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पूर्व राजदूत बोले- हिंसक झड़प एक चेतावनी, एलएसी का पुष्टिकरण करने की जरूरत

भारत और चीन यदि संबंधों को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हें वास्तविक नियंत्रण रेखा की जल्द से जल्द पुष्टि करनी चाहिए. यदि भारत-चीन सीमा विवाद को नहीं सुलझाते हैं, तो गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प जैसी घटनाएं आगे भी होती रहेंगी. यह बात चीन में राजदूत रहे अशोक कांथा ने वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा के साथ एक विशेष बातचीत में कही. देखें चीन के पूर्व राजदूत के साथ पूरी बातचीत....

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Published : Jun 17, 2020, 8:50 PM IST

india and china Ashok Kantha
पूर्व राजदूत अशोक कांथा से बातचीत

नई दिल्ली : पूर्व राजदूत अशोक कांथा भारत और चीन यदि संबंधों को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हें वास्तविक नियंत्रण रेखा की जल्द से जल्द पुष्टि करनी चाहिए. बीजिंग में पूर्व भारतीय राजदूत और वर्तमान में आईसीएस (चीनी अध्ययन संस्थान) के निदेशक कांथा का मानना है कि यदि भारत-चीन सीमा विवाद को नहीं सुलझाते हैं, तो गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प जैसी घटनाएं आगे भी होती रहेंगी. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा के साथ एक विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि तात्कालिक प्राथमिकताओं में युद्ध होने से रोकना और स्पष्ट राजनीतिक निर्देश का होना जरूरी है. अशोक कांथा मानते हैं कि सभी तथ्यों की जानकारी के बिना यह समय प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए सीधी बातचीत करने के लिए उपयुक्त नहीं है. लेकिन उच्च स्तरीय राजनीतिक और कूटनीतिक बातचीत होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि सैन्य वार्ता उपयोगी है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि चीन ने पिछले 18 वर्षों में सीमा विवाद को सुलझाने की प्रक्रिया को गतिहीन कर दिया है.

पूर्व राजदूत अशोक कांथा से बातचीत

सवाल : भारत-चीन सीमा पर दशकों तक शांति और स्थिरता बनाए रखने के बाद, LAC का स्वरूप अब स्थायी रूप से हिंसक झड़पों के बाद बदल गया है?

जवाब : साफ़ तौर पर कुछ बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटा है. पिछले 45 वर्षों से वास्तविक नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संरेखण की समस्याओं के बावजूद, भारत और चीन ने एक साथ काम करके यह सुनिश्चित किया था कि वास्तविक नियंरण रेखा अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहे. 1975 के बाद से किसी भी घटना में दोनों तरफ़ जानमाल की हानि नहीं हुई थी. मगर अब वह अतीत है. अब इस बेहद गंभीर स्थिति से आगे किस ओर बढ़ें हमें यह देखना है. हम जिस वर्तमान स्थिति में हैं, उसकी गंभीरता को कम नहीं आंकना चाहिए. यह देखने की जरूरत है कि आगे तनाव न बढ़े. हमें इसे नकारना नहीं चाहिए. जब तनाव की स्थिति शुरू हुई तो हमने उल्लेख किया कि एक दुर्घटना होने का खतरा हमेशा बना रहता है जब सशस्त्र कर्मी एक लंबे समय तक आमने-सामने होते हैं और सोमवार शाम को ऐसा ही हुआ है. इसलिए बहुत स्पष्ट राजनीतिक निर्देशों की आवश्यकता है ताकि दोनों पक्षों से संबंधित सीमा की सुरक्षा में तैनात बलों के बीच कोशिश कर यह सुनिश्चित करें कि स्थिति जल्द से जल्द सामान्य हो जाए. इसके बाद ही हमें एक बार फिर से स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए कई ज़रूरी कदम उठा सकेंगे.

सवाल : जमीनी भावनात्मक, संवेदनशील और हालात में आई अस्थिरता के कारण सेना के जवानों के लिए तनाव को कम करने की प्रक्रिया बहुत जटिल होगी. तो क्या अन्य स्थानों पर जहां तनाव बना हुआ है वहां हालात बिगड़ने की सम्भावना हो सकती है?

