वाराणसीः हमारा शरीर बढ़ता जाता है. शरीर के सारे अंग विकसित होते हैं तो दिमाग किस तरह बढ़ता होगा. कभी आपके भी दिमाग में ये सवाल आया है? ये सवाल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को दिमाग में आया है. वे इसका उत्तर जानने के लिए शोध कार्य भी शुरू कर चुके हैं. ऐसा पहली बार हो रहा है कि सिर्फ न्यूरो नहीं बल्कि तीन अलग-अलग विभाग मिलकर शोध कर रहे हैं.
जी हां! आपने बहुत जान लिया कि नाखून कैसे बढ़ता है, छिपकली की पूछ दोबारा क्यों आ जाती है. अब जानिए कि हमारा दिमाग कैसे बढ़ता है. बढ़ता भी है या नहीं. बढ़ा तो क्या सभी अंगों की तरह ही इसके विकास की गति रही है. इसका जवाब ढूंढ रहे हैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक. सबसे अनोखा ये है कि इनके साथ दिमाग को विजुअलाइज करने के लिए विजुअल आर्ट भी साथ दे रहा है. वहीं, आर्कियोलॉजी पता कर रहा है कि इंसान अपने दिमाग का उपयोग कैसे बदलता चला गया.
20 से 25 लाख साल में इंसान का दिमाग 1500 सीसी का हुआ
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञ प्रो. वी एन मिश्रा बताते हैं कि 20 लाख-25 लाख साल पहले इंसान का दिमाग 300-400 सीसी का था. 2 लाख साल पहले जब इंसानी दिमाग में बदलाव आया, उसमें 1500 सीसी का हुआ. यानी पिछले 20-25 लाख सालों में इंसान का दिमाग बड़ा हो गया. 2 लाख साल पहले जो ब्रेन ईंट पत्थर के औजार बनाते थे, बाद में वे रॉक पेंटिंग बनाने लगे.
इंसान का दिमाग बहुत ही धीरे गति से बड़ा हुआ
इस आधार पर अगर हम देखें तो इंसान का दिमाग बहुत ही धीरे-धीरे बढ़ा है. मगर समय के बढ़ने के साथ ही दिमाग की क्षमता बढ़ती चली गई है. ऐसे में यह भी देखने वाली बात है कि शुरुआत में इंसान जीवन जीने के लिए दिमाग का किस तरह से उपयोग करता था और आज किस तरह से चीजें तैयार कर रहा है. न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञ ने बताया कि अगर हम देखें तो अब उतने ही साइज का ब्रेन मार्स पर पत्थर खोज रहा है, सैटेलाइट बना रहा है, सेलफोन बना रहा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बना दिया. 2 लाख सालों में दिमाग की क्षमता बहुत बढ़ गई है.
पहली बार तीन विभाग एकसाथ मिलकर कर रहे हैं काम
जब इस शोध की बात हो रही है तो इसमें सबसे बड़ी बात ये है कि दुनिया में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब तीन विभागों के विशेषज्ञ एकसाथ मिलकर काम कर रहे हैं. क्योंकि इसमें जरूरत है दिमाग के विकास की गति जानने की और इंसानों की कार्यप्राणाली को जानने की. इसमें न्यूरोलॉजी, आर्कियोलॉजी और विजुअल आर्ट्स की तरफ से कंबाइंड स्टडी की जा रही है. इसमें ये देखा जा रहा है कि अगला 100-200 साल कैसा होगा. आर्कियोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. रफेल, विजुअल आर्ट्स के विशेषज्ञ प्रो सुरेश के नायर हैं.
औजार बनाने से लेकर चित्र बनाने तक हुआ विकास
डाक्टर रफेल और प्रो सुरेश के नायर का कहना है कि भारत की जलवायु ऐसी है कि यहां पर इंसानों की हड्डियां गल जाती थीं. अफ्रीका में इंसानों की हड्डियां मिली हैं. भारत में लोगों का दिमाग कैसा था, इसके लिए हमको ये देखना होगा कि पहले ये करते क्या थे. वे चित्र बनाते थे. यानी कि लोग दिमाग के आगे का हिस्सा प्रयोग करते थे. फ्रंटो, टेंपोरल, पैराइटल और ऑस्पिटल के को-ऑर्डिनेशन से, जो कि हमारा ज्ञान है, जैसे पत्थर से औजार बनाना और चित्र बनाना.
फंक्सनल एमआरआई से की जाएगी ब्रेन स्टडी
न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञ प्रो. मिश्रा ने बताया कि हम हम अपने तीन विशेषज्ञ आर्कियोलॉजी, न्यूरोलॉजी और विजुअल आर्ट के साथ मिलकर इसे खोजेंगे. इसके बाद हम लाइव सब्जेक्ट लेंगे. इसमें शिल्पकार लेंगे, विजुअल आर्ट्स के लोग लेंगे. उनके साथ हम फंक्सनल एमआरआई से ब्रेन स्टडी करेंगे. उन्होंने बताया कि इस शोध में हम बताएंगे कि आज के जो दिमाग की क्षमता है उसके क्षमता पहले कैसी थी और आगे क्या होने वाला है. यह शोध अगले तीन साल में पूरा हो जाएगा.
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