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श्रीगंगानगर: नवजात की मौत का आंकड़ा सबसे कम, लेकिन संसाधन और स्टाफ की कमी से जूझ रहे अस्पताल

श्रीगंगानगर में नवजात बच्चों की मौत का आंकड़ा सबसे कम है. लेकिन अस्पतालों में संसाधनों के साथ ही स्टाफ की कमी भी है. 18 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में से 4 पर ही शिशु रोग विशेषज्ञ है. 14 केंद्रों पर बच्चों के डॉक्टर ही नहीं हैं.

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Published : Jan 10, 2020, 2:44 PM IST

बच्चों की मौत पर रोक, sri ganganagar government hospital
संसाधन और स्टाफ की कमी से जूझ रहे अस्पताल

श्रीगंगानगर. राज्य के बड़े अस्पतालों में नवजात बच्चों के मरने की लगातार संख्या बढ़ने से हंगामा मचा हुआ है. कोटा, जोधपुर और बीकानेर जैसे बड़े शहरों के अस्पतालों में नवजात बच्चों के मरने का सिलसिला लगातार जारी है. सरकार बच्चों की मौत पर रोक लगाने के लिए संसाधनों के साथ तमाम प्रयास कर रही है.

संसाधन और स्टाफ की कमी से जूझ रहे अस्पताल

वहीं श्रीगंगानगर जिले के सबसे बड़े जिला अस्पताल में कम संसाधनों के बावजूद भी नवजात बच्चों के मरने की संख्या दूसरे जिलों के मुकाबले बहुत कम रही है. हालांकि यहां के सरकारी जिला अस्पताल में नवजात बच्चों की सुरक्षा कंडम होने के कगार पर खड़े रेडिएंट वार्मरों के सहारे है. वहीं जिला अस्पताल में संसाधनों की कमी खल रही है.

पढ़ें. प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में श्रीगंगानगर जिला अस्पताल पहले नंबर पर

यहां की स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में 10 साल पुराने रेडिएंट वार्मरो में ही जन्म से ही असामान्य नवजात बच्चों को रखा जाता है. हैरानी की बात तो यह भी है, कि इस नर्सरी में पिछले 5 सालों में आगजनी की दो घटनाएं हो चुकी है. लेकिन फिर भी किसी बच्चे को नुकसान नहीं हुआ है.

अस्पताल की केयर यूनिट और जिले के अन्य सरकारी अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की न्यू बोर्न केयर यूनिट में कई चीजें सामने आईं हैं. जिले के तमाम सरकारी अस्पतालों में पिछले डेढ़ साल में शिशु रोग वार्ड में भर्ती करीब 50 बच्चों की मौत हुई है.

हालांकि चिकित्सा व्यवस्थाओं की बात करें तो जिले के 18 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में से 4 पर ही शिशु रोग विशेषज्ञ है.14 केंद्रों पर बच्चों के डॉक्टर ही नहीं हैं. यहां बच्चों के जन्म के साथ ही उन्हें श्रीगंगानगर जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. इनमें भी बड़ी बात बात यह है, कि 5 अस्पताल ऐसे हैं, जहां सरकार ने बच्चों के जीवन रक्षक उपकरण रखे हैं, लेकिन उन्हे चलाने के लिए डॉक्टर ही नहीं है.

पढ़ें. जयपुरः जुबेर खान के बेटे के निकाह कार्यक्रम में शामिल होंगी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी

अस्पताल का शिशु रोग विभाग स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कमी और संसाधनों के अभाव से जूझ रहा है. यहां 2009 से 12 बेड की नर्सरी स्वीकृत है. जो साल के ज्यादातर दिनों में ओवर क्राउडेड रहती है. औसतन हर समय 18 बच्चे भर्ती रहते हैं. इससे एक ही वार्ड में दो-दो नवजात भी रखने पड़ते हैं.

जिला अस्पताल का शिशु वार्ड संसाधनों के अभाव के अलावा मैनपावर की कमी से भी जूझ रहा है. वर्तमान में नर्सरी में 10 की बजाय 7 और वार्ड में 5 कर्मचारी ही हैं. नर्सरी में औसतन 18 और वार्ड में 20 बच्चे भर्ती रहते हैं.

