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government school in one room: एक स्कूल ऐसा भी! जहां एक ही कमरे में पढ़ते हैं 105 बच्चे - राजस्थान लेटेस्ट न्यूज

प्रदेश सरकार ने बजट 2023 में बेहतर शैक्षिक वातावरण डिवेलप करने की अपनी तैयारी की बात सदन में कही. रिनोवेशन पर 200 करोड़ रुपए तक खर्च करने का ऐलान किया. 2022 में कुछ ऐसा ही कहा था. लेकिन क्या धरातल पर ऐसा कुछ होता दिख रहा है! उदयपुर से एक खास रिपोर्ट.

Tall Claim Exposed
स्कूल के नाम पर कमरा एक.
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Published : Feb 24, 2023, 7:56 PM IST

स्कूल के नाम पर कमरा एक, बच्चे कई ग्रामीण सरकारी दावों से बेहद नाराज

उदयपुर. किसी शायर ने कहा है,तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है. मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी हैं. झूठे आंकड़ों की कहानी बयां करता है उदयपुर के ग्रामीण अंचल में बसा राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय. सरकारी स्कूल के बच्चे आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. एक और गहलोत सरकार महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने को लेकर बजट में लगातार घोषणाएं कर रही हैं तो वहीं दक्षिणी राजस्थान में बसे हाईला कुडी गांव के सरकारी स्कूल की बदहाल तस्वीर सरकारी दावों को धत्ता बताती है.

एक कमरे में 1 से 5वीं तक के बच्चे साथ साथ...
आदिवासी इलाके में बसे गिर्वा पंचायत समिति स्थित सरू ग्राम पंचायत के हाईला कुडी राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में स्कूल के नाम पर एक ही कमरा है. 35 साल हो चुके हैं लेकिन साढ़े तीन दशक बाद भी जहां से शुरू किया था वहीं पर ठिठके खड़े हैं. यानी तस्वीर जस की तस. पहली से पांचवीं क्लास के बच्चे एक ही कमरे में बैठने को मजबूर है. वो भी तब जब वर्तमान सरकार बड़े-बड़े दावे करती है. महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने को उपलब्धियों के तौर पर पेश कर रही है. इन सबके बीच गांव के बदहाल स्कूल की तस्वीर सरकार के प्रचार तंत्र पर प्रहार करती है, कई सवाल खड़े करती है.

1992 से अब तक...
ग्रामीणों ने बताया कि 1992 में राज्य सरकार से स्कूल के लिए मांग उठाई गई. उद्देश्य सिर्फ एक ही था कि सुदूर आदिवासी इलाकों में बच्चों को पढ़ने के लिए बड़ी लड़ाई न लड़नी पड़े. दूर न जाना पड़े. इसे देखते हुए राज्य सरकार ने इलाके में प्राथमिक विद्यालय की स्वीकृति दे दी. उस समय बच्चों की संख्या भी बहुत कम थी. इसके बाद धीरे-धीरे संख्या में वृद्धि होती गई. फिर वित्तिय वर्ष 1993-94 में यहां एक कमरा और छह बाय पांच फीट का छोटा सा ऑफिस बनवाया गया. इतना ही नहीं बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए राज्य सरकार ने सितंबर 2021 में इसे क्रमोन्नत कर प्राथमिक से उच्च प्राथमिक कर दिया.

नाम बड़े पर दर्शन छोटे...
उच्च प्राथमिक विद्यालय तो अस्तित्व में आ गया. लोंगो की उम्मीदें भी परवान चढ़ीं. लगा अब कुछ बेहतर होगा. लेकिन वो भी सब्जबाग निकला. फिलहाल विद्यालय में सातवीं तक की कक्षाएं चल रही है.आठवीं का बैच इस साल आएगा स्कूल में 57 बालक और 48 बालिकाओं सहित कुल 105 बच्चें पढ़ रहे हैं. जिनमें 69 तो पहली से पांचवी तक हैं, वहीं छठीं- सातवी में 18- 18 बच्चे हैं.

पढ़ें-Tribal Youth Exchange Program: मुख्यधारा से जोड़ने के लिए CRPF की अनुपम कोशिश, रंगारंग कार्यक्रम के जरिए आदिवासी युवाओं को किया प्रोत्साहित

कमरा एक बच्चे ढेर सारे...
यहां बच्चों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. हालात ये है कि मिड डे मील भी बच्चे खुले आसमान तले खाने को मजबूर हैं. एक ही कमरा होने से बारिश और गर्मी के समय बच्चों के लिए बैठना किसी चुनौती से कम नहीं. मतलब ये कमरा क्लास रूम भी है और स्टोर रूम भी. इसी कमरे में मिड डे मिल का भी स्टोर है,जिसमें गेहूं के कट्टे, आटा, तेल, दाल ,जलाने के लिए लकड़ियां, पकाने के बर्तन सहित जरूरत का सामान भरा हुआ है. इसके कारण अधिकांश क्लासों के बच्चों को बाहर बैठकर पढ़ना पढ़ रहा है.

शिक्षक ने सुनाया बच्चों का दर्द...
स्कूल के एक शिक्षक ने बच्चों पर क्या गुजर रही है.इसकी दर्द भरी दास्तान सुनाई. उन्होंने कहा कि स्कूल में सिर्फ एक कमरा होने के कारण बच्चों को खुले मैदान में बैठना पड़ रहा है. स्कूल में 4 अध्यापक हैं, बच्चों के बैठने के लिए भी सही व्यवस्था नहीं है. बच्चों को मैदान में त्रिपाल सेट कर बिठाया जाता है. ग्रामीणों का कहना है, कि समस्याओं को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अवगत कराया जा चुका है लेकिन अपेक्षा के मुताबिक फल नहीं मिला. इतना जरूर है कि चुनाव के दौरान स्कूल की अहमियत बढ़ जाती है! वो ऐसे कि चुनाव के दौरान स्कूल को पोलिंग बूथ के तौर पर काम में लिया जाता है.

