सिरोही. आबूरोड के ब्रह्माकुमारी संस्था के शांतिवन में गुरुवार को संस्था के संस्थापक प्रजापति ब्रह्मा बाबा की 53वीं पुण्यतिथि (53rd death anniversary of brahma baba) पर 'आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत को ओर' कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअली शामिल हुए.
पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को 'आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर' कार्यक्रम के शुभारंभ समारोह को संबोधित किया. पीएम मोदी ने कहा कि हमारे और राष्ट्र के सपने एक ही हैं. एक नया सवेरा होने वाला है. जब संकल्प से साधना जुड़ी तो कालखंड बनना तय है. उन्होंने कहा कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास देश का मूल मंत्र है.
पीएम मोदी ने कहा कि ब्रह्मकुमारी मुख्यालय से बड़े अभियान की शुरुआत हुई है. इसके तहत देशभर में 15 हजार कार्यक्रम होंगे. पीएम ने कार्यक्रम में कहा कि कितना भी अंधेरा छाए, भारत मूल स्वभाव नहीं छोड़ता. आज करोड़ों भारतवासी स्वर्णिम भारत की आधारशिला रख रहे हैं. हमारी प्रगति राष्ट्र की प्रगति में निहित है. राष्ट्र का अस्तित्व हम से है और राष्ट्र से ही हमारा अस्तित्व है. यह अहसास नए भारत के निर्माण में भारतीयों की सबसे बड़ी ताकत बनता जा रहा है.
महिलाओं के बलिदान को किया याद: दुनिया जब अंधकार के गहरे दौर में थी, महिलाओं को लेकर पुरानी सोच में जकड़ी थी, तब भारत मातृशक्ति की पूजा, देवी के रूप में करता था. हमारे यहां गार्गी, मैत्रेयी, अनुसूया, अरुंधति और मदालसा जैसी विदुषियां समाज को ज्ञान देती थीं. कठिनाइयों से भरे मध्यकाल में भी इस देश में पन्नाधाय और मीराबाई जैसी महान नारियां हुईं. अमृत महोत्सव में देश जिस स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को याद कर रहा है, उसमें भी कितनी ही महिलाओं ने अपने बलिदान दिए हैं. कित्तूर की रानी चेनम्मा, मतंगिनी हाजरा, रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारी बाई से लेकर सामाजिक क्षेत्र में अहल्याबाई होल्कर और सावित्रीबाई फुले तक, इन देवियों ने भारत की पहचान बनाए रखी.
पीएम मोदी ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता, अपने संस्कारों को जीवंत रखना है, अपनी आध्यात्मिकता को, अपनी विविधता को संरक्षित और संवर्धित करना है साथ ही टेक्नोलॉजी, इनफ्रास्ट्रक्चर, एजुकेशन, हेल्थ की व्यवस्थाओं को निरंतर आधुनिक भी बनाना है. अमृतकाल का ये समय सोते हुए सपने देखने का नहीं बल्कि जागृत होकर अपने संकल्प पूरे करने का है. आने वाले 25 साल परिश्रम की पराकाष्ठा, त्याग, तप-तपस्या के 25 वर्ष हैं. सैकड़ों वर्षों की गुलामी में हमारे समाज ने जो गंवाया है ये 25 वर्ष का कालखंड उसे दोबारा प्राप्त करने का है.