जवाब : वास्तविक नियंत्रण रेखा की कुछ चौकियों पर हालात बिगड़ने की सम्भावना को मैं नकार नहीं सकता हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि दोनों पक्ष यह देखना नहीं चाहेंगे कि यह झड़पें किसी तरह भी व्यापक संघर्ष का रूप धारण कर लें. वास्तव में भारत और चीन दोनों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन और शांति बनाए रखने के लिए बहुत निवेश किया है. हमने सीबीएम (विश्वास निर्माण उपाय), एसओपी (मानक सञ्चालन प्रक्रिया) की काफी विस्तृत वास्तुकला को तैयार किया गया है ताकि सीमावर्ती क्षेत्र पर शांति सुनिश्चित की जा सके. इस मामले में साफ तौर पर यह निष्क्रिय हो गये हैं. इसलिए हमें कुछ आत्मनिरीक्षण करके कुछ तत्काल कदम उठाने की जरूरत है. जमीन पर एक स्पष्ट सन्देश जाने की जरुरत है कि हम तनाव को कम करना चाहते हैं. तनाव को कम करने की प्रक्रिया को जारी रखना चाहिए और युद्ध के पूर्व की स्थिति को बहाल करना इसका तार्किक निष्कर्ष होना चाहिए. हम उस स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते हैं जहां चीनी पक्ष को इस वर्ष अप्रैल से उनके द्वारा की गई एकतरफा कार्रवाई के माध्यम से लाभ हासिल करने की अनुमति दी जा सके. इन तमाम घटनाओं के पहले अप्रैल में जैसी स्थिति थी उसको बहाल करना बेहद ज़रूरी है. फिर हमें मानक सञ्चालन प्रक्रिया की समीक्षा करने की आवश्यकता है, देखें कि क्या गलत हुआ और आगे देखने के लिए और कुछ उपचारात्मक उपाय करने के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण क़दम उठाने की आवश्यकता है. हम वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते हैं जहां वास्तविक नियंत्रण रेखा के संरेखण को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है. हमें वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्पष्ट होना होगा और उसकी पुष्टि होना अतिआवश्यक है. इस मुद्दे पर हमारे बीच एक औपचारिक समझ बनी हुई है. हम नक्शे का आदान-प्रदान करने और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक आम समझ बनाने की ओर बढ़ने के लिए सहमत हुए थे. चीनी पक्ष ने पिछले 18 वर्षों में उस प्रक्रिया को गतिहीन बनाये रहा. मौजूदा घटनाओं को आंख खोलने के लिए एक घंटी की तरह देखा जाना चाहिए. हमें उस प्रक्रिया को फिर से शुरू करना चाहिए और क्या हम वास्तव में ऐसी स्थिति के साथ अनिश्चित काल तक रह सकते हैं जहां सीमा प्रश्न पर हमारे बीच इतने बड़े मतभेद हैं? 2003 से दो एसआर (विशेष प्रतिनिधियों) को सीमा प्रश्न पर एक राजनीतिक समझौता खोजने का कार्य सौपा गया है. शुरुआत में 2005 में उन्होंने कुछ अच्छी सफलता हासिल की जब हम सीमा निर्धारण के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों और राजनीतिक मापदंडों पर सहमत हुए. तब से कोई मूल सफलता नहीं मिली है. उन्हें मूल जनादेश का संदर्भ देना होगा. यह एक ऐसी समस्या नहीं है जिसे हम अनिश्चित काल के लिए पीछे धकेल दिया जाये. यदि हम ऐसा करते हैं, तो हम गालवान घाटी में हुई भयावह घटनाओं के जैसी और घटनाओं से इसकी कीमत अदा करेंगे.

सवाल : क्या मौजूदा तंत्र और सीमा प्रोटोकॉल का समय पूरा हो चुका है?

