श्रीगंगानगर. खेती को किसान अब घाटे का सौदा मानकर इससे दूर होते जा रहे हैं, लेकिन यही खेती अगर आधुनिक तरीके से की जाए तो किसान ही नहीं बल्कि खेतों में काम करने वाले मजदूरों के भी वारे न्यारे हो सकते हैं. अब इसे श्रीगंगानगर इलाके के किसानों का कमाल कहें या उनकी जी तोड़ मेहनत का नतीजा! जिसकी बदौलत किसानों ने यहां पैदा की जाने वाली गाजर को इतना प्रसिद्ध कर दिया कि थोड़े समय में ही दूसरे राज्यों में अब यहां की गाजर को गंगानगरी ब्रांड नाम से जानने लगे हैं.
भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे श्रीगंगानगर जिले की मिट्टी काफी उपजाऊ है. जिसके चलते यहां के किसान इस मिट्टी में भरपूर उपज लेते हैं और यहां की काली मिट्टी सोना गलती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में पानी की कमी और खाद बीज पर महंगाई की मार पड़ने से खेती पर भी इसका असर देखा गया है, जिसके चलते किसान खेती को घाटे का सौदा बताकर इसे मुंह मोड़ रहे थे, लेकिन किसानों ने आधुनिक तरीके से खेती कर खेती में नई किस्मों से भरपूर उपज लेकर खेती में खूब लाभ कमाया है.
यही कारण है कि कल तक यहां का किसान कपास, गेहूं, बाजरा सरसों जैसी फसलों में उलझा रहता था. अब वहीं किसान बागवानी की तरफ अग्रसर होकर खेती से फायदा ले रहा है. किन्नू के बाद यहां के किसानों को गाजर में इतना फायदा दिखाई दिया कि अधिकतर किसानों ने गाजर की खेती ही शुरू कर दी है. यही कारण है कि गंगानगरी गाजर अब पंजाब, हिमाचल, हरियाणा उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भी अपना डंका बजा रही है.
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गंगनहर किनारे लगने वाली अस्थाई मंडी में जो गाजर बिकती है वह किसानों की ओर से बनाए गए बीजों से तैयार होती है. गाजर की क्वालिटी इतनी बढ़िया है कि यहां की गाजर को हर कोई खरीदना चाहता है. गंगानगरी गाजर की धूम देशभर में क्या मची यहां के किसानों ने उत्पादन में एकाएक बढ़ोतरी करके गाजर की खेती से अच्छा लाभ कमा रहे है.
गंगानगरी गाजर की मिठास इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि किसान इस खेती में पेस्टिसाइड का इस्तेमाल कम करके ऑर्गेनिक तरीके से गाजर को तैयार करते हैं. गाजर की क्वालिटी बेहतरीन होने के कारण किसानों को अच्छे भाव भी मिल रहे हैं. किसानो को इस बार गाजर के भाव अच्छे मिलने से एक बीघा में किसान को एक लाख रुपए तक की कमाई हो रही है. तभी किसानो के चहरे खिले हुए हैं.