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सीमावर्ती जिले श्रीगंगानगर में मनरेगा श्रमिकों की आपबीती, काम करने के बाद भी नहीं मिलती पूरी मजदूरी - wages

मनरेगा मजदूरों की मजदूरी कम आने से नरेगा मे काम करने वाले मजदूर परेशान हैं. जिले के बॉर्डर एरिया में जब लोगों को खेतों में कोई काम नहीं मिलता है, तब वे मनरेगा मे काम धन्धे की तलाश मे रहते हैं. लेकिन काम पूरा करने के बाद भी मजदूरी नही मिलने से मजदूर परेशान है.

मनरेगा मजदूरों की आपबीती
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Published : Jul 1, 2019, 5:05 PM IST

श्रीगंगानगर. जिले के बॉर्डर एरिया में नरेगा मजदूरी का कार्य मानो ठप्प पड़ा है. कई महीनों बाद ग्राम पंचायतों में जो काम मिलता है, उनमें भी मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों को पुरा भुगतान नहीं हो पाता है. जिसके चलते मनरेगा मजदूर काफी परेशान हैं.

मनरेगा मजदूरों की आपबीती

जिले के बॉर्डर एरिया से सटे पक्की ग्राम पंचायत में नरेगा मजदूरों द्वारा काम तो समय पर पूरा किया जाता है. लेकिन भुगतान आज तक उन्हें पूरा नहीं मिला है. मनरेगा मे मजदूरी कर रहे हैं लोगों की माने, तो उन्हें पूरा काम करने के बाद भी 100 रुपए से अधिक मजदूरी नहीं मिल पाती है. जबकि नियमों के तहत मनरेगा मजदूरो को 192 की न्यूनतम मजदूर मिलनी चाहिए.

पक्की ग्राम पंचायत में ये कोई पहला वाकया नहीं है जिसमें मजदूरी कम मिल रही हो. बल्कि नरेगा मजदूरी में काम करने वाले मजदूर बताते हैं कि सरकारी तंत्र मे खराबी के चलते उन्हें पूरी मजदूरी नहीं दी जाती है. मनरेगा में कार्य करने वाले रणजीत सिंह की मानें तो जब से नरेगा का कार्य शुरू हुआ है, तब से मजदूरों को 102 रुपए से अधिक मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है.

वहीं नरेगा में काम करने वाली महिला मजदूर प्यारो बाई बताती है कि वह कार्यस्थल पर काम तो पूरा करती है, मगर मजदूरी उन्हें पूरी नहीं मिल पाती है. जिसके चलते घर चलाना बड़ा मुश्किल हो जाता है. हालांकि कुछ मजदूरों ने यह भी कहा कि काफी लंबे इंतजार के बाद नरेगा का कार्य शुरू होता है. उसमें ही 15 दिन काम चलने के बाद कार्य बंद हो जाता है जिसके चलते अधिकतर समय नरेगा में जाने वाले मजदूर खाली रहते हैं और उन्हे घर चलाने में बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मनरेगा कार्य स्थल पर सुविधाओं के नाम पर पीने का पानी तक उप्लब्ध नहीं होता है, जिससे मनरेगा मे कार्य करने के लिए आने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड्ता है.

नरेगा में काम करने वाले मजदूरों की मानें तो सरपंच अपने चहेतों को कार्यस्थल पर भेजे बगैर ही फर्जी हाजरी लगवा देते हैं. अधिकतर मजदूर इस बात से भी खफा हैं कि उनके द्वारा काम करने के बावजूद भी कम पैसे आते हैं, जबकि सरपंच के चहेतों को बगैर कार्य किए ही भुगतान मिल जाता है. नरेगा में काम करने वाले लोगों की मानें तो पक्की ग्राम पंचायत में ग्राम सेवक और सरपंच मिलकर नरेगा में भ्रष्टाचार कर रहे हैं, जिसकी जांच की जाए तो खुलासा हो जाएगा.

श्रीगंगानगर. जिले के बॉर्डर एरिया में नरेगा मजदूरी का कार्य मानो ठप्प पड़ा है. कई महीनों बाद ग्राम पंचायतों में जो काम मिलता है, उनमें भी मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों को पुरा भुगतान नहीं हो पाता है. जिसके चलते मनरेगा मजदूर काफी परेशान हैं.

मनरेगा मजदूरों की आपबीती

जिले के बॉर्डर एरिया से सटे पक्की ग्राम पंचायत में नरेगा मजदूरों द्वारा काम तो समय पर पूरा किया जाता है. लेकिन भुगतान आज तक उन्हें पूरा नहीं मिला है. मनरेगा मे मजदूरी कर रहे हैं लोगों की माने, तो उन्हें पूरा काम करने के बाद भी 100 रुपए से अधिक मजदूरी नहीं मिल पाती है. जबकि नियमों के तहत मनरेगा मजदूरो को 192 की न्यूनतम मजदूर मिलनी चाहिए.

पक्की ग्राम पंचायत में ये कोई पहला वाकया नहीं है जिसमें मजदूरी कम मिल रही हो. बल्कि नरेगा मजदूरी में काम करने वाले मजदूर बताते हैं कि सरकारी तंत्र मे खराबी के चलते उन्हें पूरी मजदूरी नहीं दी जाती है. मनरेगा में कार्य करने वाले रणजीत सिंह की मानें तो जब से नरेगा का कार्य शुरू हुआ है, तब से मजदूरों को 102 रुपए से अधिक मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है.

