उदयपुर. झीलों की नगरी के लोक कला मंडल में एक ऐसी कला देखने को मिल रही है जो अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है. 200 साल पुरानी जल तरंग की कला को उदयपुर के रोशन लाल भाट संवारने में जुटे हैं. जितना पुराना इस कला का इतिहास है, उतना ही इसका अपना महत्व और सम्मान है. अब राजस्थान में इस कला के दो-तीन कलाकार ही बचे हैं. रोशन लाल उनमें से एक हैं जो इस वाद्य को आज भी बजा रहे हैं. इस कला को देखने और सुनने वाले तारीफ करते हुए नजर आते हैं.
200 साल पुरानी कला से मुंह फेर रहे कलाकार : भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर में पिछले 20 साल से रोशन लाल भाट जल तरंग बजा रहे हैं. वे नवरंग नाम की फिल्म में जल तरंग का संगीत दे चुके हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि यह कला उन्होंने लोक कला मंडल में काम करते हुए सीखी है. उदयपुर में इस कला से जुड़े हुए वर्तमान में वे इकलौते कलाकार हैं.
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उन्होंने बताया कि राजस्थान में अब इस कला के दो-तीन कलाकार ही बचे हुए हैं. अब यह कला धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. रोशन लाल भाट ने आगे बताया कि इस कला को संवारने के लिए मौके और उचित मंच नहीं मिलने से कलाकारों ने इस कला से मुंह फेर लिया है. यह कला आजादी के पहले के समय की है. प्राचीन समय में राजा, महाराजा और रियासतों में चीनी मिट्टी के बर्तनों के माध्यम से सुर निकालकर कला को दिखाई जाती थी.
कैसे बजाया जाता है जल तरंग : रोशन लाल भाट ने बताया कि जल तरंग में चीनी मिट्टी के कटोरे में पानी भरकर उन्हें बजाया जाता है. इसे बजाने के लिए पानी का लेवल एक जैसा रखा जाता है. इसमें दो लकड़ी की छड़ी को कटोरे पर मारा जाता है, जिससे पानी से तरंग पैदा होती है. इसलिए इसे जल तरंग कहा जाता है. उन्होंने बताया कि इसको बजाना काफी मुश्किल होता है. बजाने के लिए चीनी मिट्टी के करीब 18 से 20 छोटे-बड़े कटोरे का उपयोग किया जाता है. सुरों के लिए कटोरों में पानी सुर के हिसाब से भरा जाता है.
जल तरंग से संगीत की धुन : भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर में आने वाले देश-दुनिया से देशी विदेशी सैलानी भी जल तरंग की धुन को सुनकर गदगद नजर आते हैं. क्योंकि यह सुनने में काफी अच्छा लगने के साथ, इससे निकलने वाले सुर मनमोहित कर लेते हैं. रोशन लाल कहते हैं कि इस कला को बढ़ावा देने के लिए सरकारों को भी कलाकारों की आर्थिक स्थिति को और अधिक मजबूत करनी चाहिए. वहीं, इस कला को प्रदर्शित करने के लिए समय-समय पर विशेष मंच और स्थान मिलना चाहिए.