उसके बजाय चेचिस नंबर आरसी से दर्ज कर दिया गया हो. जिसकी वजह से गड़बड़ी पकड़ में नहीं आई, वहीं बीमा करने वाले एजेंट विजय दुबे बताते हैं कि स्नातक निर्वाचन के विधायक उमेश द्विवेदी की सारी गाड़ियों का इंश्योरेंस यहीं से होता है. इस गाड़ी का इंश्योरेंस करने के लिए भी उनकी ओर से कहा गया था. इस पर हमने उन्हें बताया कि गाड़ी की फोटो स्थानीय स्तर पर करानी होगी. मैं अस्पताल में था इस कारण उनको कागज भेज दिए. वहां फोटो होने के बाद मैंने बीमा कर दिया.'


क्राइम ब्रांच से अधिकारी का आया था फोन : इस संबंध में फैसल के बड़े भाई शहजाद ने हमारे संवाददाता श्रीपाल सिंह तेवतिया को बताया कि 'उनकी गाड़ी के नंबर से एक और गाड़ी लखनऊ में चलने की सूचना कुछ माह पहले दी गई थी. लखनऊ क्राइम ब्रांच से किसी अखिलेश नाम के अधिकारी का फोन भी आया था, लेकिन उन्होंने आगे क्या किया अब तक पता नहीं चला. शहजाद कहते हैं कि यदि विधायक इतने दिनों से इस गाड़ी का उपयोग कर रहे थे, तो यह उनके नाम क्यों नहीं थी? आखिर उन्होंने या उनके कारिंदों ने किसी और के नाम से गाड़ी का क्लेम कैसे लेने का प्रयास किया? बीमा एजेंट भी विधायक जी का ही नाम ले रहा है. ऐसे में यह साफ है कि सब कुछ उनकी जानकारी में था. शहजाद ने पुलिस प्रशासन से मांग की है कि इस मामले की जांच कर पूरे मामले का पटाक्षेप किया जाए.'

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एमएलसी उमेश द्विवेदी.

'मामले की हुई है जानकारी' : इस संबंध में हमने फोन पर बात की भाजपा नेता और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी उमेश द्विवेदी से. उन्होंने बताया कि 'उन्हें भी जानकारी हुई है कि इस गाड़ी को लेकर कुछ गड़बड़ी है और वह जानकारी करा रहे हैं. अभी इसमें क्लियर नहीं हो पा रहा है कि आखिर क्या मामला है. वह बताते हैं कि उनके परिचित डॉक्टर अनिल सिंह थे, जिनकी कोरोना काल में मृत्यु हो गई थी, उनके पास यह गाड़ी कहीं से आई थी. उन्होंने खरीदी थी या कहीं से आई थी, यह वह नहीं जानते. वह अब हैं नहीं. वह हमारे संपर्क में काफी समय से थे और चुनाव में भी काफी सहयोग करते रहे थे. चुनाव में ही यह गाड़ी हमारे पास कुछ दिनों के लिए आई थी, फिर चली गई थी. जब वह नहीं रहे, तो गाड़ी काफी दिन तक खड़ी रही. फिर उनके परिवार के लोगों ने कहा कि गाड़ी खड़ी है खराब हो जाएगी. तब से गाड़ी हमारे पास ही रही. हमें कोई दिक्कत भी नहीं आई. कोई शिकायत भी नहीं हुई. इसका बीमा भी हो रहा था. पहली बार है जब शिकायत आई है. कुछ दिन पहले गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ तो हमने दिया उसे बनने के लिए. एजेंसी में जब गाड़ी बनी, तो जिस मालिक के नाम गाड़ी थी उसके यहां क्लेम गया होगा. वहां से पता चला कि मेरठ में पहले से ही इस नंबर की गाड़ी चल रही है. अभी हमने कल इसकी चेंचिस उतरवाई, तो देखा कि वास्तव में डिफर है चेसिस उसकी. अभी हमने कहीं कंप्लेंट नहीं की है. एक-दो दिन में कंप्लीट करके इसे दिखवाएंगे कि क्या मामला है यह.'


