उदयपुर. देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के ऊर्जा मंत्रियों का दो दिवसीय सम्मेलन शनिवार को उदयपुर (Conference of energy ministers in Jaipur) में संपन्न हुआ. सम्मेलन के दौरान ऊर्जा के क्षेत्र को लेकर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई. इस सम्मेलन की अध्यक्षता केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के सिंह ने की. सम्मेलन में विभिन्न राज्यों के ऊर्जा मंत्रियों, उप मुख्यमंत्रियों ने हिस्सा लेते हुए ऊर्जा के क्षेत्र से जुड़े कई बिंदुओं पर चर्चा की.
सम्मेलन के दौरान वितरण क्षेत्र की वित्तीय व्यवहार्यता और स्थिरता, विद्युत प्रणालियों के आधुनिकीकरण पर विचार-विमर्श किया गया. साथ ही उन्नयन, निवेश आवश्यकता और विद्युत क्षेत्र में सुधारों सहित विद्युत बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विद्युत प्रणालियों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया. सम्मेलन में राज्यों में कई मुद्दों पर सुझाव दिए.
इस दौरान विद्युत क्षेत्र मूल्य श्रृंखला में वित्तीय और परिचालन स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वितरण क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए कई बातों पर जोर दिया गया. इसमें समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (एटी एंड सी) हानियों को कम करने, लागत प्रतिबिंबित टैरिफ सुनिश्चित करने, सब्सिडी का लेखांकन और राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी का समय पर भुगतान आदि प्रमुख रहे हैं.
हानियों में कमी के लिए उपभोक्ताओं के लिए प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग और ऊर्जा लेखांकन प्रणाली स्थापित करने के (energy ministers of States and UTs Conference) लिए सिस्टम मीटरिंग के परिनियोजन में तेजी लाने पर सहमति व्यक्त की गई. साथ ही यह भी सहमति हुई कि विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं को वास्तविक ऊर्जा खपत के आधार पर केवल प्रति यूनिट के आधार पर सब्सिडी प्रदान की जाएगी. अधिकांश राज्यों ने अपनी वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की वित्तीय और प्रचालन दक्षता में सुधार के लिए संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) के तहत अपनी संबंधित कार्य योजना पहले ही प्रस्तुत कर दी है. इस दौरान कहा गया कि राज्यों को 40 गीगावाट के समग्र लक्ष्य को पूरा करने के लिए तेजी से सोलर रूफटॉप सिस्टम लगाने का प्रयास करना चाहिए. साथ ही पीएम कुसुम योजना के तहत राज्यों को सोलराइजेशन में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहित किया गया.
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सम्मेलन में कहा गया कि भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बीईएसएस और पंप स्टोरेज हाइड्रो परियोजनाओं सहित ऊर्जा भंडारण का कार्यान्वयन प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए. ग्रीन हाइड्रोजन, ऑफ शोर विंड, ऑफ ग्रिड और विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (डीआरई) अनुप्रयोगों सहित भविष्य की प्रौद्योगिकियों को अनुकूलित करने की आवश्यकता है.
साथ ही देश का सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए चौबिस घंटे बिजली की आपूर्ति जरूरी है. साथ ही अगले दशक बिजली की मांग दोगुनी होने की संभावना है. इसे पूरा करने के लिए 50 लाख करोड़ रुपए से अधिक के आवश्यक पूंजी निवेश की जरूरत है.