जवाब : मुझे नहीं लगता कि ये मानक सञ्चालन प्रक्रिया या विश्वास निर्माण उपाय अपन जीवन जी चुके हैं. मैं उनमें से कुछ को बातचीत करने में आत्मीयता से शामिल रहा हूं. मैं आपको बता सकता हूं कि वे उत्कृष्ट हैं. जो कमी है वह उन विश्वास निर्माण उपायों के उचित कार्यान्वयन में है. हमें उनके सम्मान के लिए दोनों पक्षों में नए सिरे से प्रतिबद्धता के साथ विश्वास निर्माण उपायों का साथ देते रहना चाहिए. हमें वास्तविक नियंत्रण रेखा का सावधानीपूर्वक सम्मान करना चाहिए क्योंकि हम ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

पूर्व राजदूत अशोक कांथा से बातचीत

सवाल : क्या प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच सीधी बातचीत होनी चाहिए या हताहतों की संख्या को देखते हुए, यह बात करने का सही समय नहीं है?

जवाब : बिना सारे तथ्यों को जाने मैं यह राय देने पर जोर नहीं दूंगा कि प्रधानमंत्री मोदी को फ़ोन पर राष्ट्रपति शी से बात करनी चाहिए, लेकिन राजनयिक स्रोतों के माध्यम से निश्चित रूप से उच्च स्तर पर संपर्कों की आवश्यकता है. सीमा कमांडरों के बीच बैठकें करना उपयोगी साबित होंगी. मगर हमने पहले भी देखा है कि इस तरह की बातचीत उपयोगी तो है मगर पर्याप्त नहीं है. हमें राजनयिक और राजनीतिक स्तर पर अधिक संपर्क बनाये रखने की आवश्यकता है. शायद दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच बातचीत ज्यादा लाभदायक हो सकती है जिन्हें सीमा मुद्दे को हल करने का काम सौंपा गया है.

सवाल : क्या राजनीतिक निर्देश स्थानीय कमांडरों को प्रभावित करता है? विशेषज्ञों का मानना है कि इन घुसपैठों को समन्वित, पूर्व नियोजित और कम से कम चीनी पीएलए के पश्चिमी कमान थिएटर से निर्देशित किया गया था. तो क्या राजनीतिक संदेश देने से मदद मिलेगी?

जवाब : इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये स्थानीयकृत घटनाएं नहीं हैं. पांच मई के बाद से हमने देखा है कि अधिकांश घुसपैठ और सीमा पर हुई घटनाएं सिक्किम से लेकर पश्चिमी सीमा क्षेत्र तक बहुत व्यापक स्तर पर हुई हैं. स्पष्ट रूप से चीनी पदानुक्रम में बहुत उच्च स्तर पर निर्णय के बिना कई स्थानों पर कई घटनाएं हो सकती हैं.चीनी पक्ष पर फैसला होता है लेकिन जरूरी नहीं है कि चीनी पक्ष में सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन और शांति के उपाय की बहाली सुनिश्चित करने में कोई दिलचस्पी न हो. हमारी तरह ही चीनी पक्ष भी सीमावर्ती क्षेत्रों में सापेक्ष शांति सुनिश्चित करने के लिए निवेशित हैं और यह हमारे लिए एक कठिन स्थिति को पुनः पहले जैसा करने का समय है. चीन के साथ हमारे बहुत ही जटिल और पेचीदा संबंध हैं.

सवाल : वास्तविक नियंत्रण रेखा का स्पष्टीकरण और पुष्टि चीनियों को पसंद आएगी जो शायद भारतीय पर दबाव बनाकर लाभ उठाने के रूप में एक अस्थिर सीमा को पसंद करते हैं?

जवाब : मैं सहमत हूं कि चीनी पक्ष ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के संरेखण के बारे में अस्पष्टता बनाए रखने के लिए जान बूझकर ढिलाई बरती है, जो उनके लिए अनुकूल है. यही कारण है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आम समझ की ओर बढ़ने के लिए दो पक्षों के बीच एक औपचारिक समझ और लिखित समझौते के बावजूद उन्होंने पिछले 18 वर्षों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्पष्टीकरण की प्रक्रिया को गतिहीन बना दिया है, लेकिन यह संदेश चीनी पक्ष को फिर से पुन: प्रसारित करने की आवश्यकता है कि यदि आप भारत-चीन संबंधों को अपेक्षाकृत सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो सीमा क्षेत्रों में शांति बहाल करनी होगी. यह दोनों पक्षों के बीच एक महत्वपूर्ण समझ है कि भारत-चीन संबंध को रचनात्मक बनाये रखने के लिए एक शांतिपूर्ण सीमा की आवश्यकता है.