उठ रहे कई सवाल : हालांकि भाजपा नेता और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी उमेश द्विवेदी की कुछ बातों पर विश्वास करना कठिन है. सवाल यह उठता है कि एक गाड़ी से इतने दिनों से वह चल रहे थे या उनके काफिले में चल रही थी, फिर भी उसके मालिकाना हक के विषय में उन्हें कोई जानकारी थी ही नहीं? बीमा एजेंट के अनुसार, गाड़ी का इंश्योरेंस उन्हीं के कहने पर किया गया. फिर विधायक को यह कैसे पता नहीं चला कि फैसल की आरसी और आधार में हेरफेर किया गया है? गाड़ी का क्लेम भी फैसल के नाम से ही किया गया था, जबकि दस्तावेजों में कई जगह गड़बड़ी हुई थी. जब उन्हें इसकी सूचना मिली तो उन्होंने तत्काल पुलिस को क्यों नहीं बताया? गाड़ी मालिक के भाई शहजाद के अनुसार, उसके पास क्राइम ब्रांच लखनऊ से पूछताछ हुई थी, फिर अचानक जांच कहां और क्यों रुक गई? कहीं सत्ताधारी दल के विधायक के दबाव में ही तो पुलिस चुप होकर नहीं बैठ गई? अब भी विधायक खुद पड़ताल कर रहे हैं और स्वीकार कर रहे हैं कि चेंचिस में छेड़छाड़ हुई है, फिर भी पुलिस को सूचना देना जरूरी नहीं समझा. इस पूरे मामले का सच क्या है, यह पुलिस की पड़ताल में ही खुलेगा.

यह भी पढ़ें : नंबर प्लेट बदलकर बिहार में बेंचते थे चोरी की कार, पुलिस ने किया गिरफ्तार, गिरोह का सरगना फरार

यह भी पढ़ें : टोटल लॉस गाड़ियों के दस्तावेज की मदद से बेचते थे चोरी की कार, दो गिरफ्तार

लखनऊ में ऐसे सामने आया पूरा मामला.

लखनऊ : प्रदेश के नेताओं में लग्जरी गाड़ियों में चलकर भौकाल गांठने का चस्का पुराना है. इस ठसक को पूरा करने के लिए कभी-कभी लोग गलत रास्ता भी अख्तियार कर लेते हैं. कुछ इसी तरह का एक सनसनीखेज मामला पिछले दिनों हमारी पड़ताल में सामने आया. राजधानी के एक वर्कशॉप पर एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त संदिग्ध फॉर्च्यूनर गाड़ी बनने के लिए पहुंची. इस गाड़ी का बीमा न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से था और वाहन स्वामी की ओर से क्लेम मांगा गया था. इस गाड़ी पर दोनों ओर मोटे अक्षरों में 'विधान परिषद सदस्य' लिखा था और विधान भवन का पास भी लगा था. क्लेम का सर्वे करने पहुंचे सर्वेयर को पड़ताल के दौरान चेचिस में गड़बड़ी नजर आई और जब उन्होंने पत्राचार किया, तो पता चला कि चेचिस किसी और गाड़ी की है. इसके बाद ईटीवी भारत की पड़ताल में कई और सनसनीखेज खुलासे हुए.

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यहीं गाड़ी हुई थी क्षतिग्रस्त.

एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त कार वर्कशाॅप में आई थी बनने : विगत 08 सितंबर 2023 को चिनहट स्थित एक वर्कशॉप में एक फॉर्च्यूनर गाड़ी बनने के लिए आई. 2014 मॉडल की इस गाड़ी का नंबर था UP 15 CL 9394 और मालिक का नाम फैसल बताया गया. गाड़ी की चेचिस नंबर MBJ11JV6104024897-0114 था. वाहन स्वामी की ओर से जब क्लेम किया गया, तो उसका सर्वे अलॉट हुआ वरिष्ठ सर्वेयर ओमवीर सिंह को. ओमवीर सिंह ने जब मौके का मुआयना किया, तो उन्हें कुछ कागजों की जरूरत महसूस हुई. साथ में ही उन्हें यह भी आभास हुआ कि गाड़ी में कहीं कोई गड़बड़ी जरूर है. इसके बाद ओमवीर सिंह ने रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) में दर्ज वाहन स्वामी के पते पर एक पत्र भेजा.

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गाड़ी के कागज.



इसके जवाब में वाहन मालिक फैसल ने चौंकाने वाला जवाब दिया. ओमवीर सिंह बताते हैं 'जब हमारी फैसल से बात हुई, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. फैसल ने उन्हें बताया कि उनकी गाड़ी मेरठ में है और वह तो लखनऊ गए ही नहीं. उनकी गाड़ी का कोई एक्सीडेंट भी नहीं हुआ है. ओमवीर सिंह ने जब फैसल से गाड़ी के कागज मंगाए और तस्दीक की तो पता चला कि गाड़ी की आरसी से भी छेड़छाड़ कर कई बदलाव किए गए हैं. यही नहीं फैसल के आधार से भी छेड़छाड़ हुई है.'

