उदयपुर. होली के नजदीक आने के साथ ही मेवाड़ में भी होली के रंग चढ़ने लगे हैं. ऐसे में फागोत्सव की धूम मेवाड़ के मंदिरों में देखने को मिल रही है. पुष्टिमार्गीय मंदिरों में होली का उल्लास देखते ही बन रहा है. मेवाड़ के पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के मंदिरों में होली का विशेष महत्व और इतिहास है. राजसमंद के पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ श्री द्वारिकाधीश मंदिर में होली और फागोत्सव बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जा रही है. यहां सदियों पुरानी परंपरा निर्वहन आज भी अनूठे अंदाज, विधि-विधान के साथ किया जा रहा है.
द्वारिकाधीश मंदिर में फागोत्सव की धूम: पुष्टिमार्गीय मंदिरों में रंगों का त्याहोर होली अलग ही महत्व रखता है. लेकिन वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ श्री द्वारिकाधीश मंदिर में फाग की रंगत दोगुनी दिखाई दे रही है. इन दिनों देश-दुनिया से बड़ी संख्या में श्रद्धालु फागोत्सव मनाने के लिए पहुंच रहे हैं. मंदिर में नाच गाकर श्रद्धालु प्रभु की भक्ति में रंगे हुए नजर आ रहे हैं. यहां बड़ी संख्या में भक्त अपने आराध्य इष्टदेव श्री द्वारिकाधीश के दर्शन के लाभ लेने के लिए पहुंच रहे हैं. जहां प्रभु के मंदिरों में श्री द्वारिकाधीश के जयकारे गूंज रहे हैं.
श्री द्वारिकाधीश मंदिर के कार्यकारी अधिकारी विनीत सनाढ्य ने बताया कि इन दिनों द्वारिकाधीश मंदिर में भक्त राल के दर्शन का लाभ ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि बसंत पंचमी से ही प्रभु श्री द्वारकाधीश को गुलाल की सेवा आरंभ हो जाती है. यहां राजभोग के दर्शन में प्रतिदिन प्रभु द्वारिकाधीश को गुलाल की सेवा अंगीकार कराई जाती है. अब जैसे-जैसे होली नजदीक आएगी, गुलाल की सेवा में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी और प्रभु के भक्त भगवान के रंग में रंगे हुए नजर आएंगे.
क्या है राल: सनाढ्य ने बताया कि यह दर्शन काफी महत्व रखते हैं. उन्होंने बताया कि दर्शन में प्रभु द्वारिकाधीश के सम्मुख लकड़ी के बड़े-बड़े बांसों पर कपड़ा बांधा जाता है. उन कपड़ों को तेल में भिगोकर बांधा जाता है. जिसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती है, फिर मंदिर के ही गोस्वामी परिवार की ओर से उस अग्नि में राल और सिंघाड़े का आटा डाला जाता है. इसमें अग्नि प्रज्जवलित होती है और उससे जबरदस्त लपटें उठती हैं. इसके दर्शन के लिए बड़ी संख्या में राजस्थान और अन्य इलाकों से लोग पहुंच रहे हैं.
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राल दर्शन का महत्व: मंदिर प्रशासन के अनुसार पुरातन काल में मौसमी बीमारियों को भगाने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते थे. इसमें राल के दर्शन भी महत्वपूर्ण हैं. फागुन माह में मौसम परिवर्तन का दौर देखने को मिलता है. इस मौसम में कभी सर्दी, तो कभी बदलते मौसम के साथ गर्मी का भी एहसास हो रहा है. जिससे शरीर में बैक्टीरिया पैदा होते हैं और लोग बीमार होने लग जाते हैं. मान्यता है कि श्री द्वारकाधीश मंदिर में राल से निकलने वाली पांच जड़ी-बूटियों के मिश्रण की सुगंध जब सांसों में धुलती है, तो बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया का जड़ से खत्म हो जाते हैं. मंदिर के अधिकारियों ने बताया कि होली डंडा रोपण के साथ यह दर्शन प्रारंभ होते हैं. महीने भर में 5 से 6 बार राल के दर्शनों का आयोजन किया जाता है.