सवाल : क्या चीन युद्ध के पहले की स्थिति की बहाली के लिए सहमत होगा? पीएलए वेस्टर्न कमांड के प्रवक्ता ने एक बयान में दावा किया कि पूरी गलवान नदी पर उसकी सम्प्रभुता है. दूसरी ओर विदेश मंत्रालय का कहना है कि चीन एकतरफा रूप से यथास्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है.

जवाब : वास्तविक नियंत्रण रेखा संप्रभुता का मुद्दा नहीं है. यह एक स्थिति है. यह वास्तविक नियंत्रण रेखा है क्योंकि यह जमीन पर मौजूद है. इसलिए दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा में बदलाव नहीं करने के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि यह मौजूद है. हाल के सप्ताहों में चीनी जो कर रहे हैं, वह वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदलने का प्रयास है, सोमवार को जो हुआ, यदि आप विदेश मंत्रालय के बयान को देखते हैं, तो 6 जून को सीमा कमांडरों के बीच पहुंची सर्वसम्मति से गलवान नदी में यथास्थिति को बदलने के लिए चीनी कार्रवाई के परिणामस्वरूप दुष्परिणाम था. इसलिए यथास्थिति का सम्मान करते हुए, इसे बदलने की अनुमति नहीं देना एक बहुत महत्वपूर्ण आवश्यकता है. इसलिए मैं थोड़ा चिंतित हूं क्योंकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में वास्तविक नियंत्रण रेखा के हमारी तरफ बफर जोन होने की बात कही गयी है. हमें गश्त पर कोई प्रतिबंध नहीं स्वीकार करना चाहिए जो हम वास्तविक नियंत्रण रेखा पर करते रहे हैं. यह न केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हमारे पक्ष में जाने वाले चीनी कर्मियों के संदर्भ में यथास्थिति की बहाली होनी चाहिए, बल्कि हमारी तरफ से सीमावर्ती बुनियादी ढांचे के संरक्षण या विकास पर कोई प्रतिबंध भी नहीं होना चाहिए.

पूर्व राजदूत अशोक कांथा से बातचीत

सवाल : पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एसएस मेनन ने एक साक्षात्कार में कहा कि ये वार्ता मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक रूप से नहीं की जानी चाहिए, लेकिन चीन द्वारा एक चुप्पी को गैर-परक्राम्य चीजों के रूप में पढ़ा जा सकता है. अब सार्वजनिक संदेश क्या होना चाहिए? प्रधानमंत्री मोदी ने हत्याओं पर पिछले 24 घंटों में एक भी बयान नहीं दिया है, क्या यह चुप्पी अनुकूल है?

जवाब : मैं इस बात से सहमत हूं कि वार्ता संवेदनशील है और इसे मीडिया के माध्यम से संचालित नहीं किया जा सकता है. लेकिन अधिक पारदर्शिता की भी जरूरत है. हमारी इतर की बात को भी बाहर रखा जाना चाहिए.अतीत में एक कारिंदे के रूप में, मुझे पता है कि कुछ ऐसी सीमाएं हैं जिनके विषय में हम सार्वजनिक स्तर पर तथ्यों को साझा नहीं कर सकते हैं, लेकिन हमारी तरफ से बेहतर संवाद होना चाहिए. इसके अलावा, हमें रिसी हुई ख़बरों या अज्ञानता के आधार पर अटकलों को रोकना चाहिए जो परिहार्य हैं.

सवाल : प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी छह साल में 14 बार मिल चुके हैं, प्रधानमंत्री पांच बार चीन का दौरा भी कर चुके हैं. क्या यह उनकी चीन कूटनीति की विफलता है? शीर्ष नेतृत्व से एक सार्वजनिक संदेश कितना महत्वपूर्ण है?

