श्रीगंगानगर : श्रीगंगानगर पंजाब से सटा हुआ जिला है. यहां के अधिकतर लोग खेती-किसानी पर ही निर्भर रहते हैं. पूरे राजस्थान में जिले से कपास, गेहूं, जौ और सरसों की सप्लाई की जाती है. किसान जी तोड़ मेहनत से खेतों मे फसलों को उगाते हैं, लेकिन तकलीफ इस बात की है कि किसानों की खून-पसीने की कमाई, सही रखरखाव नहीं मिलने से बर्बाद हो रही है. हर साल अकेले श्रीगंगानगर जिले में ही लाखों क्विंटल अनाज बारिश में भीग जाता है, इसके बावजूद हमारी सरकारें अनाज के भंडारण की उचित व्यवस्था पर ध्यान नहीं दे रही हैं. इस साल फिर से जिले में भारी मात्रा में अन्न का उत्पादन हुआ है.
भरे हुए हैं गोदाम
श्रीगंगानगर को 'अन्न का कटोरा' भी कहा जाता है. इस साल यहां रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं, सरसों व चना की बंपर पैदावार होने से गोदाम अनाज से भरे जा चुके हैं. अगले दो माह में खरीफ फसल की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू होनी है. ऐसे में इसके भंडारण की समस्या आ सकती है. हालांकि जिले में समर्थन मूल्य पर खरीदे गए सरसों व चना अधिकांश मात्रा में गोदामों से निकलकर खपत के लिए बाजार में भेज दिया गया है, लेकिन गेहूं से भरे पड़े गोदाम कैसे खाली होंगे? यह बड़ा सवाल है.
सरकार मूंग व कॉटन की सरकारी खरीद 2 से 3 माह बाद शुरू कर देगी. हालांकि मूंग की सरकारी खरीद अक्टूबर माह में हो जाती है, लेकिन कपास खरीद एजेंसी भारतीय कपास निगम दिसंबर में सरकारी खरीद शुरू करती है. तब तक किसान अपना अधिकतर माल ओने पौने दामों में व्यापारियों को बेच देते हैं.
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खरीफ सीजन में सिंचित क्षेत्र की बात करें तो जिले में 5 लाख 80 हजार हेक्टेयर में बुवाई हुई है. जिसमें कॉटन की बुवाई 1 लाख 72 हजार हैक्टेयर में हुई है. वहीं मूंग की बुवाई करीब एक लाख हेक्टेयर में की गई है. सरकार खरीद में समर्थन मूल्य पर मूंग व कॉटन की खरीद करती है. जिले में सरकारी गोदाम भी हैं जिसमें फिलहाल गेहूं भरा हुआ है. वहीं मंडी में बनाए गए सरकारी शेड भी खरीदे गए जींस रखने के लिए काफी कारगर हो सकते हैं. जो फिलहाल खाली हैं.
हालांकि खरीद एजेंसियों के पास अधिकार है कि वह सरकारी गोदाम के अलावा निजी गोदामों को किराए पर लेकर उसमें माल शिफ्ट कर सकते हैं. जिले में निजी गोदाम बड़ी संख्या में हैं, जिनको खरीद एजेंसियां हायर करके जरूरत पड़ने पर खरीदा गया माल ला सकती है.
एफसीआई का कहना-भंडारण की है उचित व्यवस्था
वहीं एफसीआई डीएम लोकेश ब्रहम भट्ट कहते हैं कि रबी सीजन में भारतीय खाद निगम ने 13 लाख 36 हजार मैट्रिक टन गेहूं की खरीद की है. जिसको एफसीआई अपने खुद के गोदाम व प्राइवेट गोदाम में करीब साढ़े छह लाख मैट्रिक टन माल भंडारण करवाया गया है. 3 लाख मीट्रिक टन माल खरीद के दौरान बाहर जिलों में भेजा है. खुले शेड के नीचे रखवाया माल भी अक्टूबर तक खाली होने की बात कही जा रही है.
एफसीआई डीएम बताते हैं कि खरीदे गए सरकारी माल से हर महीने करीब डेढ़ लाख एमटी माल बाहर भेजा जा रहा है. जिससे आने वाले दिनों में गोदाम खाली हो जाएंगे. उधर व्यापारी नेता चंद्रेश जैन कहते हैं कि मूंग की खरीद कोई निश्चित मात्रा में नहीं है. सरकार दिखावे के लिए नाम मात्र की खरीद करती है. ऐसे में मूंग खरीद करने के बाद भंडारण की दिक्कत नहीं आएगी.
एजेंसियों पर नहीं होगा भार
वे कहते हैं कि जिले में इस बार कॉटन का उत्पादन काफी ज्यादा होगा. इसके चलते भाव भी कम रहेंगे, लेकिन कॉटन खरीद भारतीय कपास निगम करती है, जो कॉटन फैक्ट्री में सीधे जाती है. जिसके चलते सरकारी एजेंसियों पर भंडारण का भार नहीं होगा.
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वहीं व्यापारी नेता चंद्रेश जैन का कहना है कि भंडारण की अगर उचित व्यवस्था हो तो हर साल लाखों का माल खराब नहीं होगा. वे कहते हैं कि मूंग की सरकारी खरीद होने के बाद भंडारण की दिक्कत नहीं आएगी. उधर, किसान कहते हैं कि भंडारण व्यवस्था नहीं होने के कारण दिक्कत आ सकती है. रखरखाव सही नहीं होने के चलते हर साल बारिश में खरीदे गए फसलों का नुकसान होता है. गेहूं खरीद के दौरान बारिश होने से नुकसान भी होता है.
मंडी में मजदूर कहते हैं कि शेड का निर्माण सही नहीं होने के चलते शेड के नीचे रखा माल बारिश के दिनों में भीग जाता है. इसी तरह कॉटन भी बारिश के दिनों में खराब हो जाती है. बहरहाल खरीफ सीजन का माल जब तक बाजार में आएगा, तब तक जिले में समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने वाले मूंग को स्टोर करने की जगह पर्याप्त रहेगी. वहीं किसानों के तर्क इस लिहाज से भी ठीक है कि हर साल उनकी फसल बारिश में भीगने से खराब होती है.