श्रीगंगानगर. पिछले दिनों स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख शासन सचिव के आदेश में कहा गया था कि जिला कलेक्टर, जिला परिषद, एसडीएम और अन्य कार्यालयों में शिक्षक और विभाग के मंत्रालय कर्मचारी अपनी मूल जगह छोड़कर सालों से लगे हुए हैं. इससे मूल पद का काम प्रभावित होता है. विशेष तौर पर शिक्षण कार्य प्रभावित होता है. स्कूलों में पहले से ही शिक्षकों की कमी है, ऊपर से शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर जिला मुख्यालयों के सरकारी कार्यालयों में गैर शैक्षणिक पदों पर लग जाते हैं. श्रीगंगानगर जिले में लगे प्रतिनियुक्ति पर कर्मचारी सरकार के इस आदेश के बाद भी अपने मूल विभाग में जाकर कार्य करने को तैयार नही हैं.
जिला कलेक्ट्रेट में कुछ मंत्रालयिक कर्मचारी निर्वाचन शाखा, एसडीएम दफ्तर, कंट्रोल रूम में सालो से लगे हैं, लेकिन ये कर्मचारी सरकार के आदेश के बाद भी अपने मूल पद पर नहीं जा रहे हैं. इसी तरह मटका चोक स्कूल के मंत्रालयिक कर्मचारी को शिक्षा विभाग ने कई बार मूल पद पर आने के लिए पत्र लिखा है, लेकिन वह अभी तक नहीं लौटा है. ऐसे में शिक्षा विभाग ने अब इन कर्मचारि का वेतन रोका है. लेकिन हैरानी इस बात की भी है कि फिर भी जिले में अधिकतर कर्मचारी अभी भी प्रतिनियुक्ति पर डटे हुए हैं.
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निशुल्क शिक्षा एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 27 के अनुसार जनगणना आपदा प्रबंधन और चुनाव कार्यों में ही शिक्षकों की ड्यूटी लगाई जा सकती है. यह काम पूरा होने के बाद उन्हें फिर से अपने मूल शिक्षण कार्य में लौटना होगा. लेकिन देखा यह जाता है कि एक बार कार्यालय में ड्यूटी लगवाने के बाद में शिक्षक स्कूल में जाने में रुचि नही दिखाता है और ना ही अधिकारी उसे वापस स्कूल भेजता है. इसी तरह ब्लॉक शिक्षा विभाग में प्रतिनियुक्ति पर सालो से लगा शारीरिक शिक्षक फर्जी बिलो से 38 करोड़ का घोटाला कर चुका है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा विभाग के मुखिया के आदेश प्रतिनियुक्ति पर लगे कर्मचारि कितना हल्के में ले रहे है, यह गम्भीर बात है.