वहीं नरेगा में काम करने वाली महिला मजदूर प्यारो बाई बताती है कि वह कार्यस्थल पर काम तो पूरा करती है, मगर मजदूरी उन्हें पूरी नहीं मिल पाती है. जिसके चलते घर चलाना बड़ा मुश्किल हो जाता है. हालांकि कुछ मजदूरों ने यह भी कहा कि काफी लंबे इंतजार के बाद नरेगा का कार्य शुरू होता है. उसमें ही 15 दिन काम चलने के बाद कार्य बंद हो जाता है जिसके चलते अधिकतर समय नरेगा में जाने वाले मजदूर खाली रहते हैं और उन्हे घर चलाने में बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मनरेगा कार्य स्थल पर सुविधाओं के नाम पर पीने का पानी तक उप्लब्ध नहीं होता है, जिससे मनरेगा मे कार्य करने के लिए आने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड्ता है.

नरेगा में काम करने वाले मजदूरों की मानें तो सरपंच अपने चहेतों को कार्यस्थल पर भेजे बगैर ही फर्जी हाजरी लगवा देते हैं. अधिकतर मजदूर इस बात से भी खफा हैं कि उनके द्वारा काम करने के बावजूद भी कम पैसे आते हैं, जबकि सरपंच के चहेतों को बगैर कार्य किए ही भुगतान मिल जाता है. नरेगा में काम करने वाले लोगों की मानें तो पक्की ग्राम पंचायत में ग्राम सेवक और सरपंच मिलकर नरेगा में भ्रष्टाचार कर रहे हैं, जिसकी जांच की जाए तो खुलासा हो जाएगा.

Intro:श्रीगंगानगर जिले में मनरेगा मजदूरो की मजदूरी कम आने से नरेगा मे काम करने वाले मजदूर परेशान है। जिले के बॉर्डर एरिया में जब लोगो को खेतो में कोई काम नही मिलता है तब वे मनरेगा मे काम धन्धे की तलास मे तो रह्ते है,लेकिन काम पुरा करने के बाद भी मजदूरी नही मिलने से मजदूर परेशान है। मनरेगा कार्य स्थल पर सुविधाओ के नाम पर पीने का पानी तक उप्लब्ध नही होता है। जिससे मनरेगा मे कार्य करने के लिए आने वाले लोगो को काफी परेशानियो का सामना करना पड्ता है।


Body:श्रीगंगानगर जिले के बॉर्डर एरिया में नरेगा मजदूरी का कार्य मानो ठप पड़ा है। कई महीनो बाद ग्राम पंचायतो में जो काम मिलता है उनमें भी मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों को पुरा भुगतान नहीं हो पाता है। जिसके चलते मनरेगा मजदूर काफी परेशान है। जिले के बॉर्डर एरिया से सटे पक्की ग्राम पंचायत में नरेगा मजदूरों द्वारा काम तो समय पर पूरा किया जाता है,लेकिन भुगतान आज तक उन्हें पूरा नहीं मिला है। मनरेगा मे मजदूरी कर रहे हैं लोगों की माने तो उन्हें पूरा काम करने के बाद भी 100 रुपए से अधिक मजदूरी नहीं मिल पाती है। जबकि नियमों के तहत मनरेगा मजदूरो को 192 की न्यूनतम मजदूर मिलनी चाहिये। पक्की ग्राम पंचायत में ये कोई पहला वाकया नहीं है जो मजदूरी कम आ रही है बल्कि नरेगा मजदूरी में काम करने वाले मजदूर बताते है की सरकारी तंत्र मे खराबी के चलते उन्हे पूरी मजदूरी नही दी जाती है। मनरेगा में कार्य करने वाले रणजीत सिंह की मानें तो जब से नरेगा का कार्य शुरू हुआ है तब से मजदूरों को 102रुपए से अधिक मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। वही नरेगा में काम करने वाली महिला मजदूर प्यारो बाई बताती है की वह कार्यस्थल पर काम तो पूरा करती हैं,मगर मजदूरी उन्हें पूरी नहीं मिल पाती है जिसके चलते घर चलाना बड़ा मुश्किल हो जाता है। हालांकि कुछ मजदूरों ने यह भी कहा कि काफी लंबे इंतजार के बाद नरेगा का कार्य शुरू होता है उसमें ही 15 दिन काम चलने के बाद कार्य बंद हो जाता है जिसके चलते अधिकतर समय नरेगा में जाने वाले मजदूर खाली रहते हैं और उन्हे घर चलाने में बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नरेगा में काम करने वाले मजदूरों की माने तो सरपंच अपने चहेतों को कार्यस्थल पर भेजें बगैर ही मेट को कहकर फर्जी हाजरी लगवा देते है। जिससे अधिकतर मजदूर इस बात से भी खफा है कि उनके द्वारा काम करने के बावजूद भी कम पैसे आते हैं जबकि सरपंच के चहेतो को बगेर कार्य किये ही भुगतान मिलता है। नरेगा में काम करने वाले लोगों की माने तो पक्की ग्राम पंचायत में ग्राम सेवक व सरपंच मिलकर नरेगा में भ्रष्टाचार कर रहे हैं। जिसकी जांच की जाये तो खुलासा हो जायेगा।


Conclusion:मनरेगा मे कम भुगतान मिलने से मजदूरो का सरपंच-ग्राम सहायक पर आरोप।
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