मौजूदा हालात को देखते हुए 2 डॉक्टर और 10 कर्मचारी जिला अस्पताल में और चाहिए. जिला अस्पताल को नया एमसीएच भवन मिलते ही नर्सरी की क्षमता दोगुनी कर 24 बेड कर दी जाएगी. लेकिन अभी तक बढ़ाई जाने वाली क्षमता के अनुरूप स्टाफ की व्यवस्था नहीं की गई है.

श्रीगंगानगर. राज्य के बड़े अस्पतालों में नवजात बच्चों के मरने की लगातार संख्या बढ़ने से हंगामा मचा हुआ है. कोटा, जोधपुर और बीकानेर जैसे बड़े शहरों के अस्पतालों में नवजात बच्चों के मरने का सिलसिला लगातार जारी है. सरकार बच्चों की मौत पर रोक लगाने के लिए संसाधनों के साथ तमाम प्रयास कर रही है.

संसाधन और स्टाफ की कमी से जूझ रहे अस्पताल

वहीं श्रीगंगानगर जिले के सबसे बड़े जिला अस्पताल में कम संसाधनों के बावजूद भी नवजात बच्चों के मरने की संख्या दूसरे जिलों के मुकाबले बहुत कम रही है. हालांकि यहां के सरकारी जिला अस्पताल में नवजात बच्चों की सुरक्षा कंडम होने के कगार पर खड़े रेडिएंट वार्मरों के सहारे है. वहीं जिला अस्पताल में संसाधनों की कमी खल रही है.

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यहां की स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में 10 साल पुराने रेडिएंट वार्मरो में ही जन्म से ही असामान्य नवजात बच्चों को रखा जाता है. हैरानी की बात तो यह भी है, कि इस नर्सरी में पिछले 5 सालों में आगजनी की दो घटनाएं हो चुकी है. लेकिन फिर भी किसी बच्चे को नुकसान नहीं हुआ है.

अस्पताल की केयर यूनिट और जिले के अन्य सरकारी अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की न्यू बोर्न केयर यूनिट में कई चीजें सामने आईं हैं. जिले के तमाम सरकारी अस्पतालों में पिछले डेढ़ साल में शिशु रोग वार्ड में भर्ती करीब 50 बच्चों की मौत हुई है.

हालांकि चिकित्सा व्यवस्थाओं की बात करें तो जिले के 18 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में से 4 पर ही शिशु रोग विशेषज्ञ है.14 केंद्रों पर बच्चों के डॉक्टर ही नहीं हैं. यहां बच्चों के जन्म के साथ ही उन्हें श्रीगंगानगर जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. इनमें भी बड़ी बात बात यह है, कि 5 अस्पताल ऐसे हैं, जहां सरकार ने बच्चों के जीवन रक्षक उपकरण रखे हैं, लेकिन उन्हे चलाने के लिए डॉक्टर ही नहीं है.

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अस्पताल का शिशु रोग विभाग स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कमी और संसाधनों के अभाव से जूझ रहा है. यहां 2009 से 12 बेड की नर्सरी स्वीकृत है. जो साल के ज्यादातर दिनों में ओवर क्राउडेड रहती है. औसतन हर समय 18 बच्चे भर्ती रहते हैं. इससे एक ही वार्ड में दो-दो नवजात भी रखने पड़ते हैं.

जिला अस्पताल का शिशु वार्ड संसाधनों के अभाव के अलावा मैनपावर की कमी से भी जूझ रहा है. वर्तमान में नर्सरी में 10 की बजाय 7 और वार्ड में 5 कर्मचारी ही हैं. नर्सरी में औसतन 18 और वार्ड में 20 बच्चे भर्ती रहते हैं.

मौजूदा हालात को देखते हुए 2 डॉक्टर और 10 कर्मचारी जिला अस्पताल में और चाहिए. जिला अस्पताल को नया एमसीएच भवन मिलते ही नर्सरी की क्षमता दोगुनी कर 24 बेड कर दी जाएगी. लेकिन अभी तक बढ़ाई जाने वाली क्षमता के अनुरूप स्टाफ की व्यवस्था नहीं की गई है.