जवाब : प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी के स्तर पर संपर्क बनाए रखना काफी उपयोगी साबित हुआ है. उच्चतम स्तर पर मेलजोल ने यह सुनिश्चित करने में योगदान दिया है कि भारत चीन उन रिश्तों में सुधार लाने की कोशिश कर रहें हैं जो स्वाभाविक रूप से पेचीदा, जटिल और कठिन हैं. हमने उतार-चढ़ाव देखे हैं. वर्तमान में हम एक गंभीर स्थिति देख रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि राजनीतिक जुड़ाव बेहद जरूरी है और हमें इसपर सवाल नहीं उठाना चाहिए.

(स्मिता शर्मा)

नई दिल्ली : पूर्व राजदूत अशोक कांथा भारत और चीन यदि संबंधों को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हें वास्तविक नियंत्रण रेखा की जल्द से जल्द पुष्टि करनी चाहिए. बीजिंग में पूर्व भारतीय राजदूत और वर्तमान में आईसीएस (चीनी अध्ययन संस्थान) के निदेशक कांथा का मानना है कि यदि भारत-चीन सीमा विवाद को नहीं सुलझाते हैं, तो गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प जैसी घटनाएं आगे भी होती रहेंगी. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा के साथ एक विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि तात्कालिक प्राथमिकताओं में युद्ध होने से रोकना और स्पष्ट राजनीतिक निर्देश का होना जरूरी है. अशोक कांथा मानते हैं कि सभी तथ्यों की जानकारी के बिना यह समय प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए सीधी बातचीत करने के लिए उपयुक्त नहीं है. लेकिन उच्च स्तरीय राजनीतिक और कूटनीतिक बातचीत होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि सैन्य वार्ता उपयोगी है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि चीन ने पिछले 18 वर्षों में सीमा विवाद को सुलझाने की प्रक्रिया को गतिहीन कर दिया है.

पूर्व राजदूत अशोक कांथा से बातचीत

सवाल : भारत-चीन सीमा पर दशकों तक शांति और स्थिरता बनाए रखने के बाद, LAC का स्वरूप अब स्थायी रूप से हिंसक झड़पों के बाद बदल गया है?

जवाब : साफ़ तौर पर कुछ बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटा है. पिछले 45 वर्षों से वास्तविक नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संरेखण की समस्याओं के बावजूद, भारत और चीन ने एक साथ काम करके यह सुनिश्चित किया था कि वास्तविक नियंरण रेखा अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहे. 1975 के बाद से किसी भी घटना में दोनों तरफ़ जानमाल की हानि नहीं हुई थी. मगर अब वह अतीत है. अब इस बेहद गंभीर स्थिति से आगे किस ओर बढ़ें हमें यह देखना है. हम जिस वर्तमान स्थिति में हैं, उसकी गंभीरता को कम नहीं आंकना चाहिए. यह देखने की जरूरत है कि आगे तनाव न बढ़े. हमें इसे नकारना नहीं चाहिए. जब तनाव की स्थिति शुरू हुई तो हमने उल्लेख किया कि एक दुर्घटना होने का खतरा हमेशा बना रहता है जब सशस्त्र कर्मी एक लंबे समय तक आमने-सामने होते हैं और सोमवार शाम को ऐसा ही हुआ है. इसलिए बहुत स्पष्ट राजनीतिक निर्देशों की आवश्यकता है ताकि दोनों पक्षों से संबंधित सीमा की सुरक्षा में तैनात बलों के बीच कोशिश कर यह सुनिश्चित करें कि स्थिति जल्द से जल्द सामान्य हो जाए. इसके बाद ही हमें एक बार फिर से स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए कई ज़रूरी कदम उठा सकेंगे.

सवाल : जमीनी भावनात्मक, संवेदनशील और हालात में आई अस्थिरता के कारण सेना के जवानों के लिए तनाव को कम करने की प्रक्रिया बहुत जटिल होगी. तो क्या अन्य स्थानों पर जहां तनाव बना हुआ है वहां हालात बिगड़ने की सम्भावना हो सकती है?

