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अयोध्या मामले में सुनवाई के लिए नहीं दिया जाएगा अतिरिक्त समय : संवैधानिक पीठ

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई करते हुए आज संवैधानिक पीठ ने कहा है कि सुनवाई के लिए अतिरिक्त दिन आवंटित नहीं किया जा सकता है और इसे 18 अक्टूबर तक पूरा करना होगी सुनवाई. पढे़ं पूरी खबर...

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 26, 2019, 11:30 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 4:20 AM IST

नई दिल्ली : राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद प्रकरण में मुस्लिम पक्षकारों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 2003 की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति को लेकर सवाल उठाये जाने के बाद बृहस्पतिवार को पलटी मारी और इस मामले में उच्चतम न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए उससे माफी मांगी.

पीठ ने कहा कि भले ही हम 18 अक्टूबर तक बहस पूरी कर लें, लेकिन हमारे पास निर्णय लिखने और फैसला देने के लिए केवल 4 सप्ताह का समय ही होगा. CJI ने कहा कि अगर हम चार सप्ताह में फैसला सुनाते हैं तो यह चमत्कारी होगा.

मामले की जानकारी देते अधिवक्ता

इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने बेंच से पूछा कि क्या बेंच अतिरिक्त घंटे के लिए बैठ सकती है जिस पर अदालत ने कहा कि वे जब भी आवश्यकता होगी, अतिरिक्त समय तक सुनाई करेंगे और आज भी पीठ शाम 5 बजे तक अदालत अतिरिक्त घंटे के लिए बैठी रही.

एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद के पहले वहां विशाल ढांचा मौजूद था.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वे एएसआई की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति के मुद्दे पर सवाल नहीं करना चाहते हैं.

एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार वहां मिली कलाकृतियों, मूर्तियों, स्तंभ और दूसरे अवशेषों से यही संकत मिलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे विशेष ढांचा मौजूद था.

मुस्लिम पक्षकारों का यह कथन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि शीर्ष अदालत ने बुधवार को उनसे सवाल किया था कि इस समय एएसआई की रिपोर्ट के बारे में उनकी आपत्तियों पर कैसे विचार किया जा सकता है जबकि वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कानून के तहत उपलब्ध उपाय का सहारा लेने में विफल रहे.

इससे हो रहे नुकसान को कम करने के प्रयास में धवन ने इस बारे में बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा की दलीलों की वजह से काफी समय बर्बाद होने पर माफी मांगी.

धवन ने कहा कि यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर करना जरूरी हो. रिपोर्ट और इसका सारांश लिखने वाले व्यक्ति पर सवाल उठाने की आवश्यकता नहीं है. यदि हमने न्यायाधीशों का समय बर्बाद किया है तो हम इसके लिए माफी मांगते हैं.

उन्होंने कहा कि जिस रिपोर्ट की बात की जा रही है, उसका एक लेखक है और हम लेखन पर सवाल नहीं उठा रहे हैं.

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं.

संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू होते ही हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों से कहा कि वे दलीलें पूरी होने की समयसीमा बताएं. पीठ ने कहा कि उन्हें 18 अक्टूबर के बाद एक भी अतिरिक्त दिन नहीं दिया जाएगा.

न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, 18 अक्टूबर के बाद कोई अतिरिक्त दिन नहीं दिया जाएगा. यदि हम इस मामले में चार सप्ताह में फैसला सुना देते हैं तो यह अद्भुत होगा..

पढ़ें- अयोध्या विवाद: मुस्लिम पक्ष राम चबूतरे को जन्मस्थल बताने के अपने बयान से पलटा

मीनाक्षी अरोड़ा ने बुधवार को एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुये कहा था कि इसमें सत्यापन करने जैसा कोई निष्कर्ष नहीं है और यह अधिकतर अनुमानों पर ही आधारित है.

उन्होंने कहा था कि रिपोर्ट में 10 अध्याय हैं और उनका एक लेखक है जबकि सारांश का श्रेय किसी को नहीं दिया गया है.

पीठ ने कहा कि धवन ने अपनी शुरुआती टिप्पणी में ही कहा था कि उन्होंने रिपोर्ट पर सवाल करने का अपना अधिकार छोड़ा नहीं है लेकिन न्यायालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद सबूतों पर संदेह नहीं किया जा सकता.