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गाड़ी पर अंकित चेचिस नंबर.

गाड़ी की चेचिस में मिली गड़बड़ी : ओमवीर सिंह बताते हैं कि 'इसके बाद उन्होंने बीमा करने वाली न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के वाराणसी कार्यालय से डॉकेट की कॉपी मांगी, जिसका मेल भी कंपनी की ओर से वाराणसी कार्यालय में प्रबंधक विजय यादव को किया गया है. वाराणसी कार्यालय ने डॉकेट (वह दस्तावेज, जो बीमा करते समय लिए जाते हैं, जैसे चेचिस का इंप्रेशन और फोटो आदि) ढूढ़े मिल नहीं रहा है और मिलते ही भेजा जाएगा. उन्होंने बताया कि बीमा की कॉपी में जो चेचिस नंबर दर्ज है वह वास्तविक गाड़ी का है, जो गाड़ी मेरठ में फैसल के पास है, लेकिन लखनऊ में एक वर्कशॉप में खड़ी गाड़ी में चेचिस दूसरी लगी थी, जो साफ तौर पर टेंपर की हुई पता चलती है. इसके बाद उन्होंने पूरे मामले की सूचना बीमा कंपनी को दी. वह कहते हैं कि यह एक अजीब तरह का मामला है. एक ही नंबर की दो गाड़ियां चल रही हैं और दोनों के चेचिस नंबर भी अलग-अलग हैं. इसका मतलब कि एक गाड़ी संदिग्ध है और उसमें किसी और गाड़ी की चेचिस काट कर लगाई गई है. उन्होंने बताया कि लखनऊ में जिसने भी गाड़ी बनाने डाली उसने गाड़ी के वास्तविक मालिक के नाम से ही डाली. उनके आधार और आरसी की टेंपर की हुई कॉपी भी लगाई. जब मामला खुलने लगा, तो उसने क्लेम छोड़ दो लाख रुपये नकद जमा किए और 1,89,681 रुपये चेक से देकर गाड़ी उठा ली.'


दस्तावेजों के आधार किया गाड़ी का इंश्योरेंस : ईटीवी के वरिष्ठ संवाददाता गोपाल मिश्रा मामले की पड़ताल करते हुए वाराणसी स्थित न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के ऑफिस पहुंचे और शाखा प्रबंधक विजय यादव और एजेंट विजय दुबे से मामले की पड़ताल की. शाखा प्रबंधक विजय यादव ने बताया कि 'उन्होंने गाड़ी का इंश्योरेंस दस्तावेजों के आधार पर किया है, हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें 'प्री इंस्पैक्शन यानी पीआई' के कागज नहीं मिल रहे हैं. यदि कागज मिल जाएं, तो वह ज्यादा बताने की स्थिति में होंगे. अब यह आश्चर्य की बात है कि जिस गाड़ी में ऐसा मामला सामने आया है, उसकी पीआई के कागज कहां, कैसे और कितने गुम कर दिए? शाखा प्रबंधक विजय यादव मानते हैं कि यह हो सकता है कि चेसिस का नंबर पीआई में गलत आया हो, लेकिन उसके बजाय चेचिस नंबर आरसी से दर्ज कर दिया गया हो. जिसकी वजह से गड़बड़ी पकड़ में नहीं आई, वहीं बीमा करने वाले एजेंट विजय दुबे बताते हैं कि स्नातक निर्वाचन के विधायक उमेश द्विवेदी की सारी गाड़ियों का इंश्योरेंस यहीं से होता है. इस गाड़ी का इंश्योरेंस करने के लिए भी उनकी ओर से कहा गया था. इस पर हमने उन्हें बताया कि गाड़ी की फोटो स्थानीय स्तर पर करानी होगी. मैं अस्पताल में था इस कारण उनको कागज भेज दिए. वहां फोटो होने के बाद मैंने बीमा कर दिया.'


