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नो टू प्लास्टिक : ओडिशा की इन महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा यह अभियान - एकल उपयोग प्लास्टिक पर बैन

सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने हेतु पूरे देश में अभियान चल रहा है. ईटीवी भारत भी इस मुहिम का एक अहम हिस्सा बना है. इसकी थीम 'नो प्लास्टिक, लाइफ फैंटास्टिक' रखी गई है. देखें इस मुहिम की दूसरी कड़ी पर विशेष रिपोर्ट...

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साल के पत्तों से प्लेट बनातीं महिलाएं
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Published : Dec 13, 2019, 11:40 AM IST

Updated : Dec 13, 2019, 12:45 PM IST

संबलपुर: सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन हेतु देश भर में अलग-अलग मुहिम के माध्यम से जानकारी दी जा रही है. ओडिशा भी इसमें पीछे नहीं है. यहां के संबलपुर जिले की एक संस्था (महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह) के लिए तो यह किसी वरदान से कम नहीं है. इसमें काम करने वाली महिलाओं द्वारा लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए साल के पत्तों से बनी प्लेटें बनाई जा रही हैं. प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता की इस मुहिम को प्रशासन द्वारा संरक्षण भी मिल रहा है.

प्रशासन द्वारा मिल रहा संरक्षण
जिला प्रशासन पारंपरिक विधि के बजाय प्लेटों को उन्नत तरीके से बनाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और मशीनरी प्रदान कर रहा है.
महिलाओं का यह प्रयास न केवल प्लास्टिक के उपयोग के खिलाफ जागरूकता फैला रहा है, बल्कि इन महिलाओं को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भी बना रहा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

निशुल्क उपलब्ध कराई जा रही पत्तियां
इस क्षेत्र के घने जंगलों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने वाले साल के पत्ते इन महिलाओं को मुफ्त में उपलब्ध कराए जा रहे हैं. महिलाएं सुबह जंगल में जाती हैं और साल की पत्तियों को इकट्ठा करने के बाद, वन कार्यालय के प्रशिक्षण केंद्र में पत्तियों से पारंपरिक प्लेट और कटोरे तैयार करती हैं.

कैसे बनाई जाती हैं प्लेटें
हाथ से बनाई गई प्लेटों को धूप में सुखाया जाता है और सिलाई मशीनों में सिला जाता है. इन सिले हुए पत्तों की प्लेटों को एक मशीन में रखा जाता है और आकार दिया जाता है. यह प्लेटें पारंपरिक प्लेटों और कटोरे की तुलना में उच्च बाजार मूल्य प्राप्त करती हैं.

मशीनों की मदद से बढ़ा उत्पादन
पहले, एक महिला प्रति दिन 100 प्लेट तैयार करती थीं, लेकिन मशीनों की उपलब्धता के बाद उत्पादन प्रति दिन 500 प्लेट तक बढ़ गया है. इसी तरह, एक प्लेट की लागत 70 पैसे थी, जो अब 3.50 रुपये के बराबर है.

पहल को तेज करने में प्रयासरत प्रशासन
संबलपुर जिला प्रशासन, वन विभाग, ओडिशा ग्रामीण विकास, विपणन सोसाइटी (ओआरएमएएस) और ओडिशा आजीविका मिशन (ओएलएम) के संयुक्त प्रयासों से इस पहल को तेज किया जा रहा है. हालांकि, इस कार्यक्रम की शुरुआत संबलपुर वन प्रभाग के तहत ओडिशा वन खंड विकास द्वारा की गई थी.

अब तक, वन विभाग ने 10 सिलाई मशीनें और चार प्रेसिंग मशीनें प्रदान की हैं. जिला प्रशासन के अनुसार, क्षेत्र में एक स्थायी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध किए जाएंगे.

परियोजना निदेशक ने दी जानकारी
जिला ग्रामीण विकास एजेंसी के परियोजना निदेशक सुकांत त्रिपाठी ने कहा कि स्थानीय औद्योगिक प्रतिष्ठानों को सीआरएस फंड से मुफ्त में एसएचजी को मशीनरी की आपूर्ति करने की व्यवस्था की जाएगी.