जवाब : वास्तविक नियंत्रण रेखा की कुछ चौकियों पर हालात बिगड़ने की सम्भावना को मैं नकार नहीं सकता हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि दोनों पक्ष यह देखना नहीं चाहेंगे कि यह झड़पें किसी तरह भी व्यापक संघर्ष का रूप धारण कर लें. वास्तव में भारत और चीन दोनों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन और शांति बनाए रखने के लिए बहुत निवेश किया है. हमने सीबीएम (विश्वास निर्माण उपाय), एसओपी (मानक सञ्चालन प्रक्रिया) की काफी विस्तृत वास्तुकला को तैयार किया गया है ताकि सीमावर्ती क्षेत्र पर शांति सुनिश्चित की जा सके. इस मामले में साफ तौर पर यह निष्क्रिय हो गये हैं. इसलिए हमें कुछ आत्मनिरीक्षण करके कुछ तत्काल कदम उठाने की जरूरत है. जमीन पर एक स्पष्ट सन्देश जाने की जरुरत है कि हम तनाव को कम करना चाहते हैं. तनाव को कम करने की प्रक्रिया को जारी रखना चाहिए और युद्ध के पूर्व की स्थिति को बहाल करना इसका तार्किक निष्कर्ष होना चाहिए. हम उस स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते हैं जहां चीनी पक्ष को इस वर्ष अप्रैल से उनके द्वारा की गई एकतरफा कार्रवाई के माध्यम से लाभ हासिल करने की अनुमति दी जा सके. इन तमाम घटनाओं के पहले अप्रैल में जैसी स्थिति थी उसको बहाल करना बेहद ज़रूरी है. फिर हमें मानक सञ्चालन प्रक्रिया की समीक्षा करने की आवश्यकता है, देखें कि क्या गलत हुआ और आगे देखने के लिए और कुछ उपचारात्मक उपाय करने के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण क़दम उठाने की आवश्यकता है. हम वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते हैं जहां वास्तविक नियंत्रण रेखा के संरेखण को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है. हमें वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्पष्ट होना होगा और उसकी पुष्टि होना अतिआवश्यक है. इस मुद्दे पर हमारे बीच एक औपचारिक समझ बनी हुई है. हम नक्शे का आदान-प्रदान करने और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक आम समझ बनाने की ओर बढ़ने के लिए सहमत हुए थे. चीनी पक्ष ने पिछले 18 वर्षों में उस प्रक्रिया को गतिहीन बनाये रहा. मौजूदा घटनाओं को आंख खोलने के लिए एक घंटी की तरह देखा जाना चाहिए. हमें उस प्रक्रिया को फिर से शुरू करना चाहिए और क्या हम वास्तव में ऐसी स्थिति के साथ अनिश्चित काल तक रह सकते हैं जहां सीमा प्रश्न पर हमारे बीच इतने बड़े मतभेद हैं? 2003 से दो एसआर (विशेष प्रतिनिधियों) को सीमा प्रश्न पर एक राजनीतिक समझौता खोजने का कार्य सौपा गया है. शुरुआत में 2005 में उन्होंने कुछ अच्छी सफलता हासिल की जब हम सीमा निर्धारण के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों और राजनीतिक मापदंडों पर सहमत हुए. तब से कोई मूल सफलता नहीं मिली है. उन्हें मूल जनादेश का संदर्भ देना होगा. यह एक ऐसी समस्या नहीं है जिसे हम अनिश्चित काल के लिए पीछे धकेल दिया जाये. यदि हम ऐसा करते हैं, तो हम गालवान घाटी में हुई भयावह घटनाओं के जैसी और घटनाओं से इसकी कीमत अदा करेंगे.

सवाल : क्या मौजूदा तंत्र और सीमा प्रोटोकॉल का समय पूरा हो चुका है?

जवाब : मुझे नहीं लगता कि ये मानक सञ्चालन प्रक्रिया या विश्वास निर्माण उपाय अपन जीवन जी चुके हैं. मैं उनमें से कुछ को बातचीत करने में आत्मीयता से शामिल रहा हूं. मैं आपको बता सकता हूं कि वे उत्कृष्ट हैं. जो कमी है वह उन विश्वास निर्माण उपायों के उचित कार्यान्वयन में है. हमें उनके सम्मान के लिए दोनों पक्षों में नए सिरे से प्रतिबद्धता के साथ विश्वास निर्माण उपायों का साथ देते रहना चाहिए. हमें वास्तविक नियंत्रण रेखा का सावधानीपूर्वक सम्मान करना चाहिए क्योंकि हम ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

पूर्व राजदूत अशोक कांथा से बातचीत

सवाल : क्या प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच सीधी बातचीत होनी चाहिए या हताहतों की संख्या को देखते हुए, यह बात करने का सही समय नहीं है?

