भारत की राष्ट्रीय राजधानी सांस लेने के लिए संघर्ष कर रही है. हर साल दिवाली के बाद ऐसी स्थिति एक सामान्य सी बात हो गई है. मगर इस साल वायु प्रदूषण के प्रभाव ज्यादा स्पष्ट हैं. अगस्त और सितंबर के दौरान मॉनसून के कारण शहर में हवा की गुणवत्ता बेहतर रही. एक तरफ दीवाली के पटाखों के धुएं ने पूरे उत्तर भारत को अपने घेरे में ले लिया, वहीं पड़ोसी राज्यों में जल रहे पराली के कारण दिल्ली घुट रही है. खतरनाक स्मॉग की स्थिति में केजरीवाल सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया है. 5 नवंबर तक सारे स्कूल और निर्माण कार्य बंद करा दिए गए हैं. 'ऑड-इवन' योजना को लागू करना स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है.
हालांकि मंत्री कह रहे हैं कि लगातार बारिश के कारण धान के ठूंठ को जलाने से धुआं कम होगा, वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का कहना कुछ और है. यदि एक्यूआई 400-500 के बीच है, तो स्थिति को खतरनाक माना जाता है. इस तथ्य को देखते हुए कि दिल्ली के कई हिस्सों में एक्यूआई 500 से अधिक हो गया है, उड़ानों को रद्द करना पड़ा. गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद और गाजियाबाद जैसे आसपास के इलाकों में लोग बिना मास्क के बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्य भी इस वायु प्रदूषण का खामियाजा भुगत रहे हैं.
उत्तर भारतीय किसान गेहूं को मवेशियों के चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं और अपने खेतों में धान की पराली को जलाते हैं. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 4 साल पहले पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था. पंजाब और हरियाणा सरकारों ने एनजीटी के दिशानिर्देशों को लागू करने का आश्वासन दिया. केंद्र सरकार ने इसके कार्यान्वयन के लिए 1,100 करोड़ रुपये आवंटित किए लेकिन स्थिति जस की तस रही. अगर एक टन पराली को जलाया जाता है, तो 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 1,400 किलोग्राम ग्रीनहाउस गैसें, 3 किलो सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो जाएगा.
हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश मिलकर हर साल लगभग 5 करोड़ टन पराली जलाते हैं. जहरीली गैसों का उत्सर्जन करने के अलावा, हजारों उपयोगी बैक्टीरिया की प्रजातियां मर रही हैं. भूमि की नमी कम हो रही है. पर्यावरण प्रदूषण निवारण और नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने हरियाणा, पंजाब और दिल्ली की सरकारों से कड़े कदम उठाने को कहा. विशेषज्ञ गन्ने और धान के विकल्प के रूप में बाजरा की खेती का सुझाव देते हैं.
वायु प्रदूषण का खतरा सिर्फ दिल्ली या कुछ शहरों तक सीमित नहीं है. समय के साथ, दो तिहाई भारतीय शहर प्रदूषण कक्ष बन गए हैं. भारत एक्यूआई के लिए 180 सर्वेक्षण किए गए देशों में अंतिम स्थान पर रहा. देशभर में औसतन 8 में से 1 मौत का कारण वायु प्रदूषण है.
औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ गंभीर कदम उठाने के बाद से चीन में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में कमी आ रही है. इस बीच, भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या में 23 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) बढ़ते प्रदूषण के कारण दिल और फेफड़ों की बीमारियों के बारे में चेतावनी देता रहा है.
शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि विषाक्त वातावरण नागरिकों के जीवनकाल को 7 साल तक कम कर देता है. कुरनूल और वारंगल जैसे अपेक्षाकृत छोटे शहरों में भी, हवा में निकल और आर्सेनिक अधिक मात्रा में पाए गये है. वायु प्रदूषण लगभग 66 करोड़ भारतीयों के जीवन को प्रभावित करता है.
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और बारबाडोस जैसे राष्ट्र अपने नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा करके एक मिसाल कायम कर रहे हैं. भारत को भी इमसे सबक सीखना चाहिए और तदनुसार पर्यावरण सम्बन्धी अधिनियम बनाने चाहिए. जब सरकार और नागरिक सामूहिक रूप से काम करेंगे तब ही जलवायु आपदाओं को रोका जा सकता है.