पीठ ने कहा कि इसके तीन पहलू हैं-क्या न्यायालय द्वारा नियुक्त आयुक्त ऐसा कोई निर्णय कर सकते हैं जिसके लिये उनसे नहीं कहा गया था, क्या आयुक्त वह निर्णय करने में असफल रहे जो उनसे कहा गया था या क्या रिपोर्ट में कोई विरोधाभास है.

पीठ ने कहा, 'हमारी राय में इन पहलुओं पर निश्चित ही बहस की जा सकती है.हमें इसमें कोई दिक्कत नजर नहीं आती लेकिन रिपोर्ट, जिसे न्यायालय ने साक्ष्य के रूप में लिया है, उसे इस समय दरकिनार नहीं किया जा सकता.'

धवन ने कानूनी स्थिति पर बहस करते हुये कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय में भी इस रिपोर्ट पर आपत्ति उठाने का प्रयास किया था लेकिन न्यायाधीशों ने कहा कि अंतिम चरण में इस पर निर्णय किया जायेगा, जो दुर्भाग्यवश नहीं किया गया.

उन्होंने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता के नियम 10 के उपनियम दो के आदेश 26 के तहत आयुक्त की रिपोर्ट और उनके द्वारा एकत्र साक्ष्य रिकार्ड का हिस्सा हैं और अगर संविधान पीठ यह निर्णय करती है कि रिपोर्ट पर सवाल नहीं उठाये जा सकते तो इसका व्यापक असर होगा.

संविधान पीठ इस प्रकरण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है.

उच्च न्यायालय ने अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था.

नई दिल्ली : राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद प्रकरण में मुस्लिम पक्षकारों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 2003 की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति को लेकर सवाल उठाये जाने के बाद बृहस्पतिवार को पलटी मारी और इस मामले में उच्चतम न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए उससे माफी मांगी.

पीठ ने कहा कि भले ही हम 18 अक्टूबर तक बहस पूरी कर लें, लेकिन हमारे पास निर्णय लिखने और फैसला देने के लिए केवल 4 सप्ताह का समय ही होगा. CJI ने कहा कि अगर हम चार सप्ताह में फैसला सुनाते हैं तो यह चमत्कारी होगा.

मामले की जानकारी देते अधिवक्ता

इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने बेंच से पूछा कि क्या बेंच अतिरिक्त घंटे के लिए बैठ सकती है जिस पर अदालत ने कहा कि वे जब भी आवश्यकता होगी, अतिरिक्त समय तक सुनाई करेंगे और आज भी पीठ शाम 5 बजे तक अदालत अतिरिक्त घंटे के लिए बैठी रही.

एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद के पहले वहां विशाल ढांचा मौजूद था.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वे एएसआई की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति के मुद्दे पर सवाल नहीं करना चाहते हैं.

एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार वहां मिली कलाकृतियों, मूर्तियों, स्तंभ और दूसरे अवशेषों से यही संकत मिलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे विशेष ढांचा मौजूद था.

मुस्लिम पक्षकारों का यह कथन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि शीर्ष अदालत ने बुधवार को उनसे सवाल किया था कि इस समय एएसआई की रिपोर्ट के बारे में उनकी आपत्तियों पर कैसे विचार किया जा सकता है जबकि वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कानून के तहत उपलब्ध उपाय का सहारा लेने में विफल रहे.

इससे हो रहे नुकसान को कम करने के प्रयास में धवन ने इस बारे में बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा की दलीलों की वजह से काफी समय बर्बाद होने पर माफी मांगी.

धवन ने कहा कि यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर करना जरूरी हो. रिपोर्ट और इसका सारांश लिखने वाले व्यक्ति पर सवाल उठाने की आवश्यकता नहीं है. यदि हमने न्यायाधीशों का समय बर्बाद किया है तो हम इसके लिए माफी मांगते हैं.

उन्होंने कहा कि जिस रिपोर्ट की बात की जा रही है, उसका एक लेखक है और हम लेखन पर सवाल नहीं उठा रहे हैं.

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं.

संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू होते ही हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों से कहा कि वे दलीलें पूरी होने की समयसीमा बताएं. पीठ ने कहा कि उन्हें 18 अक्टूबर के बाद एक भी अतिरिक्त दिन नहीं दिया जाएगा.

न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, 18 अक्टूबर के बाद कोई अतिरिक्त दिन नहीं दिया जाएगा. यदि हम इस मामले में चार सप्ताह में फैसला सुना देते हैं तो यह अद्भुत होगा..

