उदयपुर. लोकसभा सीट उदयपुर पर इस बार भाजपा और कांग्रेस को टक्कर देने के लिए भारतीय ट्राइबल पार्टी ने भी अपना उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है. बीटीपी के मैदान में आने से भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ गई हैं. आदिवासी बाहुल्य इस लोकसभा सीट पर अब मुकाला टक्कर का हो सकता है.
उदयपुर लोकसभा क्षेत्र के दायरे में कुल 8 विधानसभाएं आती हैं. कुल जनसंख्या की बात करें तो यह 2952470 है. इस जनसंख्या का 80% से ज्यादा हिस्सा ग्रामीण है जबकि 20% शहरी है. कुल आबादी का 5.5% अनुसूचित जाति जबकि 59.8 फीसदी हिस्सा अनुसूचित जनजाति का है. ऐसे में क्षेत्र में सबसे अधिक आदिवासी वोट हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए दोनों प्रमुख पार्टियां भाजपा और कांग्रेस आदिवासी समुदाय से ही प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.
वहीं विधानसभा चुनाव में दो सीटें जीतकर चर्चा में आई भारतीय ट्राइबल पार्टी ने भी लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों को टक्कर देने के लिए अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा है. खास बात यह है कि बीटीपी का प्रत्याशी भी आदिवासी (मीणा) समुदाय से ही चुना गया है. जहां बीजेपी ने अर्जुन लाल मीणा को मैदान में उतरा है तो वहीं कांग्रेस ने रघुवीर मीणा पर भरोसा जताया है.
जिस तरह मेवाड़ के डूंगरपुर और बांसवाड़ा (वागड़) में पहली बार विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरी बीटीपी ने जीत का परचम लहराया था वैसा ही करिश्मा लोकसभा चुनाव में भी दिखाने के प्रयास में जुटी है. यही वजह है कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण बीटीपी ने बांसवाड़ा-डूंगरपुर के बाद उदयपुर में भी प्रत्याशी उतारा है. भारतीय ट्राइबल पार्टी ने उम्मीदवार के तौर पर बीरदीलाल मीणा को चुणा है.
वागड़ में अपना प्रभाव दिखाने वाली बीटीपी को उम्मीद है कि वो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण मेवाड़ की सबसे बड़ी सीट पर भी वर्चस्व बना सकती है. उदयपुर लोकसभा क्षेत्र में जातिगत आंकड़ों की बात की जाए तो यहां के 8 विधानसभा क्षेत्रों में 7 विधानसभाएं ऐसी हैं जहां मीणा समाज के लोग ही नेता को चुनने में अहम भूमिका अदा करते हैं.
उदयपुर लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरणों की अगर बात की जाए तो यहां मतदाताओं की संख्या 20 लाख से उपर है. एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार यहां 55 से 60 प्रतिशत एसटी मतदाता हैं, 10 प्रतिशत के करीब ओबीसी, 7 प्रतिशत के करीब ब्राह्मण, 6 प्रतिशत के करीब जैन और इतने ही प्रतिशत राजपूत मतदाता हैं. अलपसंख्यक मतदाता यहां 5 फीसदी के करीब हैं. ऐसे में एसटी के लिए रिजर्व इस सीट पर आदिवासी मतदाता प्रत्याशी की जीत तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं.
बीटीपी के उदयपुर में आने से ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में मूल आदिवासी वोट अब तीन पार्टियों में विभाजित हो सकता है. वोटों के इस ध्रूविकरण से जहां बीटीपी फायदा उठा सकती है वहीं भाजपा और कांग्रेस के वोट खिसक सकते हैं. आपको बता दें कि भारतीय ट्राइबल पार्टी विधानसभा चुनावों में आदिवासी हित और आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग भीलस्थान को लेकर चुनाव में उतरी थी. जिसका खासा असर देखने को मिला था.