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Diwali 2023 : दीपावली पर गुर्जर समाज की अनूठी परंपरा, जल स्रोतों पर छांट भर पूर्वजों को करते हैं याद

दीपावली के अवसर पर टोंक जिले के गुर्जर समाज में जलस्रोतों पर छांट भरने की पंरपरा है, जिसमें वो अपने पूर्वजों को याद करते हैं. इस परंपरा के निवर्हन के बाद ही खाना खाया जाता है.

Unique tradition of Gurjar community on Diwali
जलस्रोतों पर छांट भर पूर्वजों को करते हैं याद
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 12, 2023, 4:15 PM IST

जलस्रोतों पर छांट भर पूर्वजों को करते हैं याद

टोंक. प्रदेश सहित देशभर में दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस बीच प्रदेश में दिवाली पर कई ऐसी परंपराएं देखने को मिलती है, जो वर्षों से अनवरत चली आ रही है. ऐसी ही एक परंपरा जिले के गुर्जर समाज के लोग निभा रहे हैं. जिसके तहत जल स्रोतों पर सामूहिक रूप से छांट भर के पितरों को याद किया जाता है. साथ ही तालाब की पाल पर खीर और पराठों का भोग लगाया जाता है. रविवार को भी दीपावली के अवसर पर जिला मुख्यालय के ऐतिहासिक चतुर्भुज तालाब व अन्य जल स्रोतों पर समाज के लोग अपने गोत्र के अनुसार एकत्रित हुए. परंपरानुसार सामूहिक रूप से सभी ने छांट भर के पितरों को याद किया.

छांट भरने के बाद ही खाते हैं खाना : समाज के लोगों का कहना है कि गुर्जर समाज अलग-अलग समय में श्राद्ध करने के बजाय दीपावली पर गौत्र अनुसार एकत्रित होकर पितरों का याद करते हैं. इस परंपरा को साधारण भाषा में छांट भरना कहते हैं, जिसमें समाज के लोग एक निश्चित स्थान पर जाकर तालाब या अन्य जल स्त्रोतों में छांट भरकर अपने पितरों को धूप लगाते हैं. इससे तालाबों, एनिकटों और अन्य जल स्त्रोतों को शुद्ध रखने की सीख मिलती है तो वहीं इस परंपरा से भाईचारा भी बढ़ता है. समाज के लोग छांट भरने के बाद ही खाना खाते हैं. दीपावली के एक दिन पहले ही गुर्जर समाज के लोग इसके लिए अपनी तैयारी पूरी कर लेते हैं. गुर्जर समाज में श्राद्ध मनाने की यह अनूठी परंपरा सालों से चली आ रही है.

पढ़ें : Diwali 2023 : मराठाकालीन लक्ष्मी माता का मंदिर जहां सदियों से दीपोत्सव की परंपरा, लगता है खीर का भोग

ऐसी भरी जाती है छांट : दिवाली पर छांट भरने तक समाज के लोग कुछ नहीं खाते. दीपावली पर दोपहर 12 बजे से पहले गुर्जर समाज के लोग अपने परिवार के साथ थाली में फलके, खीर आदि बनाकर तालाब के किनारे पहुंचते है. पंरपरागत वेशभूषा पहने समाज के लोग तालाब पर भोग लगाते हैं. इसके बाद परिवारीजन आंधी झाड़ा की बेल के साथ हाथ में भोग लगाने के बाद भोजन लेकर उसको पानी में लंबी कतार बनाकर तर्पण के लिए खड़े होते हैं. इसके बाद पूर्वजों को नाम लेकर तर्पण किया जाता है. पानी में उस भोजन को जीव-जंतुओं को खिलाया जाता है, फिर परिवार के लोग आपस में मिलकर स्वयं भी खाते हैं. वहां से लाए गए पानी से घरों को पवित्र भी किया जाता है. इस परंपरा में नवजात बच्चे को वहां लेजाकर उसका एक हाथ बैल पर लगवाते हैं, जिससे उनका वंश बढ़े.

जलस्रोतों पर छांट भर पूर्वजों को करते हैं याद

टोंक. प्रदेश सहित देशभर में दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस बीच प्रदेश में दिवाली पर कई ऐसी परंपराएं देखने को मिलती है, जो वर्षों से अनवरत चली आ रही है. ऐसी ही एक परंपरा जिले के गुर्जर समाज के लोग निभा रहे हैं. जिसके तहत जल स्रोतों पर सामूहिक रूप से छांट भर के पितरों को याद किया जाता है. साथ ही तालाब की पाल पर खीर और पराठों का भोग लगाया जाता है. रविवार को भी दीपावली के अवसर पर जिला मुख्यालय के ऐतिहासिक चतुर्भुज तालाब व अन्य जल स्रोतों पर समाज के लोग अपने गोत्र के अनुसार एकत्रित हुए. परंपरानुसार सामूहिक रूप से सभी ने छांट भर के पितरों को याद किया.

छांट भरने के बाद ही खाते हैं खाना : समाज के लोगों का कहना है कि गुर्जर समाज अलग-अलग समय में श्राद्ध करने के बजाय दीपावली पर गौत्र अनुसार एकत्रित होकर पितरों का याद करते हैं. इस परंपरा को साधारण भाषा में छांट भरना कहते हैं, जिसमें समाज के लोग एक निश्चित स्थान पर जाकर तालाब या अन्य जल स्त्रोतों में छांट भरकर अपने पितरों को धूप लगाते हैं. इससे तालाबों, एनिकटों और अन्य जल स्त्रोतों को शुद्ध रखने की सीख मिलती है तो वहीं इस परंपरा से भाईचारा भी बढ़ता है. समाज के लोग छांट भरने के बाद ही खाना खाते हैं. दीपावली के एक दिन पहले ही गुर्जर समाज के लोग इसके लिए अपनी तैयारी पूरी कर लेते हैं. गुर्जर समाज में श्राद्ध मनाने की यह अनूठी परंपरा सालों से चली आ रही है.

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ऐसी भरी जाती है छांट : दिवाली पर छांट भरने तक समाज के लोग कुछ नहीं खाते. दीपावली पर दोपहर 12 बजे से पहले गुर्जर समाज के लोग अपने परिवार के साथ थाली में फलके, खीर आदि बनाकर तालाब के किनारे पहुंचते है. पंरपरागत वेशभूषा पहने समाज के लोग तालाब पर भोग लगाते हैं. इसके बाद परिवारीजन आंधी झाड़ा की बेल के साथ हाथ में भोग लगाने के बाद भोजन लेकर उसको पानी में लंबी कतार बनाकर तर्पण के लिए खड़े होते हैं. इसके बाद पूर्वजों को नाम लेकर तर्पण किया जाता है. पानी में उस भोजन को जीव-जंतुओं को खिलाया जाता है, फिर परिवार के लोग आपस में मिलकर स्वयं भी खाते हैं. वहां से लाए गए पानी से घरों को पवित्र भी किया जाता है. इस परंपरा में नवजात बच्चे को वहां लेजाकर उसका एक हाथ बैल पर लगवाते हैं, जिससे उनका वंश बढ़े.

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