सिरोही. वैलेंटाइन-डे के मौके पर दुनियाभर की प्रेम कहानियां पढ़ने और सुनने को मिल रही हैं. माउंट आबू में भी एक अमर प्रेम कहानी है, जो अधूरी रह गई थी. यह हकीकत है या सिर्फ फसाना. फिलहाल, इसका जवाब किसी के पास नहीं, मगर दावा किया जा रहा है कि माउंट आबू में रसिया बालम और कुंवारी कन्या की अधूरी प्रेम कहानी पांच हजार साल से ज्यादा पुरानी है. इनकी प्रेम कहानी का सबूत माउंट आबू की वादियों में स्थित नक्की झील है.
माउंट आबू रसिया बालम और कुंवारी कन्या की लव स्टोरी के बारे में एक कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार रसिया बालम आबू पर्वत में मजदूरी करने आया था. कई उसे शिव का रूप भी मानते हैं और राजकुमारी को देवी का रूप. इसलिए इनके यहां मंदिर भी हैं. माउंट आबू की राजकुमारी को उससे प्यार हो गया. राजा ने दोनों की शादी के लिए एक शर्त रखी की यदि एक रात में बिना किसी औजारों के यदि कोई झील खोद देगा तो उसकी बेटी की शादी वह उससे करा देगा.
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नाखूनों से खोद डाली थी झील
रसिया बालम ने एक ही रात में नक्की झील को खोद डाला और राजा के पास जाने लगा. लेकिन राजकुमारी की मां नहीं चाहती थी की उसकी शादी उससे हो. ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी की मां ने रात में ही मुर्गे की आवाज निकाल दी और रसिया बालम को लगा कि वह शर्त हार गया है. जब वह अपने प्राण त्यागने लगा तो उसे राजकुमारी की मां के षड़यंत्र के बारे में पता चला. इस पर उसके श्राप के बाद राजकुमारी की मां और बाद में वह और राजकुमारी दोनों की पत्थर के बन गए.
राजकुमारी की मां पर बरसाते हैं पत्थर
देलवाड़ा के कन्या कुंवारी रोड पर मंदिर और प्यार-समर्पण की निशानी नक्की झील, प्रेमी-जोड़े और नव दंपती उनका आशीर्वाद लेने आते हैं. आज भी मंदिर में पूजा होती है और देखभाल मदन जी ठाकुर पुजारी के जरिए की जा रही है. ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी की मां की वजह से अधूरी रही प्रेम कहानी. इसलिए यहां आने वाले प्रेमी जोड़े राजकुमारी की मां को पत्थर मारते हैं और वहां पत्थरों का ढेर भी लगा है. ऐसा माना जाता है कि इन पत्थरों के ढेर के नीचे राजकुमारी के मां की प्रतिमा है.
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चार युग बीत जाने के बाद होगा मिलन
एक किंवदंती यह भी है कि मंदिर में दो पेड़ हैं, जिसे रसिया बालम का तोरण कहा जाता है. इसके बीच हवन कुंड है. यह भी एक किंवदंती है कि किसी संत महात्मा ने यह बताया था कि चार युग बीतने के बाद इन दोनों का फिर से मिलन होगा. बताया जाता है कि यह मंदिर पांच हजार साल से भी अधिक पुराना है. साल 1453 से 1468 तक महाराणा कुंभा यहां रुके थे. इस दौरान उन्होंने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था.
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रसिया बालम की प्रेमकथा आज भी माउंट आबू पूरे मारवाड़-गोडवाड़ जिले में लोकगीतों में जिंदा है. रसिया बालम पर रसियो आयो गढ़ आबू रे माय, देलवाड़ा आईने झाड़ो गाढ़ियो रे, वठे करियो कारीगरी रो काम, वठे बनाई मूरती शोभनी रे...स्थानीय भाषा में ये लोकगीत प्रसिद्ध है. इस लोकगीत में रसिया बालम के माउंट आबू पहुंचने और यहां देलवाड़ा के पास मूर्तिकला का काम करके प्रसिद्धि पाने से लेकर कुंवारी कन्या से शादी करने के लिए नक्की झील खोदने तक की पूरी गाथा है.
1200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यह झील
नक्की झील समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भारत की एकमात्र झील है. नक्की झील माउंट आबू का प्रमुख आकर्षण है. यह झील ढाई किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है. झील के पास एक पार्क भी है, जहां पर स्थानीय निवासियों और सैलानियों की दिन भर भीड़ जमा रहती है. नक्की झील राजस्थान की सबसे ऊंची झील है. चारों तरफ पहाड़ों से घिरी यह झील राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच में स्थापित माउंट आबू अपनी नैसर्गिक ख़ूबसूरती के लिए जाना जाता है.