पढ़ें- अयोध्या विवाद: मुस्लिम पक्ष राम चबूतरे को जन्मस्थल बताने के अपने बयान से पलटा

मीनाक्षी अरोड़ा ने बुधवार को एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुये कहा था कि इसमें सत्यापन करने जैसा कोई निष्कर्ष नहीं है और यह अधिकतर अनुमानों पर ही आधारित है.

उन्होंने कहा था कि रिपोर्ट में 10 अध्याय हैं और उनका एक लेखक है जबकि सारांश का श्रेय किसी को नहीं दिया गया है.

पीठ ने कहा कि धवन ने अपनी शुरुआती टिप्पणी में ही कहा था कि उन्होंने रिपोर्ट पर सवाल करने का अपना अधिकार छोड़ा नहीं है लेकिन न्यायालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद सबूतों पर संदेह नहीं किया जा सकता.

पीठ ने कहा कि इसके तीन पहलू हैं-क्या न्यायालय द्वारा नियुक्त आयुक्त ऐसा कोई निर्णय कर सकते हैं जिसके लिये उनसे नहीं कहा गया था, क्या आयुक्त वह निर्णय करने में असफल रहे जो उनसे कहा गया था या क्या रिपोर्ट में कोई विरोधाभास है.

पीठ ने कहा, 'हमारी राय में इन पहलुओं पर निश्चित ही बहस की जा सकती है.हमें इसमें कोई दिक्कत नजर नहीं आती लेकिन रिपोर्ट, जिसे न्यायालय ने साक्ष्य के रूप में लिया है, उसे इस समय दरकिनार नहीं किया जा सकता.'

धवन ने कानूनी स्थिति पर बहस करते हुये कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय में भी इस रिपोर्ट पर आपत्ति उठाने का प्रयास किया था लेकिन न्यायाधीशों ने कहा कि अंतिम चरण में इस पर निर्णय किया जायेगा, जो दुर्भाग्यवश नहीं किया गया.

उन्होंने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता के नियम 10 के उपनियम दो के आदेश 26 के तहत आयुक्त की रिपोर्ट और उनके द्वारा एकत्र साक्ष्य रिकार्ड का हिस्सा हैं और अगर संविधान पीठ यह निर्णय करती है कि रिपोर्ट पर सवाल नहीं उठाये जा सकते तो इसका व्यापक असर होगा.

संविधान पीठ इस प्रकरण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है.

उच्च न्यायालय ने अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था.

Intro:The constitution bench hearing the Ramjanmabhumi- Babri masjid case said today that an extra day can not be allotted for the hearing and it has to get completed by 18th october keeping in mind that the CJI Ranjan Gogoi is retiring on 17th November.


Body:"Even if we complete the arguments by October 18, we will have only 4 weeks to write and deliver the judgement. It will be miraculous if we deliver the judgement in four weeks," said CJI. Gogoi asked if 2 days were enough for senior advocate Rajeev Dhawan appearing for Sunni waqf board to complete his arguments, to which Dhawan replied that it will be possibly less. Muslim parties also asked if the bench could sit for an extra hour to which the court said they will whenever it will be required. Today the court sat for an extra hour till 5pm.

Today was the 32nd day of Ayodhya hearing where Rajeev Dhawan and Meenakshi Arora submitted their arguments.

Dhawan said that the court could examine the contradiction of the ASI report and check weather the objections to it were filed or not.Meenakshi Arora had raised objection towards the ASI report yesterday. Arora today contended saying that if one inference was possible then other too was possible. She said that ASI had amitted to facing problems in identifying the layers stratigraphically. She said that there was a possibility that idgah was present underneath the mosque. Justice Bhushan questioned her over this as yesterday she said that mosque was built on an open land to which Arora replied that she was only referring to the findings of the ASI report.

She asserted that the wall was found later and it could have been a part of idgah since it faced west like it is in other idgahs. It could not be concluded that it was a temple's wall. She cited the report saying that pillars had to be aligned but were on different levels which could mean that they were constructed in different periods.To this Justice Bhushan said modern engineering norms could not be applied to a construction which was 1000 years ago.

Submitting further Arora said that lime surkhi was found in the excavated materials which is used exclusively in islamic structures and was impossible to find in a temple. Justice Bobde asked if it was barred in other religions and CJI asked for evidence to prove it.

Arora further said that she did not accept ASI's finding that a circular shrine was of Shiva Linga to which Bobde said that ASI can not always be considered a an authority. Arora said,"If thats so, then I rest my case."


Conclusion:
Last Updated : Oct 2, 2019, 4:20 AM IST
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