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गुलाबचंद कटारिया से मेरी कोई पर्सनल लड़ाई नहीं और न ही उन्होंने मेरी टिकट कटवाई होगी : रणधीर सिंह भींडर - वल्लभनगर विधानसभा सीट

गुलाबचंद कटारिया के गवर्नर बनने के बाद रणधीर सिंह भींडर की घर वापसी कितनी आसान है, क्या है वल्लभनगर विधानसभा सीट का समीकरण और राजस्थान की राजनीति को लेकर क्या है जनता सेना की रणनीति ? इन मुद्दों को लेकर ईटीवी भारत ने भींडर से खास बातचीत की. सुनिए क्या कहा...

Exclusive Interview with Randhir Singh Bhindar
रणधीर सिंह भींडर
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Published : Jun 11, 2023, 5:15 PM IST

रणधीर सिंह भींडर ने क्या कहा, सुनिए...

उदयपुर. राजस्थान में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं. मेवाड़ की सबसे हॉट सीट कहे जाने वाली वल्लभनगर विधानसभा सीट पर जहां पिछले 3 चुनावों में कभी त्रिकोणीय तो कभी चतुष्कोणीय मुकाबला रहा है. भाजपा फिलहाल चुनाव से पहले अपने बागी नेताओं को मनाकर फिर से पार्टी में शामिल कर रही है. वल्लभनगर विधानसभा सीट से भाजपा के पूर्व प्रत्याशी रहे और वर्तमान में जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भींडर को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है. फिलहाल, भींडर वल्लभनगर विधानसभा सीट पर एक यात्रा भी निकल रहे हैं.

मेवाड़ की सबसे हॉट सीट वल्लभनगर : मेवाड़ की सबसे हॉट सीटों में से एक वल्लभनगर विधानसभा सीट, जहां की सियासी समीकरण समझना इतना आसान नहीं है. क्योंकि यहां मुकाबला त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय देखने को मिलता है. इस सीट पर लगातार भाजपा को 3 बार अपने 2 बागी प्रत्याशियों के कारण मुंह की खानी पड़ी. पहली बार 2013 में भींडर ने गुलाबचंद कटारिया से खिलाफत कर भाजपा प्रत्याशी गणपत लाल मेनारिया के सामने चुनाव लड़ा. टिकट कटने की सहानुभूति के कारण भींडर चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

इसके बाद 2018 में भींडर के सामने उदयलाल डांगी मैदान में थे. भींडर की पार्टी जनता सेना और भाजपा में वोट बंटने से इसका फायदा कांग्रेस को मिला. 2018 में गजेंद्र सिंह शक्तावत दूसरी बार विधायक बने. इसके बाद 2021 में उनकी मृत्यु के बाद उपचुनाव में गजेंद्र सिंह की पत्नी प्रीति शक्तावत मैदान में आईं. उपचुनाव में डांगी को टिकट नहीं मिला तो वे आरएलपी में शामिल हो गए. इस कारण चतुष्कोणीय मुकाबले में दूसरे स्थान पर डांगी और तीसरे स्थान पर जनता सेना के भींडर रहे. प्रीति की जीत के साथ उपचुनाव में बीजेपी चौथे स्थान पर चली गई.

पढ़ें : Mewar Politics : गुलाबचंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद भींडर की भाजपा में बढ़ी एंट्री की संभावना

क्या भींडर की होगी फिर से भाजपा में वापसी ? : जनता सेवा सुप्रीमो रणधीर सिंह भींडर ने ईटीवी भारत ने बातचीत में बताया कि 2013 विधानसभा चुनाव के अंदर मेरा और मेरे कार्यकर्ताओं का मानस भाजपा में जाने का था. ऐसे में हमें उम्मीद थी कि भाजपा हमें टिकट देगी, लेकिन उन्होंने हमें टिकट नहीं दिया. इसके बाद हमने स्वयं अपनी पार्टी बनाते हुए जनता सेना का गठन किया. जिसके तहत विधानसभा चुनाव और क्षेत्रीय चुनाव लड़े गए. भींडर ने कहा कि हमारी पार्टी से कोई भी कार्यकर्ता और पदाधिकारी न तो भारतीय जनता पार्टी के पास यह कहने के लिए गया कि हमें पार्टी में ले लीजिए और न ही भारतीय जनता पार्टी के किसी नेता ने हमें फोन कर कहा कि आपको पार्टी में ले रहे हैं. जिस समय ऐसी परिस्थिति आएगी तो हम हमारे कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर निर्णय लेंगे.

