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Special : श्रीगंगानगर में UP के कारीगर गुड़ में तब्दील कर रहे गन्ने की मिठास, इस काम में है महारत हासिल

श्रीगंगानगर में यूपी से आए कारीगर बड़े पैमाने पर गुड़ बनाते हैं. यूपी में बड़े पैमाने पर गन्ना की खेती होती है और गुड़ बनाया जाता है इसे वहां के कारीगरों को इस कार्य में महारत हासिल है. हालांकि किसानों को गन्ना उत्पादन में उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है. किसान के लिए खेती किसानी में ज्यादा मुनाफा का सौदा नहीं रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
गुड़ में तब्दील हो रही है गन्ने की मिठास
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Published : Mar 15, 2021, 2:23 PM IST

श्रीगंगानगर. शुगर मिल की ओर से गन्ने की पूरी खरीद नहीं करने और भुगतान नहीं होने से आशंकित किसान अब गन्ने की मिठास गुड़ में तब्दील कर दी है. इस बार गन्ने का पकाव सही नहीं होने की वजह से गन्ना में रस भी कम निकल रहा है. जिसके चलते गन्ने से गुड़ बनाने वाले कारीगर भी परेशान है. श्रीगंगानगर में गन्ना का भाव 295 से 310 रुपए प्रती किवंटल तक है जबकि हरियाणा में 350 रुपए प्रति क्विंटल है. श्रीगंगानगर जिले के गन्ना उत्पादक किसानों को उसकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है. किसान के लिए खेती किसानी में ज्यादा मुनाफा का सौदा नहीं रहा है.

गुड़ में तब्दील हो रही है गन्ने की मिठास

किसानों पर बढ़ रहा महंगाई का बोझः

इसका मुख्य कारण बढ़ती महंगाई और खेती पर आमदनी से ज्यादा खर्चा आ रहा है. डीजल की कीमत प्रति लीटर 92 रुपए को भी पार कर गई है. इस स्थिति में गन्ना की बुवाई और लोडिंग कर मील तक लाने, खाद, बीज और गन्ना की कटाई और सिलाई की लेबर का खर्चा 3 साल में काफी बढ़ गया. शुगर मिल प्रबंधन ने पिछले 3 साल से गन्ना का एक रुपए प्रति क्विंटल तक भाव नहीं बढ़ाया है. गन्ना उत्पादक किसानों पर इस कारण इस बढ़ती महंगाई में अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है.

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
गन्ने के रस को उबाला जा रहा है

पढ़ेंः Special: परंपरागत खेती छोड़ नर्सरी उद्योग से 20 गुना कमाई करने वाले किसान की कहानी...

गंगानगर जिले में इस सीजन में 10392 बीघा में गन्ना की फसल है. गन्ना का उत्पादन 18 लाख किवंटल होने का अनुमान है. इसमें से शुगर मिल प्रबंधन को 12 से 13 लाख किवंटल गन्ना मिलने की उम्मीद है. ऐसे में बचे हुए गन्ने को किसान या तो पंजाब में लेकर जाए या गन्ने से गुड़ बनाये. किसान अब अपना बचा हुआ गन्ना उत्तर प्रदेश से आए गुड़ बनाने वाले कारीगरों को बेचकर मुनाफा ले रहे हैं. हालांकि गुड़ बनाने वाले कारीगर कहते हैं कि किसानों को शुगर मिल में गन्ना बेचने की बजाय गुड़ बनाने के लिए कुल्हाडे़ पर गन्ना बेचने से ना केवल नगद भुगतान होता है बल्कि भाव भी सही मिल रहा है.