जवाब : बिना सारे तथ्यों को जाने मैं यह राय देने पर जोर नहीं दूंगा कि प्रधानमंत्री मोदी को फ़ोन पर राष्ट्रपति शी से बात करनी चाहिए, लेकिन राजनयिक स्रोतों के माध्यम से निश्चित रूप से उच्च स्तर पर संपर्कों की आवश्यकता है. सीमा कमांडरों के बीच बैठकें करना उपयोगी साबित होंगी. मगर हमने पहले भी देखा है कि इस तरह की बातचीत उपयोगी तो है मगर पर्याप्त नहीं है. हमें राजनयिक और राजनीतिक स्तर पर अधिक संपर्क बनाये रखने की आवश्यकता है. शायद दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच बातचीत ज्यादा लाभदायक हो सकती है जिन्हें सीमा मुद्दे को हल करने का काम सौंपा गया है.

सवाल : क्या राजनीतिक निर्देश स्थानीय कमांडरों को प्रभावित करता है? विशेषज्ञों का मानना है कि इन घुसपैठों को समन्वित, पूर्व नियोजित और कम से कम चीनी पीएलए के पश्चिमी कमान थिएटर से निर्देशित किया गया था. तो क्या राजनीतिक संदेश देने से मदद मिलेगी?

जवाब : इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये स्थानीयकृत घटनाएं नहीं हैं. पांच मई के बाद से हमने देखा है कि अधिकांश घुसपैठ और सीमा पर हुई घटनाएं सिक्किम से लेकर पश्चिमी सीमा क्षेत्र तक बहुत व्यापक स्तर पर हुई हैं. स्पष्ट रूप से चीनी पदानुक्रम में बहुत उच्च स्तर पर निर्णय के बिना कई स्थानों पर कई घटनाएं हो सकती हैं.चीनी पक्ष पर फैसला होता है लेकिन जरूरी नहीं है कि चीनी पक्ष में सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन और शांति के उपाय की बहाली सुनिश्चित करने में कोई दिलचस्पी न हो. हमारी तरह ही चीनी पक्ष भी सीमावर्ती क्षेत्रों में सापेक्ष शांति सुनिश्चित करने के लिए निवेशित हैं और यह हमारे लिए एक कठिन स्थिति को पुनः पहले जैसा करने का समय है. चीन के साथ हमारे बहुत ही जटिल और पेचीदा संबंध हैं.

सवाल : वास्तविक नियंत्रण रेखा का स्पष्टीकरण और पुष्टि चीनियों को पसंद आएगी जो शायद भारतीय पर दबाव बनाकर लाभ उठाने के रूप में एक अस्थिर सीमा को पसंद करते हैं?

जवाब : मैं सहमत हूं कि चीनी पक्ष ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के संरेखण के बारे में अस्पष्टता बनाए रखने के लिए जान बूझकर ढिलाई बरती है, जो उनके लिए अनुकूल है. यही कारण है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आम समझ की ओर बढ़ने के लिए दो पक्षों के बीच एक औपचारिक समझ और लिखित समझौते के बावजूद उन्होंने पिछले 18 वर्षों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्पष्टीकरण की प्रक्रिया को गतिहीन बना दिया है, लेकिन यह संदेश चीनी पक्ष को फिर से पुन: प्रसारित करने की आवश्यकता है कि यदि आप भारत-चीन संबंधों को अपेक्षाकृत सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो सीमा क्षेत्रों में शांति बहाल करनी होगी. यह दोनों पक्षों के बीच एक महत्वपूर्ण समझ है कि भारत-चीन संबंध को रचनात्मक बनाये रखने के लिए एक शांतिपूर्ण सीमा की आवश्यकता है.

सवाल : क्या चीन युद्ध के पहले की स्थिति की बहाली के लिए सहमत होगा? पीएलए वेस्टर्न कमांड के प्रवक्ता ने एक बयान में दावा किया कि पूरी गलवान नदी पर उसकी सम्प्रभुता है. दूसरी ओर विदेश मंत्रालय का कहना है कि चीन एकतरफा रूप से यथास्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है.