गुलाबचंद कटारिया के गवर्नर बनने के बाद घर वापसी में कितनी आसानी ? दरअसल, रणधीर सिंह भींडर और भाजपा के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया के रिश्ते जग जाहिर हैं. दोनों के बीच पुरानी अदावत रही है. गुलाबचंद कटारिया को असम के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी गई है. ऐसे में उनके मेवाड़ से जाने के बाद सियासी समीकरण भी बदले हैं. रणधीर सिंह भींडर ने कहा कि गुलाबचंद कटारिया से मेरी पर्सनल कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन गुलाबचंद कटारिया से मेरी क्या लड़ाई है, वह तो उन्हीं से पूछना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि मैं कभी उनको गंभीरता नहीं लिया, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि वह मेरे पीछे पड़े होंगे और मेरे टिकट कटवाने में उनका कोई हाथ होगा. लोग भले ही यह कहते हैं कि मेरा टिकट उन्होंने कटावाया, लेकिन आज तक मुझे ऐसा कोई प्रूफ नहीं मिला. भींडर ने कहा कि अब गुलाबचंद कटारिया गवर्नर के पद पर हैं. ऐसे में राज्यपाल के बारे में मैं कुछ नहीं बोलूंगा.

पीएम मोदी को समर्थन, वसुंधरा हमारी नेता : भींडर ने कहा कि जनता सेना एक अलग पार्टी है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को हम भी समर्थन करते हैं. वसुंधरा राजे सिंधिया हमारी भी नेता हैं, लेकिन जहां पर हमारे क्षेत्र की बात है वहां पर हम अलग रहेंगे. क्योंकि हमारे यहां पर एक अलग समस्या है. वल्लभनगर विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ती हैं. यहां पहले क्षेत्रीय चुनाव में प्रधान का भी दोनों पार्टियों ने मिलकर बनाया. ऐसे में दोनों ही अगर एक दूसरे से मिले हैं तो सही भाजपा तो हम हुए.

वल्लभनगर विधानसभा सीट पर कांग्रेस का रहता है दबदबा : वल्लभनगर में पिछले 69 साल में 1952 से अबतक 16 चुनाव हुए हैं. इन 16 चुनावों में अबतक 8 नेताओं को विधायक चुना गया है. वल्लभनगर में अबतक 6 बार गुलाब सिंह शक्तावत, 3 बार कमलेंद्र सिंह, 2-2 बार गजेंद्र शक्तावत और रणधीर सिंह भींडर विधायक बने हैं. वहीं, 1-1 बार दिलीप सिंह, हरिप्रसाद और अमृतलाल यादव विधायक रहे हैं. हालांकि, पिछले 45 सालों से कांग्रेस पार्टी ने शक्तावत परिवार पर विश्वास जताया. ऐसे में गुलाब सिंह शक्तावत यहां से विधायक रहे. उनके निधन के बाद उनके छोटे बेटे गजेंद्र सिंह शक्तावत विधायक बने. वहीं, गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद उनकी पत्नी प्रीति गजेंद्र सिंह शक्तावत फिलहाल वल्लभनगर से विधायक हैं.

रणधीर सिंह भींडर ने क्या कहा, सुनिए...

उदयपुर. राजस्थान में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं. मेवाड़ की सबसे हॉट सीट कहे जाने वाली वल्लभनगर विधानसभा सीट पर जहां पिछले 3 चुनावों में कभी त्रिकोणीय तो कभी चतुष्कोणीय मुकाबला रहा है. भाजपा फिलहाल चुनाव से पहले अपने बागी नेताओं को मनाकर फिर से पार्टी में शामिल कर रही है. वल्लभनगर विधानसभा सीट से भाजपा के पूर्व प्रत्याशी रहे और वर्तमान में जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भींडर को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है. फिलहाल, भींडर वल्लभनगर विधानसभा सीट पर एक यात्रा भी निकल रहे हैं.

मेवाड़ की सबसे हॉट सीट वल्लभनगर : मेवाड़ की सबसे हॉट सीटों में से एक वल्लभनगर विधानसभा सीट, जहां की सियासी समीकरण समझना इतना आसान नहीं है. क्योंकि यहां मुकाबला त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय देखने को मिलता है. इस सीट पर लगातार भाजपा को 3 बार अपने 2 बागी प्रत्याशियों के कारण मुंह की खानी पड़ी. पहली बार 2013 में भींडर ने गुलाबचंद कटारिया से खिलाफत कर भाजपा प्रत्याशी गणपत लाल मेनारिया के सामने चुनाव लड़ा. टिकट कटने की सहानुभूति के कारण भींडर चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

इसके बाद 2018 में भींडर के सामने उदयलाल डांगी मैदान में थे. भींडर की पार्टी जनता सेना और भाजपा में वोट बंटने से इसका फायदा कांग्रेस को मिला. 2018 में गजेंद्र सिंह शक्तावत दूसरी बार विधायक बने. इसके बाद 2021 में उनकी मृत्यु के बाद उपचुनाव में गजेंद्र सिंह की पत्नी प्रीति शक्तावत मैदान में आईं. उपचुनाव में डांगी को टिकट नहीं मिला तो वे आरएलपी में शामिल हो गए. इस कारण चतुष्कोणीय मुकाबले में दूसरे स्थान पर डांगी और तीसरे स्थान पर जनता सेना के भींडर रहे. प्रीति की जीत के साथ उपचुनाव में बीजेपी चौथे स्थान पर चली गई.