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
गन्ना उत्पादक किसानों को नहीं मिल रहा मुनाफा

यूपी के कारीगरों को है महारत हासिलः

श्रीकरणपुर क्षेत्र में किसान गन्ने से गुड़ बनवा रहे हैं. श्रीकरणपुर मार्ग पर एक दर्जन जगहों पर गन्ना पिराई कर गुड़ बनाने के लिए कुल्हाडे लगा रखे हैं. सीजन में गुड़ का भी खास कारोबार होता है. जिले में कई वर्षों से उत्तर प्रदेश से आने वाले कारीगरों की टीम की ओर से गुड़ बनाया जा रहा है. यूपी के गुड़ बनाने वाले कारीगरों ने इसका पूरा फायदा उठाया है. हर साल यूपी से बड़ी संख्या में कारीगर और उनके सहयोगी यहां आकर गुड़ बनाते हैं. यूपी में बड़े पैमाने पर गन्ना की खेती होती है और गुड़ बनाया जाता है इसे वहां के कारीगरों को इस कार्य में महारत हासिल है. गुड़ बनाने के लिए भट्टी बनाने से लेकर गन्ना की पिराई और उसके रस को छान कर उबालकर तरल से ठोस रूप में लाने तक के लिए काफी जुगत करनी पड़ती है.

कैसे बनता है गुड़ः

एक गुड़ इकाई स्थापित करने के लिए गन्ने को पिरोने वाला क्रेशर लगाया जाता है. जिसमें गन्ना को पिरो कर उसका रस उबालने के लिए 3 बड़ी कड़ाही में ले जाते हैं. रस को उबालने के लिए जो मिट्टी की चिमनी बनाई जाती है उसमे अलग से इंधन की जरूरत नहीं पड़ती. बल्कि गन्ना के कचरे के जो छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं उन्हें ही जलाने में उपयोग किया जाता है.पाइप के सहारे रस को पहली कढ़ाई में डालते हैं. जहां कपड़छान विधि से उसे छान लिया जाता है.

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
यूपी के कारीगरों को हो इस काम में महारत हासिल

पढ़ेंः SPECIAL : कोरोना के साये ने बदला स्कूलों का वातावरण...दोस्ती बरकरार, दोस्तों में दो गज की दूरी

रस की अशुद्धियों को अलग करने के लिए भिंडी का उपयोग किया जाता है. एक कड़ाही से दूसरी और फिर तीसरी कड़ाही में पहुंचने पर रस पर्याप्त गर्म और शुद्ध हो चुका होता है. तीसरी कढ़ाई में थोड़ा गाढ़ा हो चुके रस को बाहर किसी बड़े और हवादार पत्र में डाला जाता है. जहां उसे ठंडा हो ठोस रूप होने पर उससे गुड़ की भेली अब तैयार कर ली जाती है या फिर अपनी आवश्यकता के अनुसार बड़ी पारियां बना ली जाती है.

हर तरीके के गुड़ बनवाने आते हैं लोगः

यूपी से आने आने वाले कारीगर ठेका पर गुड़ बनाते हैं. कारीगरों ने बताया कि वह अपने 20 सदस्य दल के साथ आए हैं और यहां 3 से 5 प्रति किलो की दर से गुड़ बना रहे हैं. गुड़ बनाने वाले इन कारीगरों की माने तो भट्टी से बनाए जाने वाला गुड़ काफी उच्च क्वालिटी का होता है. जिसमें किसी प्रकार का केमिकल इस्तेमाल नहीं किया जाता है. अधिकतर लोग घरों में खाने के लिए गुड़ बनवाने आ रहे हैं. जिसमें देसी घी से लेकर काजू किशमिश तक डालकर गुड़ की रंगत को तब्दील की जा रही है. गुड़बनाने वाले इन कारीगरों की माने तो उत्तर प्रदेश के मुकाबले यहां आकर गुड़ बनाने में उन्हें ज्यादा मुनाफा मिलता है.

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
ठोस रुप दिया जा रहा है गुड़ को

पढ़ेंः Special: राजस्थान में कोरोना वैक्सीनेशन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे बुजुर्ग, 13 दिन में 14 लाख से ज्यादा लोगों को लगी पहली डोज

हालांकि वे कहते हैं कि इस बार गन्ने में रस कम होने के कारण उन्हें ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा बल्कि नुकसान की आशंका है. उत्तर प्रदेश से गुड़ बनाने के लिए आने वाला कश्यप परिवार गन्ने से गुड़ बनाने में काफी महारत हासिल किए हुए हैं. इनका परिवार पिछले लंबे समय से गन्ने से गुड़ बनाने में अपनी खास पहचान बनाए हुए हैं. उत्तर प्रदेश से हर साल बड़ी संख्या में जिले में ऐसे ही कश्यप परिवार के लोग गुड़ बनाने की महारत हासिल होने के चलते यहां पर लोगों को खाने के लिए गुड़ बना कर देते हैं. इससे उन्हें भी मुनाफा मिलता है.

