आज की प्रेरणा: द्रव्यों से संपन्न होने वाले यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है - हनुमान भजन
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मनुष्य को तत्वदर्शी ज्ञानी गुरु के पास जाकर, उनको साष्टांग दंडवत प्रणाम, उनकी सेवा और सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष तत्त्व ज्ञान का उपदेश देंगे. द्रव्यों से संपन्न होने वाले यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है. अंततोगत्वा सारे कर्मयज्ञों का अवसान दिव्य ज्ञान में होता है, अर्थात ज्ञान उनकी पराकाष्ठा है. तत्वदर्शी गुरु से वास्तविक ज्ञान प्राप्त होने के बाद तुम पुनः कभी ऐसे मोह को प्राप्त नहीं होंगे क्योंकि इस ज्ञान के द्वारा तुम देख सकोगे कि सभी जीव परमात्मा के अंश स्वरूप हैं. यदि मनुष्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला हो, तो भी दिव्य ज्ञानरूपी नाव में स्थित होकर दुख-सागर को पार करने में समर्थ होगा. जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधन को भस्म कर देती है, उसी तरह ज्ञान रूपी अग्नि भौतिक कर्मों के समस्त फलों को जला डालती है. श्रद्धावान, तत्पर और जितेंद्रीय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है. ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शांति को प्राप्त होता है. विवेकहीन और श्रद्धा रहित संशयात्मा मनुष्य का पतन हो जाता है. ऐसे संशयात्मा मनुष्य के लिए न यह लोक है, न परलोक है और न ही सुख है. जिसने योग द्वारा कर्मों का संन्यास किया है, ज्ञान द्वारा जिसके संशय नष्ट हो गए हैं, ऐसे आत्मवान पुरुष को कर्म नहीं बांधते हैं. हृदय में अज्ञान के कारण जो संशय उठे हैं, उन्हें ज्ञानरूपी शस्त्र से काट डालो. योग का आश्रय लेकर खड़े हो जाओ और अपना कर्म करो. जो पुरुष न तो कर्म फलों से घृणा करता है और न कर्मफल की इच्छा करता है, वह नित्य संन्यासी जाना जाता है. मुक्ति के लिए तो कर्म का परित्याग तथा भक्तिमय-कर्म दोनों ही उत्तम हैं, किंतु इन दोनों में से कर्म के परित्याग से भक्तियुक्त कर्म श्रेष्ठ है.
Last Updated : Feb 3, 2023, 8:23 PM IST