क्राइम ब्रांच से अधिकारी का आया था फोन : इस संबंध में फैसल के बड़े भाई शहजाद ने हमारे संवाददाता श्रीपाल सिंह तेवतिया को बताया कि 'उनकी गाड़ी के नंबर से एक और गाड़ी लखनऊ में चलने की सूचना कुछ माह पहले दी गई थी. लखनऊ क्राइम ब्रांच से किसी अखिलेश नाम के अधिकारी का फोन भी आया था, लेकिन उन्होंने आगे क्या किया अब तक पता नहीं चला. शहजाद कहते हैं कि यदि विधायक इतने दिनों से इस गाड़ी का उपयोग कर रहे थे, तो यह उनके नाम क्यों नहीं थी? आखिर उन्होंने या उनके कारिंदों ने किसी और के नाम से गाड़ी का क्लेम कैसे लेने का प्रयास किया? बीमा एजेंट भी विधायक जी का ही नाम ले रहा है. ऐसे में यह साफ है कि सब कुछ उनकी जानकारी में था. शहजाद ने पुलिस प्रशासन से मांग की है कि इस मामले की जांच कर पूरे मामले का पटाक्षेप किया जाए.'

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एमएलसी उमेश द्विवेदी.

'मामले की हुई है जानकारी' : इस संबंध में हमने फोन पर बात की भाजपा नेता और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी उमेश द्विवेदी से. उन्होंने बताया कि 'उन्हें भी जानकारी हुई है कि इस गाड़ी को लेकर कुछ गड़बड़ी है और वह जानकारी करा रहे हैं. अभी इसमें क्लियर नहीं हो पा रहा है कि आखिर क्या मामला है. वह बताते हैं कि उनके परिचित डॉक्टर अनिल सिंह थे, जिनकी कोरोना काल में मृत्यु हो गई थी, उनके पास यह गाड़ी कहीं से आई थी. उन्होंने खरीदी थी या कहीं से आई थी, यह वह नहीं जानते. वह अब हैं नहीं. वह हमारे संपर्क में काफी समय से थे और चुनाव में भी काफी सहयोग करते रहे थे. चुनाव में ही यह गाड़ी हमारे पास कुछ दिनों के लिए आई थी, फिर चली गई थी. जब वह नहीं रहे, तो गाड़ी काफी दिन तक खड़ी रही. फिर उनके परिवार के लोगों ने कहा कि गाड़ी खड़ी है खराब हो जाएगी. तब से गाड़ी हमारे पास ही रही. हमें कोई दिक्कत भी नहीं आई. कोई शिकायत भी नहीं हुई. इसका बीमा भी हो रहा था. पहली बार है जब शिकायत आई है. कुछ दिन पहले गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ तो हमने दिया उसे बनने के लिए. एजेंसी में जब गाड़ी बनी, तो जिस मालिक के नाम गाड़ी थी उसके यहां क्लेम गया होगा. वहां से पता चला कि मेरठ में पहले से ही इस नंबर की गाड़ी चल रही है. अभी हमने कल इसकी चेंचिस उतरवाई, तो देखा कि वास्तव में डिफर है चेसिस उसकी. अभी हमने कहीं कंप्लेंट नहीं की है. एक-दो दिन में कंप्लीट करके इसे दिखवाएंगे कि क्या मामला है यह.'


उठ रहे कई सवाल : हालांकि भाजपा नेता और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी उमेश द्विवेदी की कुछ बातों पर विश्वास करना कठिन है. सवाल यह उठता है कि एक गाड़ी से इतने दिनों से वह चल रहे थे या उनके काफिले में चल रही थी, फिर भी उसके मालिकाना हक के विषय में उन्हें कोई जानकारी थी ही नहीं? बीमा एजेंट के अनुसार, गाड़ी का इंश्योरेंस उन्हीं के कहने पर किया गया. फिर विधायक को यह कैसे पता नहीं चला कि फैसल की आरसी और आधार में हेरफेर किया गया है? गाड़ी का क्लेम भी फैसल के नाम से ही किया गया था, जबकि दस्तावेजों में कई जगह गड़बड़ी हुई थी. जब उन्हें इसकी सूचना मिली तो उन्होंने तत्काल पुलिस को क्यों नहीं बताया? गाड़ी मालिक के भाई शहजाद के अनुसार, उसके पास क्राइम ब्रांच लखनऊ से पूछताछ हुई थी, फिर अचानक जांच कहां और क्यों रुक गई? कहीं सत्ताधारी दल के विधायक के दबाव में ही तो पुलिस चुप होकर नहीं बैठ गई? अब भी विधायक खुद पड़ताल कर रहे हैं और स्वीकार कर रहे हैं कि चेंचिस में छेड़छाड़ हुई है, फिर भी पुलिस को सूचना देना जरूरी नहीं समझा. इस पूरे मामले का सच क्या है, यह पुलिस की पड़ताल में ही खुलेगा.

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Last Updated : Dec 14, 2023, 6:15 PM IST
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