त्रिपाठी ने कहा, वर्तमान में, साल से बनी यह प्लेटें गोवा भेजी जा रही हैं. आने वाले दिनों में इन उत्पादों को रायपुर, भोपाल और कोलकाता भेजा जाएगा. साथ ही इन्हें स्थानीय बाजार में भी उपलब्ध कराया जाएगा.

संबलपुर: सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन हेतु देश भर में अलग-अलग मुहिम के माध्यम से जानकारी दी जा रही है. ओडिशा भी इसमें पीछे नहीं है. यहां के संबलपुर जिले की एक संस्था (महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह) के लिए तो यह किसी वरदान से कम नहीं है. इसमें काम करने वाली महिलाओं द्वारा लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए साल के पत्तों से बनी प्लेटें बनाई जा रही हैं. प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता की इस मुहिम को प्रशासन द्वारा संरक्षण भी मिल रहा है.

प्रशासन द्वारा मिल रहा संरक्षण
जिला प्रशासन पारंपरिक विधि के बजाय प्लेटों को उन्नत तरीके से बनाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और मशीनरी प्रदान कर रहा है.
महिलाओं का यह प्रयास न केवल प्लास्टिक के उपयोग के खिलाफ जागरूकता फैला रहा है, बल्कि इन महिलाओं को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भी बना रहा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

निशुल्क उपलब्ध कराई जा रही पत्तियां
इस क्षेत्र के घने जंगलों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने वाले साल के पत्ते इन महिलाओं को मुफ्त में उपलब्ध कराए जा रहे हैं. महिलाएं सुबह जंगल में जाती हैं और साल की पत्तियों को इकट्ठा करने के बाद, वन कार्यालय के प्रशिक्षण केंद्र में पत्तियों से पारंपरिक प्लेट और कटोरे तैयार करती हैं.

कैसे बनाई जाती हैं प्लेटें
हाथ से बनाई गई प्लेटों को धूप में सुखाया जाता है और सिलाई मशीनों में सिला जाता है. इन सिले हुए पत्तों की प्लेटों को एक मशीन में रखा जाता है और आकार दिया जाता है. यह प्लेटें पारंपरिक प्लेटों और कटोरे की तुलना में उच्च बाजार मूल्य प्राप्त करती हैं.

मशीनों की मदद से बढ़ा उत्पादन
पहले, एक महिला प्रति दिन 100 प्लेट तैयार करती थीं, लेकिन मशीनों की उपलब्धता के बाद उत्पादन प्रति दिन 500 प्लेट तक बढ़ गया है. इसी तरह, एक प्लेट की लागत 70 पैसे थी, जो अब 3.50 रुपये के बराबर है.

पहल को तेज करने में प्रयासरत प्रशासन
संबलपुर जिला प्रशासन, वन विभाग, ओडिशा ग्रामीण विकास, विपणन सोसाइटी (ओआरएमएएस) और ओडिशा आजीविका मिशन (ओएलएम) के संयुक्त प्रयासों से इस पहल को तेज किया जा रहा है. हालांकि, इस कार्यक्रम की शुरुआत संबलपुर वन प्रभाग के तहत ओडिशा वन खंड विकास द्वारा की गई थी.

अब तक, वन विभाग ने 10 सिलाई मशीनें और चार प्रेसिंग मशीनें प्रदान की हैं. जिला प्रशासन के अनुसार, क्षेत्र में एक स्थायी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध किए जाएंगे.

परियोजना निदेशक ने दी जानकारी
जिला ग्रामीण विकास एजेंसी के परियोजना निदेशक सुकांत त्रिपाठी ने कहा कि स्थानीय औद्योगिक प्रतिष्ठानों को सीआरएस फंड से मुफ्त में एसएचजी को मशीनरी की आपूर्ति करने की व्यवस्था की जाएगी.

त्रिपाठी ने कहा, वर्तमान में, साल से बनी यह प्लेटें गोवा भेजी जा रही हैं. आने वाले दिनों में इन उत्पादों को रायपुर, भोपाल और कोलकाता भेजा जाएगा. साथ ही इन्हें स्थानीय बाजार में भी उपलब्ध कराया जाएगा.

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SUBSTITUTE OF PLASTIC PLATE VISUALS


Conclusion:
Last Updated : Dec 13, 2019, 12:45 PM IST
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