जवाब : वास्तविक नियंत्रण रेखा संप्रभुता का मुद्दा नहीं है. यह एक स्थिति है. यह वास्तविक नियंत्रण रेखा है क्योंकि यह जमीन पर मौजूद है. इसलिए दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा में बदलाव नहीं करने के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि यह मौजूद है. हाल के सप्ताहों में चीनी जो कर रहे हैं, वह वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदलने का प्रयास है, सोमवार को जो हुआ, यदि आप विदेश मंत्रालय के बयान को देखते हैं, तो 6 जून को सीमा कमांडरों के बीच पहुंची सर्वसम्मति से गलवान नदी में यथास्थिति को बदलने के लिए चीनी कार्रवाई के परिणामस्वरूप दुष्परिणाम था. इसलिए यथास्थिति का सम्मान करते हुए, इसे बदलने की अनुमति नहीं देना एक बहुत महत्वपूर्ण आवश्यकता है. इसलिए मैं थोड़ा चिंतित हूं क्योंकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में वास्तविक नियंत्रण रेखा के हमारी तरफ बफर जोन होने की बात कही गयी है. हमें गश्त पर कोई प्रतिबंध नहीं स्वीकार करना चाहिए जो हम वास्तविक नियंत्रण रेखा पर करते रहे हैं. यह न केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हमारे पक्ष में जाने वाले चीनी कर्मियों के संदर्भ में यथास्थिति की बहाली होनी चाहिए, बल्कि हमारी तरफ से सीमावर्ती बुनियादी ढांचे के संरक्षण या विकास पर कोई प्रतिबंध भी नहीं होना चाहिए.

पूर्व राजदूत अशोक कांथा से बातचीत

सवाल : पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एसएस मेनन ने एक साक्षात्कार में कहा कि ये वार्ता मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक रूप से नहीं की जानी चाहिए, लेकिन चीन द्वारा एक चुप्पी को गैर-परक्राम्य चीजों के रूप में पढ़ा जा सकता है. अब सार्वजनिक संदेश क्या होना चाहिए? प्रधानमंत्री मोदी ने हत्याओं पर पिछले 24 घंटों में एक भी बयान नहीं दिया है, क्या यह चुप्पी अनुकूल है?

जवाब : मैं इस बात से सहमत हूं कि वार्ता संवेदनशील है और इसे मीडिया के माध्यम से संचालित नहीं किया जा सकता है. लेकिन अधिक पारदर्शिता की भी जरूरत है. हमारी इतर की बात को भी बाहर रखा जाना चाहिए.अतीत में एक कारिंदे के रूप में, मुझे पता है कि कुछ ऐसी सीमाएं हैं जिनके विषय में हम सार्वजनिक स्तर पर तथ्यों को साझा नहीं कर सकते हैं, लेकिन हमारी तरफ से बेहतर संवाद होना चाहिए. इसके अलावा, हमें रिसी हुई ख़बरों या अज्ञानता के आधार पर अटकलों को रोकना चाहिए जो परिहार्य हैं.

सवाल : प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी छह साल में 14 बार मिल चुके हैं, प्रधानमंत्री पांच बार चीन का दौरा भी कर चुके हैं. क्या यह उनकी चीन कूटनीति की विफलता है? शीर्ष नेतृत्व से एक सार्वजनिक संदेश कितना महत्वपूर्ण है?

जवाब : प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी के स्तर पर संपर्क बनाए रखना काफी उपयोगी साबित हुआ है. उच्चतम स्तर पर मेलजोल ने यह सुनिश्चित करने में योगदान दिया है कि भारत चीन उन रिश्तों में सुधार लाने की कोशिश कर रहें हैं जो स्वाभाविक रूप से पेचीदा, जटिल और कठिन हैं. हमने उतार-चढ़ाव देखे हैं. वर्तमान में हम एक गंभीर स्थिति देख रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि राजनीतिक जुड़ाव बेहद जरूरी है और हमें इसपर सवाल नहीं उठाना चाहिए.

(स्मिता शर्मा)

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