Intro:श्रीगंगानगर : राज्य के बड़े अस्पतालों में नवजात बच्चों के मरने की लगातार संख्या बढ़ने से हंगामा मचा हुआ है। कोटा,जोधपुर और बीकानेर जैसे बड़े अस्पतालों में नवजात बच्चों के मरने का सिलसिला लगातार जारी है। सरकार बच्चों की मौत पर रोक लगाने के लिए संसाधनों के साथ तमाम प्रयास कर रही है तो वहीं श्रीगंगानगर जिले के सबसे बड़े जिला अस्पताल में कम संसाधनों के बावजूद भी नवजात बच्चों के मरने की संख्या दूसरे जिलों के मुकाबले बहुत कम रही है। हालांकि यहां के सरकारी जिला अस्पताल में नवजात बच्चों की सुरक्षा कंडम होने के कगार पर खड़े रेडिएंट वर्मरो के सहारे हैं तो वहीं जिला अस्पताल में संसाधनों की कमी खल रही है। यहां की स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में 10 साल पुराने रेडिएंट वार्मरो में ही जन्म से ही असामान्य नवजात बच्चो को रखा जाता है। हैरानी की बात तो यह भी है कि इस नर्सरी में पिछले 5 वर्षों में आगजनी की दो घटनाएं हो चुकी है। लेकिन फिर भी किसी बच्चे को नुकसान नहीं हुआ है। अस्पताल की केयर यूनिट और जिले के अन्य सरकारी अस्पतालों,सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की न्यू बोर्न केयर यूनिट में कई चीजें सामने आई है। जिले के तमाम सरकारी अस्पतालों में पिछले डेढ़ साल में शिशु रोग वार्ड में भर्ती करीब 50 बच्चों की मृत्यु हुई है जो कि प्रसव के दौरान कई कारणों से मौत होना भी माना जाता है।


Body:हालांकि चिकित्सा व्यवस्थाओं की बात करें तो जिले के 18 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में से चार पर ही शिशु रोग विशेषज्ञ है।14 केंद्रों पर बच्चों के डॉक्टर ही नहीं हैं। यहां बच्चों के जन्म के साथ ही उन्हें श्रीगंगानगर जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। इनमें भी बड़ी बात बात यह है कि 5 अस्पताल ऐसे हैं जहां सरकार ने बच्चों के जीवन रक्षक उपकरण रखे हैं लेकिन वहां चलाने के लिए डॉक्टर ही नहीं है। अस्पताल का शिशु रोग विभाग स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कमी और संसाधनों के अभाव से जूझ रहा है। यहां वर्ष 2009 से 12 बेड की नर्सरी स्वीकृत है।जो साल के ज्यादातर दिनों में ओवर क्राउडेड रहती है।औसतन हर समय 18 बच्चे भर्ती रहते हैं।इससे एक ही वार्ड में दो-दो नवजात भी रखने पड़ते हैं। वार्ड में 14 रेडिएंट वार्मर उपलब्ध करवाए गए हैं। इसमें से तीन नकारा हो चुके हैं। 14 रेडिएंट वार्मर चालू हालत में हैं। 3 रेडिएन्ट में दो ऑपरेशन थिएटर और एक लेबर रूम में रखा गया है। जिला अस्पताल का शिशु वार्ड संसाधनों के अभाव के अलावा मैन पावर की कमी से भी जूझ रहा है।वर्तमान में नर्सरी में 10 की बजाय 7 और वार्ड में 5 कर्मचारी ही है। नर्सरी में औसतन 18 और वार्ड में 20 बच्चे भर्ती रहते हैं। वर्तमान में रोगी बच्चों की संख्या को देखते हुए 2 डॉक्टर और 10 कर्मचारी जिला अस्पताल में और चाहिए। जिला अस्पताल को नया एमसीएच भवन मिलते ही नर्सरी की क्षमता दोगुनी कर 24 बेड कर दी जाएगी। लेकिन अभी तक बढ़ाई जाने वाली क्षमता के अनुरूप स्टाफ की व्यवस्था नहीं की गई है।

बाईट : केशव कामरा,पीएमओ,जिला अस्पताल।
बाईट : रविंदर शर्मा,अध्यक्ष, नर्सिंग एसोसिएशन


Conclusion:कम संसाधनों में बेहतर मेनेजमेन्ट से नवजात बच्चों की मौत पर रोक।
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