श्रीगंगानगर. शुगर मिल की ओर से गन्ने की पूरी खरीद नहीं करने और भुगतान नहीं होने से आशंकित किसान अब गन्ने की मिठास गुड़ में तब्दील कर दी है. इस बार गन्ने का पकाव सही नहीं होने की वजह से गन्ना में रस भी कम निकल रहा है. जिसके चलते गन्ने से गुड़ बनाने वाले कारीगर भी परेशान है. श्रीगंगानगर में गन्ना का भाव 295 से 310 रुपए प्रती किवंटल तक है जबकि हरियाणा में 350 रुपए प्रति क्विंटल है. श्रीगंगानगर जिले के गन्ना उत्पादक किसानों को उसकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है. किसान के लिए खेती किसानी में ज्यादा मुनाफा का सौदा नहीं रहा है.

गुड़ में तब्दील हो रही है गन्ने की मिठास

किसानों पर बढ़ रहा महंगाई का बोझः

इसका मुख्य कारण बढ़ती महंगाई और खेती पर आमदनी से ज्यादा खर्चा आ रहा है. डीजल की कीमत प्रति लीटर 92 रुपए को भी पार कर गई है. इस स्थिति में गन्ना की बुवाई और लोडिंग कर मील तक लाने, खाद, बीज और गन्ना की कटाई और सिलाई की लेबर का खर्चा 3 साल में काफी बढ़ गया. शुगर मिल प्रबंधन ने पिछले 3 साल से गन्ना का एक रुपए प्रति क्विंटल तक भाव नहीं बढ़ाया है. गन्ना उत्पादक किसानों पर इस कारण इस बढ़ती महंगाई में अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है.

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
गन्ने के रस को उबाला जा रहा है

पढ़ेंः Special: परंपरागत खेती छोड़ नर्सरी उद्योग से 20 गुना कमाई करने वाले किसान की कहानी...

गंगानगर जिले में इस सीजन में 10392 बीघा में गन्ना की फसल है. गन्ना का उत्पादन 18 लाख किवंटल होने का अनुमान है. इसमें से शुगर मिल प्रबंधन को 12 से 13 लाख किवंटल गन्ना मिलने की उम्मीद है. ऐसे में बचे हुए गन्ने को किसान या तो पंजाब में लेकर जाए या गन्ने से गुड़ बनाये. किसान अब अपना बचा हुआ गन्ना उत्तर प्रदेश से आए गुड़ बनाने वाले कारीगरों को बेचकर मुनाफा ले रहे हैं. हालांकि गुड़ बनाने वाले कारीगर कहते हैं कि किसानों को शुगर मिल में गन्ना बेचने की बजाय गुड़ बनाने के लिए कुल्हाडे़ पर गन्ना बेचने से ना केवल नगद भुगतान होता है बल्कि भाव भी सही मिल रहा है.

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
गन्ना उत्पादक किसानों को नहीं मिल रहा मुनाफा

यूपी के कारीगरों को है महारत हासिलः

श्रीकरणपुर क्षेत्र में किसान गन्ने से गुड़ बनवा रहे हैं. श्रीकरणपुर मार्ग पर एक दर्जन जगहों पर गन्ना पिराई कर गुड़ बनाने के लिए कुल्हाडे लगा रखे हैं. सीजन में गुड़ का भी खास कारोबार होता है. जिले में कई वर्षों से उत्तर प्रदेश से आने वाले कारीगरों की टीम की ओर से गुड़ बनाया जा रहा है. यूपी के गुड़ बनाने वाले कारीगरों ने इसका पूरा फायदा उठाया है. हर साल यूपी से बड़ी संख्या में कारीगर और उनके सहयोगी यहां आकर गुड़ बनाते हैं. यूपी में बड़े पैमाने पर गन्ना की खेती होती है और गुड़ बनाया जाता है इसे वहां के कारीगरों को इस कार्य में महारत हासिल है. गुड़ बनाने के लिए भट्टी बनाने से लेकर गन्ना की पिराई और उसके रस को छान कर उबालकर तरल से ठोस रूप में लाने तक के लिए काफी जुगत करनी पड़ती है.

