उदयपुर. देश में हर्षोल्लास के साथ दिवाली का पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन राजस्थान की उदयपुर के एक वीर सपूत की शहादत (Major Mustafa Bohra cremated) पर हर किसी की आंखें नम दिखाई दे रही हैं. मां भारती की रक्षा में तैनात अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले जांबाज सपूत को आखिरी विदाई देने के लिए हर कोई पलक पावडे़ बिछा कर उसकी शहादत पर गर्व कर रहा है. हर किसी के जुबान पर एक ही नारा गूंज रहा था...जब तक सूरज चांद रहेगा, मुस्तफा तेरा नाम रहेगा. राजकीय सम्मान के साथ शहीद जवान मेजर मुस्तफा बोहरा का पार्थिर शरीर रविवार को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया.
अरुणाचल प्रदेश के सियांग में शुक्रवार को सेना का रुद्र हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था. इस हादसे में उदयपुर के लाल मेजर मुस्तफा बोहरा भी शहीद हो गए थे. रविवार को मेजर मुस्तफा का पार्थिक शरीर अरुणाचल प्रदेश से उदयपुर के डबोक एयरपोर्ट पहुंचा. 27 साल के इस वीर सपूत की मातृभूमि के लिए हुए शहादत पर हर किसी को नाज था. डबोक एयरपोर्ट पर सेना के अधिकारियों ने अपने वीर जांबाज को आखिरी विदाई दी. सेना के अधिकारी अपने वीर साथी के पार्थिव शरीर को कंधा दे रहे थे. मुस्तफा बोहरा के पार्थिव देह को डबोक एयरपोर्ट पर सैन्य प्रोटोकॉल के तहत खंजीपीर स्थित कब्रिस्तान के लिए रवाना किया गया.
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जब तक सूरज चांद रहेगा मुस्तफा तेरा नाम रहेगा...
इससे पहले मेजर मुस्तफा बोहरा के पार्थिव देह को जैसे ही डबोक एयरपोर्ट लाया गया तो उनके माता-पिता और मंगेतर भी कॉफिन से लिपट कर रोने लगी. वहां मौजूद सेना के जवानों के साथ मेजर मुस्तफा के परिजन और अन्य लोगों ने नम आंखों से उन्हें विदाई दी. मेजर मुस्तफा के अंतिम यात्रा डबोक एयरपोर्ट से शुरू हुई जो कि अलग-अलग इलाकों से गुजरते हुए शहर की खंजीपीर स्थित कब्रिस्तान पहुंची. इस दौरान लोग 'मेजर मुस्तफा अमर रहे' के नारों लगा रहे थे. स्वयं नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया भी एयरपोर्ट के बाहर 'मेजर मुस्तफा अमर रहे' के नारे लगा रहे थे.
शहीद की मां ने अंतिम बार अपने बेटे को देखा तो ताबूत से लिपट कर रोने लगी. खंजीपीर में कब्रिस्तान के सामने लुकमानी मस्जिद में मुस्तफा को आर्मी का गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. इस दौरान बहन अपने हाथों में भाई मुस्तफा की तस्वीर लेकर बिलखती रही. इसके बाद आर्मी के वरिष्ठ अधिकारियों ने शहीद को पुष्प चक्र अर्पित किया जिसके बाद उन्हें सुपुर्द ए खाक कर दिया गया. सुपुर्द ए खाक से पहले जनाजा की नमाज भी पढ़ी गई.
मुस्तफा का छोटा सा परिवार
हाल ही में वे परिवार में हुए शादी में भाग लेने खेरोदा भी आए थे.मेजर मुस्तफा के परिवार में पिता जलीउद्दीन बोहरा, माता फातिमा बोहरा और बहन एलेफिया बोहरा है. मेजर मुस्तफा का कुछ दिनों में निकाह होना था. उनकी मंगनी उदयपुर की ही फातिमा से कुछ समय पहले हुई है. मुस्तफा के पिता करीब 30 साल से कुवैत में काम कर रहे हैं.माता फातिमा बोहरा गृहिणी है.परिवार करीब 15 सालों से उदयपुर के हाथीपोल में निवासरत है.
अप्रैल में होनी थी मुस्तफा की शादी- मुस्तफा की शादी अप्रैल में होनी थी, जिसे लेकर मुस्तफा के परिवार और उसकी मंगेतर तैयारियों में जुटे हुए थे. फातिमा फिलहाल पुणे में एमबीए की पढ़ाई कर रही है. मुस्तफा का चेहरा देखने के बाद फातिमा फूट-फूट कर रोने लगी. इस दर्दनाक हादसे से कुछ मिनट पहले ही मुस्तफा ने अपनी मंगेतर से लंबी बातचीत की थी. मुस्तफा ने कहा था कि वह पहुंचकर दोबारा बात करेगा.
भारतीय सेना में जाने का बचपन से ही सपना- भारतीय सेना में जाने का सपना लिए कठिन परिश्रम कर मेजर मुस्तफा ने कम उम्र में सेना में बड़ी जगह बना ली थी. शुक्रवार को जैसे ही उनके शहीद होने का समाचार उदयपुर पहुंचा तो हर किसी का मन ठहर गया. एनडीए की तैयारी करने के साथ रात को करीब कई घंटों पढ़ाई करने के बाद मुस्तफा सेना में शामिल हुए थे. एनडीए एग्जाम के जरिए मुस्तफा भारतीय सेना में शामिल हुए थे. मेजर मुस्तफा बोहरा ने प्राथमिक शिक्षा उदय शिक्षा मंदिर उच्च माध्यमिक विद्यालय में ग्रहण की. उसके बाद उन्होंने उदयपुर से पलायन कर लिया. मेजर मुस्तफा अरुणाचल प्रदेश के ट्विंग क्षेत्र में पदस्थापित थे. वह एनडीए से उत्तीर्ण होकर करीब छह वर्ष पूर्व सेना में लेफ़्टिनेंट लगे थे, जो बाद में कैप्टन बने और फिलहाल बतौर मेजर कार्यरत थे.
बोहरा समाज के लोग व्यापार करने के लिए जाने जाते हैं- बोहरा समाज के लोग कम ही संख्या में आर्मी में शामिल होते हैं. लेकिन उदयपुर के माटी के लाल मुस्तफा धारणा को बदलते वे बचपन से ही मां भारती की रक्षा के लिए सेना में जाने का सपना पिरोया. मुस्तफा इस फैसले से कई लोग खुश नहीं थे, लेकिन मुस्तफा को अपनी मां का साथ मिला और वो आर्मी में शामिल हुए.