स्कूल के नाम पर कमरा एक, बच्चे कई ग्रामीण सरकारी दावों से बेहद नाराज

उदयपुर. किसी शायर ने कहा है,तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है. मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी हैं. झूठे आंकड़ों की कहानी बयां करता है उदयपुर के ग्रामीण अंचल में बसा राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय. सरकारी स्कूल के बच्चे आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. एक और गहलोत सरकार महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने को लेकर बजट में लगातार घोषणाएं कर रही हैं तो वहीं दक्षिणी राजस्थान में बसे हाईला कुडी गांव के सरकारी स्कूल की बदहाल तस्वीर सरकारी दावों को धत्ता बताती है.

एक कमरे में 1 से 5वीं तक के बच्चे साथ साथ...
आदिवासी इलाके में बसे गिर्वा पंचायत समिति स्थित सरू ग्राम पंचायत के हाईला कुडी राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में स्कूल के नाम पर एक ही कमरा है. 35 साल हो चुके हैं लेकिन साढ़े तीन दशक बाद भी जहां से शुरू किया था वहीं पर ठिठके खड़े हैं. यानी तस्वीर जस की तस. पहली से पांचवीं क्लास के बच्चे एक ही कमरे में बैठने को मजबूर है. वो भी तब जब वर्तमान सरकार बड़े-बड़े दावे करती है. महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने को उपलब्धियों के तौर पर पेश कर रही है. इन सबके बीच गांव के बदहाल स्कूल की तस्वीर सरकार के प्रचार तंत्र पर प्रहार करती है, कई सवाल खड़े करती है.

1992 से अब तक...
ग्रामीणों ने बताया कि 1992 में राज्य सरकार से स्कूल के लिए मांग उठाई गई. उद्देश्य सिर्फ एक ही था कि सुदूर आदिवासी इलाकों में बच्चों को पढ़ने के लिए बड़ी लड़ाई न लड़नी पड़े. दूर न जाना पड़े. इसे देखते हुए राज्य सरकार ने इलाके में प्राथमिक विद्यालय की स्वीकृति दे दी. उस समय बच्चों की संख्या भी बहुत कम थी. इसके बाद धीरे-धीरे संख्या में वृद्धि होती गई. फिर वित्तिय वर्ष 1993-94 में यहां एक कमरा और छह बाय पांच फीट का छोटा सा ऑफिस बनवाया गया. इतना ही नहीं बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए राज्य सरकार ने सितंबर 2021 में इसे क्रमोन्नत कर प्राथमिक से उच्च प्राथमिक कर दिया.

नाम बड़े पर दर्शन छोटे...
उच्च प्राथमिक विद्यालय तो अस्तित्व में आ गया. लोंगो की उम्मीदें भी परवान चढ़ीं. लगा अब कुछ बेहतर होगा. लेकिन वो भी सब्जबाग निकला. फिलहाल विद्यालय में सातवीं तक की कक्षाएं चल रही है.आठवीं का बैच इस साल आएगा स्कूल में 57 बालक और 48 बालिकाओं सहित कुल 105 बच्चें पढ़ रहे हैं. जिनमें 69 तो पहली से पांचवी तक हैं, वहीं छठीं- सातवी में 18- 18 बच्चे हैं.

पढ़ें-Tribal Youth Exchange Program: मुख्यधारा से जोड़ने के लिए CRPF की अनुपम कोशिश, रंगारंग कार्यक्रम के जरिए आदिवासी युवाओं को किया प्रोत्साहित

कमरा एक बच्चे ढेर सारे...
यहां बच्चों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. हालात ये है कि मिड डे मील भी बच्चे खुले आसमान तले खाने को मजबूर हैं. एक ही कमरा होने से बारिश और गर्मी के समय बच्चों के लिए बैठना किसी चुनौती से कम नहीं. मतलब ये कमरा क्लास रूम भी है और स्टोर रूम भी. इसी कमरे में मिड डे मिल का भी स्टोर है,जिसमें गेहूं के कट्टे, आटा, तेल, दाल ,जलाने के लिए लकड़ियां, पकाने के बर्तन सहित जरूरत का सामान भरा हुआ है. इसके कारण अधिकांश क्लासों के बच्चों को बाहर बैठकर पढ़ना पढ़ रहा है.

शिक्षक ने सुनाया बच्चों का दर्द...
स्कूल के एक शिक्षक ने बच्चों पर क्या गुजर रही है.इसकी दर्द भरी दास्तान सुनाई. उन्होंने कहा कि स्कूल में सिर्फ एक कमरा होने के कारण बच्चों को खुले मैदान में बैठना पड़ रहा है. स्कूल में 4 अध्यापक हैं, बच्चों के बैठने के लिए भी सही व्यवस्था नहीं है. बच्चों को मैदान में त्रिपाल सेट कर बिठाया जाता है. ग्रामीणों का कहना है, कि समस्याओं को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अवगत कराया जा चुका है लेकिन अपेक्षा के मुताबिक फल नहीं मिला. इतना जरूर है कि चुनाव के दौरान स्कूल की अहमियत बढ़ जाती है! वो ऐसे कि चुनाव के दौरान स्कूल को पोलिंग बूथ के तौर पर काम में लिया जाता है.

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