कैसे बनता है गुड़ः

एक गुड़ इकाई स्थापित करने के लिए गन्ने को पिरोने वाला क्रेशर लगाया जाता है. जिसमें गन्ना को पिरो कर उसका रस उबालने के लिए 3 बड़ी कड़ाही में ले जाते हैं. रस को उबालने के लिए जो मिट्टी की चिमनी बनाई जाती है उसमे अलग से इंधन की जरूरत नहीं पड़ती. बल्कि गन्ना के कचरे के जो छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं उन्हें ही जलाने में उपयोग किया जाता है.पाइप के सहारे रस को पहली कढ़ाई में डालते हैं. जहां कपड़छान विधि से उसे छान लिया जाता है.

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
यूपी के कारीगरों को हो इस काम में महारत हासिल

पढ़ेंः SPECIAL : कोरोना के साये ने बदला स्कूलों का वातावरण...दोस्ती बरकरार, दोस्तों में दो गज की दूरी

रस की अशुद्धियों को अलग करने के लिए भिंडी का उपयोग किया जाता है. एक कड़ाही से दूसरी और फिर तीसरी कड़ाही में पहुंचने पर रस पर्याप्त गर्म और शुद्ध हो चुका होता है. तीसरी कढ़ाई में थोड़ा गाढ़ा हो चुके रस को बाहर किसी बड़े और हवादार पत्र में डाला जाता है. जहां उसे ठंडा हो ठोस रूप होने पर उससे गुड़ की भेली अब तैयार कर ली जाती है या फिर अपनी आवश्यकता के अनुसार बड़ी पारियां बना ली जाती है.

हर तरीके के गुड़ बनवाने आते हैं लोगः

यूपी से आने आने वाले कारीगर ठेका पर गुड़ बनाते हैं. कारीगरों ने बताया कि वह अपने 20 सदस्य दल के साथ आए हैं और यहां 3 से 5 प्रति किलो की दर से गुड़ बना रहे हैं. गुड़ बनाने वाले इन कारीगरों की माने तो भट्टी से बनाए जाने वाला गुड़ काफी उच्च क्वालिटी का होता है. जिसमें किसी प्रकार का केमिकल इस्तेमाल नहीं किया जाता है. अधिकतर लोग घरों में खाने के लिए गुड़ बनवाने आ रहे हैं. जिसमें देसी घी से लेकर काजू किशमिश तक डालकर गुड़ की रंगत को तब्दील की जा रही है. गुड़बनाने वाले इन कारीगरों की माने तो उत्तर प्रदेश के मुकाबले यहां आकर गुड़ बनाने में उन्हें ज्यादा मुनाफा मिलता है.

श्रीगंगानगर का गुड़, jaggery of Sriganganagar
ठोस रुप दिया जा रहा है गुड़ को

पढ़ेंः Special: राजस्थान में कोरोना वैक्सीनेशन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे बुजुर्ग, 13 दिन में 14 लाख से ज्यादा लोगों को लगी पहली डोज

हालांकि वे कहते हैं कि इस बार गन्ने में रस कम होने के कारण उन्हें ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा बल्कि नुकसान की आशंका है. उत्तर प्रदेश से गुड़ बनाने के लिए आने वाला कश्यप परिवार गन्ने से गुड़ बनाने में काफी महारत हासिल किए हुए हैं. इनका परिवार पिछले लंबे समय से गन्ने से गुड़ बनाने में अपनी खास पहचान बनाए हुए हैं. उत्तर प्रदेश से हर साल बड़ी संख्या में जिले में ऐसे ही कश्यप परिवार के लोग गुड़ बनाने की महारत हासिल होने के चलते यहां पर लोगों को खाने के लिए गुड़ बना कर देते हैं. इससे उन्हें भी मुनाफा मिलता है.

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