नई दिल्ली : ईरान और अमेरिका के बीच रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं. पहले ईरानी कमांडर की हत्या और उसके बाद अमेरिकी सैन्य बेस पर ईरान के जवाबी हमले से स्थिति और खराब हो गई है. वैसे, दोनों देशों ने संयम बरतने की भी बात कही है. आइए जानते हैं आखिर अमेरिका और ईरान के बीच कैसे रहे हैं रिश्ते. दोनों देशों के बीच क्यों बढ़ा है तनाव, एक नजर.
दोनों देशों के बीच दुश्मनी कितनी पुरानी
- 1953 में तख्तापलट
ईरान में तख्तापलट. आरोप अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए पर लगा. चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक को हटा दिया गया. सत्ता ईरान के शाह रजा पहलवी को मिल गई.
कारण - मोसद्दिक धर्मनिरपेक्ष थे. वे ईरान में तेल का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे. अमेरिका ऐसा नहीं चाहता था.
- 1979 में ईरानी क्रांति
शाह के शासन के खिलाफ मोर्चा खुला. शाह को चुनौती मिली. आयातुल्ला खुमैनी की ईरान में वापसी. ईरान में इस्लामिक क्रांति से पहले खुमैनी तुर्की, इराक़ और पेरिस में रह रहे थे. वह निर्वासित जिंदगी बिता रहे थे.
खुमैनी ने शाह की पार्टी को शैतानों की पार्टी बताया.
खुमैनी ने शाह की अमेरिकी परस्त नीतियों को निशाना बनाया. ईरान के पश्चिमीकरण को भी एक प्रमुख मुद्दा बनाया. 16 जनवरी, 1979 को शाह को ईरान छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.
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एक फरवरी 1979 को खुमैनी ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता के रूप में स्थापित हो गए.
ईरान को इस्लामिक गणतंत्र घोषित कर दिया गया. बाद में खुमैनी धीरे-धीरे रूढ़िवादी होते चले गए.
- ईरानी दूतावास का बंधक संकट (1979-81)
ईरानी क्रांति के बाद अमेरिका से उनके राजनयिक रिश्ते खत्म हो गए.
ईरानी छात्रों के एक समूह ने तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया. 52 अमेरिकी सैनिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा.
छात्रों की मांग थी कि अमेरिका शाह को सौंप दे. तब शाह अमेरिका में कैंसर का इलाज करवा रहे थे.
- ईरान-इराक युद्ध (1980-88)
इराकी शासक सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमले का आदेश दिया. आठ सालों तक खूनी संघर्ष चला.
अमेरिका ने सद्दाम का साथ दिया. सोवियत संघ भी सद्दाम के साथ था.
पांच लाख ईरानी और इराकी सैनिक मारे गए. इराक ने ईरान पर रासायनिक हथियार से हमला किया.
बाद में इराक और अमेरिका के बीच मतभेद बढ़ा. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ईरान को 'एक्सिस ऑफ एविल' का सदस्य बताया था.
- ईरान का परमाणु कार्यक्रम
2002 तक ईरान के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी किसी को नहीं थी.
सबसे पहले यूरोपियन यूनियन ने इस मुद्दे पर ईरान से बातचीत शुरू की. लंबी बातचीत चलती रही.
2013 में हसन रुहानी के कार्यकाल के दौरान परमाणु कार्यक्रम पर फिर से बातचीत शुरू हुई.
ओबामा प्रशासन ने 2015 में ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ ऐक्शन पर सहमति बना ली. यह एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि थी.
ट्रंप प्रशासन ने इस समझौते पर सहमति नहीं दी. एक तरफा समझौते को रद्द कर दिया. ईरान पर कई प्रतिबंध लगा दिए.
यूरोपियन यूनियन ने बीच बचाव की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.