उदयपुर. अगर इरादे बुलंद हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं होता. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उदयपुर के गोविंद ने. गोविंद के बारे में जान आप दांतों तले उंगलियां काट लेंगे. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि गोविंद ने विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए न सिर्फ एक नई लकीर खींची, बल्कि लोगों के लिए आज वो एक बेमिसाल नजीर बन गया है. आज विश्व साइकिल दिवस है. साइकिल दिवस के मौके पर हम आपको उस गोविंदा की कहानी से रूबरू करवा रहे हैं, जिसके बुलंद इरादों और इच्छा शक्ति ने उसे कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचा दिया.
झीलों की नगरी उदयपुर के रहने वाले दिव्यांग साइकिलिस्ट गोविंद खारोल जिन्होंने ने बचपन से ही चुनौतियों का सामना किया. गोविंद का बचपन से ही एक हाथ नहीं था. जबकि दूसरे हाथ में सिर्फ दो उंगलियां हैं, लेकिन उस पर साइकिल चलाने का ऐसा जुनून सवार हुआ कि अब तक वो हजारों किलोमीटर सड़कें, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ माप चुका है. यहां तक कि उदयपुर से बेंगलुरु और लेह लद्दाख तक साइकिलिंग कर जा चुका है. इसके इतर गोविंद को फोटोग्राफी में भी महारत हासिल है.
बचपन से ही साइकिल का जुनून : गोविंद ने बताया कि जन्म से ही उनका एक हाथ नहीं है. जबकि दूसरे हाथ में सिर्फ दो उंगलियां काम करती है, लेकिन बचपन के दौरान जब आस पड़ोस के बच्चे और अन्य लोग साइकिल चलाते थे तो उनका भी मन साइकिल चलाने का करता था. उन्होंने बताया कि जब वो 5 साल के थे, तब उन्होंने पहली बार साइकिल चलाने की कोशिश की. वो कई बार गिरे और उन्हें चोट भी आई. ऐसे में घरवालों ने उन्हें साइकिल चलाने से मना कर दिया. बावजूद इसके वो नहीं माने और गिरते पड़ते आखिर साइकिल चलाना सीख गए. वहीं, आगे चलकर गोविंद ने तय किया कि वो जिंदगी में आगे का रास्ता साइकिल से ही तय करेंगे.
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गोविंद कहते हैं कि एक-दो बार गोविंद ने साइकिल भी उठाई, लेकिन इस दौरान कुछ लोगों ने उन्हें रोक दिया. ऐसे में गोविंद ने अपनी इस कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाते हुए बचपन से ही साइकिल में महारत हासिल करने का सपना सजा लिया. यह लक्ष्य इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि हाथ नहीं होने के कारण बार-बार गिर जाते थे. खैर, आज गोविंद हजारों किलोमीटर सड़कों पर साइकिल दौड़ा चुके हैं.
साइकिल से किया अब तक हजारों किलोमीटर का सफर : ईटीवी भारत से बातचीत में गोविंद ने बताया कि अब उन्हें साइकिल चलाने में महारत हासिल हो चुकी है. साथ ही वो एक दिन में 220 किलोमीटर से अधिक साइकिल चला लेते हैं. उन्होंने बताया कि झीलों की नगरी उदयपुर से बेंगलुरु तक का सफर उन्होंने साइकिल से तय किया था. उन्होंने बताया कि 2017 में बेंगलुरु में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जहां वो साइकिल चलाकर गए थे. इस दौरान उन्होंने 18 दिन में 1700 किलोमीटर का सफर अपनी साइकिल से तय किया था. इस सफर में स्थानीय लोगों का भी काफी सहयोग और समर्थन मिला.
साइकिल को अपने अनुसार ढाला : गोविंद ने अपनी साइकिल में भी कई तरह के बदलाव किए हैं. एक हाथ नहीं होने के कारण गोविंद ने साइकिल में दो अलग ब्रेक लगवाए हैं. एक ब्रेक साइकिल के आगे के टायर के नीचे है. जबकि दूसरा ब्रेक गोविंद ने अपने पैर के निचले हिस्से में लगवाया. जिससे साइकिल चलाने और ब्रेक लगाने में उन्हें आसानी होती है, लेकिन अब गोविंद ने लोगों की मदद से एक नई साइकिल बनवा है, जो अगले महीने तक बनकर तैयार हो जाएगी.
इन कठिन रास्तों पर दौड़ाई साइकिल : गोविंद ने बताया कि अब उनके साथ बड़ी संख्या में दोस्त भी जुड़ गए हैं. उन्होंने बताया कि मनाली से खारदुंगला दरा ट्रिप साइकिलिंग के लिए दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है. यहां बड़े-बड़े साइकिलिस्ट साइकिल चलाते हुए दिखाई देते हैं. गोविंद ने भी अपने मन में इसी जगह साइकिल चलाने का सपना संजोया और निकल गए अपनी मंजिल की ओर. साथ ही 18500 फीट पर मनाली से खारदुंगला दरे (लेह) के 550 किलोमीटर के दुर्गम और कठिन रास्तों पर साइकिल चलाया. उन्हें इस सफर को तय करने में 10 दिन का समय लगा था.
5 लोगों संग मिलकर बनाया बिंदास ग्रुप और आज हजारों जुड़ गए : गोविंद ने बताया कि साइकिल को प्रमोट करने के लिए उन्होंने बिंदास साइकिलिस्ट ग्रुप बनाया. ग्रुप में शुरुआत में गोविंदा के साथ उनके 5 से 7 दोस्त थे, लेकिन धीरे-धीरे यह ग्रुप बढ़ता गया. आज इसमें 1000 से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं. वहीं, ग्रुप के सदस्य रविवार और वीकेंड को उदयपुर की फतेहसागर के चारों ओर साइकलिंग करते हैं. साइकिलिंग के साथ पर्यावरण संरक्षण व अन्य अभियान भी चलाते हैं. गोविंद खारोल ने बताया कि हर रविवार को को वो अपने साथियों के साथ साइकिलिंग करने जाते हैं. साइकिलिंग से लोगों को फिट रहने और शहर को पॉल्यूशन फ्री रखने का संदेश देते हैं.
फोटोग्राफी में भी गोविंद को महारत : गोविंद को साइकिल के अलावा फोटोग्राफी में भी महारत हासिल है. भले एक हाथ न हो, बावजूद इसके वो ऐसी तस्वीर खींचते हैं, जिसे देख आप भी दंग रह जाएंगे. यही वजह है कि आज गोविंद से लोग फोटो क्लिक करवाना पसंद करते हैं. गोविंद ने बताया कि शुरुआत में फोटोग्राफी में भी उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा. जैसे कैमरा पकड़े में दिक्कत होती थी, लेकिन इसे भी उन्होंने एक चुनौती के रूप में लिया और वीकेंड पर फतहसागर सहित कई पहाड़ी इलाकों में जाकर फोटाग्राफी करने लगे. आखिरकार इसमें भी उन्हें कामयाबी हासिल हुई.