पढ़ें : Mewar Politics : गुलाबचंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद भींडर की भाजपा में बढ़ी एंट्री की संभावना

क्या भींडर की होगी फिर से भाजपा में वापसी ? : जनता सेवा सुप्रीमो रणधीर सिंह भींडर ने ईटीवी भारत ने बातचीत में बताया कि 2013 विधानसभा चुनाव के अंदर मेरा और मेरे कार्यकर्ताओं का मानस भाजपा में जाने का था. ऐसे में हमें उम्मीद थी कि भाजपा हमें टिकट देगी, लेकिन उन्होंने हमें टिकट नहीं दिया. इसके बाद हमने स्वयं अपनी पार्टी बनाते हुए जनता सेना का गठन किया. जिसके तहत विधानसभा चुनाव और क्षेत्रीय चुनाव लड़े गए. भींडर ने कहा कि हमारी पार्टी से कोई भी कार्यकर्ता और पदाधिकारी न तो भारतीय जनता पार्टी के पास यह कहने के लिए गया कि हमें पार्टी में ले लीजिए और न ही भारतीय जनता पार्टी के किसी नेता ने हमें फोन कर कहा कि आपको पार्टी में ले रहे हैं. जिस समय ऐसी परिस्थिति आएगी तो हम हमारे कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर निर्णय लेंगे.

गुलाबचंद कटारिया के गवर्नर बनने के बाद घर वापसी में कितनी आसानी ? दरअसल, रणधीर सिंह भींडर और भाजपा के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया के रिश्ते जग जाहिर हैं. दोनों के बीच पुरानी अदावत रही है. गुलाबचंद कटारिया को असम के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी गई है. ऐसे में उनके मेवाड़ से जाने के बाद सियासी समीकरण भी बदले हैं. रणधीर सिंह भींडर ने कहा कि गुलाबचंद कटारिया से मेरी पर्सनल कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन गुलाबचंद कटारिया से मेरी क्या लड़ाई है, वह तो उन्हीं से पूछना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि मैं कभी उनको गंभीरता नहीं लिया, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि वह मेरे पीछे पड़े होंगे और मेरे टिकट कटवाने में उनका कोई हाथ होगा. लोग भले ही यह कहते हैं कि मेरा टिकट उन्होंने कटावाया, लेकिन आज तक मुझे ऐसा कोई प्रूफ नहीं मिला. भींडर ने कहा कि अब गुलाबचंद कटारिया गवर्नर के पद पर हैं. ऐसे में राज्यपाल के बारे में मैं कुछ नहीं बोलूंगा.

पीएम मोदी को समर्थन, वसुंधरा हमारी नेता : भींडर ने कहा कि जनता सेना एक अलग पार्टी है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को हम भी समर्थन करते हैं. वसुंधरा राजे सिंधिया हमारी भी नेता हैं, लेकिन जहां पर हमारे क्षेत्र की बात है वहां पर हम अलग रहेंगे. क्योंकि हमारे यहां पर एक अलग समस्या है. वल्लभनगर विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ती हैं. यहां पहले क्षेत्रीय चुनाव में प्रधान का भी दोनों पार्टियों ने मिलकर बनाया. ऐसे में दोनों ही अगर एक दूसरे से मिले हैं तो सही भाजपा तो हम हुए.

वल्लभनगर विधानसभा सीट पर कांग्रेस का रहता है दबदबा : वल्लभनगर में पिछले 69 साल में 1952 से अबतक 16 चुनाव हुए हैं. इन 16 चुनावों में अबतक 8 नेताओं को विधायक चुना गया है. वल्लभनगर में अबतक 6 बार गुलाब सिंह शक्तावत, 3 बार कमलेंद्र सिंह, 2-2 बार गजेंद्र शक्तावत और रणधीर सिंह भींडर विधायक बने हैं. वहीं, 1-1 बार दिलीप सिंह, हरिप्रसाद और अमृतलाल यादव विधायक रहे हैं. हालांकि, पिछले 45 सालों से कांग्रेस पार्टी ने शक्तावत परिवार पर विश्वास जताया. ऐसे में गुलाब सिंह शक्तावत यहां से विधायक रहे. उनके निधन के बाद उनके छोटे बेटे गजेंद्र सिंह शक्तावत विधायक बने. वहीं, गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद उनकी पत्नी प्रीति गजेंद्र सिंह शक्तावत फिलहाल वल्लभनगर से विधायक हैं.

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